Thursday, April 30, 2020

महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज की बात मानी गई तो आज मजदूरों की यह हाल न हुई होती .



शेष नारायण सिंह


देश के हर बड़े शहर में गाँवों से जाकर मजदूरी करने वालों की दुर्दशा को देखकर महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने की तरफ बार बार ध्यान जा रहा  है . उन्होंने ने कहा था कि भारत के आज़ाद होने के बाद यहाँ ग्राम स्वराज   आयेगा . देश को विकसित करने के लिए गांव को विकास की इकाई बनाया जाएगा और गाँवों की सम्पन्नता ही देश की सम्पन्नता की यूनिट बनेगी . जवाहरलाल नेहरू गांधी जी की हर बात को मानते थे लेकिन पता नहीं क्यों उन्होंने गांधी के विकास के दर्शन की इस बुनियादी बात को लागू नहीं किया . उन्होंने सोवियत रूस में प्रचलित ब्लाक डेवेलपमेंट के माडल को अपनाया . और उसी को बुनियाद बनाकर ग्रामीण विकास के लिए सामुदायिक विकास की बहुत बड़ी योजना को लागू कर दिया . आज़ादी के बाद देश में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शुरू किये गए कार्यक्रमों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम था . लेकिन यह असफल रहा ,अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका. इस कार्यक्रम को शुरू करते वक़्त लगभग हर मंच से सरकार ने यह दावा किया था कि कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम के ज़रिये महात्मा गांधी के सपनों के भारत को एक वास्तविकता में बदला जा सकता है. मौजूदा सरकार भी महात्मा  गांधी के नाम पर कई कार्यक्रम चला रही है .  यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत के गाँवों को खुशहाल देखने के महात्मा गांधी के सपने को क्या इन कार्क्रमों से कोई लाभ हुआ  है .  इस संकट के दौर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गांधी के सपनों के भारत को एक आकार देने की कोशिश की है . उत्तर प्रदेश  के मुख्यमंत्री ने चार अफसरों की एक  कमेटी बनाई है जिनका ज़िम्मा है कि राज्य में इतने उद्योग लगवा दिए जाएँ कि जो लड़के मुंबईसूरतदिल्लीफरीदाबाद ,गुडगाँव, लुधियाना ,भिवंडी आदि शहरों से   वापस आये हैं उनको यहीं पर वही काम दे दिया जाए  जो वे वहां कर रहे थे . अगर यह योजना सफल हो गयी तो  ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों के पलायन को रोका जा सकेगा . यह माडल पूरे देश में नक़ल भी किया जा सकता है . चीन से अमरीका और यूरोप के देश अब कारोबार करने में संकोच करेंगे. जो चीन से मुंह फेरने वाले हैं उनको अगर भारत के यह ग्रामीण उद्योग अपनी तरफ खींच सकें तो कोरोना संकट के  बाद भारत को  बहुत लाभ मिलेगा . देश के आर्थिक विकास को इस माडल से गति मिल सकती है


भारत में २ अक्टूबर १९५२ के दिन जब कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत की गयी तो सोचा गया था कि इसके रास्ते ही ग्रामीण भारत का समग्र विकास किया जाएगा.इस योजना में खेती,पशुपालन,लघु सिंचाई,सहकारिता,शिक्षा,ग्रामीण उद्योग अदि शामिल था जिसमें सुधार के बाद भारत में ग्रामीण जीवन की हालात में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता था.कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम को लागू करने के लिए बाकायदा एक अमलातंत्र बनाया गया . जिला और ब्लाक स्तर पर सरकारी अधिकारी तैनात किये गए लेकिन कार्यक्रम से वह नहीं हासिल हो सका जो तय किया गया था. इस तरह महात्मा गांधी के सपनों के भारत के निर्माण के लिए सरकारी तौर पर जो पहली कोशिश की गयी थी वह भी बेकार साबित हुई . ठीक उसी तरह जिस तरह गांधीवादी दर्शन की हर कड़ी को अंधाधुंध औद्योगीकरण और पूंजी के केंद्रीकरण के सहारे तबाह किया गया .  ग्रामीण भारत में शहरीकरण के तरह तरह के प्रयोग हुए और जिसके कारण ही आज भारत उजड़े हुए गाँवों का एक देश है .

 जवाहरलाल नेहरू  के दिमाग में तो यह बात समा गयी थी कि भारत का ऐसा विकास होना चाहिये जिसके बाद भारत के गाँव भी शहर जैसे दिखने लगें . वे गाँवों में शहरों जैसी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के चक्कर में थे .उन्होंने उसके लिए सोवियत रूस में चुने गए माडल को विकास का पैमाना बनाया . नतीजा यह  हुआ कि हम एक राष्ट्र के रूप में बड़े शहरों , मलिन बस्तियों और उजड़े गाँवों का देश बन गए . कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम को शुरू करने वालों ने सोचा था कि इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद खेतोंघरों और सामूहिक रूप से गाँव में बदलाव आयेगा . कृषि उत्पादन और रहन सहन के स्तर  में बदलाव आयेगा . गाँव में रहने वाले पुरुष ,स्त्री और नौजवानों की सोच में बदलाव लाना भी कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम का एक उद्देश्य था लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. सरकारी स्तर पर ग्रामीण विकास के लिए जो लोग तैनात किये गए उनके मन में सरकारी नौकरी का भाव ज्यादा था , इलाके या गांव के विकास को उन्होंने कभी प्राथमिकता नहीं दिया . ब्रिटिश ज़माने की नज़राने की परम्परा को इन सरकारी कर्मचारियों ने खूब विकसित किया. पंचायत स्तर पर कोई भी ग्रामीण लीडरशिप विकसित नहीं हो पायी. सच्चाई यह है कि ग्रामीण विकास का काम ऐसा है जिसमें नतीजे हासिल करने के लिए किया जाने वाला प्रयास ही सबसे अहम प्रक्रिया है . सरकारी बाबुओं ने उस प्रक्रिया को मार दिया .उसी प्रक्रिया के दौरान तो गाँव के स्तर पर सही अर्थों में लीडरशिप का विकास होता लेकिन सरकारी कर्मचारियों ने ग्रामीण लीडरशिप को पनपने ही नहीं दिया . .सामुदायिक विकास के बुनियादी सिद्धांत में ही लिखा है कि समुदाय के लोग अपने विकास के लिए खुद ही प्रयास करेगें .उस काम में लगे हुए सरकारी कर्मचारियों का रोल केवल ग्रामीण विकास के लिए माहौल बनाना भर था लेकिन वास्तव में ऐसा कहीं नहीं हुआ . उदाहरण महात्मा गाँधी के नाम पर शुरू किये गए मनरेगा कार्यक्रम की कहानी है . बड़े ऊंचे उद्देश्य के साथ शुरू किया गया यह कार्यक्रम आज ग्राम प्रधान से लेकर कलेक्टर तक को आर्थिक लाभ पंहुचाने का साधन बन कर रहा गया है .  इसलिए आज महात्मा गाँधी के भारत में  दर दर की ठोकर खा रहे मजदूरों की दुर्दशा के मद्दे-नज़र  उनके सपनों का भारत बनाने के लिए  सरकारों से आग्रह किया जाना चाहिए कि अंधाधुंध  शहरीकरण के चक्कर में कहीं हम अपने देश के गाँवों को तबाह न कर दें .बड़े शहरों में जाने से लोगों को  रोकने की कोशिश करें और उनके गाँव के आसपास की उनको काम दें .

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