Tuesday, April 21, 2020

देश के सभी मुसलमानों को तबलीगी जमात से जोड़ना ग़लत है


शेष नारायण सिंह                                                                             
कोरोना वायरस के फैलने से दुनिया के कई मुल्कों में  हालात बहुत ही  चिंताजनक है . इस खतरनाक  बीमारी से केवल कुछ देश बचाव कर पाए हैं  सिंगापुर,   दक्षिण कोरिया जापान जैसे कुछ देशों में  वायरस के फैलने से पहले उसको काबू में कर लिया गया है  . लेकिन जिन देशों में सरकारें काबू करने में  सफल नहीं रही हैं वहां कोरोना के खलनायकों की तलाश  शुरू हो गयी है . अमरीका में स्वतंत्र मीडिया की ताक़त के कारण सच्चे खलनायक को देश ने पहचान लिया है  और अब  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस की महामारी के एक ख़ास खलनायक के रूप में पहचाने जा रहे हैं. विश्वविख्यात  दार्शनिक नोम चाम्सकी ने तो उनको असामाजिक जोकर ( Sociopathic Buffoon)  कह  दिया है . अब अमरीका सहित  सारी दुनिया में यह माना जाता है कि ट्रंप के ऊल जलूल बयानों के कारण अमरीका की हालत  ज्य़ादा बिगड़ी है .अमरीका में इस वायरस के कारण मरने वालों की संख्या आठ हज़ार के पार पंहुच  चुकी है . अगर सही समय पर ज़रूरी कदम उठा लिए गए होते तो शायद बात इतना न बिगडती . डोनाल्ड  ट्रंप बहुत दिनों तक यह मानने को ही तैयार नहीं थे  कि कोरोना से कोई गंभीर ख़तरा  है. अभी दो हफ्ते पहले  तक वे कोरोना की  वैक्सीन के शोध दावा कर थे  रहे कि डेढ़ साल में कोरोना की वैक्सीन का विकास कर लिया जाएगा . जब उनको याद दिलाया गया कि अभी  तो युद्ध जैसे हालात हैं और आपको उसके  बारे में चिंता  करनी है और कोरोना के  संकट के इलाज और रोकथाम के फौरी  तरीकों पर ध्यान देना चाहिए , वैक्सीन का  अभी कोई  महत्व नहीं है , तब जाकर ज़मीन पर आये और कुछ वास्तविकता की बात करने लगे  . इसके बावजूद कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है . आज ही उनका बयान आया है कि खेलकूद की गतिविधियाँ शुरू की जा सकती हैं .अमरीका  में  दिसम्बर २०१९ में ही कोरोना की खतरनाक संक्रामकता के बारे  में जानकारी थी . फरवरी के आख़िरी हफ्ते में  कोरोना वायरस के मरीजों की जानकारी बड़े पैमाने पर अखबारों में  छपने लगी थी लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप निश्चिन्त थे . फरवरी के  अंतिम सप्ताह में ही वे भारत आये थे और अपने स्वागत में उमड़ी भीड़ को देखकर गदगद हो रहे   थे. अब जाकर उन्होंने स्वीकार किया  कि इस बीमारी से अमरीका में करीब ढाई लाख लोगों के मरने का अंदेशा है . इस सब के बाद उन्होंने कोरोना का मुकाबला एक  महायुद्ध की तरह करने का फैसला किया है.  मीडिया उनको हमेशा घेरता रहता  है लेकिन उनपर कोई  असर नहीं पड़ता .  व्हाइट हाउस की मीडिया ब्रीफिंग में जब एक अमरीकी पत्रकार ने उनसे पूछा कि ,' आप लगातार झूठ बोलते रहे और आपके झूठ की  वजह से पूरे  देश को नुक्सान हो रहा  है ,लोग मर रहे हैं ' उनके पास कोई जवाब  नहीं था.
 ११  मार्च को विश्व स्वास्थ्य  संगठन ने कोरोना को भयानक महामारी (  Pandemic ) घोषित कर दिया था लेकिन अमरीकी राष्ट्रपपति उसके बाद भी  शेखी बघारते रहे और दावा करते रहे कि उनके देश का कोई ख़ास नुकसान नहीं होगा .    लगभग यही हालत अपने देश की भी है . बहुत दिन तक भारत सरकार कोरोना को गंभीरता से लेने से इनकार करती रही .  ११ मार्च के दिन कोरोना को  खतरनाक महामारी  घोषित  किया  जा चुका लेकिन १३ मार्च को  भारत  सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय  की तरफ से बयान दिया गया कि अभी अपने देश में मेडिकल इमरजेंसी नहीं है . कोरोना वायरस से भारत  में कोई ख़ास परेशानी नहीं होगी . दुनिया के कई देशों में इस बीमारी से आतंक फैला हुआ था लेकिन गृहमंत्रालय के  अधीन काम करने वाली  दिल्ली पुलिस ने १३ मार्च को  दिल्ली के  हज़रत निजामुद्दीन थाने  से सटी हुई एक मस्जिद में  कोरोना प्रभावित देशों से आये लोगों का एक सम्मलेन करने की अनुमति दी और  आयोजन होने  दिया . यह तबलीगी जमात का कार्यक्रम था . तबलीगी जमात  एक धार्मिक संस्था है जो करीब सौ साल  से  सक्रिय  है. दिल्ली में निज़ामुद्दीन इलाक़े में उनका  मरक़ज़  है .तबलीगी जमात  मुसलमानों की बहुत बड़ी संस्था है. इनके मरक़ज़ों में  लोग आते जाते रहते हैं.जब कोरोना संक्रमण के पॉजिटिव मामले पाए जाने की खब़र फैली तब भी वहां इज्तेमा चली रही थी. इज्तेमा के दौरान हर राज्य से हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं.
ऐसा लगता है कि मीडिया कोरोना  का खलनायक तलाशने की मुहिम में लगी हुई थी .  निज़ामुद्दीन में हुए तबलीगी जमात के  सम्मलेन को ही कोरोना के खलनायक के रूप में पेश  करने  का अवसर मिल गया . वह कोशिश जारी है .  सम्मलेन के आयोजकों का काम निश्चित रूप से  गैरजिम्मेदार  है. उनके बयानों के गैरजिम्मेदार   स्वरूप के कारण ही मीडिया को सभी मुसलमानों को लपेटने में आसानी हो रही है .मार्च के महीने में  राज्यों से लोग इज्तेमा के लिए आए थे. जिसमें कई विदेशी भी थे. कोरोना वायरस के संकट के दौरान तेलंगाना सरकार ने दावा किया कि उनके राज्य में पाए  गए मरीजों में कुछ ऐसे हैं जो दिल्ली में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में  शामिल   हुए थे  . उसके बाद तो देश के टीवी चैनलों ने आसमान सर पर उठा लिया . तबलीगी जमात को ही देश में कोरोना वायरस के  प्रसार के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाने लगा . नतीजा यह हुआ कि  जनमानस में यह बात भर दी गयी  कि सारे मुसलमान तबलीगी जमात के पक्ष में हैं और कोरोना के फैलाव के  लिए वही ज़िम्मेदार हैं .  चैनलों पर मचे हाहाकार में तबलीग़ी जमात का पक्ष रखने की जहमत तक नहीं उठायी गयी . बीबीसी ने उनके पक्ष को प्रमुखता से छापा . पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों में  सभी पक्षों की बात रखना शामिल है लेकिन अजीब दुर्भाग्य है कि टीवी पत्रकारिता में इस बात का ध्यान नहीं रखा जा रहा है . बीबीसी के अनुसार  तबलीग़ी जमात ने एक प्रेस नोट जारी किया  जिसके मुताबिक़ उनका कार्यक्रम साल भर पहले से तय कर लिया गया था . अधिकारियों से अनुमति ले ली गई थी . जब प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ़्यू का एलान कियातब तबलीग़ी जमात ने अपने यहाँ चल रहे कार्यक्रम को  तुरंत रोक दिया था. पूर्ण लॉकडाउन के एलान के पहले भी कुछ राज्यों ने अपनी तरफ से ट्रेन और बस सेवाएं रोक दी थी. इस दौरान जहां के लोग वापस जा सकते थे उनको वापस भेजने का पूरा बंदोबस्त तबलीग़ी जमात प्रबंधन ने किया. इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री ने पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी. जिसकी वजह से कई लोग वापस नहीं जा सके और वो वहीं मरक़ज़ में रह रहे थे.
यह बात सच है कि  तबलीगी जमात में शामिल लोगों में कोरोना के लक्षण पाए  जा रहे हैं .बीबीसी की ही एक खबर के मुताबिक मलेशिया में कुआलालंपुर की एक मस्जिद में 27 फ़रवरी से एक मार्च तक निजामुद्दीन जैसा ही आयोजन हुआ था. उस आयोजन में शामिल लोगों से दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों में कोरोना वायरस का संक्रमण फैला है .अल ज़जीरा की रिपोर्ट के मुताबिक़ मलोशिया में कोरोना संक्रमण के कुल जितने मामले पाए गए हैं उनमें से दो-तिहाई तबलीग़ी जमात के आयोजन का हिस्सा थे. ब्रुनेई में कुल 40 में से 38 लोग इसी मस्जिद के आयोजन में शामिल होने वाले कोरोना से संक्रमित पाए गए थे.सिंगापुरमंगोलिया समेत कई देशों में इस तबलीगी जमात  के आयोजन के लोगों से ही कोरोना फैला था. पाकिस्तान के डॉन अखबार के मुताबिक़ तबलीग़ी जमात के आयोजन में शामिल कई लोगों में उनके देश में भी कोरोना संक्रमण पाया गया . लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कोरोना के संक्रमण के लिए सारे मुसलमान ज़िम्मेदार हैं . जो भी चैनल इस तरह का माहौल बना रहे हैं वह गैरजिम्मेदार काम है .
तबलीगी जमात वाले मुसलमानों की  देवबंदी  विचारधारा के प्रचार में लगे  हुए हैं . देवबंदी लोग अपनी विचारधारा को दारुल उलूम देवबंद से लेते हैं . जमीअत उलेमा-ए- हिन्द उनका मुख्य संगठन  है . बताते हैं कि देश में मुसलमानों  की कुल आबादी का केवल 17 प्रतिशत हिस्सा  ही देवबंदी  मुसलमानों का है . मुसलमानों  के दो बड़े वर्ग बरेलवी और शिया लोगों का तबलीगी जमात से कोई मतलब नहीं है .  वहीं हज़रत निजामुद्दीन में  महान सूफी संत ,ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह है जो चिश्तिया सिलसिले के  बहुत ही बड़े बुज़ुर्ग हैं . उनके सूफी मत को मानने वालों की भी देश में बहुत बड़ी संख्या है . वे भी तबलीगी जमात से कोई मतलब नहीं रखते हैं .  कहा तो यह भी  जाता है कि देवबंदियों का एक बड़ा वर्ग तबलीगी जमात का पक्ष सही नहीं मानता . एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल मुसलमानों का केवल पांच प्रतिशत ही शुद्ध रूप से तबलीगी जमात वाले होंगे . ऐसी हालत में   देश के सभी मुसलमानों को   तबलीगी जमात से जोड़ना ठीक नहीं  है क्योंकि देश की मुस्लिम आबादी का 83 प्रतिशत हिस्सा तबलीगी जमात का विरोधी होता है .ऐसी हालत में सभी मुसलमानों को तबलीगी मुसलमानों का हमदर्द बताना ठीक नहीं है . सरकार के पास यह सारी जानकारी है.  इसलिए  सरकार को अपनी तरफ से इस बात को स्पष्ट कर देना चाहिए .

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