Sunday, March 15, 2020

डोनाल्ड ट्रंप से दोस्ती के चक्कर में भारत को चीन के खिलाफ अमरीका का फ्रंट स्टेट नहीं बनना चाहिए



शेष नारायण सिंह


आजकल की हालत पर एक सवाल उठाना बहुत ज़रूरी हो गया है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत आ क्यों रहे  हैं . उन्होंने साफ कह दिया  है कि कोई बड़ा  व्यापारिक सौदा नहीं होगा . वे आयेंगे , दो दिन रहेंगे . अहमदाबाद जायेंगे , आगरा जायेंगे और  दिल्ली में केजरीवाल सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के प्रिय प्रोजेक्ट , दिल्ली के सरकारी स्कूलों में प्रसन्नता की कक्षाओं में उनकी पत्नी जाकर कुछ देखेंगी. अमरीकी राष्ट्रपति की यात्रा का सारा प्रोटोकल निभाया जाएगा . अभी आये नहीं  हैं लेकिन अमरीका में  उन्होंने बयान जारी करके बता दिया है कि  अभी वे भारत के साथ को व्यापारिक डील नहीं करेंगे. उसको बाद के लिए रखेंगें . जब हमारे प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी अमरीका  गए थे तो  अमरीका के दक्षिणी हिस्से में एक शहर में करीब पचास हज़ार लोग इकठ्ठा हुए थे .  अब यहाँ ट्रंप महोदय उम्मीद लगाये बैठे है कि उनके स्वागत में सत्तर लाख लोग आयेंगे . कोई उनसे पूछे कि महराज अहमदाबाद शहर की आबादी ही छप्पन लाख है तो आपके स्वागत के लिए इतनी बड़ी संख्या कैसे  जुटाई जायेगी . लेकिन उन्होंने मुंह खोल के कह  दिया है कि सत्तर लाख लोग होंगें तो करना तो पडेगा ही . अहमदाबाद  में उनके शो का एजेंडा भी कुछ अमरीकी अखबारों में छपना शुरू हो गया है . ट्रंप को उम्मीद है कि इसी साल के अंत में होने वाले राष्ट्रपति  पद के चुनाव में वे दोबारा जीत जायेंगें . अमरीका में बसे भारतीयों की एक बड़ी संख्या डेमोक्रेटिक  पार्टी को वोट देती  रही है . ट्रंप इस फ़िराक में हैं कि मोदी की अमरीका में बसे भारतीयों में जो लोकप्रियता  है उसके चलते उनको एक बड़ी भारतीय मूल वालों की अमरीकी आबादी का समर्थन मिल जाएगा .

साफ दिख रहा  है कि ट्रंप की इस  यात्रा  से भारत को कोई लाभ नहीं होने वाला है  लेकिन गुजरात सरकार उनकी यात्रा को अमरीकी दम्पति के लिए एक यादगार यात्रा बनाने  के लिए सारे उपाय कर रही है .  हवाई अड्डे से सभास्थल पर जाने वाले  रास्ते में बहुत सारी झुग्गियां पड़ती हैं. एक बहुत ही बड़ी दीवार बनाई जा रही है जो उन झुग्गियों को अमरीकी प्रथम दम्पति की नज़र से ओझल कर देगा . उस दीवाल पर  पेंटिंगें बनाई जा रही हैं . शहर में आवारा पशुओं की बहुत बड़ी संख्या है . उनको सम्हालने का इंतज़ाम भी किया जा रहा  है . अहमदाबाद के नगर निगम में आवारा कुत्तों को पकड़ने का एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट चल रहा  है . रास्ते में संभावित नीलगाय के आने को रोकने के भी सारे  चाक चौबंद इंतजाम किया गया है . अहमदाबाद हवाई अड्डे पर पर बंदरों की भी खासी आबादी है .उनको भी भगाने के लिए सरकार ने काफी इंतज़ाम कर रखा है .

अहमदाबाद के बाद ट्रंप आगरा पधारेंगे . वहां ताजमहल का दर्शन करने के अमरीकी दम्पति के कार्यक्रम में किसी भी बाधा को रोकने की तैयारी कर ली गयी है .बहुत ही अधिक  प्रदूषित यमुना नदी से निकलने वाली बदबू को रोकने के लिए करीब चौदह हज़ार लीटर पानी आगरा में  यमुना जी में डाला जाएगा .इस कार्यक्रम में भी सरकार को बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ेगी .

अमरीकी राष्ट्रपति से साफ़ घोषणा कर  दी है कि भारत से कोई बड़ा व्यापार समझौता नहीं करने वाले हैं लेकिन   भारत के रक्षा मंत्रालय ने  अमरीका से करीब बीस हज़ार करोड़  रूपये का  हथियार आदि  खरीदने का मन बना लिया है ..  तुर्रा यह  कि रूसी मिसाइल डिफेंस खरीद के भारत के कार्यक्रम पर ट्रंप सहित सभी बड़े अमरीकी नेता नक् भौं सिकोड़ते रहते  हैं.

भारतीय जनता के हित में मोदी सरकार ने अमरीका से आने वाले बहुत सारे मेडिकल  सामान के दाम कर दिया था . ट्रंप उसको भी बढवाने के चक्कर  में हैं .लगता है उनकी नाराजगी के  कारणों में एक वह भी है क्योंकि अब वह बात भी नहीं होगी . भारत से अमरीकी मोटर साइकलों पर ड्यूटी कम करने की फ़रियाद भी अमरीका ने की थी . अपनी खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के  बावजूद भारत में अमरीका के हित में  काम करने की इच्छा उफान मार रही थी लेकिन राजनीतिक रूप से उस फैसले की कीमत बहुत ज्यादा होने की आशंका है . शायद इसीलिये सरकार ने उसको भी रोक दिया  है . इन्हीं सब बातों से अमरीका नाराज़ बताया जा रहा है . उनके व्यापार प्रतिनिधि की भारत यात्रा भी अभी कुछ  दिन पहले रद्द की जा चुकी है .   भारत के अलमूनियम और स्टील के उत्पादों के लिए भारत बाज़ार की तलाश अमरीका में कर रहा है लेकिन अमरीका उसको भी कोई तवज्जो नहीं दे रहा है .

इरान में भी अमरीकी विदेशनीति हिचकोले ले रही है . अमरीका उम्मीद कर रहा है कि भारत भी उसकी राग अलापे लेकिन भारत के लिए यह संभव नहीं है . सही बात यह है कि भारत-अमरीकी संबंधों में नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं है .अमरीका भारत को अब एक यजमान देश बनने के लिए सारी कोशिश कर रहा है . प्रश्न उठता  है कि क्या अमरीका का क्लायंट बनना भारत के  राष्ट्र हित में होगा. अब तक का अमरीका का  जो रिकार्ड रहा है उसकी  बुनियाद पर बहुत ही साफ़ शब्दों में कहा जा  सकता  है कि अमरीका से दोस्ती  किसी के हित में नहीं है . इतिहास अपने आपको   दोहराता तो नहीं है लेकिन इतिहास एक शिक्षक का काम करता  है . उससे जो  सबक नहीं सीखता उस देश को परेशानी का सामना करना पड़ता  है . इसलिए अमरीका-भारत के संबंधों में राजनय के जानकारों की राय को अहमियत देना ज़रूरी  है .इसलिए  मौजूदा सरकार अमरीकी संबंधों  में निजी  दोस्ती को पृष्ठभूमि में डालकर देशहित में काम  करना चाहिए.


इस बात में दो राय नहीं है कि भारत और अमरीका के बीच दोस्ती बढ़ रही है .  लेकिन दोस्ती भारत के हित में कम और  अमरीका के हित में ज्यादा है . अमरीका चीन की बढ़ती ताक़त से चिंता में हैं . भारत के पड़ोस में चीन का प्रभाव रोज़ ही बढ़ रहा है . दक्षिण एशिया के कई देशों में चीन ने बंदरगाह बनाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया है . नेपाल भारत का पुराना और पारंपरिक दोस्त हुआ करता था लेकिन अब वहां भी ऐसी विचारधारा की सरकार बन गयी है जिसके बाद नेपाल की चीन  से दोस्ती बढ़ गयी है .मालदीव एक ऐसा देश था  जो भारत का बहुत ही अपना माना जाता था वहां से भी जो ख़बरें आ रही हैं उसके अनुसार अब मालदीव भी चीन का ज़्यादा करीबी हो गया है. बंगलादेश और भूटान से भारत के अच्छे सम्बन्ध अभी भी बने हुए हैं  लेकिन वे भी चीन के खिलाफ भारत के साथ  नहीं आयेंगे.  डोकलाम विवाद में यह बात साफ़ देखी जा चुकी  है  भूटान की त.रफ से कुछ एडजस्टमेंट के संकेत पहले से ही मिल चुके  हैं . पाकिस्तान अब  चीन का सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन गया है . कश्मीर में जिस हिस्से पर पाकिस्तान का  गैर कानूनी  क़ब्ज़ा है उसमें उसने चीन को सड़क बनाने की  अनुमति देकर भारत को कमज़ोर  करने की  कोशिश की है. पाकिस्तान के कब्जे वाले बलोचिस्तान में चीन बहुत बड़ा बंदरगाह बना रहा है .  पाकिस्तान और मालदीव में बन  रहे चीनी बंदरगाह घोषित रूप से व्यापारिक उद्देश्य से बनाए जा रहे  हैं लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी तो उनको सैनिक इस्तेमाल में लेने  से कौन रोक सकता  है . ऐसी स्थिति में भारत को  चिंता है . अमरीका ऐसे मौकों की तलाश में रहता  है . चीन की मजबूती का भौकला बनाकर वह भारत को अपने गुट का देश  बनाने की कोशिश कर रहा है . भारत को इस तिकडम से अपने आपको  बचाना होगा .

भारत से चीन के रिश्ते १९६२ के युद्ध के बाद बहुत ज़्यादा बिगड़ गए थे. १९८८ में  राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व के समय थोड़ा बहुत आवाजाही शुरू हुई लेकिन अभी भी  दोस्ती के सम्बन्ध नहीं हैं . प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने कई बार चीन की यात्रा आदि करके रिश्तों को सुधारने की कोशिश की है लेकिन दो देशों के बीच रिश्ते निजी संबंधों से नहीं सुधरते ,वहां तो सभी देश अपने अपने राष्ट्रहित के हिसाब से काम करते हैं . एशिया प्रशांत और  हिन्द महासगार के क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत  तो चिंतित है हीअमरीका में भी बहुत चिंता है . अमरीका की कोशिश है कि  इस इलाके में चीन के प्रभाव पर लगाम  लगाने के लिए भारत को इस्तेमाल किया जाए . उसको मालूम है कि चीन के दबदबे को कम करने के लिए भारत भी अमरीका से  दोस्ती को और अधिक बढ़ाएगा ,  व्यापारिक और सामरिक रिश्ते बढ़ाएगा और इस इलाके में अमरीकी हितों की रक्षा करने के लिए भी तैयार हो सकता है .लेकिन अभी विश्वास का संकट है . अमरीका अभी भारत को बराबरी का दर्ज़ा देने के लिए  तैयार नहीं दिखता   .अगर भारत ने चीन के  खिलाफ अमरीका का  फ्रंट स्टेट बनने की गलती कर दी तो यह बहुत बड़ी राजनीतिक गलती होगी . दोनों ही देश अभी एक  दूसरे पर पूरा विश्वास नहीं कर पा रहे हैं . अमरीका को  यह चिंता है कि भारत इस इलाके में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने में अमरीका के कितने काम आयेगा . अमरीका में इस बात से भी नाराज़गी है कि भारत की इरान से  जो व्यापारिक दोस्ती है उसको कितना कम करेगा . भारत में भी अमरीका को हमेशा शक की नज़र से देखा जाता है. अमरीका की समस्या यह है कि वह  जिस देश से भी दोस्ती करता है उसको अपने ऊपर पूरी तरह से निर्भर बनाना चाहता है . पड़ोस के पाकिस्तान का  उदाहरण सबके सामने है . पाकिस्तान कभी अमरीका का एक तरह से गुलाम देश हुआ करता था लेकिन अब वह चीन के खेमे में हैं . अमरीका को इस इलाके में एक वफादार मुल्क की ज़रूरत है जो  पाकिस्तान से रिश्ते खराब होने की भरपाई कर सके. भारत को बहुत ही सावधान रहना पडेगा कि कहीं वह अमरीका का वैसा दोस्त न बन जाये जैसा कभी पाकिस्तान हुआ करता है . 

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