शेष नारायण सिंह
कोरोना वायरस से पैदा होने वाली बीमारी से मुकाबले के लिए देर से ही सही भारत सरकार ने युद्धस्तर पर कोशिश करना शुरू कर दिया है . बीस मार्च को प्रधानमंत्री के " देश को संदश " के बाद लगा कि सरकार इस खतरनाक बीमारी को गंभीरता से ले रही है. पहली बार लगा कि प्रधानमंत्री देश की जनता को भी इस मुहिम में शामिल करना चाहते हैं . वरना अब तक तो चुनावों के दौरान ही वे एक सौ तीस करोड़ देशवासियों की बात किया करते थे . लेकिन अभी एक बुनियादी सवाल दिमाग में बना हुआ है . क्या देश की स्वास्थ्य सेवाएँ इतने बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस के असर को नाकाम करने के लिए काफी हैं. ज़ाहिर है अगर बड़ी संख्या में लोगों को इसकी ज़रूरत पडी तो देश की स्वास्थ्य सेवाएँ कम पड़ेंगी. देश में सांस लेने की सुविधा देने वाले वेंटिलेटरों की भारी कमी है . इतने खतरनाक वायरस से पीड़ित मरीजों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के लिए ज़रूरी पोशाक तक कई मेडिकल कालेजों में उपलब्ध नहीं है . वहां डाक्टर लोग एक मास्क लगाकर भगवां भरोसे काम कर रहे हैं . जो भी हो इस बीमारी मुकाबला तो करना ही है और सबसे महत्वपूर्ण तरीका यही है कि देश की जनता चौकन्ना रहे और कोविड-19 के मरीजों के सम्पर्क में ही न आये. एक गनीमत है कि इसका ज़हर हवा के ज़रिये नहीं फैल रहा है इसलिए अगर किसी भी मरीज़ को छूने या उसके बहुत करीब आने से बचा जा सके तो बीमारी पर काबू पाया जा सकता है .
अभी तो फिलहाल हालात बहुत ही खराब हैं . चीन से शुरू हुआ कोविड-19 यूरोप , अमरीका सहित पूरी दुनिया में पंहुच चुका है. युद्ध के हथियारों से लैस अमरीका के राष्ट्रपति के भाषणों में निराशा साफ़ नज़र आ रही है . यूरोप में हालात सबसे भयावह हैं . अमरीका के सभी राज्यों से मामले रिपोर्ट हो चुके हैं . चीन से बीमारी शुरू हुई लेकिन चीन की तरफ से दावा किया जा रहा है कि उसने कोरोना से होने वाली बीमारी पर काबू पा लिया है. चीन से आने वाली खबरों पर आसानी से भरोसा करना बहुत ही मुश्किल है . क्योंकि दुनिया को यह बताने के लिए लिये वहां अब बीमारी पढने के बजाय थम गयी है चीन के अधिकारियों ने अधिकांश विदेशी अखबारों के सवाददाताओं को देश से निकाल दिया . निकाले गए संवाददाताओं में अमरीकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट का संवाददाता भी है. इस अखबार ने वुहान प्रांत में यूरोप हुयी कोरोना जनित बीमारी के बारे में बड़े पैमाने पर रिपोर्ट किया था. चीन का रुख इस मामले में बहुत ही गैरजिम्मेदाराना रहा है . न्यू यार्कर नाम की अमरीकी पत्रिका में छपा है कि दिसंबर में जब अमरीकी प्रांत , वुहान में इस बीमारी के बारे में पहली बार जानकारी मिली इसलिए ,मिली क्योंकि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में 'महामारी विज्ञान ' में काम कर रही की एक शोध छात्रा , डॉ रूरान ली ने इसपर नज़र रखना शुरू कर दिया था . वह मूल रूप से दक्षिणी चीन में स्थित शेनजेन प्रांत की रहने वाली है. वे मलेरिया विषय में शोध कर रही हैं . वे अपने देश के लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट के आधार पर एक डाटाबेस बना रही थीं . उन्होंने देखा कि बड़ी संख्या में लोग बीमार हो रहे हैं और सबकी बीमारी में एक ख़ास पैटर्न है . बीमार लोगों की हालत इतनी बिगड़ जा रही थी कि वे अस्पतालों में इमरजेंसी में भर्ती होने की कोशिश कर रहे थे लेकिन अस्पतालों में जगह कम पड़ती जा रही थी . इस सब के बाद भी चीन के हुक्मरान जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर रहे थे . एक दिन डॉ ली ने देखा कि वी चैट नाम की एक लाइव फीड में एक संपन्न आदमी अपने लोगों को सलाह दे रहा था कि कोरोना की महामारी में अगर उनको मेडिकल सहायता की ज़रूरत हो तो किस तरह से प्रयास करना चाहिए .उसने यह भी कहा कि हालात बहुत खराब हैं .बीमारी का प्रचलित इलाज नाकाम साबित हो चुका है इसलिए अस्पताल में भर्ती होने की कोशिश की जानी चाहिए . डॉ ली का कहना है कि अगर वहां अस्पतालों में जगह मिलने में परेशानी हो रही है तो मामला बहुत बिगड़ चुका है और इतना सम्पन्न आदमी भी परेशान है तो पानी सर के ऊपर जा चुका है . उन्होंने इस जानकारी को एक सेमीनार में बताया . उसके बाद दुनिया को पता चला कि मामला कितना बिगड़ चुका है . उनको मालूम था कि चीन में संपन्न लोगों को इलाज कराने में कोई दिक्क़त नहीं होती . अमरीकी पत्रकारों को देशनिकाला देकर चीन इस बात की पुष्टि कर रहा है कि हालात बहुत बिगड़ चुके हैं .
बिगड़ी हालात के मद्दे-नज़र दुनिया भर में हर स्तर पर इसका मुकाबला करने की तैयारी हो रही है . जर्मनी की चांसलर अंजेला मर्केल ने तो कह दिया है कि दूसरे विश्वयुद्ध का बाद से जर्मनी ने इस तरह की चुनौती का सामना कभी नहीं किया है .उन्होंने कहा कि मामला बहुत ही गंभीर है और इसको उसी गंभीरता से लिया जाना चाहिए . उन्होंने दावा किया कि जर्मनी का स्वास्थ्य सिस्टम बहुत ही उच्च कोटि का है लेकिन अगर बहुत बड़ी संख्या में मरीज़ अस्पतालों में आने लगेंगे तो स्थिति संभालना मुश्किल हो जायेगी .अमरीका के हर राज्य में अब कोरोना जनित आतंक का फैलाव हो गया है .वहां इस विषाणु से मरने वालों की संख्या अब एक सौ से ऊपर पंहुच चुकी है . अमरीकी प्रशासन का कहना है कि यह संख्या तेज़ी से बढ़ने वाली है . स्कूल, दुकानें सब कुछ बंद है . लोग अपने अपने घरों में हैं . दवाइयों की किल्लत शुरू ही गयी है . अमरीकी अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती आ गयी है .
भारत में भी सरकार के स्तर पर चेतावनी और सावधानी की अपील की जा रही है . सबके फोन में इस आशय के डायल टोन लगे हुए हैं . स्कूल कालेज बंद किये जा चुके हैं . बहुत सारी ट्रेनें रद्द की जा चुकी हैं . प्रधानमंत्री स्वयं हलात पर नज़र रखे हुए हैं , स्वास्थ्य मंत्री दिन रात की स्थति की निगरानी कर रहे हैं . लेकिन सत्ताधारी पार्टी के कुछ लोग तरह तरह की मूर्खताओं के ज़रिये दुनिया भर में देश के शासक वर्ग की खिल्ली उड़वा रहे हैं. सत्ताधारी दल के समर्थक एक बाबा ने गौमूत्र की एक पार्टी आयोजित की . उसमें बहुत सारे लोग शामिल हुए और कैमरों के सामने गौमूत्र पिया लेकिन उसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सवाल यह है कि इस तरह की मूर्खता को प्रचारित करने वालों के खिलाफ सरकार दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है . गौमूत्र पीने या पिलाने पर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं की सकती क्योंकि इन्डियन पेनल कोड में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है . ऐसा शायद इसलिए होगा कि कानून बनाने वालों या उसके बाद के लोगों ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन इस देश में जहालत की सीमाएं इस मुकाम तक पंहुच जायेंगी की लोग गाय के मूत्र और गोबर को दवा के रूप में पेश करने लगेंगे . इन हालात में बीजेपी के नेतृत्व को अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश देना चाहिए कि इस तरह की मूर्खताएं करने से बाज आयें . खबर है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने निर्देश दिया है कि कोरोना के आतंक को ध्यान में रखते हुए कोई धरना प्रदर्शन आयोजित नहीं किया जाएगा . लेकिन गौमूत्र से कोरोना जनित बीमारियों का इलाज करने का दावा करने वालों को उन्होंने अभी तक कोई नसीहत नहीं दी है . प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की थी कि ज़्यादा लोग एक जगह इकठ्ठा न हों लेकिन बीजेपी अध्यक्ष ने मध्यप्रदेश के बाईस पूर्व विधायकों को एक जश्न करके पार्टी ज्वाइन करवाया .इस सबसे बचने की ज़रूरत है .
इस बीच उम्मीद की एक किरण भी नज़र आ रही है . अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मीडिया को बताया कि मलेरिया की दवा क्लोरोक्विन से कोविड-19 का इलाज संभव है . जयपुर मेडिकल कालेज के डाक्टरों ने भी इसी तरह का दवा किया है . दुनिया भर में इस सम्बन्ध में रिसर्च की जा रही है .उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द से जल्द साइंस की बदौलत इस खतरनाक बीमारी का इलाज तलाश लिया जाएगा .
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