शेष नारायण सिंह
पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और सामूहिक तबाही के हथियारों के ज़खीरे पर एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू हो गयी है. जर्मनी से खबर है कि पाकिस्तान में अनधिकृत तरीके से यह काम किया जा रहा है . आशंका है कि पाकिस्तान जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों में ऐसे लोगों और कंपनियों की तलाश कर रहा है जो परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों को बनाने और उनको विकसित करने की टेक्नालोजी मुहैया करा सकें . जर्मनी की सरकार को विश्वास है कि पाकिस्तान की इन गतिविधयों में आजकल ज़बरदस्त तेज़ी आई है . अपने देश के एक विपक्षी सांसद के एक पत्र के जवाब में जर्मनी की सरकार ने यह जानकारी दी है . यह कोशिश कोई नई नहीं है . जर्मनी की ख़ुफ़िया एजेंसी , बी एफ वी ने २०१८ में भी रिपोर्ट दी थी कि पाकिस्तान बहुत समय से यह कोशिश कर रहा है . रिपोर्ट में बताया गया है कि इनका फोकस परमाणु हथियारों की टेक्नोलोजी पर ज़्यादा रहता है और यह कोशिश बहुत पहले से चल रही है . उस रिपोर्ट में एक और दिल दहलाने वाली बात भी कही गई है . लिखा है कि पाकिस्तान का सिविलियन परमाणु कार्यक्रम तो है ही, उसकी एक बड़ी योजना इस बात की भी है कि परमाणु हथियारों का बड़ा ज़खीरा बनाया जाए . यह सारा कार्यक्रम भारत को टार्गेट करके चालाया जा रहा है. जर्मनी की सरकार मानती है कि अभी पाकिस्तान के पास करीब १४० परमाणु हथियार हैं जिसको वह २०१५ तक २५० तक पंहुचा देना चाहता है .
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान पर बाकी दुनिया की नज़र पहली बार पड़ी है . २०११ में भी अमरीका से इसी तरह की एक रिपोर्ट अमरीकी संसद में दी गयी थी. उस वक़्त अमरीकी थिंक टैंक , कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस , ने बताया था कि पाकिस्तान के पास 90 और 100 के बीच परमाणु हथियार थे जबकि भारत के पास उससे कम थे . अब यही संख्या बढ़कर 140 हो गयी है . जिसे वह 250 तक ले जाना चाहता है . कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस का काम काम दुनिया भर के मामलों से अमरीकी संसद के सदस्यों को आगाह रखना है . समय समय पर यह संगठन अपनी रिपोर्ट देता रहता है जिसका अमरीकी सरकार की नीति निर्धारण में अहम भूमिका होती है . २०११ में जब यह रिपोर्ट आई थी अमरीकी विदेश नीति के नियामकों के लिए भारी उलझन पैदा हो गयी थी . इस बात पर बहुत ही नाराजगी जताई गयी थी कि पकिस्तान के विकास के लिए दिया जा रहा धन परमाणु हथियारों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है .
२०११ में अमरीकी संसद की इस रिपोर्ट के बाद भारत में भी विदेश और रक्षा मंत्रालयों के आला अधिकारी चिंतित हो गए थे .. इतनी खतरनाक खबर से भरी हुई रिपोर्ट के आने के बाद चिंता होना स्वाभाविक था. उसी रिपोर्ट में लिखा हुआ था कि पाकिस्तान में इस बात पर चर्चा चल रही थी कि वह उन हालात की फिर से समीक्षा की जाए जिनमें वह अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है . अब चिंता यह है कि परमाणु हमले की धमकी देने वाले उसके मंत्रियों की मंशा कहीं खतरनाक तो नहीं है . पाकिस्तान के एक मंत्री ने तो किलो आधे किलो के परमाणु बमों की बात भी करके अजीब स्थिति पैदा कर दी थी. अवाम तो यही समझ रहा था कि वह मंत्री कुछ खिसका हुआ है लेकिन सरकारी तत्र को मालूम था कि पाकिस्तान से आने वाले हर संकेत को हलके में निपटना खतरनाक हो सकता है .आज भी आशंका बनी हुयी है कि वह मामूली झगड़े की हालात में भी परमाणु बम चला चला सकता है . अगर ऐसा हुआ तो यह मानवता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा होगा . रिपोर्ट में साफ़ लिखा है कि पाकिस्तान कम क्षमता वाले अपने परमाणु हथियारों को भारत की पारंपरिक युद्ध क्षमता को नाकाम करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है .
जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं उन्होंने यह ऐलान कर रखा है कि वे किन हालात में अपने हथियार इस्तेमाल कर सकते हैं . आम तौर पर सभी परमाणु देशों ने यह घोषणा कर रखी है कि जब कभी ऐसी हालत पैदा होगी कि उनके देश के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा तभी उनके परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होगा . लेकिन पाकिस्तान ने ऐसी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं बनायी है . उसके बारे में आम तौर पर माना जाता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम भारत को केंद्र में रख कर चलाया जा रहा है . रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान ने ऐसा इसलिए कर रखा है जिस से भारत और दुनिया के बाकी देश गाफिल बने रहे और पाकिस्तान अपने न्यूक्लियर ब्लैकमेल के खेल में कामयाब होता रहे. कोई नहीं जानता कि पाकिस्तान परमाणु असलहों का ज़खीरा कब इस्तेमाल होगा . कोई कहता है कि जब पाकिस्तानी राष्ट्र के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो जायेगें तब इस्तेमाल किया जाएगा. यह एक पेचीदा बात है . पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कई बार यह कहा है कि पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का संकट है . क्या यह माना जाए कि पाकिस्तान अपने उन बयानों के ज़रिये परमाणु हथियारों की धमकी दे रहे थे . पाकिस्तानी सत्ता में ऐसे भी बहुत लोग है जो संकेत देते रहते हैं कि अगर भारत ने पाकिस्तान पर ज़बरदस्त हमला कर दिया तो पाकिस्तान परमाणु ज़खीरा खोल देगा. दुनिया के सभ्य समाजों में पाकिस्तानी फौज के इस संभावित दुस्साहस को खतरे की घंटी माना जा रहा है . पाकिस्तान में इस तरह की मानसिकता वाले लोगों पर काबू करने की ज़रुरत है . यह पाकिस्तान के दुर्भाग्य की बात है कि वहां इस तरह की मानसिकता वालों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है .लेकिन इस मानसिकता वालों की वजह से परमाणु तबाही का ख़तरा भी बढ़ गया है . भारत समेत दुनिया भर के लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी मानसिकता के लोग काबू में लाये जाएँ. हालांकि यह काम बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि भारत के खिलाफ आतंक को हथियार बनाने की पाकिस्तानी नीति के बाद वहां का सत्ता के बहुत सारे केन्द्रों पर उन लोगों का क़ब्ज़ा है जो भारत को कभी भी ख़त्म करने के चक्कर में रहते हैं . वे १९७१ में पाकिस्तान की सेना की उस हार का बदला लेने के फिराक में रहते हैं जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ था. बदला लेने की इस जिद के चलते उनके अपने देश को भी तबाही का खतरा बना हुआ है . क्योंकि अगर उन्होंने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की गलती कर दी तो अगले कुछ घंटों में भारत उनकी सारी सैनिक क्षमता को तबाह कर सकता है . अगर ऐसा हुआ तो वह विश्व शान्ति के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत होगा .
पाकिस्तानी परमाणु हथियारों की सुरक्षा हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है . जिस तरह से पाकिस्तानी फौज ने आई एस आई के नेतृव में आतंक का तामझाम खड़ा किया है उस से तो लगता है कि एक दिन पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के सरगना उसके परमाणु ज़खीरे की चौकीदारी करने लगेगें. अगर ऐसा न भी हुआ तो पाकिस्तान में जिस तरह से अपनी कौम को सबसे ताक़तवर बताने और भारतीयों को बहुत कमज़ोर बताने का माहौल है ,उसके चलते कोई भी फौजी जनरल बेवकूफी कर सकता है .इस तरह की गलती १९६५ में जनरल अयूब कर चुके हैं . उन्होंने भारतीयों को कमज़ोर समझकर हमला कर दिया था और जब अमरीका से मिले भारी असलहे से लैस पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से हार गयी तब राष्ट्रपति अयूब की समझ में आया कि वे कितनी बड़ी गलती कर बैठे थे . बाद में ताशकंद में रूस के सौजन्य से भारत में उन्हें कुछ ज़मीन वापस कर दी .पाकिस्तान को महान मानने वालों की आज भी वहां कमी नहीं है .ज़ाहिर है जनरल अयूब वाला दुस्साहस कोई भी पाकिस्तानी जनरल कर सकता है .इसलिए जर्मनी से आयी ताज़ी जानकारी को पाकिस्तानी इस्टेब्लिशमेंट में मौजूद जंगी मानसिकता के लोगों लो लगाम लगाने के काम में इस्तेमाल किया जाना चाहिये और दुनिया को पाकिस्तानी परमाणु ज़खीरों पर अंतर राष्ट्रीय निगरानी रखने का माकूल बंदोबस्त करना चाहिए
पाकिस्तानी परमाणु हथियारों की सुरक्षा हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है . जिस तरह से पाकिस्तानी फौज ने आई एस आई के नेतृव में आतंक का तामझाम खड़ा किया है उस से तो लगता है कि एक दिन पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के सरगना उसके परमाणु ज़खीरे की चौकीदारी करने लगेगें. अगर ऐसा न भी हुआ तो पाकिस्तान में जिस तरह से अपनी कौम को सबसे ताक़तवर बताने और भारतीयों को बहुत कमज़ोर बताने का माहौल है ,उसके चलते कोई भी फौजी जनरल बेवकूफी कर सकता है .इस तरह की गलती १९६५ में जनरल अयूब कर चुके हैं . उन्होंने भारतीयों को कमज़ोर समझकर हमला कर दिया था और जब अमरीका से मिले भारी असलहे से लैस पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से हार गयी तब राष्ट्रपति अयूब की समझ में आया कि वे कितनी बड़ी गलती कर बैठे थे . बाद में ताशकंद में रूस के सौजन्य से भारत में उन्हें कुछ ज़मीन वापस कर दी .पाकिस्तान को महान मानने वालों की आज भी वहां कमी नहीं है .ज़ाहिर है जनरल अयूब वाला दुस्साहस कोई भी पाकिस्तानी जनरल कर सकता है .इसलिए जर्मनी से आयी ताज़ी जानकारी को पाकिस्तानी इस्टेब्लिशमेंट में मौजूद जंगी मानसिकता के लोगों लो लगाम लगाने के काम में इस्तेमाल किया जाना चाहिये और दुनिया को पाकिस्तानी परमाणु ज़खीरों पर अंतर राष्ट्रीय निगरानी रखने का माकूल बंदोबस्त करना चाहिए
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