Monday, October 14, 2019

राम जेठमलानी को एक बहादुर इंसान और जीनियस वकील के रूप में याद किया जाएगा



शेष नारायण सिंह

राम जेठमलानी चले गए. करीब 96 साल की ज़िन्दगी पाई. १७ साल की उम्र में वकालत शुरू कर दी थी लिहाजा  करीब आठ दशक तक वकालत का काम किया . करीब दो साल पहले ऐलान कर दिया था कि अब वकालत नहीं करना . लेकिन जब तक अदालतों में पेश होते रहे  , उनकी मौजूदगी की धमक महसूस की जाती रही.  पंगा लेना उनकी आदत थी . कानून की बारीकियों को समझना उनकी फितरत थी . जिसके साथ कोई नहीं हो उसके साथ राम जेठमलानी खड़े हो जाते थे . सैकड़ों ऐसे लोग मिल जायेंगें जिनके पक्ष में  राम जेठमलानी खड़े पाए जाते थे ,हालांकि उनकी हैसियत नहीं होती थी कि वे जेठमलानी की फीस दे सकें .लेकिन राम जेठमलानी को इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता था . वे जिस बात को ठीक समझते थे , करते थे . सबसे पहली बार तो वे वकील के रूप में चर्चा में अठारह साल की उम्र में ही आ गए जब उन्होंने  सरकार के उस फैसले को चुनौती दी जिसके हिसाब से कोई भी आदमी तब तक वकालत नहीं कर सकता जब तक कि उसकी उम्र बाईस साल न हो  जाए. जेठमलानी खुद तो १७ साल में एल एल. बी पास कर चुके थे . अपना ही मुक़दमा लेकर पेश हो गए और  आदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. वह दिन है और आज का दिन . और आखिर तक लड़ते रहे .
राम जेठमलानी का जन्म  सिंध में हुआ था . वह इलाका अब पाकिस्तान में है . बंटवारे के समय १९४७ में वे कराची में ही जमे रहे . तब तक वकील हो चुके थे .वकालत चल भी रही थी लेकिन छह महीने के अन्दर ही वहां बहुत बड़ा दंगा हो गया और वे भागकर मुंबई आ गए . मुंबई में एक शरणार्थी शिविर में पनाह लिया . उनके पास कोई काम या मुक़दमा नहीं था लेकिन उन्होंने तुरंत मौक़ा तलाश लिया . शरणार्थी शिविरों में पनाह लने वाले लोगों की बहुत दुर्दशा थी . बॉम्बे   रिफ्यूजी एक्ट के तहत पाकिस्तान से भागकर आये लोगों को रहने की जगह दी गयी थी . तब गुजरात और महाराष्ट्र मिलाकर एक ही राज्य था . बॉम्बे के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई थे . बहुत ही जिद्दी इंसान थे . शरणार्थी शिविरों में रहने वाले लोगों के साथ अपराधी की तरह व्यवहार किया जाता  था. कानून ही ऐसा था . राम जेठमलानी  ने सरकार के ऊपर ही मुक़दमा कर दिया . और बॉम्बे रिफ्यूजी एक्ट में सरकार को बदलाव करना पड़ा. शहर के शरणार्थियों में उनकी इज्ज़त  बढ़ गयी. सिंध से अपना घर बार छोड़कर आये लोगों के बीच उनकी  पोजीशन मज़बूत होने लगी और मुंबई शहर के नए वकीलों में उनका नाम गिना जाने लगा .
वकील के रूप में पूरी दुनिया में उनका नाम १९५९ में मशहूर हो गया . जब वे नेवी के कमांडर कवास मानेकशा नानावती के खिलाफ अभियोजन पक्ष के वकील बने. सरकार बनाम के एम नानावती  केस  कानूनी इतिहास का एक बहुत बड़ा  दस्तावेज़  है. हुआ यह था कि कमांडर नानावती ने अपनी पत्नी के के दोस्त , प्रेम भगवान आहूजा को गोली मार दी थी. ज्यूरी ट्रायल हुआ जिसमें ज्यूरी ने कमांडर नानावती को अपराधी नहीं  माना और उनको बरी कर दिया . मामला हाई कोर्ट में पंहुचा जहां ज्यूरी के फैसले को नामंजूर कर दिया गया और मुक़दमा शुरू हुआ . उस केस में कमांडर नानावती के खिलाफ सरकारी वकील वाई वी चंद्रचूड थे . उनके साथ मकतूल के परिवार ने  राम जेठमलानी को भी वकील बनाने की अर्जी दे दी. बाद में वाई वी चंद्रचूड भारत के मुख्य न्यायाधीश भी बने. उस केस ने समाज को अजीब तरीके से बाँट दिया था .  प्रेम आहूजा सिन्धी थे तो मुंबई का पूरा  सिंधी समाज उनकी तरफ था. कवास नानावती पारसी थे तो पूरा पारसी समाज कमांडर साहब को सही मानता था. उनके वकील कार्ल खंडालावाला पारसी थे और प्रेम आहूजा की बिरादरी वालों ने  सिंधी वकील राम जेठमलानी  को खड़ा कर दिया था . उन दिनों का नामी साप्ताहिक अखबार  ब्लिट्ज भी मैदान में था और पूरे देश में नानावती के पक्ष में माहौल बना रहा था  .  अखबार के मालिक संपादक , रूसी करंजिया भी  पारसी थे . हालांकि वे बिरादरीवाद की किसी बात से ऊपर थे लेकिन उन्होंने इस तर्क को आगे बढाया कि अपनी पत्नी के प्रेमी को मारकर नानावती ने कोई गलती नहीं की है . बल्कि सामाजिक मूल्यों को ताकता दी है . लेकिन राम जेठमलानी  ने कहा कि क़त्ल किसी का भी भी वह क़त्ल होता है और कातिल पर ३०२ का मुक़दमा चलना चाहिए . उन्होंने मुक़दमे की ज़बरदस्त पैरवी की और साबित कर दिया कि नानावती ने क़त्ल सोच समझकर किया था .नानावती को उम्रक़ैद की सज़ा हुई.   मुंबई के पारसी समाज और नेहरू परिवार से दोस्ती के चलते नानावती के सज़ा राज्य की राज्यपाल और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने माफ़ कर दी लेकिन राम जेठमलानी  ने  नानावती को क़ानून के रास्ते से बचने नहीं दिया . उसी  मुक़दमे को लेकर राम जेठमलानी  सुप्रीम कोर्ट आये थे और यहीं के होकर रह गए.
राम जेठमलानी ने हर ताकतवर इंसान से  मोर्चा लिया और शोषित पीड़ित जनता का साथ दिया . इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के खिलाफ भी उन्होंने अभियान चलाया . जब उनकी गिरफ्तारी की आशंका पक्की हो गयी तो बहुत नादे वकील एन ए पालकीवाला करीब तीन सौ वकीलों के साथ अदालत में राम जेठमलानी के वकील के रूप में पेश हो गए और उनकी गिरफ्तारी रुक गयी लेकिन उनके बाद जेठमलानी कनाडा चले गए और वहां इमरजेंसी के खिलाफ माहौल बानने में लग गए . इमरजेंसी ख़त्म होने पर वापस आये और जनता पार्टी के टिकट पर मुंबई से चुनाव जीतकर छठी लिक्सभा में १९७७ में सदस्य के रूप में प्रवेश किया . उनके मंत्री बनने की भी बात थी लेकिन मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे और जिद पर अड़ गए . उनको राम जेठमलानी  की जीवनशैली नहीं पसंद  थी.  उसके बाद तो वे कई बार लोक सभा और राज्य सभा में सदस्य के रूप में जाते रहे . अटल बिहारी वाजपयी की सरकार में मंत्री भी बने और बाकायदा उनसे  इस्तीफ़ा भी लिया गया . एक समय तो बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे लेकिन पार्टी से निकाले भी गए . अटल जी ने उनको मंत्री बनाया था लेकिन जब  उनसे नाराज़ हो गए तो लखनऊ से उनके खिलाफ २००४ में चुनाव भी लड़ने पंहुच गए .
राम जेठमलानी एक ज़बरदस्त इंसान थे .  अगर केस उनकी समझ में आ जाता  था तो वे वकील के रूप में   किसी के साथ भी खड़े होने में संकोच नहीं करते थे . कुख्यात तस्कर हाजी मस्तान के वकील के रूप में पूरी दुनिया ने उनको जाना . सत्तर के दशक में मुंबई के अंडरवर्ल्ड में हाजी मस्तान का आतंक था लेकिन राम जेठमलानी  की समझ में आ गए उसके ऊपर जो मुक़दमा था वह गलत था . बस वे हाजी मस्तान के वकील बन गए . हर्षद मेहता शेयर बाज़ार घोटाले का सरगना था . उसके खिलाफ मीडिया में ई ख़बरों के बाद ऐसा लगता था कि पूरा देश ही उसके  खिलाफ था लेकिन राम जेठमलानी  उसके वकील बने और कानून के पक्ष में खड़े होने का अपना दह्र्म निभाया . राजीव गांधी के हत्यारों के खिलाफ चले मुक़दमे में वे अभियुक्तों के वकील थे . इंदिरा गांधी की हत्या के अभियुक्त को भी बचाने के लिए वे आगे आये.  सोहराबुद्दीन की मुठभेड़ के मामले में वे अमित शाह के वकील थे . उन्होंने कई बार कहा  था कि अमित शाह को सोह्राबुद्द्दीन केस में गलत  फंसाया गया था इसलिए वे उनकी तरफ से वकील बने थे . उन्होंने लालू प्रसाद यादव,  लाल कृष्ण अडवानी , जयललिता , कनिमोज़ी ,रामदेव आदि के मुश्किल मुक़दमों में वे वकील के रूप में  खड़े होते रहे .

राम जेठमलानी के चाहने वाले पूरी दुनिया में हैं. लेकिन उनसे नफरत करने वालों की भी कमी नहीं . देश के प्रधानमंत्री भी उनका बहुत सम्मान कारते हैं .उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुख व्यक्त किया है. अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि ," राम जेठमलानी जी के निधन से, भारत ने एक असाधारण वकील और प्रतिष्ठित सार्वजनिक व्यक्ति को खो दिया. राम जेठमलानी ने न्यायालय और संसद दोनों में समृद्ध योगदान दिया है. वह मजाकिया, साहसी और कभी भी किसी भी विषय पर साहसपूर्वक बोलने से नहीं कतराते थे.श्री राम जेठमलानी जी के सबसे अच्छे पहलुओं में से एक उनके मन की बात कहने की क्षमता थी और, उन्होंने बिना किसी डर के ऐसा किया. आपातकाल के काले दिनों के दौरान, उनकी स्वतंत्रता और सार्वजनिक स्वतंत्रता के लिए लड़ाई को याद किया जाएगा. जरूरतमंदों की मदद करना उनके व्यक्तित्व का एक अभिन्न हिस्सा था. मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे राम जेठमलानी के साथ बातचीत करने के कई अवसर मिले."
राम जेठमलानी को श्रद्धांजलि देने गृह मंत्री अमित शाह उनके घर पहुंचे. यहां उन्होंने राम जेठमलानी को श्रद्धांजलि दी और राम जेठमलानी के निधन पर दुख प्रकट किया. अमित शाह ने ट्वीट किया, हमने एक प्रतिष्ठित वकील के साथ एक महान मानव को खो दिया"

इस बात में दो राय नहीं है की राम जेठमलानी एक बहादुर और निडर  इंसान थे.


No comments:

Post a Comment