Monday, October 14, 2019

छत्तीस साल पहले पैदा हुयी मेरी बेटी जो अब मेरी दादी हो गयी है .

आज ( 6 जून )हमारी सबसे छोटी बेटी का जन्मदिन है . १९८३ में जब से इनका जन्म हुआ ,संयोग ऐसा हुआ कि उसके बाद हमें कभी हमें फाक़े नहीं करने पड़े.  इनके बड़े भाई बहनों ने इनको हमेशा ही सबसे महत्वपूर्ण इंसान माना. मेरी आर्थिक हैसियत तो नहीं थी लेकिन आप शिशुवन गईं, द श्रीराम स्कूल गईं,  दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में आनर्स किया, जे एन यू से एम ए किया और स्कालरशिप मिल गयी तो अमरीका के एक टाप विश्वविद्यालय से पी एच डी किया , विश्व बैंक में  नौकरी की और अब दुनिया के महत्वपूर्ण युवा अर्थशास्त्रियों में इनका नाम सम्मान से लिया जाता है. इस सारी प्रक्रिया में यह कब मेरी दादी बन गईं, मुझे पता ही नहीं लगा.जब छोटी थीं तो पापा की गोद में बैठी रहती थीं , इनकी पढ़ाई लिखाई हमारे पूरे परिवार की प्राथमिकता रहती थी . हमेशा बच्ची के रूप में ही इनको देखता रहा.  २०१६ में जब मैं बीमार हुआ और करीब डेढ़ महीने अस्पताल में पड़ा रहा तो मैंने देखा कि हमारी बच्ची एकदम से दादी हो गयी है . अस्पताल में मेरी देखभाल का ज़िम्मा पूरी तरह से इनके जिम्मे हो गया . इनके बड़े भाई मुंबई से लगभग हर शनिवार को आ जाते थे , इनकी बड़ी बहन के घर इनका बेटा दिन भर रहता था. देश के एक शीर्ष मैनेजमेंट स्कूल में इनकी नौकरी थी ,वहां से छुट्टी लेकर आप अपने बाप की देखभाल करती रहीं, अपनी मां का सहारा बनी रहीं और मौत के मुंह से अपने पिता को खींचकर लाईं.दवा समय से देना, अम्मा को सहारा देना, भाई बहनों को मेरी बीमारी और स्वास्थ्यलाभ के बारे में अपडेट रखना, अस्पताल में आये मेरे भाई बहन का पूरा ख्याल रखना ऐसे कम थे जिसको आपने  बिना किसी  तनाव के पूरा किया . मेरे हज़ारों टेस्ट हुए होंगे ,सबका डिटेल आपको याद हो गया था.

हम बीमार थे, ठीक हो गए , घर आ गए , काम शुरू कर दिया और ज़िंदगी एक बार फिर से सामान्य हो गयी . सब कुछ नार्मल हो गया लेकिन इस सारी प्रक्रिया में हमारी सबसे छोटी बिटिया कहीं खो गयी . मेरी टीनी चा जिसने बीमारी के दौरान ,मेरी दादी  का रोल स्वीकार किया था वह उसी मुकाम पर जम  गयी . अब वह फुल दादी है . मैं कोई भी बात कहना चाहूँ तो उसका आशय उनको आधी बात सुनकर ही पता लग जाता है और बात पूरी होने के पहले ही पापा टोक दिए जाते हैं . अगर कोई ज़रूरत है तो उसको पूरा कर देती हैं . दक्षिण भारत में हमसे बहुत दूर रहती हैं लेकिन  हर परेशानी की लिस्ट उनके पास रहती है . उसका समाधान भी करती रहती हैं . उनकी बड़ी बहन दिल्ली में रहती हैं, वे हमारे राशन पानी की इंचार्ज हैं , मेरी उम्र और औकात से  ज़्यादा कपडे हमको मिलते रहते हैं . इन लोगों की अम्मा तो इनके साथ ही खेल में शामिल हैं और इनकी तरह की खर्च बर्च करती हैं लेकिन पापा बेचारे अब बुढऊ हो गए हैं , उनको कुछ नहीं मालूम , उनको क्या करना है वह तो दादी जी ही तय  करेंगी. पापा के बारे में सारे फैसले आप ही करती हैं. मेरी प्रार्थना है कि ऐसी बेटी परवरदिगार सबको दे .  

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