शेष नारायण सिंह
बीजेपी की पूरी कोशिश थी कि प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा को चुनावी मुद्दा बना दिया जाए लेकिन तीन दिन तक लगातार उनसे पूछताछ के बाद लगता है कि उनको मुद्दा नहीं बनाया जा सकेगा . उलटे एक अंग्रेज़ी अखबार में राफेल सौदे के बारे में नए खुलासे के बाद ऐसा लगता है कि २०१९ का चुनावी मुद्दा राफेल , किसानों की बदहाली और नौजवानों की बेकारी बन सकती है .राबर्ट वाड्रा और पी चिदंबरम के बारे में जांच कोई आगे बढ़ाने लेकिन साथ साथ राफेल की जाँच का आग्रह करके राहुल गांधी ने साफ सन्देश दे दिया है की वे वाड्रा के मामले को चुनावी मुद्दा नहीं बनने देंगें .
जहां तक प्रियंका गांधी का सवाल है , उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय में अपने कमरे में पहले दिन की हाजिरी के साथ ही यह सन्देश दे दिया है कि वे राबर्ट वाड्रा के नाम को आगे करने की बीजेपी की रणनीति को भी बैकफुट पर नहीं झेलने वाली हैं . उन्होंने दफ्तर जाने के पहले अपने पति राबर्ट वाड्रा को प्रवर्तन निदेशालय में दफ्तर में पूछताछ के लिए पंहुचाया उसके बाद अपने दफ्तर गईं . वहां जाकर उन्होंने राबर्ट वाड्रा के बारे में पूछे गए सवालों का बिना किसी संकोच के जवाब दिया और यह भी कहा कि वे अपने पति के साथ रहेंगी . उधर बीजेपी के प्रवक्ता लोग राबर्ट वाड्रा को भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति बताते देखे जा रहे हैं . यह अलग बात है कि निष्पक्ष पत्रकार ई डी की मौजूदा जांच के हवाले से अब बीजेपी वालों से ही पूछ रहे हैं कि भाई राबर्ट वाड्रा को किस जुर्म में दण्डित करने की कोशिश की जा रही है .अभी तो राबर्ट वाड्रा के खिलाफ कुछ संकेत मिले हैं जिनके आधार पर उनसे ही पूछताछ की जा रही है . उस पूछताछ के आधार पर बात आगे बढ़ेगी ,अगर जाँच में आरोप सही पाए गए तो चार्जशीट होगी . केवल संदिग्ध से पूछताछ के आधार पर कैसे कोई अपराध सिद्ध किया जा सकेगा . यह भी देखा जा रहा है कि टीवी की खबरों में कुछ अति उत्साही एंकर और रिपोर्टर फैसला सुनाने की मुद्रा में आ गए हैं . ज़ाहिर है अगर सोशल मीडिया और कुछ पत्रकार सच बोलने पर आमादा रह गए तो यह राबर्ट वाड्रा वाला गुब्बारा ज्यादा समय तक चल नहीं पायेगा . क्योंकि राबर्ट वाड्रा को भ्रष्ट साबित करने के लिए न्यायालय में उनके अपराध को सिद्ध करना पड़ेगा .उनको अभियुक्त कहने के लिए उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करनी पड़ेगी . अभी तो मामला बहुत शुरुआती तफ्तीश तक ही है और वे केवल संदिग्ध हैं . अभी उनको भ्रटाचार की प्रतिमूर्ति कहना बहुत जल्दबाजी होगी .
पिछले चार पांच दिन से राबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार के आरोप बीजेपी के प्रवक्ता कुछ ज्यादा शिद्दत से लगा रहे हैं . यह काम वे पिछले पांच साल से कर रहे हैं . २०१४ के चुनाव के पूर्व बीजेपी के तत्कालीन प्रवक्ता ,रविशंकर प्रसाद ने रॉबर्ट वाड्रा पर जमीन घोटाले का आरोप लगाते हुए 'जमीन का कारोबारी या गुनाहगार' नामक एक फिल्म दिखाई थी . बीजेपी ने 'दामाद श्री' नाम से एक पुस्तिका भी जारी की थी .उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में रविशंकर प्रसाद ने पूछा था कि आखिर वाड्रा ने सिर्फ हरियाणा और राजस्थान में जमीन क्यों खरीदी? इसके साथ ही बीजेपी ने वाड्रा के दिन दोगुनी रात चौगुनी अमीर होने का राज जानना चाहा था .उन्होंने " रॉबर्ट वाड्रा के विकास मॉडल " पर हमला बोला था और कहा, था कि 'अब तक मैं कांग्रेस के नेताओं से पूछता आया हूं। अब मैं सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछना चाहता हूं कि वे बताएं कि वाड्रा के विकास का मॉडल क्या है?' रविशंकर प्रसाद के इस आरोप का प्रियंका गांधी ने उस वक़्त भी ज़बरदस्त जवाब दिया था . प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा,था कि 'बीजेपी बौखलाए हुए चूहों की तरह दौड़ रही है। मुझे मालूम था कि चुनाव से पहले इनके (बीजेपी) झूठों का सिलसिला दोहराया जाएगा। इसमें कुछ भी नया नहीं है। इन्हें (बीजेपी) जो करना है करने दीजिए, मैं किसी से नहीं डरती हूं। इनकी विनाशक, नकारात्मक और शर्मनाक राजनीति के खिलाफ मैं चुप नहीं रहूंगी". दामाद्श्री नाम की उस पुस्तिका में बहुत सारे अखबारों की कतरने थीं , कुछ लेख थे , कुछ दस्तावेज़ थे जिनको राबर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार के सबूत के तौर पर पेश किया गया था . लेकिन बीजेपी की जीत और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद उस पर कोई कार्रवाई होती नहीं देखी गयी . या हो सकता है कि कुछ हो रहा हो लेकिन मीडिया को उसकी भनक नहीं नहीं . आज यकायक प्रियंका गांधी के मीडिया में छा जाने के बाद उनके पति राबर्ट वाड्रा को आगे करने के पीछे कहीं प्रियंका गांधी को बैकफुट पर खेलने के लिए मजबूर करने की रणनीति तो नहीं काम कर रही है .हो सकता है ऐसा न हो लेकिन प्रियंका गांधी के आचरण से बिलकुल साफ़ है कि वे राबर्ट वाड्रा के कंधे पर अव्वल तो बन्दूक रखने नहीं देंगीं और अगर बीजेपी राबर्ट वाड्रा को सेंटर स्टेज लाने में सफल हो भी गयी तो उस बन्दूक से अपने ऊपर हमला किसी कीमत पर नहीं होने देंगी. ।'
छः फरवरी को अपने आफिस जाने के पहले राबर्ट वाड्रा को जांचकर्ताओं के यहाँ प्रवर्तन निदेशालय पंहुचाना और अपने दफ्तर में आकर सवालों के सामने से जवाब देना इस बात को साफ़ तौर से रेखांकित कर देता है .उनसे जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ़ कहा कि , " मैं अपने परिवार के साथ ,हूँ " उनसे जब पूछा गया कि अपने पति को प्रवर्तन निदेशालय पंहुचाने के ज़रिये वे क्या मेसेज देना चाहती हैं . उनका तुरंत जवाब आया कि, ' वे मेरे पति हैं ,और क्या मेसेज है . वे मेरे परिवार हैं .मैं अपने परिवार के साथ हूं ." ऐसा लगता है कि प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी एक सोची समझी रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं . राबर्ट वाड्रा पर अभी कोई मुक़दमा भी नहीं चला है और कोई अपराध भी नहीं साबित हुआ है लेकिन बीजेपी के प्रचार के चलते उनकी एक ऐसी छवि बन गयी है जिसको प्रियंका गांधी की राजनीतिक राह में भारी रोड़ा माना जाता रहा है . दिल्ली के सत्ता के केन्द्रों में इस बात पर चर्चा होती रहती थी कि अपने पति की छवि के कारण प्रियंका के लिए राजनीति में शामिल होना और सत्ताधारी पार्टी को चुनौती देना मुश्किल होगा . लेकिन अब लगने लगा है कि प्रियंका गांधी अपने पति के बारे में किये जा रहे प्रचार से डरने के खिलाफ फैसला ले लिया है .
प्रियंका गांधी के मैदान ले लेने के बाद लगता है कि वे अब अपने को पीड़ित के रूप में प्रस्तुत करने जा रही हैं . जिन लोगों को भी उम्मीद थी कि वे अपने पति पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण दब जायेंगीं उनको उन्होंने बा तक निराश किया है . वैसे यह भी सच है कि बीजेपी उनके ऊपर पिछले कई वर्षों से आरोप लगा रही है लेकिन अभी तक कोई भी मुक़दमा उनके ऊपर नहीं चला है . आज के पांच साल पहले " दामाद्श्री " नाम की जिस किताब को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जारी किया था, केंद्र में सरकार बन जाने के बाद उसकी जांच हो जाना चाहिए थी . उनके भ्रष्टाचार के ज़्यादातर आरोप हरियाणा और राजस्थान में ज़मीनों से सम्बंधित हैं . दोनों ही राज्यों में बीजेपी की भारी बहुमत की सरकारें थीं लेकिन कोई जांच नहीं की गयी. राबर्ट वाड्रा पर हथियारों की दलाली के आरोप भी आजकल लगाए जा रहे हैं . उसकी जाँच भी केंद्र सरकार की एजेंसियां कर सकती थीं, वह भी नहीं हुई. जबकि २०१४ से ही केंद्र में बीजेपी की सरकार है .अब पांच साल बाद फिर राबर्ट वाड्रा को सेंटर स्टेज लाने का जो काम है वह इस बात की तरफ संकेत देता है कि मामला कहीं चुनावों के कारण तो नहीं गर्माया जा रहा है . जहां तक ई डी की बात है , दिल्ली में सभी जानते हैं कि नेताओं की आर्थिक बेईमानी को पकड़ने का मुख्य केंद्र वही है और उसको कोई भी राजनीतिक पार्टी इस्तेमाल नहीं कर सकती .
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