शेष नारायण सिंह
बीजेपी के टिकट पर बागपत से चुनाव जीतकर आये पूर्व पुलिस अफसर सत्यपाल सिंह केंद्र सरकार में जूनियर मंत्री हो गए और उनको महत्वपूर्ण शिक्षा विभाग में कैबिनेट मंत्री प्रकाश जावडेकर के अधीन काम करने का मौक़ा भी मिल गया . लेकिन वे भूल गए कि उनको कुछ भी कह देने का अधिकार नहीं मिल गया है . अपनी धुन में आई आई टी गौहाटी में बोल गए कि मनुष्य के विकास का डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक नहीं है . उन्होंने दावा किया कि डार्विन गलत थे, किसी ने बंदर को इंसान में बदलते नहीं देखा। मानव विकास संबंधी चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत वैज्ञानिक तौर पर गलत है।उन्होंने स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में इसमें बदलाव की भी हिमायत कर डाली . डार्विन के सिद्धांत पर सत्यपाल सिंह ने कहा कि जब से इस धरती पर इंसान आया है, तब से वह मानव रूप में ही है। यानी इंसान मानव के रूप में ही इस धरती पर आया है. उन्होंने और भी ज्ञान बघारा कि उनके किसी भी पूर्वज ने कभी भी किसी बंदर को इंसान बनते नहीं देखा . उन्होंने साथ साथ यह भी घोषणा कर दी कि सरकार एक सेमीनार बुलाकर डार्विन के सिद्धांत की कमियों को उजागर करेगी. हो सकता है कि इस तरह के बयान सत्यपाल सिंह पहले भी देते रहे हों . ज़ाहिर है उनको किसी ने गंभीरता से नहीं लिया होगा / लेकिन जब इस बार उन्होंने स्कूलों में पाठ्यक्रम बदलने की बात कर दी तो सरकार को चिंता हो गयी और उनके बॉस प्रकाश जावडेकर ने उनको डांट दिया कि इस तरह के उल जलूल बयान न दिया करें .
सत्यपाल सिंह के बयान के बाद बीजेपी और सरकार के लिए मुश्किल बढ़ गयी थी. दुनिया भर में मजाक उड़ाया जा रहा था . शायद इसी नुक्सान को कंट्रोल करने के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने अपने जूनियर मंत्री के बयान पर सख्त हिदायत दी और कहा कि उनको ऐसे बयान देने से बाज़ आना चाहिए . जावडेकर ने यह भी कहा कि डार्विन के सिद्धांत को गलत साबित करने के लिए किसी भी सेमिनार के आयोजन की बात भी गलत है . सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है . सरकार की तरफ से ऐसे किसी भी आयोजन के लिए न तो कोई धन दिया जाएगा और न ही सरकार किसी भी सेमीनार का आयोजन करेगी .
राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह के बयान पर वैज्ञानिकों में भी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी .देश भर के करीब दो हज़ार वैज्ञानिकों ने केंद्र सरकार को एक ज्ञापन दिया जिसमें लिखा है कि ," यह कहना गलत है कि डार्विन के विकास के सिद्धांत को वैज्ञानिकों ने रिजेक्ट कर दिया है .इसके विपरीत सच्चाई यह है कि हर नई खोज डार्विन के सिद्धान्त को और मजबूती देती है .इस बात के बहुत सारे अकाट्य सबूत हैं कि बंदरों और मनुष्यों के पूर्वज एक ही थे. " इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में देश के सबसे महान संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हैं . टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई, नैशनल सेंटर फार रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स ,पुणे, नैशनल सेंटर फार सेलुलर एंड मालिकुलर बायोलाजी ,हैदराबाद जैसे संस्थानों के वैज्ञानिकों के सत्यपाल सिंह के बयान से असहमति जताई और नाराज़गी भी ज़ाहिर की .
अपने बॉस की परेशानी की चिंता किये बगैर सत्यपाल सिंह अभी भी अपने बयान पर कायम हैं और कहते पाए गए हैं कि डार्विन का विकास का सिद्धांत वैज्ञानिक नहीं है . अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अपनी इस जिद के बाद सत्यपाल सिंह कब तक मंत्रिमंडल में टिके रह पायेगें . दिल्ली के सत्ता के गलियारों में तो यह पक्का ही माना जा रहा है कि उनका प्रकाश जावडेकर के मंत्रालय में काम कार पाना तो असंभव ही हो गया है . हाँ यह संभव है कि किसी अन्य विभाग में कोई काम देकर उनको मंत्री बना रहने दिया जाए
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