Thursday, January 4, 2018

अगर औद्योगिक विकास और रोज़गार नहीं बढे तो बेरोज़गार नौजवानों का असंतोष बढेगा


शेष नारायण सिंह

प्रधानमंत्री ने देश में औद्योगिकीकरण के ज़रिये रोज़गार बढ़ाने और सम्पन्नता की बात अपने २०१३-१४ के चुनावी अभियान में की थी . सरकार में आने के बाद उन्होने इस काम को पूरा करने के लिए कई तरह की पहल भी की . मेक इन इण्डियास्टार्ट अप इण्डिया ,कौशल विकासमुद्रा ,सौ स्मार्ट शहर आदि योजनायें  इसी लक्ष्य को हासिल  करने के लिए घोषित की गईं थीं .  लेकिन संबंधित विभागों विभागों के मंत्री ऐसे मिले कि कहीं कुछ  शुरू ही नहीं हो सका  . कौशल विकास के मंत्री को हटाया भी लेकिन उसके बाद भी कहीं कुछ नज़र नहीं आया. वास्तव में औद्योगिक विकास में केंद्र सरकार की भूमिका नीतियों तक ही  होती है. ज़मीन पर उनको लागू करने का काम राज्य सरकारों का होता है . ऐसा लगता  है कि या तो राज्य  सरकारों ने प्रधानमंत्री की घोषणाओं को ज़रूरी अहमियत नहीं दी या उनको पता ही नहीं था कि उद्योगों को ही विकास का इंजन बनाने से सम्पन्नता आती है और उसके लिए करना क्या है . दिल्ली से लगे हुए फरीदाबादगुरुग्रामसोनीपतगाज़ियाबादगौतमबुद्ध नगर जिलों में जो गतिविधियाँ चल रही थींवे भी लगभग ठप्प ही पड़ी हैं . नए उद्योग न लगने से माहौल में निराशा बढ़ रही  है और देश के अलग अलग क्षेत्रों से नौजवानों के असंतोष की ख़बरें आ रही हैं . गुजरात का आन्दोलन सबने देखा और अब महाराष्ट्र से भी युवकों में बड़े पैमाने पर असंतोष की ख़बरें आ रही हैं . इन घटनाओं का तात्कालिक कारण जो भी हो सबके मूल में मुख्य कारण एक ही है. बहुत बड़े पैमाने पर बेरोजगार नौजवान किसी भी विरोध प्रदर्शन के आवाहन पर मैदान ले रहे हैं . एक बार चिंगारी लग जाने के बाद आन्दोलन तरह तरह के रूप लेने लगते हैं. इनका हल समस्या की जड़ में जाकर ही पाया जा सकता है .इस संतोष को कानून और व्यवस्था की बात मानना बिलकुल गलत होता है . नौजवानों को किसी काम से लगाया जाना चाहिये  . इसके लिए राज्यों में औद्योगिक  विकास को बढ़ावा देना ज़रूरी  है .
संतोष की बात यह है कि राज्य सरकारों को यह बात समझ में आना शुरू हो गयी है .पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल ग्लोबल समिट  २०१८ का आयोजन किया है . जनवरी के तीसरे हफ्ते में कोलकता में पूरी दुनिया के  उद्योगपतियों को आमंत्रित किया गया है . जहां उनको बंगाल में उद्योग लगाने के लिए प्रेरित किया जाएगा और स्थिर विकास और रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध करवाने के लिए प्रयास किया जाएगा . बंगाल के बाद असम में भी पहली बार ग्लोबल इन्वेस्टर समिट  का आयोजन किया जा रहा है .३ फरवरी को होने वाले इस शिखर सम्मलेन का उदघाटन ,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे .असम में हर १६० किलोमीटर पर एक  बड़ा आद्योगिक क्षेत्र स्थापित करने की योजना है . राज्य सरकार ने निवेश बढाने के लिए उद्योग नीति में भी ज़रूरी बदलाव कर दिया है . राज्य की चीनी नीति में भी बदलाव कर दिया गया है और उम्मीद की जा रही है कि शिखर सम्मलेन के बाद राज्य में चीनी मिलें लगेंगी और गन्ना की खेती को भी प्रोत्साहन मिलेगा .
बंगाल कभी देश की औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र  हुआ करता था. राज्य सरकार अपनी पुरानी विरासत को फिर से  पाने की कोशिश कर रही है लेकिन असम में चाय  बागानों के अलावा और कोई ख़ास गतिविधि थी ही नहींवह नए सिरे से देश के औद्योगिक विकास के नक्शे पर नज़र आने की कोशिश कर रहा है . उत्तर प्रदेश में भी २१-२२ फरवरी को लखनऊ में इन्वेस्टर समिट होने जा रही है . दिल्ली से सटे हुए उत्तर प्रदेश सरकार के गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर जिले हैं . यहाँ बहुत बड़े पैमाने पर औद्यगिक विकास के लिए बुनियादी ढांचे लगाए गए हैं .लेकिन कानून व्यवस्था और सरकारों के अल्गर्ज़ रुख के कारण कुछ ख़ास  हो नहीं पा रहा है . ज्यादातर सरकारें यही सोचती रहीं कि उद्योग लगाने वाले अपने आप दौड़े चले  आयेगें . लेकिन यह गलत सोच थी . गुजरात जैसे राज्य दुनिया भर के उद्योगपतियों को अपनी तरफ खींचने के लिए तरह तरह की सुविधाएं देते थे . लोग उन्हीं राज्यों में  जाते रहे . अपने कार्यकाल के अंतिम दो वर्षों में अखिलेश यादव ने राज्य में उद्योग लगवाने और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए गंभीर प्रयास किया था . करीब पचास हज़ार करोड़ के औद्योगिक निवेश के समझौते भी हुए थे लेकिन असली निवेश पांच सौ करोड़ से कम ही हुआ . उनके पास समय कम था और  उनके परिवार के लोग भी उनकी टांग पूरी तरह से खींचते रहे . अपने कार्यकाल के अंतिम  दो वर्षों में उन्होंने खुद फैसले लेने का फैसला किया . नतीजा या हुआ कि बुनियादी ढाँचे और निवेश की दिशा में कुछ अहम क़दम उठाये गए लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.आगरा-लखनऊ सडक एक प्रमुख उदाहरण है . विधान सभा चुनाव आये और निजाम बदल गया .
उतर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री ने राज्य में औद्योगिक विकास के लिए कुछ  क़दम उठाया है .. इसी सिलसिले में वे हैदराबादबंगलूरू और मुंबई गए थे . मुंबई में उन्होंने बाकायदा रोड शो किया . देश के बहुत बड़े उद्यमियों से मुलाक़ात की . रतन टाटामुकेश अंबानीएचडीएफसी के दीपक पारेख के अलावा कुमारमंगलम बिड़ला ग्रुपमहिंद्राएलएंडटीटोरंट ग्रुप,बजाज ग्रुप के प्रतिनिधियों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और प्रदेश में निवेश में रूचि दिखाई .सभी उद्यमियों ने कानून व्यवस्था की बात को गंभीरता से उठाया क्योंकि जैसी कानून व्यवस्था गाज़ियाबाद,नोयडा और ग्रेटर नोयडा में हैं उसके सहारे तो कोई भी उद्योगपति यहाँ उद्योग नहीं लगाना चाहेगा .मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि कानून व्यवस्था की स्थति सुधर रही है. उसको और भी मज़बूत किया जायेगा .
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आम तौर पर इस तरह के रोड शो के बाद मान लिया जाता  है कि सब ठीक   हो गया है लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं हो रहा है.जो भी बातें योगी की मुंबई यात्रा के दौरान हुयी हैं उनके फालो अप के लिए एक कोर कमेटी बनाई गयी  है. इस कमेटी में उद्योग मंत्री सतीश महाना के अलावा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के कमिश्नर अनूप पाण्डेय औद्योगिक विकास के प्रमुख सचिव आलोक सिन्हा और  खादी एवं  हैंडलूम के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल को शामिल किया गया है .मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने बताया कि हर बड़े औद्योगिक केंद्र के लिए बिलकुल अलग नीतियाँ रहेंगी. उसमें किसी तरह की दुविधा नहीं है .  मुख्यमंत्री फरवरी में होने वाली इन्वेस्टर सम्मिट के लिए निजी तौर पर हर काम की निगरानी कर रहे हैं . अधिकारियों को ज़िम्मा दिया गया है कि मुख्यमंत्री से बातचीत में उद्योगपतियों ने जो वायदे किये हैं उनका सही फालो अप किया जाए .

यह सारी बातें तो पिछली सरकारों में भी होती रही हैं लेकिन ज़रूरी है कि बुंदेलखंड और पूर्वांचल के पिछड़े जिलों में बड़े पैमाने पर औद्योगिक निवेश की हालात पैदा किये जाएँ .अगर बुन्देलखंड और पूर्वांचल को प्राथमिकता दी गयी तो फर्क पडेगा और यही योगी सरकार की परीक्षा भी है . यह दोनों ही इलाके राज्य में सबसे पिछड़े और पीड़ित हैं . ग्रामीण नौजवानों की बहुत बड़ी संख्या इन्हीं इलाकों से बड़े शहरों के लिए पलायन करती है . सरकार को प्रयास करना चाहिए  कि इन क्षेत्रों में उद्योग लगाये और उसके  साथ साथ ऐसे नए शहरों की स्थापना की जाए जहां उद्योगों में काम करने वाले लोगों को शिक्षा,इलाज और यातायात की सुविधा मिल सके. खेती से सम्बंधित उद्योगों की भी बड़े पैमाने पर स्थापना होनी चाहिए जिससे किसान को खेती छोड़ कर  मजदूरी करने के लिए मजबूर  न होना पड़े. इन कार्यों के  लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति सबसे ज़रूरी शर्त है लेकिन उनको लागू करने के लिए सक्षम नौकरशाही भी बहुत ज़रूरी है . यह देखना दिलचस्प होगा कि योगी सरकार पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर क्या राज्य के विकास के लिए ज़रूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति जुटाकर राज्य के हित में मज़बूत फैसले ले सकती है कि नहीं . हालांकि सरकार की तरफ से यह दावा किया गया कि सब को मिलाजुला कर काम किया जा रहा है .
उत्तर प्रदेश में पिछले पचीस वर्षों में विकास की सारी योजनायें मुकामी विधायकों और सांसदों की लालच की भेंट चढ़ जाती रही हैं . गौतमबुद्ध नगर जिले में देखा गया है कि हर विकास कार्य  राजनीतिक नेताओं और दलालों की स्वार्थ की भेंट चढ़ जाता है . तर्क यह भी दिया जाता रहा है कि मायावती और अखिलेश यादव के अलावा सभी सरकारें गठबंधन सरकारें थीं इसलिए सहयोगी पार्टियों और नेताओं की मनमानी को रोकना संभव नहीं था .वर्तमान सरकार में भी पुरानी सरकारों के बहुत सारे कार्यकर्ता हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्य के रूप में अपना धंधा शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं . योगी सरकार को इन तत्वों पर लगाम लगाना होगा . कुछ  मंत्री और नेता अभी भी वसूली के काम में पहले की तरह की लग गए हैं .इन लोगों को भी काबू में करना पडेगा .अगर सही औद्योगिक विकास का इंजन मुख्यमंत्री की निजी निगरानी में चल पडेगा तो राज्य में आर्थिक विकास  की संभावना बढ़ेगी और छोटे मोटे दलाल और नेता खुद ही शांत हो जायेगें . राज्य सरकार को यह समझना पडेगा कि तेज़ औद्योगिक विकास के बिना न तो बेरोजगारी की समस्या ख़त्म होगी और न ही आम नागरिक का जीवन सुगम होगा .और अगर  नौजवानों में बेरोजगारी की समस्या ख़त्म न हुयी तो असंतोष की जो ज्वाला महाराष्ट्र में देखने को मिली है वह उत्तर प्रदेश में भी देखी जायेगी . शिक्षा माफिया , नक़ल माफिया आदि से भी राज्य को मुक्त कराना पडेगा . इस तरह के ज़्यादातर अपराधी देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं . इनको हर हाल में नेस्तनाबूद करना पड़ेगा . यह  आसान नहीं है क्योंकि शिक्षा माफिया तो ज्यादातर सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी पार्टी के नेता ही हैं . इनकी गतिविधियों के कारण जो बच्चे यहाँ से शिक्षा लेकर काम की तलाश में निकलते हैं , उनको कहीं काम नहीं मिलता. इसलिए औद्योगिक विकास से रोज़गार पैदा करने के साथ साथ समाज में शिक्षा के नाम पर हो रही ठगी को भी रोकना होगा .

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