शेष नारायण सिंह
हरियाणा के विकास में तीन लालों का बहुत अहम योगदान है . देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल ने हरियाण को जो स्वरुप दिया , उसी से हरियाणा की पहचान बनी है .१९६६ के पहले हरियाणा पंजाब का हिस्सा था और हरियाणा में रहने वाले लोग नहीं चाहते थे कि वे पंजाब से अलग हों. हरियाणा की स्थापना के लिए किसी ने कोशिश नहीं की थी , बल्कि हरियाणा बन जाने के बाद इस राज्य के लोगों को नया राज्य मिलने से कोई खुशी नहीं हुयी थी, बस लोगों ने नियति मानकर इसको स्वीकार कर लिया था .पंजाबी सूबे की मांग को लेकर मास्टर तारा सिंह और संत फ़तेह सिंह ने जो आन्दोलन चलाया उसी के नतीजे में उनको पंजाब का पंजाबी भाषा के बहुमत वाला इलाका मिल गया , जो बच गया उसी में हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बन गया . नये राज्य की राजनीति में शुरू से ही देवी लाल का दबदबा रहा है . शुरू से ही हरियाणा की नई विधान सभा के हर सत्र के पहले वहां दल बदल का मौसम आ जाता था, दल बदल की स्वार्थी राजनीति के आदि पुरुष गया लाल की कथा भी बहुत दिलचस्प है. देवी लाल ने राव बीरेंद्र सिंह की सरकार को गिराने के लिए १९६७ में दल बदल की ललित कला का सफल प्रयोग किया था .उसी दौर में विधायक हीरा नन्द आर्य ने पांच बार दल बदला, उन दिनों के केंद्रीय गृहमंत्री यशवंत राव बलवंत राव चह्वाण ने संसद में बताया कि राज्यपाल की रिपोर्ट के अनुसार दल बदल बहुत ही घटिया रूप में प्रकट हुआ था. एक विधायक की कीमत बीस हज़ार से चालीस हज़ार रूपये के बीच कुछ भी हो सकती थी. गौर करने की बात यह है कि उन दिनों के चालीस हज़ार रूपये की कीमत आज से बहुत ज्यादा होगी . १९६७ में सोना १०२ रूपये प्रति दस ग्राम था यानी चालीस हज़ार रूपये में उन दिनों करीब ३९२० ग्राम सोना खरीदा जा सकता था . आज इतने सोने की कीमत अगर तीस हज़ार प्रति दस ग्राम मानें तो यह रक़म एक करोड़ बीस लाख रूपये के आस पास बैठती है . हालांकि आजकल विधायकों के रेट बहुत ज्यादा हैं लेकिन चालीस हज़ार रूपये १९६७ में के बहुत बड़ी रक़म मानी जाती थी . इस दौर में गया लाल ऐतिहासिक पुरुष बने थे . गया लाल ने मुख्य मंत्री राव बीरेंद्र सिंह का साथ ३० अक्टूबर, १९६७ को छोड़ा था . कुछ ही घंटों में राव बीरेंद्र सिंह ने उनको चंडीगढ़ प्रेस के सामने पेश किया और कहा कि ," गया लाल अब आया राम हो गए हैं " लेकिन जब तक गृहमंत्री वाई बी चाहवाण संसद में भाषण देते तब तक गया लाल फिर दल बदल चुके थे . गृहमंत्री ने संसद में कहा कि " अब तो गया लाल भी गया " इसी भाषण में उन्होंने कालजयी अभिव्यक्ति, ' आया राम ,गया राम ' की रचना की थी . उस दौर में दल बदल का स्कोर भी रिकार्ड किया गया . हीरा नन्द आर्य का स्कोर सबसे अच्छा था. उन्होंने पांच बार दल बदला, दो विधायकों ने चार बार, तीन विधायकों ने तीन बार और ३४ विधायकों ने एक बार दल बदल का कार्य किया . इन्हीं लोगों की कृपा से हरियाणा को 'आया राम , गया राम ' राजनीति का केंद्र बताया गया .
यह सारी बातें एक नई किताब में दर्ज है .इस किताब में हरियाणा के जन्म के दौर की कहानी भी है और यह भी कि किस तरह देश के सबसे पिछड़े राज्य को बंसी लाल के कठिन परिश्रम के कारण देश के शीर्ष राज्य का दर्जा मिला . देवी लाल और भजन लाल के राजनीतिक उत्थान पतन की कहानी भी है .वास्तव में यह एक आई ए एस अधिकारी की अपनी कहानी है जिनको हरियाणा के अब तक के तीन सबसे महत्वपूर्ण नेताओं के साथ काम करने का अवसर मिला है . राम वर्मा की किताब ," Life in the IAS , My Encounters With the Three Lals of Haryana " इन तीनों ही नेताओं की अच्छाई बुराई को कबीरपंथी इमानदारी से बताने की कोशिश इस किताब का निश्चित रूप से स्थाई भाव है. बंसीलाल के बारे में बहुत दिलचस्प जानकारी है. इमरजेंसी में संजय गांधी के अनुयायी के रूप में चर्चित हो चुके बंसीलाल की छवि अधिकतर लोगों की नज़र में अलग तरह की है .लेकिन जब उन्होंने सत्ता पाई थी तो एक अलग इंसान थे. तीनों लालों में केवल उन्होंने ही औपचारिक शिक्षा पाई थी. कानून की पढाई की थी , देवीलाल और भजनलाल को तो ज़िंदगी की हालात ने ही जो पढ़ा दिया ,वही शिक्षा थी उन दोनों के पास . जो भी हो हरियाणा के उतार चढ़ाव में इन लोगों का अहम योगदान है .
तीनों ही लालों में सबसे पहले बंसीलाल मुख्यमंत्री बने. देवीलाल अविभाजित पंजाब के नेता थे, देश के बंटवारे के बाद जब प्रताप सिंह कैरों मुख्यमंत्री बने तो देवीलाल उनके बहुत ही करीबी थे . हरियाणा की स्थापना के बाद वे नए राज्य के ताक़तवर नेता बन गए . जब बी डी शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह के बीच मुख्यमंत्री के पद को लेकर उठापटक शुरू हुयी तो देवीलाल की अहम भूमिका थी. कभी इस पार और कभी उस पार सक्रिय रहे . मुराद यह कि उनको मुख्यमंत्री की गद्दी तो नहीं मिली लेकिन मुख्यमंत्री बनाने बिगाड़ने में वे बहुत सक्रिय भूमिका निभाते रहे. बंसीलाल को मुख्यमंत्री बी डी शर्मा गुट ने बनवाया था क्योंकि उनको उम्मीद थी कि बंसीलाल एक कठपुतली के रूप में रहेंगें लेकिन वक़्त ने ऐसा नहीं होने दिया . बंसीलाल ने किस तरह से नए राज्य को सिंचाई के मामले में आत्मनिर्भर बनाया , यह कहानी अच्छी तरीके से किताब में दर्ज है . हुआ यह कि बंसी लाल एक बार हिमाचल प्रदेश के सुन्दर नगर में बन रहे बाँध को देखने गए थे . वहां तैनात उनको एक इंजीनियर ,के एस पाठक मिले जिन्होंने कभी अमरीका के टेनेसी वैली अथारिटी में काम किया था. बंसीलाल ने उनसे कहा कि मैं यमुना के पानी को हिसार के रेगिस्तानी और ऊंचे इलाके में ले जाना चाहता हूँ. पाठक ने कहा कि बिलकुल हो जायेगा और साहेब काम शुरू हो गया . लिफ्ट सिंचाई की योजनायें बाद में और राज्यों में भी शुरू हुईं लेकिन बंसीलाल ने इसको अच्छी तरह से राज्य के हित में चलाया . इन्हीं लिफ्ट सिंचाई योजनाओं के कारण ही हरियाणा के सूखे इलाकों में पानी आया .हरियाणा में हर गाँव को सड़कों से जोड़ने का श्रेय भी बंसीलाल को जाता है . हरियाणा में चिड़ियों के नाम पर हर सड़क पर बने पर्यटक स्थलों का काम भी बंसीलाल के प्रमुख सचिव एस के मिश्र ने किया . एक बार मुख्यमंत्री को शिकायत मिली कि हरित क्रान्ति का फायदा गाँवों तक नहीं पंहुच रहा है क्योंकि नियम ऐसे हैं कि गाँव तक तार खींचने का पैसा किसान को देना पड़ता था. बंसीलाल ने नियम बदल दिया और हर गाँव में बिजली पंहुचाने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य बना गया .
किताब में राम वर्मा की दिल को छू जाने वाली वह कहानी भी है कि किस तरह से वे मेडिकल कारणों से आई ए एस में चुने जाने के बावजूद रिजेक्ट होने से बाल बाल बचे . आई ए अकेडमी ,मसूरी में अपने साथियों को भी बहुत ही अपनेपन से याद किया गया है . अपने पहले बॉस एस के मिश्र के बारे में भी उनकी यादें बहुत ही मधुर हैं . अपनी शादी की कहानी भी बहुत ही दिलचस्प तरीके से बताया है लेखक ने . आजकल तो आई ए एस के रिज़ल्ट आते ही लोग करोडपति हो जाते हैं लेकिन अपना वाला आई ए एस सचिवालय में डिप्टी सेक्रेटरी तैनात होने के बाद सिटी बस से दफ्तर जाता था. उन्होंने बस में जाने के इरादे को इसलिए बदला क्योंकि उसी बस में उनके दफ्तर के अधीनस्थ कर्मचारी भी होते थे जो उनको देखकर असहज हो जाते थे . उन्होंने आफिस से लोन लेकर वेस्पा स्कूटर खरीदा और उस पर सवार होने पर जो अलौकिक आनंद मिला उसका भी बहुत अच्छे गद्य में वर्णन है . चार साल की सर्विस के बाद मुख्य सचिव की मर्जी के खिलाफ उनको सूचना निदेशक बना दिया गया . और फिर तो वे जीवन भर मीडिया से संपर्क में बने रहे. बाद में मुख्य सचिव भी हुए .
अपनी बच्चियों के जन्म को जिस मुहब्बत से याद किया है वह मार्मिक है . पहली बच्ची जब पैदा हुयी तो वे एस डी एम थे ,सब कुछ सरकारी तौर पर हो गया . लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म के समय की जो दर्द भरी कहानी है , वह भी मर्म पर चोट करती है. उनको उम्मीद थी कि अभी कुछ समय है . वे संपादकों से मिलने जालंधर जा रहे थे, लंच पर सबको बुलाया था . पत्नी ने रोका लेकिन रुके नहीं . और जब लौट कर आये तो पता लगा कि पी जी आई चंडीगढ़ में तुरंत भर्ती होना पड़ा और बेटी पैदा हो गयी है . पुस्तक उनकी पत्नी सावित्री को समर्पित है , जिन्होंने घोंसला बनाया और बच्चियों को पाला पोसा और जब चहचहाती चिड़ियों ने घोसला छोड़कर अपना घर बनाया तो छोड़कर चली गयीं .
हरियाणा के शुरुआती विकास की बारीकी को समझने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थी के लिए यह एक उपयोगी किताब है .
Sir.. Bahut he Acha Jankari diya aapne... Haryana agriculture University ko Unke name pr Badal kr rkhe dena chaiye... Jise se bansi Lal ji ke yogdan ko samanit kr sake............ Akhil_priyadarshi
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