शेष नारायण सिंह
अमरीका के बर्कले स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में दिया गया राहुल गांधी का भाषण अमरीका में तो बहुत चर्चा में नहीं आया होगा लेकिन अपने देश में सत्ताधारी पार्टी का ध्यान खींचने में सफल रहा है . भारतीय समय के अनुसार सुबह सात बजे राहुल गांधी ने बोलना शुरू किया . ज़ाहिर है एकाध घंटे तो सवाल जवाब आदि में बीत ही गया होगा . और भारत की सत्ताधारी पार्टी ने उसको नोटिस किया और १२ बजे बीजेपी की बहुत ही सशक्त प्रवक्ता रह चुकी , स्मृति इरानी राहुल गांधी के भाषण पर बीजेपी मुख्यालय में टिप्पणी कर रही थीं. उसके बाद भी बीजेपी वालों ने राहुल गांधी को हलके में नहीं लिया .अगले दिन भी कई मंत्रियों ने राहुल गांधी के बर्कले संवाद की खिल्लियाँ उड़ाईं . बीजेपी में आम तौर पर राहुल गांधी गंभीरता से नहीं लिया जाता है . वैसे आडवानी युग में भी ऐसा हुआ था . बीजेपी के बड़े नेता सोनिया गांधी को भी गंभीरता से नहीं लेते थे. अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवानी सोनिया गांधी की किसी बात पर टिप्पणी नहीं करते थे. सुषमा स्वराज और उमा भारती को ही सोनिया गांधी को जवाब देने का ज़िम्मा दिया जाता था . जब २००४ में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना साफ़ नज़र आने लगी तो उनको रोकने के लिए सुषमा स्वराज ने सिर मुंडवाने की योजना बना ली थी . १९९८ में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद जब सोनिया गांधी कर्णाटक के बेल्लारी से लोकसभा का चुनाव लड़ने गयीं तो उनके खिलाफ बीजेपी ने सुषमा स्वराज को ही उतारा था, २००४ तक सोनिया को औकात बताने का काम सुषमा स्वराज ही करती थीं.लेकिन २००४ में जब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को बेदखल कर दिया तो बीजेपी को लगा कि खेल बदल गया है . राहुल गांधी को भी इसी तरह से हलके में लिया जा रहा था ,लेकिन बर्कले वाले भाषण के बाद नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों में उनको गंभीरता से लेने की हवा साफ़ महसूस की जा सकती है .
राहुल गांधी के भाषण में मौजूदा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के बारे में बहुत सी पाजिटिव बातें भी कही गयीं . राहुल गांधी ने कहा कि हमारे देश के आई आई टी से पढ़कर निकले लोग दुनिया भर में टेक्नालोजी के लीडर हैं .. कैलिफोर्निया में ही सिलिकान वैली है . राहुल गांधी ने कहा कि वहां भी आई आई टी वालों का बहुत ही सम्मानजनक स्थान है . उन्होंने कहा की हमें गर्व है कि हमने करोड़ों लोगों को गरीबी की मुसीबत से बाहर निकाला है . दुनिया के इतिहास में ऐसा कोई भी लोकतांत्रिक देश नहीं है जिसने इतने कम समय में इतने ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकाला हो. इतिहास में पहली बार ऐसा नज़र आ रहा है कि भारत गरीबी को हमेशा के लिए ख़त्म कर देगा और अगर हम ऐसा कर सके तो मानवता को भारत पर गर्व होगा . उन्होंने कहा कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को क्रांतिकारी बदलाव ,की दिशा में डाल दिया गया है. हमारे यहाँ जितने मोतियाबिंद और हृदय के आपरेशन होते हैं , उतने दुनिया भर में कहीं नहीं होते . हमारे पास जानकारी का जो ज़खीरा है उससे पूरी दुनिया को लाभ मिलेगा . हमारी आबादी में जो विविधता है उसके ज़रिये हम हर तरह के डी एन ए की विविधता का अध्ययन कर रहे हैं .जो इक्कीसवीं सदी की बीमारियों को खत्म करने में बहुत काम आयेगा .भारत एक ऐसे रस्ते पर चल पड़ा है जहां असफल होने का विकल्प नहीं है , उसको हर हाल में सफल होना है. भारत , अपने एक सौ तीस करोड़ लोगों को दुनिया की अर्थव्यवस्था से जोड़ने की कोशिश कर रहा है. यह काम बहुत ही शान्ति प्रिय तरीके से किया जा रहा है क्योंकि अगर यह प्रक्रिया टूट गयी तो बहुत बुरा होगा. भाषण का यह अंश सुनकर लग रहा था कि राहुल गांधी भारत, उसकी सरकार और उसके प्रधानमंत्री की तारीफ़ के पुल बांधे जा रहे हैं .
लेकिन भाषण शुरू होने के करीब दस मिनट बाद उन्होंने ऐलान किया कि अब तक वे पाजिटिव बातें कर रहे थे ,अब नेगेटिव शुरू करेंगे . और वहीं से बीजेपी वालों को गुस्सा लगना शुरू हो गया . उन्होंने कहा कि हमारी विकास की रफ़्तार को नकारात्मक उर्जा बर्बाद कर सकती है . नफ़रत,क्रोध, हिंसा और ध्रुवीकरण की राजनीति भारत में आज नज़र आने लगे हैं . हिंसा और नफरत लोगों को सही दिशा में काम नहीं करने दे रहे हैं. उदार पत्रकार मारे जा रहे हैं , दलित और मुसलमान मारे जा रहे हैं , अगर किसी के बारे में यह शक हो गया कि उसने बीफ खा लिया है तो उसकी भी खैर नहीं है . राहुल ने जोर देकर कहा कि यह सब भारत का बहुत नुक्सान कर रहा है . सरकार की नोटबंदी की नीति ने अर्थव्यवस्था का भारी नुक्सान किया है .जीडीपी में दो प्रतिशत का नुक्सान हो गया है . इसी तरह की बातें बीजेपी को नागवार गुज़री हैं .
राहुल गांधी का भाषण पहले से तैयार किया गया रहा होगा , लेकिन सवालों के जवाब में जो बातें उन्होंने कहीं वह उनकी राजनीति और भारत की स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण को प्रमुखता से रेखांकित करती हैं . बातचीत में राहुल गांधी ने जो बातें कहीं वे बीजेपी के नेतृत्व के लिए अनुचित जान पडीं. भारत की विदेशनीति के बारे में उन्होंने कहा कि यू पी ए की डिजाइन ऐसी थी जिसमें रूस, इरान, चीन आदि पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने की बात थी लेकिन मौजूदा बैलेंस भारत को कमज़ोर कर सकता है .शायद उनका इशारा अमरीका और इजरायल से बढ़ रही दोस्ती की तरफ था . प्रधानमंत्री मोदी की भाषण देने की योग्यता की राहुल गांधी ने तारीफ़ की लेकिन साथ ही उन पर हमला भी कर दिया . उन्होंने कहा कि " नरेंद्र मोदी मेरे प्रधानमंत्री हैं , वे भाषण अच्छा देते हैं लेकिन लोगों से बात नहीं करते . मैंने संसद सदस्यों से सुना है कि वे अपने लोगों से भी संवाद नहीं स्थापित करते ." राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि कश्मीर में सरकार बनाने के लिए पीडीपी से समझौता करके देश ने बहुत बड़ी रणनीतिक कीमत चुकाई और और वह राष्ट्र का नुक्सान है . उन्होंने दावा किया कि २०१३ तक उनकी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ दी थी , यह काम पंचायती राज चुनाव, माहिलाओं के आत्म सहायता संगठनों और राज्य के नौजवानों को रोज़गार देकर किया गया था . २००४ में जब हमारी सरकार आई तो कश्मीर में आतंकवाद का बोलबाला था और जब हमारी पार्टी ने सत्ता छोडी तो वहां शान्ति थी . राहुल गांधी की इस बात ने दिल्ली के सत्ता के केन्द्रों में ज़बरदस्त असर डाला है और शायद इसलिए जम्मू-कश्मीर के नेता और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने नाराजगी जताई है .पीडीपी से समझौते के मुख्य सूत्रधार बीजेपी महासचिव राम माधव ने भी राहुल गांधी के कश्मीर वाले बयान की कठोर आलोचना की है . एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि हमारी पार्टी में २०१२ में बहुत ही अहंकार आ गया और हमने लोगों से बातचीत करना बंद कर दिया . पार्टी का संगठन बहुत ही महत्वपूर्ण है और हमने दंभ के कारण उसको नज़रंदाज़ किया . राहुल गांधी की यह बात उनके कैलीफ़ोर्निया संवाद को बहुत ही अहम बना देती है . दिल्ली के हर राजनीतिक विश्लेषक को मालूम था कि कांग्रेस का नेतृत्व , खासकर राहुल गांधी और उनके आसपास मौजूद लोग बहुत ही दम्भी हो गए थे और पार्टी के आम कार्यकर्ता से तो संवाद की स्थिति बहुत पहले ही ख़त्म हो गयी थी, २०१२ के बाद पार्टी के बड़े नेता भी याचक की तरह पेश किये जाने लगे थे. . उनकी बात को सुनकर बिना कोई जवाब दिए आगे बढ़ जाना राहुल गांधी की शख्सियत का हिस्सा बन गया था . इसी का एक प्रमुख उदाहरण दिल्ली के प्रेस क्लब में मनमोहन सरकार के एक बिल को फाड़कर फेंक देना भी शामिल है. बिल फाड़ने के वक़्त उनके साथ दिल्ली के कांग्रेस नेता अजय माकन मौजूद थे . अजय माकन उस वक़्त मीडिया के इंचार्ज थे. श्री माकन को मीडिया का इंचार्ज बनाना भी राहुल गांधी के अहंकार का एक नमूना था . जयपुर चिंतन शिविर के पहले कांग्रेस ने तय किया था कि कांग्रेस पार्टी मीडिया के ज़रिये जनता से संवाद का एक वैज्ञानिक तरीका अपनायेगी . जयपुर चिंतन शिविर में मूल रूप से पांच विषयों पर चर्चा की योजना थी . यह विषय बहुत पहले तय कर दिए गए थे। इन विषयों पर पार्टी के शीर्ष नेताओं और कुछ नौजवान नेताओं के बीच में गहन चर्चा भी हो चुकी थी जो पांच विषय चुने गए हैं उनमें सामाजिक आर्थिक चुनौतियां, संगठन को ठीक करना, राजनीतिक प्रस्ताव , विदेश नीति से संबंधित ग्रुप और महिला सशक्तीकरण जैसे मुद्दे थे. जयपुर की चर्चा के आधार पर आगामी कार्यक्रम बनाया जाना था . २०१४ के लोकसभा चुनाव का मैनिफेस्टो भी जयपुर चिंतन के आधार पर ही बनाने की बात थी .. हर विषय की कमेटी थी और सोनिया गांधी की सलाह से सब कार्य हो रहा था. उम्मीद की जा रही थी कि मीडिया से अच्छे सम्बन्धों के लिए चर्चित एक बड़े नेता को मीडिया का इंचार्ज बनाया जायेगा क्योंकि उन्होंने कई महीने तक सभी सभी पक्षों से बात करके एक योजना बनाई थी . जयपुर से रिपोर्ट कर रहे हम जैसे पत्रकारों को सब मालूम था लेकिन जब मीडिया इंचार्ज की घोषणा हुई तो अजय माकन का नाम घोषित कर दिया गया . श्री माकन का राजनीतिक कैरियर दिल्ली विश्वविद्यालय के आसपास परवान चढ़ा है. यूनिवर्सिटी बीट के रिपोर्टरों से उनके बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार उनको अच्छी तरह नहीं जानते . नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस और मीडिया के बीच भारी डिस्कनेक्ट हो गया और कांग्रेस ने जो अच्छे काम भी किये वह जनता तक नहीं पंहुच सके . जयपुर चिंतन की चर्चा चल ही रही थी कि बीजेपी के गोवा अधिवेशन में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया . उसके बाद तो बीजेपी ने मीडिया में हर स्तर पर अभियान शुरू कर दिया . उसके जवाब में कांग्रेस पार्टी की एक ब्रीफिंग होती थी जिसमें अजय माकन से भी जूनियर कोई नेता होता था जबकि बीजेपी की तरफ से रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में पार्टी के बड़े नेता मीडिया से मुखातिब होते थे, और सूचना पंहुचा सकने के मामले में बीजेपी बहुत आगे निकल गयी.
यह केवल एक उदाहरण है . ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिसमें राहुल गान्धी का दंभ आड़े आया और उनकी पार्टी पिछड़ती गयी. तात्पर्य यह है कि कैलिफोर्निया में राहुल गांधी ने अपनी भी कमजोरियों को जिस बेबाकी से स्वीकार किया वह उनकी पार्टी के लिए खुशखबरी हो सकती है . जो बातें उन्होंने स्वीकार कीं वह उनकी पार्टी के हर नेता को मालूम है लेकिन किसी की बोलने की हिम्मत नहीं थी. अब जब उन्होंने खुद ही स्वीकार कर लिया है तो इसका मतलब यह है कि वे उसको ठीक करने की कोशिश करेंगे. लगता है कि बीजेपी की चिंता का कारण यह भी है कि अगर कांग्रेस ने अपने आपको ठीक कर लिया और नोटबंदी, बेरोजगारी, जी एस टी आदि के मोर्चों पैर मौजूदा सरकार की कमियों को जनता तक पंहुचा दिया तो कहीं मौजूदा सरकार का भी वही हश्र न हो जो शाइनिंग इण्डिया वाली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का हुआ था .
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