Friday, June 13, 2014

भारत के खिलाफ शुरू हुआ पाकिस्तानी आतंकवाद अब उसके लिए मुसीबत बन चुका है।


शेष नारायण सिंह 

पाकिस्तान  के कराची हवाई अड्डे पर हमलों का  सिलसिला लगातार जारी  है. तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने  हमलों की ज़िम्मेदारी ली है।  इन हमलों  के बाद आत्नकवाद की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया है।  जब पाकिस्तान के तत्कालीन  फौजी तानाशाह जनरल ज़िया उल हक़ ने आतंकवाद को विदेशनीति   का बुनियादी आधार बनाने का  खतरनाक खेल खेलना  शुरू किया तो दुनिया  शान्तिप्रिय लोगों ने उनको आगाह किया  था कि  आतंकवाद को कभी भी राजनीति का हथियार नहीं बनाना चाहिए।  लेकिन जनरल  जिया  अपनी ज़िद पर अड़े रहे।  भारत के कश्मीर और पंजाब में उन्होंने फ़ौज़ की मदद से आतंकवादियों को झोंकना शुरू कर दिया।  अफगानिस्तान में भी अमरीकी मदद से उन्होंने आतंकवादियों  पैमाने पर तैनाती की।  इस इलाक़े की मौजूदा तबाही का कारण यही है कि  जनरल  जिया का आतंकवाद अपनी जड़ें  जमा चुका है। 
पाकिस्तानी आतंकवाद की सबसे नई बात यह है कि  पहली बार पाकिस्तानी फ़ौज़ और आई यस आई के खिलाफ इस बार उनके द्वारा पैदा किया गया आतंकवाद ही मैदान में है।  पहली बार पाकिस्तानी इस्टैब्लिशमेंट के खिलाफ तालिबान के लड़ाकू हमला कर रहे हैं।  इसलिए जो   आतंकवाद भारत को नुक्सान पंहुचाने के लिए पाकिस्तानी फ़ौज़ ने तैयार किया था वह अब उनके ही सर की मुसीबत बन चुका है।  भारत में भस्मासुर की जो अवधारणा बताई जाती है ,वह पाकिस्तान में सफल होती   नज़र आ रही है।  अस्सी  के दशक में पाकिस्तान  अमरीका की कठपुतली के रूप में भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने का काम करता था।  यह  बात हमेशा से ही मालूम थी कि  अमरीका तब से भारत का विरोधी हो गया था जब से अमरीका की मर्ज़ी के खिलाफ जवाहरलाल  नेहरू ने निर्गुट आन्दोलन  की स्थापना की थी।  क़रीब तीन साल पहले अमरीका की जे एफ के लाइब्रेरी में नेहरू-केनेडी पत्रव्यवहार को सार्वजनिक किये जाने के बाद कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जिनसे पता चलता है कि अमरीका ने भारत की मुसीबत  के वक़्त कोई मदद नहीं की थी.  भारत के  ऊपर जब १९६२ में चीन का हमला हुआ था तो वह नवस्वतंत्र भारत के लिए सबसे बड़ी मुसीबत थी . उस वक़्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमरीका से मदद माँगी भी थी लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति जॉन केनेडी ने कोई भी सहारा नहीं दिया  और नेहरू की चिट्ठियों का जवाब तक नहीं दिया था . इसके बाद इंदिरा गाँधी के प्रधान मंत्री बनने के बाद लिंडन जॉनसन  ने भारत का अमरीकी कूटनीति के हित में इस्तेमाल करने की कोशिश की थी लेकिन इंदिरा गाँधी ने अपने राष्ट्रहित को महत्व दिया और अमरीका के हित से ज्यादा महत्व अपने हित को दिया और गुट निरपेक्ष आन्दोलन की नेता के रूप में भारत की इज़्ज़त बढ़ाई . हालांकि अमरीका की  यह हमेशा से कोशिश रही है कि वह एशिया की  राजनीति में भारत का अमरीकी हित में इस्तेमाल करे लेकिन भारतीय विदेशनीति के नियामक अमरीकी राष्ट्रहित के प्रोजेक्ट में अपने आप को पुर्जा बनाने को तैयार नहीं थे .
पिछले साठ वर्षों के इतिहास पर नज़र डालें तो समझ में आ जाएगा कि अमरीका ने भारत को हमेशा  की नीचा दिखाने की कोशिश की  है . १९४८ में जब कश्मीर मामला संयुक्तराष्ट्र में गया था तो तेज़ी से सुपर पावर बन रहे अमरीका ने भारत के खिलाफ काम किया था .  १९६५ में जब कश्मीर में घुसपैठ कराके उस वक़्त के पाकिस्तानी तानाशाह , जनरल अय्यूब  ने भारत पर हमला किया था तो उनकी सेना के पास जो भी हथियार थे सब अमरीका ने ही उपलब्ध करवाया था . उस लड़ाई में जिन पैटन टैंकों को भारतीय सेना ने रौंदा था, वे सभी अमरीका की खैरात के रूप में पाकिस्तान  की झोली में आये थे. पाकिस्तानी सेना के हार जाने के बाद अमरीका ने भारत पर दबाव बनाया था कि वह अपने कब्जे वाले पाकिस्तानी इलाकों को छोड़ दे  . १९७१ की बंगलादेश की  मुक्ति की लड़ाई में भी अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन ने  तानाशाह याहया खां के बड़े भाई के रूप में काम किया था और भारत  को धमकाने के लिए अमरीकी सेना के सातवें बेडे को बंगाल की खाड़ी में तैनात कर दिया था . उस वक़्त के अमरीकी विदेशमंत्री हेनरी कीसिंजर ने उस दौर में पाकिस्तान की तरफ से पूरी दुनिया  में पैरवी की थी. संयुक्त राष्ट्र में भी भारत के खिलाफ काम किया था . जब भी भारत ने परमाणु परीक्षण किया अमरीका को तकलीफ हुई . भारत ने बार बार पूरी दुनिया से अपील की कि बिजली पैदा करने के लिए उसे परमाणु शक्ति का विकास करने दिया जाय लेकिन अमरीका ने शान्ति पूर्ण परमाणु के प्रयोग की कोशिश के बाद भारत के ऊपर तरह तरह की पाबंदियां लगाईं. उसकी हमेशा कोशिश रही कि वह भारत और पाकिस्तान को बराबर की हैसियत वाला मुल्क बना कर रखे लेकिन ऐसा करने में वह सफल नहीं रहा .आज भारत के जिन इलाकों में भी अशांति है , वह सब अमरीका की कृपा से की गयी पाकिस्तानी  दखलंदाजी की वजह से ही है . कश्मीर में जो कुछ भी पाकिस्तान कर रहा है उसके पीछे पूरी तरह से अमरीका का पैसा लगा है . पंजाब में भी आतंकवाद पाकिस्तान की  फौज की कृपा से ही शुरू हुआ था . 

आज हम देखते हैं कि  अमरीका ने जिस पाकिस्तानी आतंकवाद का ज़रिये भारत की एकता पर प्राक्सी हमला किया था  पाकिस्तान  ही मुसीबत बन गया है. पाकिस्तानी  फ़ौज़ और राजनेताओं को चाहिए कि वे अपने देश की सुरक्षा को सबसे ऊपर  रखें और भारत की मदद से आतंकवाद के खात्मे के लिए योजना बनाएं वरना एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान  अस्तित्व खतरे में पड़  जाएगा। 

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