Tuesday, June 17, 2014

इराक और अफगानिस्तान में शान्ति और स्थिरता भारत की तरक्की की ज़रूरी शर्त


 शेष नारायण सिंह 
इराक एक राष्ट्र के रूप में टूट चुका है . ताज़ा वारदात दिल दहला देने वाली है . इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया ने दावा किया है कि उसने १७०० इराकी  सैनिकों को पकड़ लिया था और अब  उन्हें फायरिंग स्क्वाड के सामने खड़े करके मार डाला गया है . दावा किया गया है कि जो तस्वीरें इन लोगों ने ट्विटर पर लगाई हैं , वे इन्हीं बदकिस्मत लोगों की हैं . इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया  कोई  राज्य नहीं है . यह इराक में मौजूद अल-कायदा संगठन का ही नाम है . भारी हथियारों से लैस यह संगठन इराक के कई बड़े शहरों पर क़ब्ज़ा कर चुका है . उत्तर इराक के सबसे बड़े शहर मोसुल पर इसका क़ब्ज़ा है. १७०० सैनिकों को मौत के घाट उतारने की जो तस्वीरें ट्विटर पर पोस्ट की गयी हाँ , वे पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के जन्मस्थान तिकरित की हैं . बताया जा रहा है कि दज़ला नदी के किनारे बने हुए सद्दाम के पुराने महल के प्रांगण में ही सैनिकों को इकठ्ठा किया गया था और वहीं से उनको उन जगहों पर ले जाया गया जहां उनको सामूहिक कब्रों में फेंक दिया गया . इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड सीरिया पुराने मेसोपोटामिया में  काम करने वाला एक ज़बरदस्त संगठन है . यह लेबनान , इजरायल, जार्डन और सीरिया पर भी अपना दावा ठोंकता है लेकिन फिलहाल तो इसका सारा फोकस उत्तरी इराक में है . इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया के जन्म को इराक में अमरीका की असंगत नीति का नतीजा बताया जा सकता है . इसकी स्थापना इराक युद्ध के शुरुआती दिनों में ही हो गयी थी . २००४ में इस संगठन को इराक का अल कायदा माना  जाता था . यह ऐसे लड़ाकुओं का संगठन था जो स्पष्ट रूप से सद्दाम के भक्त नहीं थे लेकिन सद्दाम हुसेन के साथ हो रहे अमरीकी व्यवहार से नाराज़ थे . उस दौर के अन्य लड़ाकू संगठन , मुजाहिदीन शूरा काउन्सिल, जैश अल फातिहीन , जैश अल ताईफा , अल मंसूरा आदि ने मिलकर एक तंजीम  की स्थापना की थी . इराक युद्ध के दौरान भी इस  संगठन की मौजूदगी इराक के अल अंबार, निनावा, किरकुक, बाबिल, दियाला, और सलाह अद्दीन इलाकों में थी . इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड सीरिया शुरू में ऐसा कोई मज़बूत संगठन नहीं था लेकिन २०१२ के बाद से यह उत्तरी इराक में अपनी हुकूमत चला रहा है . कुर्दों के इलाके में भी इराक के शिया प्रधानमंत्री का कोई ख़ास असर नहीं  है . लगता  है कि एक अलग कुर्दिस्तान भी बन ही चुका है .  जिन सत्रह सौ सैनिकों को मारा गया है , वे इराकी सेना के शिया सैनिक ही थे  , उनके साथ पकडे गए जो सैनिक सुन्नी थे उनको सिविलियन कपडे पहनाकर भगा दिया गया था . इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया के मौजूदा सुप्रीमो , अबू बकर बगदादी अब एक स्वत्रन्त्र संगठन के मालिक हैं और वे अल कायदा या किसी और से केवल अपने फायदे के लिए संपर्क रखते हैं . एक बार अलकायदा के मुखिया अयमान अल ज़वाहिरी ने आदेश दिया था कि इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया की सीरिया शाखा को भंग कर दिया जाय लेकिन बगदादी ने साफ़ मना कर दिया था .
बहरहाल आतंरिक संगठन की इनकी जो भी लड़ाई हो , इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया इराक में आज एक ऐसी सैनिक ताक़त है जिसके सामने इराक की सरकार की कुछ नहीं चल रही है . अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के फैलाये गए उस रायते से पिंड छुड़ाना चाहते हैं जो उन्होंने अफगानिस्तान और इराक में फैलाया था . लेकिन लगता है कि उनका सपना बहुत ही मुश्किल दौर से गुज़र रहा है . इराक और अफगानिस्तान दोनों ही देशों में अलकायदा की विचारधारा वाले वहाबी मुसलमानों के संगठन भारी पड़ रहे हैं .
अभी दो दिन पहले भारतीय अखबारों में भी खबर छपी थी कि तालिबान आकाओं ने हुक्म कर दिया  है कि अफगानिस्तान में काम कर  रहे वे तालिबान आतंकी अब भारत की तरफ रुख करें और कश्मीर में वहां के मुकामी लोगों के साथ मिलकर हमले करें . भारत की सुरक्षा की चिंता करने वाले तबकों में इस खबर की जानकारी पहले से ही थी और उस पर काबू पाने की कोशिश भी चल रही है लेकिन जानकारी जब अखबारों में छप गयी तो शेयर बाज़ार पर भी असर दिखा . इराक के राष्ट्र पर आसन्न खतरे को देखते हुए सबको मालूम है कि पेट्रोलियम पदार्थों की सप्लाई और कीमतों पर उलटा असर पड़ने वाला  है .ज़ाहिर है कि इराक में अस्थिरता का दौर शुरू होने वाला है . इराक से भारत भी भारी मात्रा में तेल आयात करता  है . ज़ाहिर है कि भारत इस घटनाक्रम से प्रभावित होने वाला है .
इराक और अफगानिस्तान में चल रही अस्थिरता का भारत पर सीधे तौर पर असर पडेगा . यहाँ  करीब चार हफ्ते पहले नई सरकार आयी है .नरेंद्र मोदी देश के नए प्रधानमंत्री बने हैं . उनसे देश की कमज़ोर अर्थव्यवस्था में सुधार की बहुत उम्मीदें हैं लेकिन अगर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें बढ़ गयीं तो उनके लिए  देश की आर्थिक सेहत को ठीक करना पाने के मिशन में बहुत अडचनें  आयेगीं .  देश में मौजूद पेट्रोलियम  संसाधनों में सबसे प्रमुख तत्व ,गैस की  कीमतों में सरकार पद संभालने के  साथ साथ वृद्धि कर ही चुकी है . ज़ाहिर है कि विदेशी तेल के महँगा होने के बाद प्रधानमंत्री का मंहगाई पर काबू कर पाने का सपना बहुत ही मुश्किल दौर से गुजरने के लिए मजबूर हो जाएगा. खतरा यह भी है कि मौजूदा हालात के मद्दे नज़र महंगाई घटना तो दूर कहीं बढना न शुरू हो जाए.
 इराक और अफगानिस्तान में चल रहे अल कायदा के प्रभाव वाले झगडे का सीधा  नुक्सान भारत की आतंरिक सुरक्षा की हालात पर पड़ सकता है . पाकिस्तान में मौजूद अल कायदा का सबसे बड़े खैरख्वाह , हाफ़िज़ मुहम्मद सईद और तालिबान की संस्थापक पाकिस्तानी फौज और आई एस आई भारत को तबाह करने के सपने हमेशा देखते रहते  हैं . अफनिस्तान में काम कर रहे कुछ तालिबानी आतंकियों  को कश्मीर में झोंकने की बातें चर्चा में हैं . अगर यह हो गया तो देश में आर्थिक सम्पन्नता का प्रयास कर रही मौजूदा सरकार का ध्यान सबसे पहले सुरक्षा की तरफ जाएगा . ज़ाहिर है कि उससे अर्थव्यवस्था पर फालतू का बोझ पडेगा और मंहगाई को ख़त्म करने और नौजवानों को रोजगार देने की नरेंद्र मोदी की  योजना को झटका लगेगा . भारत समेत अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को कोशिश करनी चाहिए कि इराक और अफगानिस्तान की हालात जल्द से जल्द स्थिर बनें .

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