शेष नारायण सिंह
जब नरेंद्र मोदी सरकार ने करीब तीन हफ्ते पहले शपथ ली थी तो सब ने कहा था कि इस सरकार के काम काज पर छः महीने पहले टिप्पणी करने की ज़रुरत नहीं है . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने विचारों को नीति के रूप में लागू करके देश की प्रगति की भावी दिशा निर्धारित करने में इतना टाइम तो लग ही जाएगा . उम्मीद की गयी थी कि वे विकास के कुछ ऐसे माडल लायेगें जिनसे वे लक्ष्य हासिल किये जा सकें जिनका अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने बार बार वायदा किया था . दो बातें उन्होंने ख़ास तौर पर कही थीं . एक तो यह कि उनके सत्ता संभालने के बाद मंहगाई पर काबू पा लिया जायेगा और दूसरी बात कि देश में बेरोजगार नौजवानों को काम मिलेगा. बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर मौजूदा सरकार जुलाई में पेश होने वाले बजट के समय जो बातें करेगी उससे पता लगेगा . नरेंद्र मोदी सरकार के वित्त मंत्री का भाषण ऐतिहासिक होगा और उसी के आधार पर आने वाले वर्षों में आम आदमी की सम्पन्नता या विपन्नता के बारे में फैसला लिया जाएगा .लेकिन मंहगाई कम करने वाले तरीकों को तो लगता है कि वर्तमान सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है . कृष्णा गोदावरी बेसिन से निकलने वाली गैस की कीमत को दोगुना कर दिया गया है , यानी उस गैस से जो चीज़ें पैदा होती हैं उनकी कीमत दोगुने से भी ज़्यादा होने वाली है क्यों रासायनिक खाद और बिजली के उत्पादन में उस गैस का कच्चे माल के रूप में उपयोग होता है . ट्रांसपोर्ट सेक्टर भी गैस पर बहुत हद तक आधारित है . लेकिन हम यह भी जानते हैं कि जनता की आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने के जनादेश पर चुनी गयी सरकार ऐसा कोई भी काम नहीं करेगी जिस से उस जनादेश देने वाली जनता को तकलीफ हो . इस बात की पूरी संभावना है कि गैस की कीमत बढ़ाने का फैसला बहुत ही मजबूरी में किया गया होगा क्योंकि इस सरकार की मंशा बिलकुल नहीं होनी चाहिए कि चुनाव नतीजों के आने के महीने भर के अन्दर ऐसा कोई फैसला ले लिया जाए जिस से जनहित उलटे तरीके से प्रभावित होता हो.
गोवा की एक सभा में प्रधानमंत्री ने अपनी बात को बहुत ही साफ़गोई से कह दिया . उन्होने कहा कि पिछली सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को बहुत ही खराब हालत में छोड़ा है . उनकी सरकार को उसको पटरी पर लाना होगा . प्रधानमंत्री ने साफ़ कहा कि अर्थव्यवस्था को सही लाइन पर लाने के लिए सख्त आर्थिंक फैसले करने पड़ेगें . प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि यह फैसले ऐसे होंगें जिसकी वजह से उनकी लोकप्रियता में कमी आयेगी लेकिन उन्होने बताया कि उनको इसके बावजूद भी यह फैसले लेने पड़ेगें .सख्त आर्थिक फैसले का मतलब यह है कि लोगों को किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए . सरकार की पूरी कोशिश होगी कि वह राष्ट्रहित को सर्वोपरि रख कर काम करे और सब की भलाई के लिए अर्थव्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करने के लिए अगर आम आदमी को कुछ तकलीफें उठानी पड़े तो देश की अवाम को उसके लिए तैयार रहना चाहिए. मुझे नहीं लगता कि इन बातों में कहीं कोई खोट है . ज़ाहिर है देश को अपनी आर्थिक बीमारी ठीक करने के लिए सख्त दवाइयों का सेवन तो करना पडेगा. कोई भी सरकार अगर गंभीरता से कोई काम करती है तो उसपर शक नहीं करना चाहिए . कोई भी स्टेट्समैन प्रधानमंत्री अपनी बात को इसी तरह से रखेगा . जवाहरलाल नेहरू ने देश के हित में ऐसे फैसले लिए जो आम आदमी को तकलीफ देते थे लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उस महान राजनेता ने अपने देशवासियों को यह समझा दिया कि सख्त फैसले देश की जनता के हित में हैं . देश में आज़ादी की लड़ाई के हीरो जवाहरलाल नेहरू का बहुत ही ज्यादा भरोसा किया जाता था .जनता ने उनकी हर बात को माना और तकलीफें झेलीं लेकिन देशहित के काम में कभी भी जनता आड़े नहीं आयी . लोगों को मालूम था कि जो भी संस्थाएं बन रही हैं सब उनके ही काम आयेगीं . सबको मालूम था कि नेहरू की सरकार किसी टाटा बिड़ला के लाभ के लिए काम नहीं करती , वह सरकार जनहित में काम करती है और टाटा बिडला को भी मजबूर करती है कि उनकी कम्पनियां देश की अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान करे . उस प्रक्रिया में उनको लाभ कमाने पर कोई रोक नहीं थी . नरेंद्र मोदी को भी जनता में इसी तरह का भरोसा पैदा करना होगा कि उनकी सरकार जो भी फैसले लेगी वे किसी पूंजीपति के हित में नहीं होंगें . लेकिन अगर जनता को पता चल गया कि जनता को कुछ अन्य बात बताकार पूंजीपति के हित के फैसले लिए जा रहे हैं तो इस देश की जनता बहुत महान है , चुप हो जायेगी और आने वाले चुनावों के वक़्त अपना आदेश सुना देगी .
डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने यही गलती की . उन्होंने जनमानस में यह भाव बैठा दिया कि उनकी सरकार पूंजीपतियों के हित के निर्णय लेती है . टू जी घोटाले के समय सारे देश को मालूम था कि यू पी ए २ की सरकार धन्नासेठों को फायदा पंहुचाने के लिए आम आदमी का शोषण कर रही थी . आम आदमी को इनकम टैक्स में मामूली छूट देकर वह कारपोरेट घरानों को डेढ़ लाख करोड़ से ज़्यादा की आयकर की सब्सिडी दे रही थी, आर्थिक सुधार के नाम पर मजदूरों के हितों की अनदेखी कर रही थी . कारपोरेट लाबी का दबाव तो यहाँ तक था कि मजदूरों की आर्थिक और रोज़गार की सुरक्षा के जो क़ानून मौजूद हैं उनको इतना कमज़ोर कर दिया जाए कि पूंजीपति मजदूरों को दबा सके,परेशान कर सके . अगर सरकार आ गयी होती तो वह काम हो भी जाता . आजकल भी मजदूर कानूनों को बदल देने की वकालत पूंजीपतियों के चाकर जोर शोर से कर रहे हैं . नरेंद्र मोदी को उनको चुप करा देना चाहिए क्योंकि अगर मजदूरों के हितों को पूंजीपतियों की मर्जी से नुकसान पंहुचाया गया तो वह किसी भी सरकार को नुक्सान करेगा .प्रधानमंत्री को न्याय करना चाहिए और यह कोशिश करनी चाहिए की सब को साफ़ नज़र आये कि न्याय हो रहा है . अगर वे अपने को जनपक्षधर प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर सके तो उनको भी वही प्यार मिलेगा जो जवाहरलाल नेहरू को मिला था लेकिन अगर उनकी नीतियों में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार की पूंजी की चाकर नीतियाँ नज़र आने लगीं तो इस देश की जनता बहुत महान है . किसी भी प्रधानमंत्री को इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई , राजीव गांधी , वी पी सिंह आदि की तरह बाहर का रास्ता भी दिखा देती है . नरेंद्र मोदी के पास अपने आपको जनपक्षधर सिद्ध करने का एक मौक़ा मिला है , देखना दिलचस्प होगा कि वे उसका क्या इस्तेमाल करते हैं .
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