शेष नारायण सिंह
देश के हर कोने से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की ख़बरें आ रही हैं। अभी खबर आयी है कि मुंबई के पास कल्याण में एक मर्द ने सरकारी बस में यात्रा कर रही एक महिला को इतना पीटा कि वह बेहोश हो गयी। उसको बचाने के लिए बस की कंडक्टर आई तो उसको भी मारा पीटा। बस में ने उनकी वहशत का कोई जवाब नहीं दिया। उत्तर प्रदेश से बलात्कार की ख़बरें कई ज़िलों से आ रही हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में महिलाओं के साथ अत्याचार की इतनी ख़बरें आती हैं कि जब किसी दिन घटना की सूचना नहीं आती तो लगता है कि वही समाचार का विषय है। आज दिल्ली के अखबारों में खबर है कि किसी नराधम ने एक तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया। उत्तर प्रदेश से लड़कियों से हैवानियत की जितनी भी रिपोर्टें आ रही हैं उनमें ज़्यादातर ऐसी बच्चियों को शिकार बनाया गया है जो शाम ढले शौच के लिए घर से बाहर खेतों में जा रही थीं . यानी अगर उनके घर में शौच की सुविधा होती , शौचालय बनाने की सरकारी स्कीम के तहत शौचालय बनवा दिए गए होते तो बड़ी संख्या में लड़कियों को बलात्कार जैसी जघन्य पाशविकता का शिकार होने से बचाया जा सकता था. केंद्र सरकार के संगठन , राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन( एन एस एस ओ ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गाँवों में रहने वाली साठ फीसदी आबादी के पास घर में या घर के पास शौचालय नहीं है . केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन लागू किया गया है .ग्रामीण आबादी के लिये अप्रैल, 2005 में शुरू किया गया . इस कार्यक्रम में महिलाओं और उनके स्वास्थ्य में सुधार को सबसे ज़्यादा प्राथमिकता दी गयी है . एक बड़ी धनराशि महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखकर शौचालयों के लिए रिज़र्व कर दी गयी थी. देश के अठारह राज्यों के लिए इस स्कीम में ख़ास इंतज़ाम किये गए थे . अरुणाचल प्रदेश,असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू कश्मीर, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, मध्य प्रदेश,नागालैण्ड, उड़ीसा, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार की और से अब तक शौचालय के नाम पर बड़ी रक़म दी जा चुकी है लेकिन गैरजिम्मेदार राज्य सरकारों ने इस दिशा में कोई ख़ास काम नहीं किया. मन कहता है की काश सरकारों ने अपने ज़िम्मेदारी निभाई होती तो आज उन बच्चियों को बलात्कार जैसे भयानक अपराध से बचाया जा सका होता.
लेकिन यहीं पर दूसरा सवाल पैदा होता है . क्या वे लड़कियां जो अकेले देखी जायेगीं उनको बलात्कार का शिकार बनाया जायेगा. बार बार सवाल पैदा होता है कि लड़कियों के प्रति समाज का रवैया इतना वहशियाना क्यों है। दिसंबर २०१३ में हुए दिल्ली गैंग रेप कांड के बाद समाज के हर वर्ग में गुस्सा था. अजीब बात है कि बलात्कार जैसे अपराध के बाद शुरू हुए आंदोलन से वह बातें निकल कर नहीं आईं जो महिलाओं को राजनीतिक ताक़त देतीं और उनके सशक्तीकरण की बात को आगे बढ़ातीं . गैंग रेप का शिकार हुई लडकी के साथ हमदर्दी वाला जो आंदोलन शुरू हुआ था उसमें बहुत कुछ ऐसा था जो कि व्यवस्था बदल देने की क्षमता रखता था लेकिन बीच में पता नहीं कब अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने वाली राजनीतिक पार्टियों ने आंदोलन को हाइजैक कर लिया और केन्द्र सरकार ,दिल्ली सरकार और इन सरकारों को चलाने वाली राजनीतिक पार्टी फोकस में आ गयी . कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में लगी हुई पार्टियों ने आंदोलन को दिशाहीन और हिंसक बना दिया . इस दिशाहीनता का नतीजा या हुआ कि महिलाओं के सशक्तीकरण के मुख्य मुद्दों से राजनीतिक विमर्श को पूरी तरह से भटका दिया गया . बच्चियों और महिलाओं के प्रति समाज के रवैय्ये को बदल डालने का जो अवसर मिला था उसको गँवा दिया गया। अब ज़रूरी है कि कानून में ऐसे इंतजामात किये जाएँ कि अपराधी को मिलने वाली सज़ा को देख कर भविष्य में किसी भी पुरुष की हिम्मत न पड़े कि बलात्कार के बारे में सोच भी सके. उस समाज के खिलाफ सभ्य समाज को लामबंद होने की ज़रूरत है जो लडकी को इस्तेमाल की वस्तु साबित करता है और उसके साथ होने वाले बलात्कार को भी अपनी शान में गुस्ताखी मान कर सारा काम करता है . हमें एक ऐसा समाज चाहिए जिसमें लडकी के साथ बलात्कार करने वालों और उनकी मानसिकता की हिफाज़त करने वालों के खिलाफ लामबंद होने की इच्छा हो और ताक़त हो.
चारों तरफ महिलाओं के प्रति अत्याचार की ख़बरें हैं। किसी दिन के अखबारों पर नज़र डालें तो बलात्कार के कम से कम दस मामले ऐसे हैं जिनकी खबर छपी है . ये ऐसे मामले हैं जिनको पुलिस थानों में बाकायदा रिपोर्ट किया गया है . इन बलात्कारों से भी ज्यादा अपमानजनक बहुत सारे विज्ञापन हैं जो अखबारों और टेलिविज़न चैनलों पर चलाये जा रहे हैं .महिलाओं को उपभोग की चीज़ साबित करने की कोशिश करने वाली इस मानसिकता के खिलाफ जंग छेड़ने की ज़रूरत है जिसमें लडकी को संपत्ति मानते हैं . इसी मानसिकता के चलते इस देश में लड़कियों को दूसरे दरजे का इंसान माना जाता है और उनकी इज्ज़त को मर्दानी इज्ज़त से जोड़कर देखा जाता है . लडकी की इज्ज़त की रक्षा करना समाज का कर्त्तव्य माना जाता है . यह गलत है . पुरुष कौन होता है लडकी की रक्षा करने वाला . ऐसी शिक्षा और माहौल बनाया जाना चाहिए जिसमें लड़की खुद को अपनी रक्षक माने . लड़की के रक्षक के रूप में पुरुष को पेश करने की मानसिकता को जब तक खत्म नहीं किया जाएगा तह तक कुछ भी बद्लेगा नहीं. जो पुरुष समाज अपने आप को महिला की इज्ज़त का रखवाला मानता है वही पुरुष समाज अपने आपको यह अधिकार भी दे देता है कि वह महिला के यौन जीवन का संरक्षक और उसका उपभोक्ता है . इस मानसिकता को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया जाना चाहिए .मर्दवादी सोच से एक समाज के रूप में लड़ने की ज़रूरत है . और यह लड़ाई केवल वे लोग कर सकते हैं जो लड़की और लड़के को बराबर का इंसान मानें और उसी सोच को जीवन के हर क्षेत्र में उतारें . कमज़ोर को मारकर बहादुरी दिखाने वाले जब तक अपने कायराना काम को शौर्य बताते रहेगें तब तक इस देश में बलात्कार करने वालों के हौसलों को तोड़ पाना संभव नहीं होगा. अब तक का भारतीय समाज का इतिहास ऐसा है जहां औरत को कमज़ोर बनाने के सैकड़ों संस्कार मौजूद हैं . स्कूलों में भी कायरता को शौर्य बताने वाले पाठ्यक्रमों की कमी नहीं है .इन पाठ्यक्रमों को खत्म करने की ज़रूरत है . सरकारी स्कूलों के स्थान पर देश में कई जगह ऐसे स्कूल खुल गए हैं,जहां मर्दाना शौर्य की वाहवाही की शिक्षा दी जाती है . वहाँ औरत को एक ऐसी वस्तु की रूप में सम्मानित करने की सीख दी जाती है .इस समाज में औरत का सम्मान पुरुष के सम्मान से जुड़ा हुआ है . इस मानसिकता के खिलाफ एकजुट होकर उसे ख़त्म करने की ज़रूरत है . अगर हम एक समाज के रूप में अपने आपको बराबरी की बुनियाद पर नहीं स्थापित कर सके तो जो पुरुष अपने आपको महिला का रक्षक बनाता फिरता है वह उसके साथ ज़बरदस्ती करने में भी संकोच नहीं करेगा. शिक्षा और समाज की बुनियाद में ही यह भर देने की ज़रूरत है कि पुरुष और स्त्री बराबर है और कोई किसी का रक्षक नहीं है. सब अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं. बिना बुनियादी बदलाव के बलात्कार को हटाने की कोशिश वैसी ही है जैसे किसी घाव पर मलहम लगाना . हमें ऐसे एंटी बायोटिक की तलाश करनी है जो शरीर में ऐसी शक्ति पैदा करे कि घाव होने की नौबत ही न आये. कहीं कोई बलात्कार ही न हो . उसके लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि महिला और पुरुष के बीच बराबरी को सामाजिक विकास की आवश्यक शर्त माना जाए.
इस बात की भी ज़रुरत है कि लड़कियों की तालीम को हर परिवार ,हर बिरादरी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाये और उनकी शिक्षा के लिए ज़रूरी पहल की जाए . जहां तक मुसलामानों की बात है केंद्र सरकार के पंद्रह सूत्र प्रोग्राम में लड़कियों की तालीम पर पूरा जोर दिया गया है . मौजूदा सरकार के प्रधानमंत्री ने कई बार कहा है कि पिछली सरकार की जो अच्छी बातें हैं उनको लागू किया जाएगा. सबको मालूम है की सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और प्रधानमंत्री का पंद्रह सूत्री प्रोग्राम अल्पसंख्यकों के हवाले से पिछली सरकार के बहुत ही अच्छे प्रोग्राम हैं , मौजूदा सरकार अगर उनको लागू करती है जो लड़कियों का इम्पावरमेंट तालीम के ज़रिये होगा और अगर सही तरीके से महिलाओं को अवसर दिए गए तो बलात्कार जैसे अपराध बिलकुल कम हो जायेगें . या यह भी हो सकता है कि नई सरकार को इन दस्तावेजों से एतराज़ हो क्योंकि इनका फोकस मुस्लिम ख़वातीन पर ज़्यादा है तो उनको अपनी कोई नई स्कीम लानी चाहिए . लेकिन जो भी करना हो फ़ौरन करना पडेगा क्योंकि इस दिशा में जो काम आज से साठ साल पहले होने चाहिए थे उन्हें अब शुरू करना है . अगर औरदेरी हुई तो बहुत देर हो जायेगी .
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