राज्य में उच्च शिक्षा पर अनिश्चितता हावी होती जा रही है। सरकार हालात से वाकिफ होने के बावजूद इस मामले में लापरवाही बरत रही है। इससे छात्र-छात्राओं के भविष्य पर सवालिया निशान लग रहा है। राजधानी दून समेत राज्य के बड़े हिस्से में उच्च, व्यावसायिक व रोजगारपरक शिक्षा से जुड़े निजी, सरकारी व सहायताप्राप्त अशासकीय शिक्षण संस्थाएं नए संकट से जूझ रही हैं।
इसकी वजह गढ़वाल विवि के केंद्रीय विवि बनने के बाद उससे जुड़े करीब पौने दो सौ से ज्यादा शिक्षण संस्थाओं को अगले सत्र में संबद्धता के मामले में स्थिति का खुलासा नहीं होना है। विवि प्रशासन ने तमाम संस्थानों को पत्र जारी कर अगले सत्र में प्रवेश रोकने को कहा है।
इस मुद्दे पर नीति निर्धारण नहीं किया गया है। विवि प्रशासन जानता है कि शिक्षण संस्थाओं ने मौजूदा रवैया अगले सत्र में जारी रखा तो उसके समक्ष भी परेशानी खड़ी हो सकती है। केंद्रीय विवि को स्तरीय उच्च शिक्षण संस्थान के तौर पर देखा जाता है। यह माना भी जा रहा है कि गढ़वाल विवि की कार्यप्रणाली में अब बदलाव आएगा।
हालांकि, केंद्रीय विवि की घोषणा के बाद ही उसके एक्ट में इस सत्र में तमाम संस्थानों की संबद्धता जारी रखी गई है पर भविष्य में बड़ी तादाद में इन संस्थानों को विवि अपने साथ रखेगा, ऐसी उम्मीद कम ही है। शासन के आला अफसरों और उच्च शिक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे मुख्यमंत्री का इन हालात से परिचित होना लाजिमी है।
इसके बावजूद समय रहते इस दिशा में कदम नहीं उठाने से हालत और बिगडऩे के आसार हैं। यही नहीं, गुणवत्ता को विवि अब ज्यादा देर तक नजरअंदाज नहीं कर सकेगा, यह पैरामेडिकल शिक्षण संस्थानों के मामले में अपनाए गए रवैये से भी साफ हो गया है।
मानकों का पालन नहीं करने वाले संस्थानों के प्रवेश फार्म आखिरी तारीख बीतने के बाद भी स्वीकार नहीं किए गए हैं। चुनाव के मौके पर नीतिगत फैसले नहीं लेने की बाध्यता सरकार भले ही महसूस करे पर सैकड़ों छात्र-छात्राओं को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आना लाजिमी है।
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