Sunday, July 26, 2009

ममता की रेल

तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने रेलमंत्री की हैसियत से अपना पहला रेल बजट अपनी जनवादी छवि के अनुरुप ही पेश किया है। जिसका निश्चित रूप से स्वागत किया जाना चाहिए। भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा रेल तंत्र है जो एक प्रबंधन के अंतर्गत काम करता है। उसका सामाजिक दायित्व भी व्यापक है क्योंकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक रेल संचालन के माध्यम से देश को एक सूत्र में बांधे रखने की बड़ी जिम्मेदारी भी भारतीय रेल पर है।
प्रतिदिन लाखों लोगों का आवागमन इसी रेल पर निर्भर है। रेलमंत्री का अपने बजटीय भाषण में यह कहना कतई न्यायोचित है कि जिस तरह लोकतंत्र में सबको वोट देने का अधिकार है उसी तरह विकास का अधिकार भी आम इंसान को मिलना चाहिए। गठबंधन सरकारों में रेल मंत्रालय अधिकतर घटक दलों के पास ही रहा है। केन्द्र में यूपीए की विगत सरकार में रेलमंत्री का पद राजद नेता लालू प्रसाद यादव के पास रहा।
उन्होंने पांच वर्ष के कार्यकाल में भारतीय रेल की कायापलट करने में काफी नाम कमाया और घाटे में चल रहे रेलवे को बड़े मुनाफे में बदला, जिसकी प्रशंसा विदेशों में भी हुयी और विभिन्न देशों के प्रतिनिधिमंडल लालू यादव से प्रबंधन के गुर सीखने भी भारत आए। इसलिए बात अगर रेलवे के आर्थिक विकास की आएगी तो उसका श्रेय लालू यादव अवश्य ही लेगे। पूर्व रेलमंत्री लालू यादव भी खुद को गरीबों का मसीहा कहते थे इसलिए उन्होंने अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में रेल किरायों में वृद्घि नहीं होने दी।
अब इन हालात में ममता बनर्जी के सामने रेल बजट को एक नए रूप में पेश करने की बड़ी चुनौती थी। ममता के बजट में भी रेल किरायों में कोई वृद्घि नहीं की गयी है इसीके साथ व्यापक घोषणाएं भी है और लोकलुभावन वायदे भी। लेकिन ममता का सारा ध्यान यात्री सुविधाओं के ऊपर है, अगर इस दिशा में अपनी कार्यशैली के अनुसार वो व्यापक और कारगर कदम उठाती हैं तो निश्चित रूप से इसे आम आदमी का बजट कहा जाएगा। दअसल अब तक होता ये रहा है कि रेलमंत्री अपने बजट में लंबी चौड़ी घोषणाएं कर देते है और नई-नई रेलगाडिय़ां भी चला दी जाती है।
लेकिन इसके विपरीत रेलों में जन सुविधाओं का निरंतर हृास होता जा रहा है। रेलवे के सामने सबसे बड़ी चुनौती सुरक्षित यात्रा प्रदान करने की है। विगत वर्षो में रेलगाडिय़ां व रेल परिसरों में हत्या, बलात्कार, लूटपाट, निर्बल यात्रियों को चलती गाड़ी से बाहर फेंकने, उनके सामान की झपटमारी जैसी घटनाओं ने जहां यात्रियों को भयभीत किया वहीं रेलवे प्रबंधन को भी हिलाकर रख दिया। इसलिए रेल किराया नहीं बढ़ा, अच्छी बात है, मगर इससे अधिक महत्वपूर्ण बात सुरक्षित यात्रा की है जिस पर आम व खास दोनों की ही नज़र है।
देश की आबादी का बड़ा हिस्सा एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश रोजी रोटी की खातिर कमाने के लिए जाता है और वो अपनी कमाई का बाकी हिस्सा सुरक्षित अपने प्रदेश लेकर लोट जाए तो इससे बड़ा काम और क्या हो सकता है। रेलगाडिय़ो में बढ़ते अपराध और वर्दीधारियों द्वारा सामान तलाशी के नाम पर यात्रियों से अवैध वसूली और न देने की सूरत में उन्हें गाड़ी से उतार देने की क्रूरतम वारदात आए दिन खबरों में रहती है, निश्चित रूप से ये स्थिति अत्यंत दुखदायी हैं।
लेकिन खेदजनक पहलू यह है कि सुरक्षित यात्रा पर अभी तक रेलवे द्वारा गंभीर और सार्थक प्रयास नहीं किए गए, प्राय: इस की जिम्मेदारी राज्यों पर डालकर रेलमंत्री अपना पल्ला झाड़ते रहे है। वर्ष 2005-08 तक रेल यात्राओं के दौरान 859 हत्याएं, बलात्कार की 137 तथा डकैती की 462 घटनाएं हुयी। लूटपाट की 1200 और नशाखोरी की 2100 से अधिक घटनाएं हुयी। सामान चोरी व अन्य अपराधों के 60 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा छिटपुट घटनाओं की गिनती ही क्या? ममता बनर्जी की रेल मंत्रालय की चाहत पुरानी है जो अब पूरी हो गयी है इसलिए आम जनता भी ये जानने और अनुभव करने की इच्छुक है कि आखिर एनडीए के कार्यकाल में ममता बनर्जी रेल मंत्रालय लेने पर क्यों अड़ गयी थी और वो मुराद अब यूपीए शासन में पूरी हो गयी है तो वो क्या खास करके दिखाएंगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता बनर्जी पं. बंगाल की ज़मीन से जुड़ी हुयी जुझारू नेता है, जो ईमानदार भी हैं और कर्मठ भी है। 1970 में एक युवा महिला के रूप में कांग्रेस पार्टी से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू करने वाली ममता बनर्जी 1984 के संसदीय चुनाव में सीपीएम के बड़े नेता सोमनाथ चटर्जी को हराकर संसद में पहुंचने वाली सबसे कम उम्र की सांसद बनी थीं। उसके बाद वो पांचवी बार दक्षिण कोलकता से संसद पहुंची है।
1997 में रेलवे बजट में बंगाल की उपेक्षा करने के कारण रेल बजट प्रस्तुत कर रहे रेलमंत्री रामविलास पासवान पर गुस्से में वो अपनी शाल फेंक चुकी है इसीलिए अपने रेल बजट में उन्होंने देश के सभी अंचलों का विशेष ध्यान रखा है। युवाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी और पं. बंगाल में विधानसभा चुनावों को सामने रखकर उन्होंने एक युवा रेलगाड़ी चलाने की घोषणा भी की है। 1500 रुपये मासिक आय वालों के लिए 'इज्जत' नामक स्कीम के साथ 25 रुपये का मासिक सीजन टिकट भी उनके जन बजट की विशेषता है।
ममता ने रेल यात्री सुविधाओं, आरक्षण की समस्याओं, रेल में जनता भोजन, व सफाई व्यवस्था में सुधार पर अत्यधिक ज़ोर दिया है। यह तमाम समस्याएं है जिनका समाधान अगर कारगर ढंग से हो जाए तो निश्चित रूप से ममता बनर्जी की जय-जयकार होगी क्योंकि आम आदमी सुविधापूर्वक व सुरक्षित तरीके से यात्रा चाहता है। लेकिन उसकी इन मूल समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। गाडियां बढ़ें या न बढ़ें लेकिन जनता को वाजिब सुविधा तो मिलना ही चाहिए। अब देखना यह है कि ममता बनर्जी अपनी घोषणाओं पर कितना खरा उतरती है।

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