1980 में केंद्रीय सरकारों ने सॉफ्ट हिंदुत्व को सरकारी नीतियों के केंद्र में रखना शुरू किया था। इंदिरा गांधी जवाहर लाल नेहरू की बेटी थीं, उनमें धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के संस्कार थे जिसका उन्होंने पालन भी किया लेकिन 1980 के चुनावों के पहले उनके पुत्र स्व. संजय गांधी हिंदुत्व की तरफ खिंचने लगे थे। आर.एस.एस. वालों ने भी कई बार इस तरह की बातें की थीं कि संजय गांधी से देश को उम्मीदें हैं। इसी सॉफ्ट हिंदुत्व के चक्कर में पंजाब में अकालियों को तबाह करने की योजना बनाई गई थी जिसमें जनरैल सिंह भिंडरावाले को आगे बढ़ाया गया था।
बताते हैं कि संजय गांधी ने अपनी मां को भी इसी लाइन पर डालने में सफलता हासिल की थी। बहरहाल 1980 के बाद से केंद्रीय बजट में अल्पसंख्यकों को दरकिनार करने का सिलसिला शुरू हुआ था। संजय गांधी को यह भी नाराजगी थी कि 1977 में मुसलमानों की मुखालिफत के कारण ही उनकी मां की सत्ता खत्म हो गई थी। इसी दौरान संघ की राजनीति के प्रेमी बहुत सारे लोग कांग्रेस में भरती हुए। अरुण नेहरू टाइप लोगों ने कांग्रेस पर कब्जा कर लिया और 1991 में तो बीजेपी के समर्थन वाली सरकार ही आ गई।
1980 के बाद ही बाबरी मस्जिद की शहादत और दीगर बहुत से मसलों के हवाले से मुसलमानों को सरकारी तौर पर अपमानित करने का सिलसिला चलता रहा। अब 29 साल बाद एक ऐसी सरकार आई है जो पिछली सरकारों की गलतियों को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही है। आर.एस.एस. और उसके मातहत काम करने वालों की समझ में बात नहीं आ रही है। बहरहाल प्रणब मुखर्जी के इस बजट में ऐसे कुछ प्रावधान हैं जो अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के साथ हुए पिछले तीस साल के अन्याय को इंसाफ की शक्ल देने की कोशिश करते हैं। एक बात यहां स्पष्ट कर देना जरूरी है कि बजट में जो भी है वह मुसलमानों के प्रति एहसान नहीं है।
यह उस हक का एक मामूली हिस्सा है जो पिछले तीस वर्षों से केंद्रीय सरकारें छीनती रहीं है। प्रणब मुखर्जी ने अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में 74 प्रतिशत की बढ़ोतरी का ऐलान किया है। पिछले साल बजट में 1000 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई थी जो इस साल बढ़कर 1740 करोड़ कर दी गई है। इसके अलावा अल्पसंख्यक बहुल जिलों में प्राथमिकता के आधार पर बिजली, सड़क पानी आदि के विकास के लिए योजनाएं लाई जाएंगी। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के जरिए यू.पी.ए. सरकार ने अपनी मंशा का ऐलान मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में ही कर दिया था। इस बजट में उस मंशा को अमली जामा पहनाने की कोशिश की गई है।
मनमोहन सिंह ने बार बार कहा है कि तरक्की के लिए शिक्षा सबसे जरूरी हथियार है। उनका अपना जीवन भी शिक्षा के अच्छे अवसरों की वजह से दुरुस्त हुआ है। इसलिए अल्पसंख्यकों के कल्याण की योजनाओं में शिक्षा को बहुत ज्यादा महत्व देने की बात कही जा रही थी, जो बजट के बाद एक गंभ़ीर प्रयास के रूप में नजर आने लगी है। अल्पसंख्यक बच्चों को इतनी छात्रवृत्तियां दी जाएंगी कि उनकी तालीम इसलिए न रुक जाय कि पैसे की कमी है। अल्पसंख्यकों की कुशलता के विकास के लिए भी बड़ी योजनाओं की बात की जा रही है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की केरल और बंगाल में कैंपस खोलने की योजनाओं की चर्चा बरसों से होती रही है।
अपने बजट भाषण में इसके लिए धन का इंतजाम करके वित्त मंत्री ने अल्पसंख्यकों के भावनात्मक मुद्दों को भी महत्व दिया है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त एंव विकास निगम और मौलाना आज़ाद फाउंडेशन को और मजबूत किया जा रहा है। इस बजट की एक खास बात यह है कि यह कांग्रेस पार्टी की राजनीति को सरकार चलाने के लिए गंभीरता से आगे बढ़ाने का काम करता है। बजट के जरिए देश की आबादी के एक बड़े वर्ग को यह बताने की कोशिश की गई है कि यह देश सबका है।
अफसोस की बात यह है कि केंद्र सरकार की इंसाफ की डगर पर चलने की कोशिश को संघी राजनीति के कुछ कारिंदे तुष्टीकरण की नीति के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ इलाकों में जुलूस वगैरह भी निकालेे गए हैं और सरकार को मुसलमानों के खिलाफ काम करने की प्रेरणा देने की कोशिश की गई है। लेकिन लगता है कि केंद्र सरकार पर इसका कोई असर नहीं पडऩे वाला है, उसे संघी नेताओं की असुविधा पर मजा आ रहा है।
बजट 2009 कांग्रेस पार्टी की उस राजनीति की एक प्रक्रिया है जिसके तहत उसने मुसलमानों को अन्य पार्टियों से खींचकर अपनी तरफ लाने की कोशिश शुरू की थी। लोकसभा चुनाव 2009 में ही साफ संकेत मिलने लगे थे कि कांग्रेस पार्टी अब मुसलमानों के लिए अछूत नहीं है। बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने वाली, शिलान्यास करवाने वाली और बाबरी मस्जिद की शहादत में जिम्मेदार पार्टी की अपनी छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का वोट मिलना बहुत बड़ी बात थी। कांग्रेस की कोशिश है कि उसे दुबारा अल्पसंख्यकों का विश्वास हासिल हो जैसे 1971 तक था।
इस मायने में मौजूदा बजट वित्त व्यवस्था के प्रबंध को दुरुस्त करने के साथ-साथ राजनीति को भी चाक चौबंद रखने में काम आयेगा। किसी भी राजनीति का उद्देश्य होता है कि वह अपने देश की अधिकतम जनता की महत्वांकाक्षा का वाहक बने। बीजेपी आदि जो पार्टियां हैं वे अल्पसंख्यकों को अपने दायरे से बाहर रखकर काम करना चाहती है। उनकी कोशिश रहती है कि सरकार मुसलमानों को औकातबोध कराने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम करे।
बीच में कुछ दिनों के लिए कांग्रेस में भी यह बात आ गई थी लेकिन अब लगता है कि माहौल बदल रहा है। सोनिया-मनमोहन की टीम मुसलमानों को साथ लेकर चलने की नीति पर काम कर रही है। कम से कम बजट 2009 से तो यह संदेश बहुत ही साफ तरीके से सामने आ रहा है।
No comments:
Post a Comment