जब तक बिल्ली अपने खूनी पंजों से दूसरों को लहुलहान करती रही तब तक पाकिस्तानी शासक बड़ी ही स्पष्टता से इस सच्चाई को नकारते रहे कि इस खूनी बिल्ली से उनका कोई रिश्ता है और वो यह भी कहते रहे कि बिल्ली को पालने वाले तथा उसे दूध और गोश्त की आपूर्ति करने वालों को भी वो नहीं जानते लेकिन जब उस खूंखार बिल्ली ने उनके ही मुंह पर पंजे गड़ाने शुरु किए तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को भी कहना पड़ा कि 'हमारी बिल्ली हम ही से म्याऊं'।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब सारी दुनिया चीख चीख कर कह रही थी कि पाकिस्तान आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह बन गया है तो पाकिस्तान सरकार इन आरोपों को निराधार बताकर अपना दामन साफ बचाती रही जिसका दुष्परिणाम यह निकला कि पाकिस्तान के हालात अब इतने भयानक हो गए है कि जिनकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है। इसीलिए विगत दिन राष्टï्रपति आसिफ अली जरदारी को अपने निवास पर उच्च अधिकारियों व सेवानिवृत संघीय सचिवों की बैठक में बिना लाग लपेट के इस कड़वी सच्चाई को हलक से उतारकर यह स्वीकार करना पड़ा कि आतंकवादी पाकिस्तान में ही तैयार हो रहे है।
जरदारी का कहना है कि उनके देश ने ही आतंकवाद और कट्टरपंथ को पाल-पोस कर बड़ा किया है क्योंकि ऐसा करने के पीछे कोई तात्कालिक लाभ हासिल करना था। जरदारी का कहना है कि ऐसा भी नहीं है कि देश में आतंकवाद और कट्टरपंथ इस वजह से फला-फूला कि पाकिस्तान की राजनीतिक व प्रशासनिक ताकत कमजोर हुयी थी बल्कि कुछ राजनीतिक उद्देश्यों को तुरंत प्राप्त करने के लिए आतंकवाद को एक सशक्त हथियार के रूप में खड़ा करने की नीति अपनायी गयी। वही नीति अब पाकिस्तान की तबाही व बर्बादी का सबब बन रही है।
हालांकि जरदारी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वो तत्कालिक लाभ क्या थे जिन्हें हासिल करने के लिए पाक शासकों को आतंकवाद का सहारा लेना पड़ा लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वो तात्कालिक लाभ भारत को कमज़ोर करना ही था। जहां तक भारत का सवाल है तो वो पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का दंभ झेल रहा है और वो कहता रहा है कि कश्मीर में आतंकवाद के व्यापक प्रचार व प्रसार में सारा धन व बल पाकिस्तान की ज़मीन से ही मिल रहा है।
लेकिन पाकिस्तनी शासक जानबूझ कर इस सच्चाई पर पर्दा डालते रहे। मगर इस हकीकत से सारी दुनिया अच्छी तरह बाखबर थी! इसलिए जहां तक राष्टï्रपति जरदारी की बात है तो उन्होंने कोई बहुत बड़ा रहस्योदघाटन नहीं किया है बस एक सच्चाई को अपने मुंह से बयान कर सरकारी मुहर लगायी है। यद्यपि वो आतंकवाद के खिलाफ शुरु से ही बोलते रहे है लेकिन मुबंई हमलों के बाद सारी सच्चाई जानते हुए भी उनके विचार जिस तरह रोज़ रंग बदलकर सामने आए थे तो यही लगा था कि सच कहने से वो भी बच रहे हैं।
पर अब न जाने उन्हें यह साधूवाद अचानक कैसे प्राप्त हुआ कि एक ही झटके में उन्होंने अपने देश के पूर्व शासकों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया। इसकी बड़ी वजह यही हो सकती है कि आज पाकिस्तान गृहयुद्घ के कगार पर है अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है, प्रांतवाद व विभिन्न सम्प्रदायों के बीच वैमनस्य चरम पर है। एक ओर तालिबान व अलकायदा के गुर्गे अपने बनाए हुए 'इस्लाम' के अनुसार खून की होली खेल रहे है तो दूसरी ओर पूर्व राष्टï्रपति जनरल जियाउल हक के काल में सशस्त्र की गयी धार्मिक जमाअतें भी आतंक का खेल खेल रही है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में शासन नाम की कोई चीज ही नहीं है।
इन हालात में राष्ट्रपति ज़रदारी की पीड़ा को महसूस किया जा सकता है। पाकिस्तान विकास के मार्ग पर अग्रसर हो, आम जनता खुशहाल, हो, शांति व्यवस्था का वातावरण कायम हो यह भारत ओर पाकिस्तान दोनों के हित में है। लेकिन भारत की ओर से शांति व सहअस्तित्व के निरंतर प्रयासों के बावजूद पाकिस्तानी शासक 'कश्मीर' से बाहर ही निकलना नहीं चाहते पाकिस्तान के शासक अब तक भारत विरोधी रणनीति अपना ही देश पर शासन करते रहे हैं, अफगानिस्तान को रूस से मुक्त कराने केलिए अमेरिका से मिले धन व हथियार जनरल जियाउलहक ने धर्म व सम्प्रदायों के नाम उपजी कट्टर संस्थाओं में बांट कर तात्कालिक लाभ हासिल किया, वो खुद तो हवा में ही बिखर गए लेकिन देश को आतंक के जाल में फंसा गए।
पाकिस्तान को समझना चाहिए कि भारत के साथ अपने सामाजिक, व्यापारिक व सांस्कृतिक रिश्तों को मजबूत करके ही वो आगे बढ़ सकता है। इसलिए पाकिस्तान के पूर्व शासकों की गलतियों को सुधारने का अगर ज़रदारी में दम है तो वो आतंकवाद के खातमे के लिए आर-पार की लड़ायी के लिए उठ खड़े हों बशर्त सेना भी उनका साथ दे तो एक पाक साफ पाकिस्तान बनने में कोई ज्य़ादा समय नहीं लगेगा।
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