अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिटन जब तीन दिन की यात्रा पर चीन गयी तो भारत में चिंता की जा रही थी कि नये अमेरिकी हुकमरान की प्राथमिकताएं बदल रही है। चीन को भारत से ज्य़ादा महत्व दिया जा रहा है। लेकिन पांच दिन की भारत यात्रा पर आकर हिलेरी क्लिंटन ने ये बात साफ कर दी है कि भारत अभी भी अमेरिका की नज़र में महत्वपूर्ण देश है।
दुरस्त माहौल की शुरुआत
क्लिटन की यात्रा से साफ हो गया है कि अमेरिका भारत से हर तरह की दोस्ती का रिश्ता रखना चाहता है। भारत और अमेरिका की संभावना के बीच, आज की तारीख़ में सबसे अहम मुद्दा परमाणु समझौता है। हिलेरी क्लिंटन की यात्रा से एक बात बिल्कुल साफ हो गयी है कि परमाणु समझौता और उससे जुड़े मसले में अब किसी तरह की बहस की दरकार नहीं रखते। दोनों ही देशों के बीच पूरी तरह से समझदारी का माहौल है। हिलेरी क्लिंटन की ये यात्रा एक तरह से माहौल दुरुस्त करने की यात्रा थी। यहां आकर उन्होंने देश के बड़े उद्योगपतियों से मुलाकात की उसी होटल में विश्राम किया जिस पर 26/11 के दिन आतंकवादी हमला हुआ था।
उनकी यात्रा शुरू होने के पहले ही पाकिस्तान की सरकार ने स्वीकार कर लिया कि मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले में उसके नागरिकों का हाथ था। जाहिर है पाकिस्तान की हुकूमत ने ये कदम अमेरिकी दबाव में ही उठाया है। विदेशमंत्री हिलेरी ने इस बात को भी जोर-शोर से मीडिया को बतलाया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल के शुरू होने के बाद भारत के प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह पहले शासनाध्यक्ष होगें जो अमेरिका की यात्रा करेगें अपने दिल्ली प्रवास के दौरान, हिलेरी क्लिंटन ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हर इंसान से मुलाकात की।
परमाणु मुद्दे पर बात साफ
विदेशमंत्री एसएम कृष्णा और वे अब हर साल मिला करेगे। अपने कार्यकाल में वो कम से कम दो बार और भारत यात्रा पर आयेगी। परमाणु मुद्दे पर सारी बात साफ कर ली गयी है, खासकर जो दुविधा की स्थिति जी-8 सम्मेलन के बाद पैदा हो गयी थी। इस तरह से अमेरिकी विदेश मंत्री की यात्रा को दोनों देशों की कूटनीतिक संभावनाओं में एक खास मुकाम माना जा रहा है। विदेश मंत्री हिलेरी की इस यात्रा से एक और संदेश बहुत साफ नजर आ रहा है।
अपने देश में कुछ रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी है, जो अपने को कूटनीति का सर्वज्ञ मानते है, इनमें से कुछ विदेश मंत्रालय की नौकरी में थे, तो कुछ रक्षा मंत्रालय की नौकरी में। बड़ी संख्या में टेलीविजन चैनलों के खबर के कारोबार में घुस जाने की वजह से इन लोगों का ज्ञान प्रवाहित होता रहता है। सच्ची बात ये है कि ये पुराने सरकारी कर्मचारी ये तो जान सकते है कि किसी कूटनीति समझौता का मतलब क्या है, लेकिन इन्हें ये नहीं पता होता कि राजनीतिक स्तर पर क्या सोचा जा रहा है। इसलिए ये लोग जब संभावनाओं की अभिव्यक्ति करते है, तो सब गड़बड़ हो जाता है।
इन बेचारों की ट्रेनिंग ऐसी नहीं होती कि ये लीक से हटकर सोच सके। इसलिए ये हर परिस्थिति की उल्टी सीधी अभिव्यक्ति करते है। आजकल भी इन लोगों का प्रवचन टीवी चैनलों पर चल रहा है। अमेरिका और भारत की संभावना की बारीकियों को समझने के लिए इन विद्वानों से बचकर रहना होगा। मौजूदा भारत-अमेरिकी संबंधों की सच्चाई यह है कि अमेरिका अब भारत को पाकिस्तान के बराबर का देश नहीं मानता और पाकिस्तान की परवाह किये बिना भारत के साथ संबंध रखना चाहता है।
आपसी हित के लिए संबंध
पाकिस्तान अमेरिका पर निर्भर एक देश है अगर अमेरिका नाराज़ हो जाएं तो पाकिस्तान मुसीबत में पड़ सकता है क्योंकि उसका खर्चा-पानी अमेरिका की मदद से ही चल रहा है। लेकिन भारत के साथ अमेरिका के संबंध आपसी हित की बुनियाद पर आधारित है। शायद इसलिए अमेरिकी कूटनीति की कोशिश है कि भारत के साथ सामरिक रिश्ते बनाएं। इस वक्त देश में ऐसी सरकार है जो अमेरिका से अच्छा रिश्ता बनाने के लिए कुछ भी कर सकती है इसके पहले की भाजपा की अगुवाई वाली सरकार तो अमेरिका की बहुत बड़ी समर्थक थी।
वामपंथी पार्टी आजकल अपने अंदरूनी लड़ाई के चलते ही परेशान है इसलिए भारत अमेरिका सामरिक रिश्तों ने बहुत आगे तक बढ़ जाने की आशंका है। ये देश की आत्मनिर्भरता और सम्मान के लिए ठीक नहीं होगा। अगर ये हो गया तो ख़तरा है कि अमेरिकी फौज के जनरल भारत के राष्ट्रपति से भी उसी तरह बात करने लगेंगे जिस तरह वे पाकिस्तान राष्ट्रपति मुर्शरफ और जरदारी के साथ करते है। पूरी कोशिश की जानी चाहिए कि भारत और अमेरिका के बीच कोई सामरिक समझौता न हो जाए।
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