Thursday, March 4, 2021

महिलाओं के सशक्तीकरण से ही हाथरस जैसी घटनाओं पर लगाम लगेगी


 

शेष नारायण सिंह

 

 

हाथरस में एक बार फिर इंसानियत को अपमानित किया गया है . एक बदमाश कई साल से एक लडकी के पीछे पडा हुआ था . करीब तीन साल पहले लडकी के पिता ने उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत की . 15 दिन  बाद ही उसकी ज़मानत हो गयी . तब से वह परिवार को परेशान कर रहा था . पिछले दिनों उस बदमाश ने लडकी के  पिताजी  को  गोली मार दी. गोली सरेआम मारी गयी,  बहुत ही वहशियाना तरीके से मारी गयी लेकिन  पुलिस ने कोई  कार्रवाई नहीं की. गोली लगने के बाद लडकी  चीखती रही लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुयी . जब उसका वीडियो वायरल हुआ तब सरकार हरकत में आई. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी मैदान ले लिया और योगी सरकार से पीडिता के लिए इन्साफ माँगा . लेकिन कुछ ही देर बाद पता चला कि गोली मारने वाला  बदमाश ,गौरव शर्मा सामाजवादी पार्टी से  जुड़ा हुआ था .सपा के उस दौर के बड़े नेताओं के साथ गौरव शर्मा की कई तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं। वह अविभाजित सपा के नेता और पूर्व मंत्री शिवपाल यादव समेत कई दिग्गज नेताओं का ख़ास बताया जा रहा है . अलीगढ़ से भाजपा सांसद सतीश गौतम के साथ भी उसकी कई तस्वीरें हैं . ऐसे में भाजपा और सपा समर्थकों के बीच सोशल मीडिया पर एक दूसरी पार्टी पर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है .

हाथरस में  कुछ महीने पहले भी एक  लडकी की मौत  की खबर आई थी जिसमें अभियुक्त ने उसको खेत में मार डाला था. उस केस में भी बलात्कार और हत्या के आरोप  लगे थे लेकिन सरकार ने बार बार दावा किया कि बलात्कार नहीं हुआ था , केवल हत्या की गयी थी. उस बार भी सरकारी अमले का रवैया बहुत ही गैरजिम्मेदार रहा था . सरकार ने पुलिस वालों को तो हटा दिया  था लेकिन कलेक्टर जमा रह गया था. हालांकि परिवार वालों  को बताये बिना ,उसी ने लाश को रात के अँधेरे में जलाने जैसा गलत काम किया था. यह उत्तरप्रदेश सरकार की क़ानून व्यवस्था पर ज़बरदस्त सवालिया निशान तो पैदा करता ही है  . योगी  सरकार की रहबरी भी सवालों की ज़द में है . नए मामले में उत्तरप्रदेश की सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष की मुख्य पार्टी से अपराधी के सम्बन्ध सामने आ रहे हैं .अब होगा यह दोनों ही पार्टियां मिलकर केस को दबा देंगी, उस पापी का कहीं न कहीं रिश्ता निकल आएगा और राजनीतिक बिरादरी उसके पक्ष में खडी  हो जायेगी . इसके पहले वाले हाथरस कांड में भी यह हो चुका है . अभियुक्त की बिरादरी वाले राजपूत समाज के लोग अपराधी को महान बनाने के चक्कर में सभाएं कर रहे  थे. कुछ साल पहले भी इसी  इसी ब्रज क्षेत्र में आपराधियों को फूल माला पहनाकर वोट लेने की कोशिश हो चुकी है . सबको मालूम था वे अपराधी वही थे जिन्होंने मुज़फ्फर नगर के  दंगे के दौरान बेहिसाब खून खराबा किया था . उन अभियुक्तों को सम्मानित करने वाले सभी नेता भारतीय जनता  पार्टी के थे. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते उनकी पार्टी के बदमाश  सरेआम यही सब अपराध किया करते थे . उनको भी सरकारी संरक्षण मिलता था . अब भारतीय जनता पार्टी के गुंडों को वह संरक्षण मिल रहा है . अपने गुंडों की मनमानी का समर्थन करने का भस्मासुरी  तरीका ख़त्म किये बिना समाज और राष्ट्र का भला नहीं होगा .   सत्ताधारी नेताओं की इन्हीं  कारस्तानियों के चलते भारत की इज्ज़त दुनिया के देशों में कम हो रही है . अमरीका के थिंक टैंक ‘फ्रीडम हाउस ‘ की  रिपोर्ट अखबारों में छपी है . पिछले साल तक की रिपोर्टों में भारत को “ स्वतंत्र “ श्रेणी में रखा जाता था लेकिन सी बार भारत को “ आंशिक रूप से स्वतंत्र “ में रख दिया गया है .इस पदावनति का कारण असहिष्णुता है . रिपोर्ट में मुसलमानों पर हमले  ,नागरिक अधिकार की अवहेलना , देशद्रोह  कानून का मनमाना प्रयोग जैसी बातें का उल्लेख किया गया है . हाथरस जैसे काण्ड के कारण महिलाओं और लड़कियों की असुरक्षा भी देश की प्रतिष्टा को बाकी  दुनिया में घटा रही है .

देश के हर कोने से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की ख़बरें आ रही हैं . उत्तर प्रदेश से  बलात्कार की ख़बरें कई ज़िलों से आ रही हैं।  मध्य प्रदेश और राजस्थान में महिलाओं के साथ अत्याचार की इतनी ख़बरें आती हैं कि  जब किसी दिन घटना की सूचना नहीं आती तो लगता है कि  वही समाचार  का विषय है। आज आलम यह है कि कहीं भी  किसी भी लडकी को घेरकर उसको अपमानित करना राजनीतिक पार्टियों से जुड़े शोहदों का अधिकार सा हो गया है .सवाल उठता है कि  क्या वे लड़कियां जो अकेले देखी जायेगीं उनको बलात्कार का शिकार बनाया जायेगा. बार बार सवाल पैदा होता है कि लड़कियों के प्रति समाज का रवैया इतना वहशियाना क्यों है। दिसंबर २०१३ में हुए दिल्ली गैंग रेप कांड के बाद समाज के हर वर्ग में गुस्सा था.  अजीब बात है कि बलात्कार जैसे अपराध के बाद शुरू हुए आंदोलन से वह बातें निकल कर नहीं आईं जो महिलाओं को राजनीतिक ताक़त  देतीं  और उनके सशक्तीकरण की बात को आगे बढ़ातीं . गैंग रेप का शिकार हुई लडकी के साथ हमदर्दी वाला जो आंदोलन शुरू हुआ था उसमें बहुत कुछ ऐसा था जो कि व्यवस्था बदल देने की क्षमता रखता था लेकिन बीच में पता नहीं कब अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने वाली राजनीतिक पार्टियों ने आंदोलन को हाइजैक कर लिया और आंदोलन को दिशाहीन और हिंसक बना दिया . इस दिशाहीनता का नतीजा यह  हुआ  कि महिलाओं के सशक्तीकरण के मुख्य मुद्दों से राजनीतिक विमर्श को पूरी तरह से भटका दिया गया  .  बच्चियों और महिलाओं के प्रति समाज के रवैय्ये को  बदल डालने का जो अवसर मिला था  उसको गँवा दिया गया।   अब ज़रूरी है कि कानून में ऐसे प्रावधान  किये जाएँ और उनको लागू करने की इच्छाशक्ति सरकारों में नज़र आये जिससे कि अपराधी को मिलने वाली सज़ा को देख कर भविष्य में किसी भी पुरुष की हिम्मत न पड़े कि बलात्कार के बारे में सोच भी सके.  ऐसे लोगों के खिलाफ सभ्य समाज को लामबंद होने की ज़रूरत है जो लडकी को इस्तेमाल की वस्तु साबित करता . हमें एक ऐसा समाज  चाहिए जिसमें लडकी के साथ बलात्कार करने वालों और उनकी मानसिकता की हिफाज़त करने वालों के खिलाफ  सामाजिक जागरण हो ,ताक़त हो.  मर्दवादी  मानसिकता के चलते इस देश में लड़कियों को दूसरे दरजे का इंसान माना जाता है और लडकी की इज्ज़त की रक्षा करना समाज का कर्त्तव्य माना जाता है . यह गलत है . पुरुष कौन होता है लडकी की रक्षा करने वाला . ऐसी शिक्षा और माहौल बनाया जाना चाहिए जिसमें लड़की खुद को अपनी रक्षक माने . लड़की के रक्षक के रूप में पुरुष को पेश करने की  मानसिकता को जब तक खत्म नहीं किया जाएगा तह तक कुछ  नहीं बदलेगा . जो पुरुष समाज अपने आप को महिला की इज्ज़त का रखवाला मानता है वही पुरुष समाज अपने आपको यह अधिकार भी दे देता है कि वह महिला के  यौन जीवन का संरक्षक  और उसका उपभोक्ता है . इस मानसिकता को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया जाना चाहिए .मर्दवादी सोच से एक समाज के रूप में लड़ने की ज़रूरत है . और यह लड़ाई केवल वे लोग कर सकते हैं जो लड़की और लड़के को बराबर का  इंसान मानें और उसी सोच को जीवन के हर क्षेत्र में उतारें  . कुछ स्कूलों में भी कायरता को शौर्य बताने वाले पाठ्यक्रमों की कमी  नहीं है .इन पाठ्यक्रमों को खत्म करने की ज़रूरत है . सरकारी स्कूलों के स्थान पर देश में कई जगह ऐसे स्कूल खुल गए हैं,जहां मर्दाना शौर्य की वाहवाही की शिक्षा दी जाती है . वहाँ औरत को एक  ‘ वस्तु ‘ की रूप में सम्मानित करने की सीख दी जाती है. इस मानसिकता के खिलाफ एकजुट  होकर उसे ख़त्म करने की ज़रूरत है . अगर हम एक समाज के रूप में अपने आपको बराबरी की बुनियाद पर नहीं स्थापित कर सके तो जो पुरुष अपने आपको महिला का रक्षक बनाता फिरता है वह उसके साथ ज़बरदस्ती करने में भी संकोच नहीं करेगा. शिक्षा और समाज की बुनियाद में ही यह भर देने की ज़रूरत है कि पुरुष और स्त्री बराबर है और कोई किसी का रक्षक नहीं है. सब अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं. बिना बुनियादी बदलाव के बलात्कार को हटाने की कोशिश वैसी  ही है जैसे किसी घाव पर मलहम लगाना . हमें ऐसे एंटी बायोटिक की तलाश करनी है जो शरीर में ऐसी शक्ति पैदा करे कि घाव में मवाद पैदा होने की नौबत ही न आये. कहीं कोई बलात्कार ही न हो . उसके लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि महिला और पुरुष के बीच बराबरी को सामाजिक विकास की आवश्यक शर्त माना जाए.

इस बात की भी ज़रुरत है कि लड़कियों की तालीम को हर परिवार ,हर बिरादरी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाये और उनकी शिक्षा के लिए ज़रूरी पहल की जाए . लेकिन जो भी करना हो फ़ौरन करना पडेगा क्योंकि इस दिशा में जो काम आज से सत्तर साल पहले  होने चाहिए थे उन्हें अब शुरू करना है . अगर और देरी हुई तो बहुत देर हो जायेगी .

 

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