Wednesday, November 7, 2018

पत्रकारिता भारत में एक खतरनाक काम है .





शेष नारायण सिंह

पत्रकारों के लिए भारत एक खतरनाक देश है. संविधान के मौलिक अधिकारों के सेक्शन में अभिव्यक्ति की आज़ादी को गारंटी दी गयी है . संविधान के अनुच्छेद १९ (१) में जो अभिव्यक्ति की आजादी  है उसी के तहत प्रेस और मीडिया  को अपनी बात और सही ख़बरें  बिना  किसी रोक टोक के कहने की स्वतन्त्रता है . लेकिन यह बात केवल संविधान में ही सिमट कर रह गयी है.  प्रेस की आज़ादी  की  गारंटी के मद्दे-नज़र ही इसको लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता है और उम्मीद की जाती है कि लोकतंत्र के  अन्य तीन खम्भों - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका- पर प्रेस और मीडिया की नज़र रहेगी . लेकिन  व्यवहार में ऐसा नहीं हो रहा है . हमारा दुर्भाग्य है  कि दुनिया भर के १८० देशों का जो विश्व प्रेस फ्रीडम  इंडेक्स  इस साल जारी हुआ है , उसमें भारत का नाम १३८ नंबर पर है . हालांकि इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि पाकिस्तान की स्थिति हमसे भी खराब है . वह १३९ पर है लेकिन पाकिस्तान में लोकतंत्र वास्तव में एक ढोंग है , वहां तो सब कुछ सेना के कंट्रोल में हैं . पाकिस्तान से एक  पायदान ऊपर रहना ही अपने आप में बहुत ही अपमानजनक   है.  इतना अपमान ही काफी नहीं था , अभी एक और रिपोर्ट आई है  जो हमारी  मीडिया की आज़ादी पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर देती है . इंटरनैशनल प्रेस इंस्टीटयूट की  डेथ वाच  रिपोर्ट आई है . उसमें बताया गया  है कि पिछले साल भारत में  घात लागाकर १२ पत्रकारों की ह्त्या की गयी लेकिन अभी  हत्यारों के बारे में कोई  पक्का पता नहीं है . जांच चल  रही है और अभी तक केवल छः गिरफ्तारियां हुयी हैं . वैसे भी भारत में  जाँच और  न्याय में  देरी की  कहानियां पूरी दुनिया में  सुनी जा  सकती  हैं लेकिन  पत्रकारों के बारे में यह आंकड़े बहुत ही तकलीफदेह और निराशाजनक हैं .
 देश के हर कोने से पत्रकारों को धमकाए जाने की ख़बरें आती रहती  हैं . अभी सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद की स्थिति की   रिपोर्ट कर रही  इण्डिया टुडे की पत्रकार मौसमी सिंह को भी मार डालने की  कोशिश की गयी . गुंडों ने उसको मारा पीटा, उसको  अपमानित किया और उसके  कैमरे आदि को नुक्सान पंहुचाया .   छतीसगढ़ में  दूरदर्शन के पत्रकार अच्युतानंद साहू को मार डाला गया और उसके सहायक ने हमले की जो रिपोर्ट भेजी है ,वह दिल दहला देने वाली है . पूरी दुनिया में युद्ध की रिपोर्ट करते हुए पत्रकारों की मृत्यु की ख़बरें आती रहती  हैं लेकिन राजनीतिक खबरों को कवर  करने वाले पत्रकारों के मामले में भारत दुनिया के उन घटिया देशों की श्रेणी में आ जाता है जहां  प्रेस की आजादी नाम की कोई चीज़ ही नहीं है . अपने यहाँ भी हालात उन देशों के जैसे होना चिंता की बात है . स्थानीय स्तर पर तो ख़बरों का गला घोंटने के लिए हर जिले में तैयार नेता मिल जायेंगे, पत्रकारों को धमका कर अपने मन माफिक ख़बरें लिखवाना तो लगभग सामान्य बात हो गयी   है . जब कहीं कोई पत्रकार मुकामी नेता की बात  नहीं मानते तो उन पत्रकारों का  गला  ही घोंट दिया जाता है .
पत्रकारों के ऊपर हो रही हिंसा  का उद्देश्य सही ख़बरों को जनता तक पंहुचने से रोकना होता है . ज्यादातर तो मालिकों को ही डरा धमका कर   राजनीतिक आका लोग मनमाफिक ख़बरें चलवाते हैं .पिछले एक साल में  ऐसे   सैकड़ों मामले सामने आये हैं जिसमें विज्ञापनदाताओं की मर्जी से हटकर  खबर चलाने वाले पत्रकारों के मालिकों के विज्ञापन रोककर  और दबाव बनाकर पत्रकारों की नौकरियाँ ली गयी हैं . हालांकि आम तौर पर बात उस मुकाम तक नहीं पंहुचती . मालिक लोग ऐसे  ही पत्रकारों   से काम लेते हैं जो पत्रकारिता के मानदंडों के बारे में बहुत चिंतित नहीं रहते हैं , और  पापी पेट के वास्ते कुछ भी करने को तैयार हो  जाते हैं .लेकिन कई बार ऐसे पत्रकार भी होते हैं जो  सच्चाई सामने लाने के लिए समझौते नहीं करते . ऐसा ही एक मामला गौरी लंकेश का है . कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरू से गौरी लंकेश अखबार    छापती थीं. बीजेपी के  खिलाफ खूब ख़बरें  लिखती थीं  एक दिन शाम को कुछ बदमाशों ने उनको घर के सामने ही गोली मार दी और उनको हमेशा के लिए चुप कर दिया .   

पिछले तीस पैंतीस साल में देश की राजनीति में एक अजीब विकास हुआ  है . जिताऊ उम्मीदवार के नाम पर हर  इलाके का माफिया, गुंडा, मवाली  राजनेता बन  गया है . कर्नाटक में  बेल्लारी के रेड्डी ब्रदर्स का केस पूरी दुनिया में जाना  जाता  है . आज भी खनिज माफिया की ज़रायम की दुनिया में रेड्डी परिवार की दहशत है . कोर्ट के आदेश से वे जिला बदर कर दिए गए हैं ,अपने जिले में घुस नहीं सकते लेकिन वहां की सभी राजनीतिक पार्टियां उनको साथ लेने के लिए प्रयास करती रहती  हैं .  कर्नाटक के विधान सभा चुनावों में उन्होंने बीजेपी का दामन पकड़ लिया था .  हालांकि बाकी पार्टियां भी उनको साथ लेने की कोशिश कर रही थीं लेकिन बीजेपी ने उनको साथ लेने  में सफलता  पाई थी . अभी लोकसभा के उपचुनाव  में भी उन्होंने तडीपार होने के बावजूद धन बल से बीजेपी उमीदवार का साथ दिया .
जब से माफिया  का कब्जा राजनीतिक प्रक्रिया पर हुआ है तब से पत्रकारों की   सुरक्षा पर तरह तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं . इस सबको दुरुस्त करने का ज़िम्मा जनता  का ही हैं .  अगर बदमाशों को वोट न देकर राजनीति से ही  बाहर कर दें तो पत्रकारों की सुरक्षा भी रहेगी और देश के नागरिक भी सुरक्षित महसूस करेंगें .

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