Wednesday, November 7, 2018

नक़ली विवादों नहीं ,अवाम के मुद्दों पर चुनाव होना चाहिए



शेष नारायण सिंह

आर एस एस ने राम मंदिर के नाम पर देश जी सियासत को टाप गियर में डाल दिया है . अभी पिछले महीने पत्रकार , हेमंत शर्मा की दो किताबों के विमोचन के अवसर पर आर एस एस के प्रमुख मोहन भागवत , बीजेपी के प्रमुख अमित शाह और केंद्र सरकार के उप प्रमुख राजनाथ सिंह एक ही मंच पर मौजूद थे . जिन किताबों का विमोचन  हुआ ,वे भी आर एस एस और अन्य हिंदुत्व  संगठनों के मुद्दों के लिहाज़ से दिलचस्प किताबें थीं . उस अवसर पर अपने भाषण में आर एस एस के प्रमुख ने कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी तो अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए महाभारत भी किया जा सकता है. इस बात को अखबारों ने प्रमुखता से रिपोर्ट किया लेकिन माना यह जा रहा था कि मौजूदा सरकार राम मंदिर के निर्माण को चुनावी मुद्दा नहीं बनायेगी . सत्ताधारी पार्टी की ओर से पिछले पांच वर्षों से दावा किया जा रहा था कि सरकार ने विकास का लक्ष्य और भ्रष्टाचार  के खात्मे का वायदा करके चुनाव लड़ा था . उसी के परफार्मेंस के आधार पर वोट माँगा जाएगा . ज्यादातर बीजेपी नेता कह रहे  थे कि इस राज में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है. लेकिन सचाई कुछ और है  और वह यह कि  भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं हुआ  है. भ्रष्टाचार की जांच करने वाली दो प्रमुख एजेंसियों , सी बी आई और  ई डी के आला अफसरों के ऊपर आर्थिक भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सी बी आई के  बहुत बड़े अधिकारियों की तरफ से ही लगाए गए हैं . सी बी आई के दो सबसे बड़े अफसर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद बाहर बैठा दिए गए हैं.  आरोप इतने गंभीर हैं कि अब्जंच सुप्रीम कोर्ट की नज़र में है.  रिज़र्व बैंक के  बड़े अफसरों ने भी सरकार के अलग अलग स्तरों पर आर्थिक अनियमितता के आरोप लगाए हैं . बैंकों में भ्रष्टाचार की कहानी पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुयी  है . लाखों करोड़ रूपये हजम कर जाने वाले आर्थिक अपराधियों को सरकारी संरक्षण की ख़बरें भी सत्ता के गलियारों में  सुनी जा रही  हैं. सुप्रीम कोर्ट ने राफेल जहाज़ के सौदे पर सरकार से कठिन सवाल पूछ कर सरकार के  भ्रष्टाचार मुक्त होने के दावे को पंचर कर दिया है .  स्थिति यह बन गयी है कि भ्रष्टाचार मुक्त होने की बात तो अब सरकार के लिए सही विशेषण नहीं है. जहां हर सेंसिटिव महकमे के अफसर भ्रष्टाचार की जांच की ज़द में हों वहां भ्रष्टाचार विहीन सरकार का नारा एक कामेडी तो हो सकता है , चुनाव जीतने का नारा किसी भी हाल में  नहीं बन सकता . बीजेपी के २०१४ के विकास के दावे को भी सरकारी नीतियों की विफलताओं ने  बिलकुल बेदम कर दिया है . केंद्र सरकार ने जब ८ नवम्बर २०१६ को नोटबंदी का ऐलान किया था तो ऐसी तस्वीर खींची गयी थी कि उसके बाद  भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा , काला धन ख़त्म हो जाएगा और आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा .  आज  सब को मालूम है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ . नोट बंदी के बाद आर्थिक गतिविधियों में जो मंदी आयी वह अब तक बनी हुई है . मकान बनाने वाली ज़्यादातर कम्पनियां  डिफाल्टर हो चुकी हैं लेकिन उनका कोई आर्थिक नुक्सान नहीं हुआ है. उन्होंने मध्यवर्ग के जिन मकान के खरीदारों से मकान देने के लिए पैसा लिया था उनका नुक्सान हुआ है . सुप्रीम कोर्ट किसी न किसी तरीके से  फ़्लैट खरीदारों को मकान दिलवाने की कोशिश कर रहा है . ज़ाहिर है इससे मध्य वर्ग में बहुत नाराज़गी  है . चुनावी वायदों में नौजवानों को हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वायदा किया गया था , उसका कहीं कोई अता पता नहीं है . सरकारी तौर पर  नौकरियों की परिभाषा बदल कर बीजेपी के नेता लोग काम चला रहे हैं . बेरोज़गार नौजवानों में भारी नाराज़गी है .  खेती  किसानी की हालत भी खस्ता है. २०१४ के चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने वायदा किया था कि  किसानों की आमदनी दुगुनी कर दी जायेगी . वह कहीं नहीं हुई . बल्कि गौरक्षा के नाम पर एक नया माहौल बना दिया गया . खेती के अलावा सभी किसानों  के यहाँ एकाध गाय भैंस रहती थी. उसके बछड़ों को किसान  बेच लेता था , उससे थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती थी . अब बछड़े नहीं बेचे जा सकते . बछड़ों या बैलों का अब खेती में कोई उपयोग नहीं होता . बैलों का काम अब ट्रैक्टर से होता है . ज़ाहिर है कि ऐसे जानवरों को चारा दे पाना किसान के ऊपर  भारी बोझ है . नतीजा  यह है कि ज़्यादातर लोग अपने अनुपयोगी बछड़ों को चुपचाप छोड़ दे रहे  हैं . और वे बछड़े खुली फसल को चर जा रहे हैं . खेती की पैदावार को भारी नुक्सान हो रहा है . कुल मिलाकर गाँवों में किसानों की हालत बहुत खराब है .
इस तरह हम देखते हैं कि बेरोजगारी , खस्ताहाल अर्थव्यवस्था , किसानों की नाराज़गी ,नौजवानों की निराशा और भ्रष्टाचार के माहौल में २०१४ के चुनावी वायदों का ज़िक्र करके तो सत्ताधारी पार्टी का नुक्सान ही होगा .शयद इसीलिये हर चुनाव के पहले की तरह इस बार भी आर एस एस और बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर को मुद्दा बनाने की ज़बरदस्त कोशिश शुरू कर दी है . इसके लिए बीजेपी और आर एस एस के नेता सुप्रीम कोर्ट  जैसी संवैधानिक संस्था के खिलाफ भी बयान दे  रहे  हैं.  छुटभैया नेता लोग तो मुसलमानों के खिलाफ बयान देते ही रहते थे अब शीर्ष नेतृत्व से भी वही बातें होने लगी हैं . चारों तरफ  माहौल बनाया  जा रहा है कि देश में एक तरफ हिन्दू  हैं तो  दूसरी तरफ मुसलमान . अब तक तो कुछ कट्टर हिंदुत्व प्रवक्ता लोग मुसलमानों के खिलाफ ज़हरीले बयान देकर माहौल को गरमा रहे थे , अब बड़े नेताओं को भी   ऐलानियाँ मुसलिम  विरोधी बयान देते देखा जा सकता है . मुस्लिम विरोध का माहौल ऐसा बन गया  है कि कांग्रेस के नेता  भी  अपने को शिवभक्त और जनेऊधारी हिन्दू साबित करने के लिए एडी चोटी की ताक़त लगा  रहे हैं. पूरे देश में मुस्लिम विरोधी माहौल बनाया जा रहा है जिससे हिन्दुओं के वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके और बहुमतवाद की राजनीति का फायदा लेने के लिए हिन्दुओं को एकमुश्त किया जा सके. अयोध्या विवाद को बहुत ही गर्म कर देने की योजना पर दिन  रात काम  हो रहा है . इस काम में अखबारों की भी भूमिका है लेकिन चुनावी माहौल को हिन्दू-मुस्लिम करने में  न्यूज़ चैनलों की भूमिका सबसे प्रमुख है . बहुत सारे टीवी चैनलों की राजनीतिक बहस में हिन्दू -मुस्लिम  विवाद को मुद्दा बनाया जा रहा है .   इन बहसों में कुछ मौलाना टाइप लोगों को बैठाकर  उनको सारे मुसलमानों का नुमाइंदा बताने की कोशिश होती  है . कई बार यह मौलाना लोग ऐसी बातें बोल जाते हैं जिसके नतीजे से वे खुद भी वाकिफ नहीं होते . उनकी बात को पूरे मुस्लिम समुदाय की बात की तरह पेश करके मुसलमानों को कई बार तो देशद्रोही तक कह दिया जाता है .लेकिन वे मौलाना लोग बार बार  बहस में शामिल होते हैं और गाली तक खाते हैं . एक बार तो एक मौलाना साहब को एक महिला ने टीवी बहस के दौरान पीट भी दिया था.  वे जेल भी गए लेकिन टीवी पर नज़र आने की तलब इतनी ज़बरदस्त है कि बार बार  वहां आते रहते हैं .  
ज़ाहिर है कि अगला लोकसभा चुनाव आम आदमी की समस्याओं और मुसीबतों के खात्मे को मुद्दा बनाकर  लड़ पाने की सत्ताधारी पार्टी की हिम्मत नहीं है . ऐसा लगता है कि इस बार भी मुद्दा हिन्दू-मुस्लिम मतभेद की कोशिश ही होगी . इसकी काट यह है कि अवाम एकजुट रहे और  सियासतदानों के भड़काऊ भाषणों को नज़रंदाज़ करे . उनको मजबूर करे कि वे आम आदमी को सवालों को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए मजबूर हों . 

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