Monday, June 4, 2018

उपचुनावों में बीजेपी की हार के बाद सहयोगी दलों के तेवर बदल रहे हैं



शेष नारायण सिंह 

उत्तर प्रदेश और बिहार में बीजेपी उम्मीदवारों की हार के बाद मौसम वैज्ञानिक टाइप नेताओं के यहाँ टोह लेने की गतिविधियाँ शुरू हो गयी हैं. पार्टी के अन्दर और बाहर लोग सवाल पूछ रहे हैं . जो लोग अपने घर के अंदर भी बीजेपी के बड़े नेताओं का नाम लेते समय माननीय जैसे शब्दों का प्रयोग करते नहीं थकते थे ,वे अब बीजेपी को राजनीति के मन्त्र बता रहे हैं . ऐसा लगता  है कि उनके दिमाग में यह बात बैठना शुरू हो गयी है कि बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना अब जीत की उतनी बड़ी  गारंटी नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी. सहयोगी दलों के नेताओं की तरफ से भी अलग तरह की आवाजें आना शुरू हो गयी है

सबसे ज़बरदस्त आवाज़ बीजेपी के कभी  रुष्टा ,कभी तुष्टा साथी नीतीश कुमार के दरबार से आ रही है .. उनके  पटना आवास पर रविवार को जेडी ( यू) के बड़े नेताओं की एक अहम बैठक हुयी जिसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय महसचिव और प्रवक्ता ,के सी त्यागी ने बताया कि लोकसभा चुनाव २०१९ के समय बिहार में एन डी ए को नीतीश कुमार  को पार्टी के चेहरे के रूप में प्रस्तुत करना  चाहिए . नीतीश कुमार की तरफ से यह संकेत आ रहे हैं कि २०१४ और २०१९ के बीच गंगा में बहुत पानी बह गया है . अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वैसी जीत नहीं दर्ज की जा सकती जो २०१४ में देखी गयी थी. वैसे भी जेडी( यू) के नेताओं को शिकायत है कि दस महीने पहले जब से  नीतीश कुमार ने बीजेपी की कृपा से सरकार बनाई तब से बीजेपी के नेता उनको आवश्यक सम्मान नहीं दे रहे हैं .
यह बीजेपी के लिए बड़ा झटका है क्योंकि बीजेपी पूरे भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने की योजना पर काम कर रही है .ज़ाहिर है बिहार में भारतीय जनता  पार्टी  नीतीश कुमार को वह वह स्पेस कभी नहीं देगी . जबकि नीतीश कुमार की बात से  साफ़ समझ में आ रहा है कि वे यह सूंघ चुके हैं कि २०१९ में बीजेपी को वैसा बहुमत नहीं मिलने वाला है  जैसा २०१४ में मिला था . उस दशा में विकल्पों की तलाश शुरू होगी . नीतीश कुमार जब बीजेपी के विरोध में थे तब भी वह  कांग्रेस से अलग संभावित  प्रधानमंत्री की बात करते थे और विपक्ष के कई कुछ  दिग्गज  उनके नाम को आगे बढ़ाने की बात करते रहते थे.  नीतीश कुमार को यह भी उम्मीद है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वे विपक्ष की कुछ पार्टियों से  भी सहयोग लेने की स्थिति में रहेंगे .

हालांकि बीजेपी नेताओं का यह कहना है कि नीतीश कुमार का यह रुख  वास्तव में २०१९ में सीटों में ज़्यादा हिस्सा लेने के लिए अपनाया गया है . पार्टी ने फ़ौरन कार्रवाई की और तीश कुमार की महत्वाकान्क्षा पर लगाम लगाने के लिए बीजेपी ने एन डी ए की बैठक बुला  लिया है .अब तक एन डी ए के नेताओं को मौजूदा सरकार में फैसला लेने के मामले में कोई ख़ास अहमियत नहीं दी जा रही थी. यही कारण है कि चन्द्र बाबू नायडू, ,के चंद्रशेखर राव ,शिव सेना आदि की नाराज़गी के मामले सामने आये थे . लेकिन नीतीश कुमार की एक घुडकी के बाद सत्ताधारी गठबंधन में तेज़ी से काम शुरू हो गया  है .
एन डी ए के एक और घटक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष , ओम प्रकाश राजभर भी बीजेपी को कुछ नया बताने के लिए तैयार नज़र आने लगे हैं . उत्तर प्रदेश में चार विधायकों  वाली इस पार्टी के मालिक  श्री राजभर राज्य में कैबिनेट मंत्री हैं और ओबीसी राजनीति के ज्ञाता बताये जाते हैं . कैराना और नूरपुर की हार के बाद  उन्होने हार के कारणों पर रोशनी डाली .  आप ने  फरमाया कि हार का मुख्य कारण यह है कि पिछड़ी जातियां बीजेपी से बहुत नाराज़ हो गयी हैं क्योंकि पार्टी ने केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री नहीं बनाया .उनका दावा है कि केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव लड़ा जबकि मुख्यमंत्री किसी और को बना दिया .ओबीसी जातियों में इसके बाद गुस्से की लहर दौड़ गयी और उन्होंने उपचुनावों में बीजेपी को हराकर आपने गुस्से का इज़हार किया .

अपने इस बयान के बाद ओम  प्रकाश राजभर एन डी ए के उन सहयोगी दलों की लाइन पर चल पड़े  हैं जो बीजेपी के काम करने के तरीके से नाराज़ हैं . शिव सेना, तेलुगु देशम, आदि पार्टियों के आलावा बिहार की एक पार्टी के मुखिया और केंद्रीय राज्यमंत्री , उपेन्द्र कुशवाहा भी बीजेपी को  राजनीतिक कौशल की शिक्षा देते पा जा चुके हैं . वे जेल में लालू प्रसाद यादव से मिल भी चुके हैं . राम विलास पासवान ने भी केंद्र सरकार को दलित एक्ट के हवाले से कुछ राजनीतिक  मांगें पेश कर  दी हैं . जाहिर  है कि२०१८ में जगह जगह हुए उपचुनावों की हार के बाद बीजेपी के घटक दलों में  नई मंजिलों की तलाश का सिलसिला शुरू हो चुका है .

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