Monday, May 28, 2018

क्या पिछड़ी और दलित जातियों के वोटों में बिखराव से बीजेपी को फायदा होगा ?



शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली, २८ मई .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैराना लोकसभा उपचुनाव के मतदान के एक दिन पहले पड़ोसी बागपत ज़िले में एक सड़क के उदघाटन के मौके पर अपने २०१९ के चुनावी अभियान की रूपरेखा प्रस्तुत कर दी. उन्होंने अपने बहुत ही महत्वपूर्ण भाषण में ऐलान किया कि ओबीसी जातियों के  लिए सरकारी  नौकरियों में आरक्षण की जो व्यवस्था है उसमें बदलाव करके   आरक्षण का लाभ अति पिछड़े वर्गों को भी दिया जाना चाहिए . उन्होंने कहा कि अति पिछड़ों की संख्या बहुत ही बड़ी है लेकिन अपेक्षाकृत सम्पन्न पिछड़ी जातियां ही आरक्षण का लाभ ले जाती हैं . प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार चाहती है कि  पिछड़ों के लिए जो २७ प्रतिशत का आरक्षण दिया गया है उसमें से अति पिछड़ों को भी हिस्सा मिले और उसके  लिए संविधान में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे आरक्षण के अन्दर आरक्षण को लागू किया जा सके. उन्होंने बताया कि पिछड़ों में अति पिछड़ों की पहचान करने के लिए सरकार ने काम शुरू कर दिया है. सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थाओं में यह व्यवस्था लागू करने का सरकार ने मन बना लिया  है
बीजेपी ने इस  दिशा में  पहले भी काम किया है ..बीजेपी  की ओर से जब राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस दिशा में  काम किया था .पिछड़ों की राजनीति के मामले में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की ताक़त बहुत ज्यादा थी. पिछड़े और दलित वोट बैंक को छिन्न भिन्न करके अपनी पार्टी की स्थिति को मज़बूत बनाने के लिए राजनाथ सिंह ने वही करने की कोशिश की जिसे बाद में बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ने अपनाया . नीतीश अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं इसलिए वे अपनी योजना को लागू करने में सफल हुए लेकिन राजनाथ सिंह की किस्मत वैसी नहीं थी. उनकी टांग खींचने के लिए तो उनकी पार्टी में उत्तर प्रदेश में ही बहुत लोग मौजूद थे और उन लोगों को दिल्ली के तत्कालीन नेताओं का आशीर्वाद भी मिलता रहता था . अब बीजेपी के सबसे बड़े नेता ,नरेंद्र मोदी ने ही ऐलान कर दिया तो बीजेपी के नेताओं की समझ में आ गया है कि राजनाथ सिंह की योजना को खटाई में डालना राजनीतिक गलती थी . उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह ने सामाजिक न्याय समिति बनायी थी जिसने अति पिछड़ों के लिए आरक्षण के अन्दर आरक्षण की
सिफारिश की थी . राजनाथ सिंह ने कहा था कि पिछड़ों के लिए तय आरक्षण में कुछ जातियां ही आरक्षण का पूरा लाभ उठा लेती हैं जबकि अन्य पिछड़ी जातियां वंचित रह जाती हैं। समिति की सिफारिशें के आधार पर सरकारी काम शुरू भी हो गया था लेकिन आम चुनाव हो गए और भाजपा सत्ता में लौटी ही नहीं। जब राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री नहीं रहे और मायावती के हाथ सत्ता आ गयी तो उनके आदेश को मायावती ने तुरंत ही रद्द कर दिया .
जिस भाषण में प्रधानमंत्री ने  अति पिछड़ों और अति दलितों की बात की वह बागपत में दिया गया . उसी से सटा हुआ इलाका कैराना का है .जहाँ चुनाव हो रहे हैं. उस इलाके में दलितों और  जाटों की बड़ी संख्या है जो चुनावी समीकरण के लिहाज़ से बीजेपी के खिलाफ बताये जा रहे  हैं . कैराना लोकसभा क्षेत्र में अति पिछड़ों के वोट भी करीब दो लाख बताये जा रहे हैं . जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री उन्हीं वर्गों को संबोधित कर रहे थे. २०१९ के लोक सभा चुनावों  में भी प्रधानमंत्री अति पिछड़ा और महा दलित को अखिलेश यादव-मायावती गठजोड़ से अलग करने की रणनीति पर काम कर सकते हैं . इमकान  है कि बागपत का  भाषण उसी की तैयारी है .


उत्तर प्रदेश में तो इस रणनीति की सफलता से बीजेपी को चुनावी लाभ होगा लेकिन अन्य राज्यों में जहाँ बड़ी संख्या में ऊपरी पायदान पर मौजूद  पिछड़ी जातियां बीजेपी के साथ है , वहां क्या प्रतिक्रिया होगी . इस बात पर भी निश्चित रूप से मोदी और उनकी पार्टी की नज़र होगी.२०१४ का पिछला लोकसभा चुनाव  नरेंद्र मोदी का चुनाव माना जाता है . उसमें उन्होंने अपने आपको पिछड़ा बताया था और बार बार उसी पिच पर अभियान को दिशा दी थी  और वोट लिया था . यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश में तो पिछड़ी जातियों के वोटों के मुख्य दावेदार आखिलेश यादव के वोटों में वे बिखराव कर देंगें लेकिन बाकी भारत में जहां कई राज्यों में संपन्न पिछड़े भी उनको वोट देते हैं ,उनको किस तरह से संतुष्ट  करेंगे .जो भी हो अब इतना तय है कि २०१९ के चुनाव  में पिछड़ों के आरक्षण को बीजेपी बड़ा मुद्दा बना सकती है. अभी प्रधानमंत्री ने शुरुआती दांव चला है . आने वाले महीनों  में उसके बारे में और भी परतें खुलेंगी . ज़ाहिर है आरक्षण से जुड़े मुद्दों की राजनीति करवट ले रही है .

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