शेष नारायण सिंह  
मुंबई,२७ जनवरी . बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ,नितिन गडकरी आजकल खूब मज़े ले रहे हैं . अपनी पार्टी के उन नेताओं का मजाक उड़ा रहे हैं जो अपने को २०१४ में प्रधानमंत्री  के रूप में देखना चाहते हैं . अभी दो दिन पहले उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त बताकर लाल कृष्ण आडवाणी को सन्देश देने की कोशिश की थी. आज किसी अखबार में खबर है कि  उन्होंने अरुण जेटली और सुषमा स्वराज  को भी प्रधान मंत्री बनाने की पेशकश की है. उनके इस बयान से भी लाल कृष्ण आडवाणी और उनके क़रीबी लोगों को बहुत खुशी नहीं होगी क्योंकि नरेंद्र मोदी ,अरुण जेटली और सुषमा स्वराज का नाम उछाल कर नितिन गडकरी जी, लाल कृष्ण आडवाणी के दावे को कमज़ोर करने के अलावा और कुछ नहीं कर रहे हैं. वैसे बीजेपी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम पार्टी के उन अध्यक्षों की पंक्ति में लिख दिया गया है जिन्होंने जाने अनजाने बीजेपी को पिछले तीस वर्षों में एक अगंभीर पार्टी के रूप में पेश करने की कोशिश की है. वैसे भी लाल कृष्ण आडवानी को हल्का करने की कोशिश करके बीजेपी अध्यक्ष ने पार्टी के उन वफादार सदस्यों को तकलीफ पंहुचायी है जो नितिन गडकरी के राजनीति में आने से पहले से ही जनसंघ और बीजेपी में लाल कृष्ण आडवानी को एक बड़े नेता के रूप में देखते रहे हैं . 
बीजेपी की राजनीति की अंतर्कथाओं के जानकार  जानते हैं कि इन चार नेताओं को प्रधान मंत्री पद का दावेदार बताकर नितिन गडकरी ने पार्टी के अंदर चल रही लड़ाई को एक नया आयाम दिया है . सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते  नितिन गडकरी अब राष्ट्रीय स्तर के नेता  हैं . यह अलग बात है कि जिन नेताओं का नाम वे प्रधान मंत्री के दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं,उनमें से सभी नितिन गडकरी से बहुत बड़े क़द के नेता हैं . दिल्ली में बीजेपी बीट को  कवर करने वाले   पत्रकारों को मालूम है कि पार्टी का अध्यक्ष बनने के पहले ,जब भी नितिन गडकरी दिल्ली आते थे, वे लाल कृष्ण आडवाणी,अरुण जेटली और सुषमा स्वराज से मिलने की कोशिश ज़रूर करते थे और अक्सर उन्हें  समय मिल भी जाता था . आज भी आम धारणा यह है कि वे बीजेपी के सी ई ओ भले हो गए हों लेकिन वे  इन बड़े नेताओं के नेता नहीं हैं . लेकिन नितिन गडकरी अपनी अध्यक्ष की कुर्सी के सहारे  अपने को सर्वोच्च साबित करने के लिए ऐसे काम कर रहे हैं जो बीजेपी का कोई भी शुभचिन्तक कभी न करता . मसलन उत्तर प्रदेश में उनकी  राजनीतिक प्रबंधन की कृपा से बीजेपी कांग्रेस से भी पीछे चली गयी है. अभी कल एक टी वी चैनल पर चुनाव पूर्व  सर्वेक्षण देखने का मौक़ा मिला. वह चैनल ऐसे लोगों का है जिन्हें बीजेपी का करीबी माना जाता है. उनके सर्वे में भी  उत्तर प्रदेश में बीजेपी को कांग्रेस से पीछे दिखाया गया था. 
दुनिया जानती है कि किसी भी पार्टी को अपने किसी कार्यकर्ता को  भारत का प्रधान मंत्री बनाने के लिए  उत्तर प्रदेश से बहुत बड़ी संख्या में संसद सदस्य जितवाने ज़रूरी हैं . जब उत्तर प्रदेश में किसी पार्टी की रणनीति सबसे कमज़ोर पार्टी के रूप में अपने आपको स्थापित करने की लग रही हो तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे केंद्र में सरकार बनाने के बारे में सोच भी रही है.प्रधान मंत्री बनाने के नौबत तो तब आयेगी जब केंद्र में सरकार बनने के संभावना नज़र आयेगी, उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में जिस तरह से नितिन गडकरी ने चुनाव संचालन का तंत्र बनाया है,उससे तो यही lagtaa  है कि २०१४ में वे किसी भी हालत में केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार नहीं बनने देगें. उन्होंने राज्य के बड़े नेताओं राजनाथ सिंह , कलराज मिश्र, मुरली मनोहर जोशी, केशरी नाथ त्रिपाठी ,विनय कटियार , सूर्य प्रताप शाही,  आदि को दरकिनार किया है उससे  तो यही लगता है कि वे बीजेपी को उसी मुकाम पर पंहुचा देने के चक्कर में  हैं जहां अभी पिछले चुनावों तक कांग्रेस विराजती थी. वरना  उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में राज्य के सभी बड़े नेताओं को पैदल  करने का और कोई मतलब समझ में नहीं आता
 
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