Wednesday, August 4, 2010

राहुल गांधी को गुस्सा क्यों आता है ?

शेष नारायण सिंह

( डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में छप चुका है )

कांग्रेस के आला नेता, राहुल गाँधी आजकल बहुत गुस्से में हैं . पता चला है कि जिन राज्यों में उनकी पार्टी की विरोधी सरकारें हैं ,वहां मुसलमानों के लिए केंद्र सरकार की ओर से चलाई गयी योजनाओं को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है . उनके प्रिय राज्य उत्तर प्रदेश में भी मुसलमानों की भलाई के लिए केंद्र से मंज़ूर रक़म का इस्तेमाल नहीं हो रहा है . और अब खबर है कि केंद्र सरकार अपने अफसरों की मदद से प्रधान मंत्री की पन्द्रह सूत्री योजना को लागू करने की बात पर विचार कर रही है . अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए घोषित, प्रधान मंत्री के १५ सूत्रीय कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की है. इनमें से एक है 'अल्पसंख्यकों के लिए बहु आयामी विकास कार्यक्रम.' इस मद में केंद्र सरकार की तरफ से अल्पसंख्यकों के विकास के लिए आर्थिक पैकेज की व्यवस्था की गयी है . यह कार्यक्रम केंद्र सरकार की तरफ से चुने गए ९० जिलों में शुरू किया गया है . इसे लागू करने के लिए ज़रूरी है कि सम्बंधित जिले में कम से कम २५ प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी हो. जिन जिलों का चुनाव किया गया है उनमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश,असम ,पश्चिम बंगाल और बिहार का नाम है . लेकिन अजीब बात है कि राज्य सरकारें इस फंड का इस्तेमाल ही नहीं कर रही हैं. करीब पचीस हज़ार करोड़ रूपये से ज़्यादा की सहायता राशि की व्यवस्था हुई है लेकिन अब तक केवल २० प्रतिशत का इस्तेमाल हुआ है . प्रधान मंत्री कार्यालय को इस बात की चिंता है कि कार्यक्रम को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है . इसका राजनीतिक भावार्थ यह हो सकता है कि जिन ९० जिलों को चुना गया है उनमेंसे ज़्यादातर जिले, ऐसे राज्यों में पड़ते हैं जहां की राज्य सरकारें प्रधान मंत्री की पार्टी को अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों में लोकप्रिय नहीं होने देना चाहतीं. इसी लिए प्रधान मंत्री के नाम पर चल रहे कार्यक्रम को प्रचारित नहीं होने देना चाहतीं. लगता है कि प्रधान मंत्री कार्यालय को इस मंशा की भनक लग गयी है और अब केंद्र सरकार की ओर से दो जिलों में कार्यक्रम लागू करने के लिए काम शुरू कर दिया गया है . उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में तो केंद्रीय पर्यवेक्षक पंहुंच भी गए हैं.उत्तर प्रदेश में इस कार्यक्रम को लागू करने केलिए २१ जिलों का चुनाव किया गया है . बाकी २० जिलों को केंद्र सरकार ने भी भगवान् भरोसे छोड़ रखा है . जहां तक राज्य सरकार की बात है वह तो कभी नहीं चाहेगी कि मुसलमानों के बीच प्रधान मंत्री और उनकी पार्टी की वाह-वाही हो .वैसे भी अगर मुकामी अफसरों को किसी भी विकास योजना से सही मात्रा में रिश्वत की मलाई नहीं मिलती तो वे उसमें रूचि लेना बंद कर देते हैं . उत्तर प्रदेश में रोजगार गारंटी योजना अब तक खूब धडल्ले से चल रही थी क्योंकि उसकी रक़म को गाँव पंचायत का प्रधान और बी डी ओ मिलकर हज़मकर रहे थे . बी डी ओ को ही ऊपर के अधिकारियों का घूस इकठ्ठा करके पंहुचाने का ज़िम्मा था . सब ठीक ठाक चल रहा था. सारे अफसर खुश थे. कुछ पंचायतों में तो थोडा बहुत विकास भी हो रहा था लेकिन केंद्र सरकार की प्रेरणा से सोशल आडिट करने वाले कुछ लोग सक्रिय हो गए. जब से यह सोशल आडिट वाले सक्रिय हुए हैं , ग्रामीण रोज़गार योजना में पैसों के वितरण में कमी आई है क्योंकि घूसजीवी समाज के लिए किसी ऐसे काम में हाथ डालना ठीक नहीं माना जाता जिसमें रिश्वत की गिज़ा कम हो . बहर हाल अल्पसंख्यकों के हित के लिए शुरू की गयी योजनाओं के प्रति राज्य सरकारों की इस अनदेखी का फ़ौरन कोई न कोई हल निकाला जाना चाहिए . केंद्र सरकार इस बात पर भी गौर कर सकती है कि इन योजनाओं को लागू करने के लिए केंद्र के अधिकारियों को ही तैनात कर दिया जाए या कोई ऐसी एजेंसी बना दी जाए जो काम संभाल ले . क्योंकि इस बात में दो राय नहीं है कि देश में अल्प संख्यकों , ख़ास कर मुसलमानों की आर्थिक हालात बहुत ही खराब है . उनके आर्थिक पिछड़े पन का कारण मूल रूप से शिक्षा के क्षेत्र में उनका पिछड़ापन है . केंद्र की मौजूदा सरकार इस सच्चाई से वाकिफ है . इसी लिए मनमोहन सिंह की सरकार ने सच्चर कमेटी का गठन किया था और उसकी सिफारिशों को ध्यान में रख कर ही प्रधानमंत्री के १५ सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की गयी थी . शिक्षा के मह्त्व को निजी तौर पर समझने वाले प्रधान मंत्री ने मुसलमानों की तरक्की के लिए सबसे ज़रूरी महत्व शिक्षा को दिया . लेकिन मुसलमानों की शिक्षा में सबसे बड़ी अड़चन तो उन स्वार्थी लोगों की तरफ से आ रही है जो मुस्लिम शिक्षा के नाम पर सरकारी फायदा उठा रहे हैं .कोशिश की जानी चाहिए कि इन स्वार्थी लोगों को मुसलमानों की तरक्की में बाधा डालने से रोका जा सके. सबसे पहले तो इस तरह के लोगों की पहचान होना ज़रूरी है . सबसे बड़ा वर्ग तो घूसखोर अफसरों का है जिनको काबू में करने के लिए मीडिया का सहयोग लिया जा सकता है . दूसरा वर्ग हैं आर एस एस की मानसिकता वाले नेताओं और सरकारों का . उनके ऊपर निगरानी के लिए सेकुलर लोगों की एक जमात तैयार की जानी चाहिए जो धार्मिक कारणों से मुसलमानों का विरोध करने वालों को रोक सकें . और तीसरी बात यह है कि मुसलमानों में भी एक बड़ा वर्ग है जो मुस्लिम आबादी को आधुनिक शिक्षा देने का विरोध करता है .इन लोगों को सरकाकी बात है ,लगता है कि मौजूदा केंद्र सरकार मुस्लिम समाज की तरक्की के लिए पैसा ढीला करने को तैयार है .ज़रुरत इस बात की है कि उसका सही इस्तेमाल किया जाए .

1 comment:

  1. ह्म्म्म्म
    सही बात है, मुसलमानों की राह में रोड़ा नहीं अटकाना चाहिये… उन्हें जो चाहिये दे दो, जैसे नेहरु ने कश्मीर में दिया, राहुल गाँधी असम देकर रहेंगे…। जय हो, जय हो…

    ReplyDelete