Saturday, July 25, 2009

अलविदा, इकबाल बानो

मशहूर गायिका, इकबाल बानो, नहीं रहीं। दिल्ली घराने की गायिका इकबाल बानो 1952 में पाकिस्तान चली गई थीं। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उन्हें दिल्ली घराने के उस्ताद चाँद खां से मिली थी। ठुमरी और दादरा की गायकी में इकबाल बानो उन बुलंदियों पर पहुंच गई थीं जहां रसूलन बाई, ज़ोहराबाई अंबालेवाली और अख़तरी बाई फैज़ाबादी विराजवती थीं। 1952 में शादी करके पाकिस्तान जाने के पहले आकाशवाणी में भी गायिका के रूप में काम कर चुकी थीं। पाकिस्तान जाने के बाद उन्होंने रेडियो पाकिस्तान से रिश्ता बनाया और पाकिस्तान में कई पीढिय़ों की प्रिय कलाकार रहीं।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की गज़लों की सबसे बेहतरीन गायिका के रूप में उनकी पहचान होती है। पाकिस्तानी राजनीति में एक ऐसा भी मुकाम आया जब इकबाल बानो की आवाज़ तानाशाही के विरुद्घ उठ रही सबसे बुलंद आवाज़ मानी जाने लगी। और तानाशाही के दौर में फैज़ की मशहूर नज्म 'हम देखेगे की पंक्तियां ' सब ताज उछाले जाएंगे सब तख्त गिराए जाएंगे को करीब एक लाख लोगों की भीड़ के सामने इकबाल बानो ने गाया तो पूरी भीड़ उठ खड़ी हुई थीं और एक स्वर में सबने कहा था 'हम देखेंगे। पाकिस्तान में इकबाल बानो ने फिल्मी संगीत की दुनिया में भी एक हैसियत बना ली थी।

पाकिस्तान में पचास के दशक की नामी फिल्मों गुमनाम, कातिल, इंतक़ाम, सरफरोश और नागिन में गाए गए उनके गीत अमर संगीत की श्रेणी में गिने जाते हैं।पाकिस्तानी अवाम के साथ इकबाल बानो उस दौर में खड़ी हो गईं जब वहां जनरल जियाउलहक की हुकूमत थी। फौजी तानाशाही के बूटों तले रौंदी जा रही पाकिस्तानी जनता को इकबाल बानो की आवाज में एक बड़ा सहारा मिला जब उन्होंने 1981 में फैज की गजलें और नजमें गाना शुरू किया और तानाशाही के खिलाफ शुरू हुए प्रतिरोध को आवाज दी।

यह वह दौर था जब जनरल जिय़ा ने हर उस इंसान को वतन छोडऩे को मजबूर कर दिया था, जो इंसाफ पसंद था। फैज़ अहमद फैज खुद बेरूत में निर्वासित जीवन बिता रहे थे। पाकिस्तान में गजल गायकी को बुलंदियों पर पहुंचाने वाली इकबाल बानों का भारत, खासकर दिल्ली से बहुत गहरा संबंध था। उन्होंने यहीं तालीम पाई, यहीं उनका बचपन बीता और दिल्ली की आबो हवा ने इस महान गायिका को अपने आपको संवारने में मदद की। दिल्ली की इस बेटी के चले जाने पर उनके वतन पाकिस्तान में तो उन्हें याद किया ही जाएगा लेकिन उनके मायके और बचपन के शहर दिल्ली में भी बहुत सारे लोगों को तकलीफ़ होगी जो उनके प्रशंसक थे या उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानते थे।

1 comment:

  1. खरगोश का संगीत राग
    रागेश्री पर आधारित है
    जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध
    लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें
    राग बागेश्री भी झलकता है.

    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया
    है... वेद जी को अपने संगीत कि
    प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Also visit my blog post : खरगोश

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