Tuesday, July 28, 2009

सेक्स ट्रेड माफिया के निशाने पर भारत

समलैंगिकता पर शुरू हुई बहस एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है। दिल्ली से छपने वाले एक प्रतिष्ठित साप्ताहिक अखबार ने इस मुद्दे पर पड़े मकडज़ाल को साफ करने की कोशिश की है। अखबार ने लिखा है कि किसी गैर सरक़ारी संगठन के कंधे पर बंदूक चलाने वाला कोई और नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सेक्स माफिया को कंट्रोल करने वाले व्यापारी बैठे हैं। उनके इस गोरखधंधे में दिल्ली और मुंबई में बैठे कुछ अति आधुनिकता का स्वांग भरने वाले फैशन परस्त लोग हैं। इस बिरादरी के लोग बड़े अखबारों और टी.वी. चैनलों में भी घुसपैठ कर चुके हैं।

अखबार के मुताबिक इस तरह के लोग आम तौर पर भाड़े के टट्टू टाइप लोग हैं। शायद इसीलिए जब दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आया तो सबसे पहले मीडिया वालों में से वह वर्ग सक्रिय हुआ जो पी.आर. एजेंसियों की कृपा से पहले से फिट किया जा चुका था। दिल्ली के जंतर मंतर पर दस-बीस लोग नाचते गाते इकट्ठा हुए। उनको कुछ टी.वी. चैनलों ने इस तरह पेश किया, मानो कोई बहुत बड़ी राजनीतिक घटना हो गई हो। एक अंग्रेजी अखबार की कवरेज देखकर तो लगता था कि देश ने किसी बहुत बड़ी लड़ाई में जीत हासिल की हो। साप्ताहिक पत्र के अनुसार मैक्सिको और मलयेशिया के बाद अब भारत निशाने पर है।

अंतर्राष्ट्रीय सेक्स व्यापार माफिया की कोशिश है कि भारत को सैक्स का हब बनाया जाय। इसीलिए समलैंगिकता पर हाईकोर्ट के फैसले को एक जीत के रूप में पेश किया जा रहा है। इन लोगों की कोशिश होगी कि आगे चलकर वेश्यावृत्ति को भी जायज घोषित करवा दिया जाय जिसके बाद से भारत को सैक्स पर्यटन का केंद्र बनाकर पूरी दुनिया के लोगों को यहां बुलाया जाय। अगर यह सच है तो यह बहुत ही खतरनाक है और सरकार, राजनीतिक दल, न्यायपालिका और आम आदमी को सावधान हो जाना चाहिए। एड्स की चपेट में पड़ चुकी दुनिया में अगर सेक्स माफिया के चक्कर में पड़कर भारत गाफिल पड़ गया तो देश तबाही की तरफ चल पड़ेगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायपालिका ने तो पहल कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और हाईकोर्ट में मुकदमा दाखिल करने वाले एन.जी.ओ. से जवाब तलब कर लिया है। किसी ज्योतिषी की अपील पर मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने 20 जुलाई की तारीख दी है। विचाराधीन मामले में समलैंगिक शादियों पर रोक लगाने के साथ साथ यह भी प्रार्थना की गई थी कि दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले पर भी रोक लगा दी जाय जिसके अनुसार भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 377 को अपराध मानने से मना कर दिया गया है। सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता के वकील ने बताया कि हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद समलैंगिक शादियों का दौर शुरू हो गया है जिस पर रोक लगाई जानी चाहिए।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में विवाह कानून बदलने जैसी तो कोई बात की नहीं गई है, इसलिए शादियों की बात का कोई मतलब नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जल्दबाजी में फैसले पर रोक लगाना ठीक नहीं है। दस दिन में पूरी सुनवाई ही कर ली जाएगी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 377 के ज्यादातर मामले छोटे बच्चों के यौन शोषण से संबंधित होते हैं। उन्होंने अदालत में कहा कि पूरे कैरियर में उनके सामने 377 का ऐसा कोई मामला नहीं आया जिसमे ंकोई रज़ामंद वयस्क वादी या प्रतिवादी हो। इसका सीधा मतलब है कि समलैंगिता को अपराध की सूची से हटवाने वाले गिरोहों की कोशिश है कि छोटे बच्चों को सेक्स के गुलाम की तरह बेचने के उनके कारोबार की वजह से उन पर कोई आपराधिक मुकदमा न चले।

इस तरह की खबरें अकसर आती रहती हैं कि सेक्स व्यापार के धंधेबाजों ने गरीब मां बाप के बच्चों का अपहरण करवा कर या खरीद कर विदेश भेजने की कोशिश की। अगर समलैंगिकता अपराध नहीं रह रह जाएगा तो इस तरह के धंधेबाज, बच्चों को विदेश भेजने की कोशिश नहीं करेंगे। यहीं अपने देश में ही सेक्स टे्रड के अड्डे खुल जाएंगे। समलैंगिकता के मामले को दूसरी आज़ादी की तरह पेश करने वाले अज्ञानी नेताओं और बुद्घिजीवियों को फौरन संभल जाना चाहिए। पी.आर. एजेंसियों की मीडिया को प्रभावित कर सकने की ताकत का इस्तेमाल करके समलैंगिकता को जायज करार दिलवाने की कोशिश कर रहे माफिया की ताकत बहुत ज्यादा है।

इस माफिया ने पैसा तो कुछ चुनिंदा एनजीओ और लॉबी करने वालों को दिया होगा लेकिन मीडिया का इस्तेमाल करके इसे मानवाधिकार का मामला बनाने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार अगर यह मानवाधिकार का मामला बन गया तो लॉबी करने वालों का एक नया वर्ग भी इससे जुड़ जाएगा जो बात को और पेचीदा बना देगा। देखा गया है कि कुछ नेता भी इस मामले में गोल मटोल बात कर रहे हैं, इन लोगों को फौरन संभल जाना चाहिए। अगर यह मुगालता है कि समलैंगिक लोगों की आबादी बहुत ज्यादा है तो उसे दुरुस्त कर लेने की जरूरत है। यह सब मीडिया में बैठे कुछ समलैगिक लोगों की बनाई कहानी है, इसको गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। सभी धर्मों के नेताओं ने इस मामले में अपनी राय दे दी है।

सबने एकमत से इसका विरोध किया है। सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की 20 जुलाई की सुनवाई पर लगी हैं। सबको उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट, सेक्स टे्रड माफिया और उसके कारिंदे एन.जी.ओ. के खेल को खत्म करेगा और देश की मर्यादा पर आंच नहीं आने देगा।

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