Tuesday, August 14, 2018

क्या पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान फौज के चंगुल से निकल पायेगें या उसकी कठपुतली बनेंगे


शेष नारायण सिंह  

पाकिस्तान में क्रिकेटर इमरान खान  की सरकार से दुनिया के  अमन पसंद लोगों को बहुत उम्मीदें हैं . सारी दुनिया में लोग टकटकी लगाये बैठे हैं कि शायद इमरान खान कोई ऐसी पहल करें  जिससे इस खित्ते में शान्ति की बहाली हो सके. पाकिस्तान में शान्ति  और लोकतंत्र स्थापित होने का सबसे ज़्यादा फायदा पकिस्तान की अवाम को  होगा,पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को होगा और पाकिस्तानी राष्ट्र को होगा. पाकिस्तान में शान्ति और लोकतंत्र की  स्थापना का अगर किसी बाहरी देश को फायदा होगा तो वह भारत है. भारत को बाकी देशों से ज़्यादा लाभ होगा . उसके कारण हैं साफ़ हैं . एक तो पाकिस्तान के पूरे समर्थन और उसकी साझीदारी से चल रहा आतंकवाद का खात्मा करने में दुनिया को मदद मिलेगी. भारत की एक बड़ी आबादी के बहुत सारे रिश्तेदार पाकिस्तान में रहते हैं शादी ब्याह के रिश्ते हैं और आपस में रिश्तेदारों की मुलाकातें कई कई साल नहीं हो पातीं . अगर अमन की स्थापना हुयी तो दोनों देशों में बंटे हुए परिवारों में आपसी मेल मुलाकातें भी बढेंगी . जब दोनों देशों के अवाम में आपसी सम्बन्ध बढ़ेगा ,आवाजाही होगी तो दोनों ही देशों की जनता के हितों  को ध्यान में रखकर सरकारें भी फैसले लेने के लिए मजबूर  होंगी.
सवाल यह है कि क्या इमरान खान पकिस्तान को शान्ति की राह पर ले जाना चाहेंगें . आम तौर पर माना जा रहा है कि पाकिस्तानी फौज ने इमरान खान को प्रधानमंत्री पद तक पंहुचाया है . यह जगजाहिर है कि पाकिस्तानी सेना भारत के साथ संबंधों को कभी भी ठीक नहीं करना चाहती इसलिए उसको आई एस आई या धार्मिक उन्मादियों के ज़रिये भारत में असंतोष की अंगीठी को जलाए रखना होता है . जिसका नतीजा यह होता  है कि पाकिस्तानी  फौज के अफसरों की तो चांदी रहती है उनको देश के संसाधनों को लूटने के अवसर मिलते रहते हैं लेकिन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तबाही की तरफ बढ़ती रहती है . ऐसे माहौल में इमरान खान से शान्ति की उम्मीद तो नहीं की जा सकती लेकिन उनको  पाकिस्तान के संथापक मुहमम्द अली जिन्नाह की विरासत  को तो याद दिलाया  ही जा सकता है . हालांकि पाकिस्तान हासिल करने के लिए जिन्नाह ने ब्रिटिश साम्राज्य की हर बात मानी लेकिन मूल रूप से जिन्नाह एक सेकुलर इन्सान थे . इस बात में दो राय नहीं है भारत की आज़ादी के प्रयासों में महात्मा गांधी के पहले जो भी काम हुआ उसमें जिन्नाह का नाम  प्रमुख है . वे उस दौर में आज़ादी की  मुहिम के सूत्रधारों में गिने जाते थे. कांग्रेस के संस्थापकों दादाभाई नौरोजी और फीरोज़ शाह मेहता के तो वे बहुत बड़े प्रशंसक थे , गोपाल कृष्ण गोखले का भी स्नेह मुहम्मद अली जिन्नाह को हासिल था. आज़ादी की लड़ाई  के बहुत शुरुआती वर्षों में ही उन्होंने कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष राजनीति की बुनियाद रख दी थी. जो महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू  के युग में इस देश की शासन पद्धति का आधार  बनी .  भारत के संविधान ने देश की सभी संस्थाओं में आज़ादी के लिए हुए   संघर्ष के इथास को स्थाई मुकाम दिया . संविधान ने यह सुनिचित किया कि देश एक सेकुलर लोकतांत्रिक देश बने .भारत एक सेकुलर देश बना भा . लेकिन  जिन्नाह ने  जिस देश की स्थापना की थी वहां तो धर्मनिरपेक्ष राजनीति पता नहीं कब की ख़त्म हो चुकी है .  इस बात में भी दो राय नहीं है कि पाकिस्तान में मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा सेकुलर है और वह भारत से दुश्मनी  को पाकिस्तान के विकास में सबसे  बडी बाधा मानता है .जिन्नाह को जब पाकिस्तान की संविधान सभा का सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया था तो उस पद  को स्वीकार करने के लिए उन्होंने जो भाषण दिया था , आम तौर पर माना जाता है कि वही भाषण पाकिस्तान की भविष्य की राजनीति का  आदर्श बनने वाला था . ११ अगस्त १९४७ का उनका भाषण इतिहास की एक अहम धरोहर है.नए जन्म ले रहे पाकिस्तान के राष्ट्र के भविष्य का नुस्खा उस भाषण में था  . लेकिन पाकिस्तानभारत और इस इलाके में रहने वाले लोगों  का दुर्भाग्य है कि उनके उस भाषण में कही गयी गयी हर बात को नए पाकिस्तान के शासकों ने तबाह कर दिया . अपने नए मुल्क के लोगों से मुखातिब  पाकिस्तान के संस्थापकमुहम्मद अली जिन्नाह ने उस  मशहूर भाषण में कहा कि , " अब आप आज़ाद हैं .पाकिस्तान में आप अपने मंदिरों ,अपनी मस्जिदों और अन्य पूजा के स्थलों पर जाने के लिए स्वतन्त्र हैं . आप का धर्म या जाति कुछ भी हो सकती है  लेकिन पाकिस्तान के नए राज्य का उस से कोई लेना देना नहीं हैं .. हम एक ऐसा देश शुरू करने जा रहे हैं  जिसमें धर्म या जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा . हम यह मानते हैं कि हम सभी एक स्वतन्त्र देश के नागरिक हैं जिसमें हर नागरिक एक दूसरे के बराबर हैं . " इसी भाषण में जिन्नाह ने कहा था कि " हमें अपना आदर्श याद रखना चाहिए कि कुछ समय बाद पाकिस्तान में न कोई हिन्दू रहेगा ,न कोई मुसलमान  सभी लोग पाकिस्तान के स्वतन्त्र नागरिक के रूप में रहेगें  . हालांकि व्यक्तिगत रूप से सब अपने धर्म का अनुसरण करेगें लेकिन राष्ट्र के रूप में कोई धर्म नहीं रहेगा, "
इतिहास को पता है  कि जिन्नाह का वह सपना धूल में मिल चुका है . आज  पाकिस्तान में धार्मिक तंत्र हावी है .उनकी फौज भी पूरी तरह से धार्मिक कट्टरपंथियों की मर्जी से चलती है . पाकिस्तान की आजादी के करीब १५ साल बाद या यूं कहिये कि जनरल अयूब की हुकूमत के खात्मे के बाद  से ही पाकिस्तान में जिन्ना की विरासत को तोड़ने मरोड़ने का काम पूरी शिद्दत से चल रहा  है . उसमें सभी ने अपनी तरह से  योगदान किया है . अब जिन्नाह के  धर्म निरपेक्ष पाकिस्तान के सपने की कोई भी बात चर्चा में नहीं आने नहीं दी जाती  लागू करना तो अलग बात है . 
 सही बात यह है कि पाकिस्तान के शासक वर्ग ने पहले दिन से ही अपने संस्थापक की हर बात को नज़र अंदाज़  किया और कई मामलों में तो उल्टा किया. अगर उनके धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तान के सपने को पूरा करने की कोशिश पाकिस्तान के शासकों ने की होती तो न आज तालिबान होता ,न हक्कानी होता , न जिया उल हक की सत्ता आती , न ही हुदूद का कानून बनता और न ही एक  गरीब देश की संपत्ति को पाकिस्तानी फौज के आला अफसर आतंकवादियों की मदद  के लिए इस्तेमाल कर पाते .आज पाकिस्तान उस  मुकाम पर खड़ा है जबकि  दुनिया के कई बड़े मुल्क उसको आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने के फ़िराक में  हैं . पाकिस्तान के   नए वज़ीरे-आज़म के  सामने यही चुनौती है की के वे पाकिस्तान को  आतंकवाद के प्रायोजक देश के रूप में मिल रही पहचान से   बचा पायेगें .  यह ख़तरा पूरी तरह से है कि वे  फौज के हाथ में कठपुतली बन कर   रहेंगे और अपना कार्यकाल पूरा करके रिटायर जीवन बिताएंगे. पाकिस्तान के सामने आज चुनौतियां बहुत बड़ी हैं . इस बात पर नज़र रहेगी कि इमरान खान अपने देश  की जनता के हित की साधना  कैसे  करते हैं  .

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