शेष नारायण सिंह
अगली लोकसभा के चुनाव में अब कुछ महीने रह गए हैं , या यह कहना ठीक होगा कि अब प्रचार शुरू हो गया है . जिस टीवी चैनल में मैं कंसल्टेंट हूँ, उसकी तरफ से एक विशेष कार्यक्रम के तहत २०१९ के चुनाव का शंखनाद इसी हफ्ते कर दिया गया . कार्यक्रम में ऐसे बहुत लोग आये जो २०१८ में होने वाले राज्यसभा चुनावों और लोक सभा चुनाव २०१९ में अहम भूमिका निभाने वाले हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद आये और पूरे आत्मविश्वास के साथ २०१९ में अपनी जीत की भविष्यवाणी की . मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेसी राजनीति के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट आये , उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री बनने से बाल बाल बचे नेता मनोज सिन्हा आये, बिहार से तेजस्वी यादव आये . यह सभी को मालूम है कि २०१८ के विधान सभा चुनावों के बाद २०१९ की बिसात बहुत ही निर्णायक तरीके से बिछ जायेगी . यह भी तय है कि जिसके पक्ष में उत्तर प्रदेश ,बिहार ,मध्य प्रदेश और राजस्थान की हवा बहेगी ,केंद्र में सरकार उसी की होगी. इस सम्मलेन की ख़ास बात यह भी रही कि बिहार की राजनीति में तेज़ी से उभर रहे राजनीतिक व्यक्तित्व ,तेजस्वी यादव को राष्ट्रीय स्तर पर आमने सामने देश के अत्यंत महत्वपूर्ण चैनल के पत्रकारों ने बहुत क़रीब से देखा और परखा , २०१७ में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जिस तरह से राजनीतिक धरातल पर के ज़बरदस्त नेता के रूप में अखिलेश यादव ने इंट्री ली है ,उसका एक बार फिर दिल्ली की मीडिया ने करीब से जायजा लिया . ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट का आत्मविश्वास ज़बरदस्त था . अगर उनके आत्मविश्वास को संकेत माना जाए ,तो आने वाला समय मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकता है . हालांकि अमित शाह का जो भरोसा था वह देखने लायक था , उनको देख कर लगता ही नहीं था कि उनके विपक्ष में खड़े लोग भी कोई राजनीतिक हैसियत रखते हैं . अमित शाह ने पिछले चार साल में इतने चुनावों में अपनी पार्टी की जीत का नेतृत्व किया है कि उनकी कही गयी हर बात राजनीतिक हवाओं का संकेत देती नज़र आती है .उन्होंने साफ़ कहा कि कहीं कोई नहीं है मैदान में और लड़ाई केवल सांकेतिक ही होने जा रही है .२०१८ के विधान सभा चुनावों में और २०१९ के लोक सभा चुनावों में कहीं कोई बदलाव नहीं आने वाला है , बीजेपी की जीत सब जगह होगी. .
पत्रकारिता के काम में यह ट्रेनिंग दी जाती है कि नेताओं को बड़ी बड़ी बातें करने के लिए उत्साहित किया जाए ,उनको ऐसा लगे कि जो पत्रकार उनका इंटरव्यू कर रहा है ,वह उनकी हर बात का विश्वास कर रहा है . लेकिन सच्चाई में ऐसा नहीं होता .नेताओं की बात का महत्व केवल इतना है कि उनकी बातों से विचार विमर्श के लिए कच्चे माल की सप्लाई मिलती है ,नेताओं की बातों का पूर्ण विश्वास कोई भी सम्माननीय पत्रकार नहीं करता . उनकी बातें राजनीतिक विश्लेषण का केवल इनपुट होती है ,इसके अलावा कुछ नहीं .राजनीतिक पत्रकार अपने फैसले सारे माहौल को ध्यान में रखकर लेता है .उसको मालूम रहता है कि राजनीतिक जीत के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां और नेता किसी और पिच पर खेल रहे होते हैं . एक सजग नागरिक को उस पिच तक ले जाना पत्रकार का धर्म होता है .इस सन्दर्भ में राजनीतिक विश्लेषण करने वाली बिरादरी को मालूम है कि आगामी चुनावों में खेल की पिच कहीं और है , वह चुनावों में पिछड़े और दलित वर्गों के वोटों को लक्ष्य करके खेली जायेगी . क्योंकि अगर फैसला गंगा नदी के इलाके में होना है तो वहां तो दलित और पिछड़े ही तय करेंगे कि चुनावी नतीजों की हवा क्या मोड़ लेगी. इस इलाके में मायवती ,अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जैसे नेताओं के समर्थक बहुत ही अहम भूमिका निभाने वाले हैं लेकिन यह भी तय है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चुनाव जीतने की कला के माहिर हैं . बीजेपी को भरोसा है कि अमित शाह हर हाल में जीत दिलवाएंगें .
अमित शाह के नेतृत्व में जीत को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने भी अपना योगदान शुरू कर दिया है. अखिलेश यादव, मायावती और तेजस्वी यादव के प्रभाव से होने वाले संभावित खतरे को रोकने के लिए सरकार ने संसद में दो महत्वपूर्ण बिल पास करवा लिया है .संसद में सोमवार को दलितों और पिछड़ी जातियों के हित की बातों को ख़ास तौर पर चर्चा का विषय बनाया गया . लोक सभा में केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलौत ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निरोध) संशोधन बिल पेश किया . सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पहले से ही इस सम्बन्ध में बने कानून में कुछ कमजोरी आ गयी थी . सरकार ने इस बिल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रभावहीन बनाने का काम किया है .उधर राज्य सभा में ओ बी सी से सम्बंधित आयोग को संवैधानिक संस्था का दर्ज़ा देने के सम्बन्ध में संविधान में संशोधन की दिशा में अहम क़दम उठा लिया .
लोकसभा में सामजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलौत ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निरोध) संशोधन बिल पेश करते हुए कहा कि ," सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी जिसमे माननीय उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निरोध) एक्ट १९८९ के उन प्रावधानों को खारिज कर दिया था जिसके तहत दलितों के ऊपर अत्याचार के मामले में तुरंत गिरफ्तारी की व्यवस्था थी. अभियुक्त की जमानत के लिये भी कानून बहुत सख्त थे और मुकामी पुलिस को अधिकार था कि वह जिसके खिलाफ एफ आई आर लिखा जाए ,उसको बिना किसी की अनुमति लिए गिरफ्तार कर सकता था . सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह व्यवस्था बना दी थी कि अगर किसी के खिलाफ दलित पर अत्याचार की कोई शिकायत आती है तो प्राथमिक जांच करके ही एफ आई आर दर्ज की जाए और अगर अभियुक्त को गिरफ्तार करने की ज़रूरत हो तो वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंजूरी लेकर ही गिरफ्तारी की जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के विरोध में कुछ दलित संगठनों ने २ अप्रैल को भारत बंद का आवाहन भी किया था "
सुप्रीम कोर्ट ने इसी २० मार्च अपना आदेश सुनाया था . दलित संगठन बहुत नाराज़ थे .. सरकार के ऊपर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अवसर था कि वह बीजेपी के मुख्य समर्थक सवर्णों को संतुष्ट कर सके . सवर्ण जातियों में इस बात को लेकर बहुत चिंता थी कि कोई भी पुलिस वाला उनको दलित एक्ट में फनस आकर जेल भेज देता था . केन्द्रीय मंत्री ने लोकसभा में स्वीकार भी किया कि दलित एक्ट के तहत बहुत सारे फर्जी मामले भी दर्ज होते थे . जैसा कि कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि सरकार का रुख दलितों के खिलाफ था इसीलिये उन्होंने शुरू में कोशिश की थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही कानूनी शक्ल दे दी जाए लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते उनको बात को संभालना पडा . यह बात सही लगती है क्योंकि बीजेपी के कोई वोटर जिनमे सवर्ण शामिल हैं , दलित एक्ट का विरोध करते थे लेकिन बीजेपी की परेशानी यह अहि कि वह कई साल से भीमराव आंबेडकर के नाम पर बहुत कुछ राजनीतिक पूंजी का निवेश करती रही है. बीजेपी की कोशिश है कि मायावती के दलित जनसमर्थन को अपने पक्ष में करे लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद दलितों की नाराज़गी बीजेपी से बढ़ रही थी. केंद्रीय मंत्रिमंडल में दलित मंत्री भी सरकार के खिलाफ बोलना शुरू कर चुके थे लिहाज़ा उनको यह संशोधन लाना पडा. हालांकि मंत्री थावरचंद गहलौत ने लोकसभा में स्वीकार किया कि अभी सरकार के एवाह अर्जी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है माननीय कोर्ट से अपने आदेश को बादलने के लिए कहा गया है . सरकार को जल्दी करना पड़ा क्योंकि दलित संगठनों और किसान संगठनों ने ९ अगस्त को भी आन्दोलन की योजना बनाई हुयी है . बीजेपी की समझ में आ गया कि सवर्णों के चक्कर में दलितों को नाराज़ करना ठीक नहीं है क्योंकि सवर्ण तो वैसे भी समर्थन बीजेपी को ही देंगे क्योंकि उनके सामने और कोई विकल्प नहीं है . उनकी मजबूरी को बीजेपी आलाकमान भी जानता है .
बीजेपी की २०१४ और उसके बाद की जीतों में ओबीसी वोटों की बड़ी भूमिका थी . उस वर्ग को भी साधने के लिये प्रधानमंत्री समेत बीजेपी के सभी बड़े नेता हमेशा ही बयान देते रहते थे .लगता है कि इसी अभियान के तहत राज्यसभा में सोमवार को पिछड़ी जातियों के राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्ज़ा देने संबंधी १२३ वां सविधान संशोधन विधेयक भी पारित हो गया . संविधान संशोधन के लिए ज़रूरी है कि सदन में मौजूद और वोट में भाग लेने वाले सदस्यों का कम से कम दो तिहाई संशोधन के पक्ष में वोट करे . लेकिन यह यह बिल राज्य सभा में सर्वसम्मति से पारित हो गया . पक्ष में १५६ वोट पड़े जबकि विपक्ष में किसी भी सदस्य ने वोट नहीं डाला . बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने इस बिल के पास होने को ऐतिहासिक बताया और प्रसन्नता जताई . इस बिल के पास हो जाने के बाद अब पिछड़ा वर्ग आयोग को भी वही दर्ज़ा मिल जाएगा तो अनुसूचित जातियों के आयोग को मिला हुआ है .
संसद में सरकार ने अपने आपको दलितों और पिछड़ों के पक्षधर के रूप में ज़बरदस्त तरीके से प्रस्तुत कर दिया है . यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इन कानूनों के बनने के बाद उत्तर प्रदेश के दलित मायावती के खिलाफ वोट करेंगे . या यह कि क्या उत्तर प्रदेश के पिछड़े लोग अखिलेश यादव के खिलाफ वोट करेंगे , क्या तेजस्वी यादव के बढ़ते प्रभाव को इन सारे तरीकों से कम किया जा सकेगा .कुछ भी हो देश एक बहुत ही दिलचस्प चुनाव की दिशा में शंखनाद कर चुका है .
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