शेष नारायण सिंह
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के मुद्दे से जुड़ा माहौल बहुत ज़्यादा गरमा गया है . असम में घुसपैठियों और विदेशी नागरिकों के सवाल पर ज़बरदस्त राजनीति शुरू हो गयी है . नैशनल राष्ट्रीय रजिस्टर का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट जारी कर दिया गया है.. 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिक रजिस्टर में नाम डलवाने की दरखास्त दी थी .इन आवेदकों में से 2.90 करोड़ आवेदक ही सही पाए गए हैं. 40 लाख आवेदकों का नाम फाइनल ड्राफ्ट में नहीं है . असम में एनआरसी का पहला ड्राफ्ट पिछले साल दिसंबर में जारी हुआ था. पहले ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे.इस बार यह संख्या बढ़ गयी है .जिन चालीस लाख लोगों को इस सूची में जगह नहीं मिली है. इन्हीं चालीस लाख लोगों को लेकर राजनीति शुरू हो गयी है . सोमवार को लिस्ट के प्रकशित होने के बाद यह मुद्दा लोकसभा में असम की गैर भाजपा पार्टियों ने उठाया . जिसका कांग्रेस , लेफ्ट फ्रंट और तृणमूल कांग्रेस ने समर्थन किया . गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जवाब दिया कि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा है और इसमें केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है . सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने औरे उसके निर्देश में काम करने से ज़्यादा सरकार का रोल नहीं है . लेकिन विपक्ष को गृहमंत्री के जवाब से संतोष नहीं हुआ और लोकसभा से वाक आउट कर गए .
मंगलवार को मामला राज्यसभा में भी बहस के लिए उठाया गया . जब बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह अपनी बात कहने उठे तो उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का बनाया जाना राजीव गांधी के समय में हुए असम समझौते का नतीजा है. उन्होंने कहा कि आज ३३ साल हो गए और कांग्रेस के लोग अपनी ही पार्टी की सरकार के समझौते को लागू नहीं कर पाए. इसके बाद हल्ला गुल्ला शुरू हो गया और अमित शाह अपनी बात पूरी नहीं कर पाए .एनआरसी के मुद्दे पर राज्यसभा में कांग्रेस को अर्दब में लेने के बाद अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस की. उन्होंने प्रेस से कहा कि सदन की गरिमा के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैं सदन का सदस्य होते हुए भी वहां अपनी बात नहीं रख पाया. मुझे सदन में बोलने नहीं दिया गया इसलिए मैंने यह प्रेस कांफ्रेंस की. उन्होंने कहा कि मेरे बयान के दौरान सदन में हंगामा हुआ और मुझे बोलने नहीं दिया गया. एनआर सी के बारे में सफाई देते हुए उन्होंने दावा किया कि किसी भी भारतीय नागरिक का नाम नहीं कटेगा. लेकिन जो विदेशी होगा उसको भारत के नागरिक के रूप में मान्यता नहीं दी जायेगी .उन्होंने कहा कि 40 लाख का आंकड़ा अंतिम नहीं है. भारतीय नागरिक होने का सबूत नहीं पेश करने के बाद ही एनआरसी से नाम कटा है. अभी जिन लोगों के नाम रजिस्टर में नहीं हैं उनको मौअक दिया जाएगा कि वे अपनी नागरिकता सिद्ध करें. उसके बाद यह संख्या चालीस लाख से से भी कम हो जायेगी, अमित शाह की शिकायत है कि विपक्ष की पार्टियां बीजेपी की छवि खराब करने की कोशिश कर रही हैं. कांग्रेस वोटबैंक की राजनीति कर रही है और बेमतलब के सवाल उठा रही है, जबकि एनआरसी की शुरुआत ही कांग्रेस ने की थी. .कांग्रेस असम समझौते को तीस साल में लागू नहीं कर पाई .अब इसको हम लागू कर रहे हैं .
विपक्ष का आरोप है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के बहाने बीजेपी असम के मुस्लिम नागरिकों के वोट देने का अधिकार छीन रही है जबकि बीजेपी का कहना है कि जिन लोगों का नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नहीं है और वे असम में रह रहे हैं ,वे बंगलादेशी घुसपैठिये हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि असम से बंगलादेशी घुसपैठियों के नाम पर मुसलमानों को देश निकाला देने की उनकी तरकीब से बाकी देश में भी हिन्दू उनकी तरफ आ जाएगा . और बाकी पार्टियों को हिन्दू विरोधी के रूप में साबित करने का मौक़ा मिलेगा. असम एनआरसी मुद्दे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बहुत ही आर पार की बात करना शुरू कर दिया है उन्होंने दावा किया है कि अगर सरकार अपने अड़ियल रुख पर कायम रही तो सिविल वॉर की नौबत आ सकती है . चेतावनी देते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाली ही नहीं अल्पसंख्यकों,हिंदुओं और बिहारियों को भी एनआरसी से बाहर रखा गया है. 40 लाख से ज्यादा लोगो जिन्होंने सत्ताधारी पार्टी के लिए वोट किया था आज उन्हें अपने ही देश में रिफ्यूजी बना दिया गया है. ममता ने कहा, 'वे लोग देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. यह जारी रहा तो देश में खून की नदियां बहेंगी, देश में सिविल वॉर शुरू हो जाएगा.'
इस बात में दो राय नहीं है कि एन आर सी बनाने में गड़बड़ी तो हुयी है . दिल्ली के एक नामी अखबार ने बहुत सारे ऐसे लोगों के नाम और फोटो छापा है जो नैशनल नागरिक रजिस्टर में नाम नहीं पा सके हैं जबकि उनके सगे भाई बहन शामिल कर लिए गए हैं . ऐसे लोगों में बहुत सारे हिन्दुओं के नाम हैं. लिहाजा यह आरोप सही नहीं साबित होता कि नैशनल नागरिक रजिस्टर से केवल मुसलमानों को बाहर रखा गया है क्योंकि ऐसे बहुत सारे हिन्दू हैं जो नैशनल नागरिक रजिस्टर में नाम लिखाने में नाकामयाब रहे हैं . अफसरों की तरफ से यह दलील दी जा रही है कि जो लोग अपना सबूत नहीं जमा कर पाए उनको बाहर कर दिया गया है . यह कोई बात नहीं हुयी . अगर कोई व्यक्ति सबूत नहीं जमा कर पाया तो उसको देश की नागरिकता से बेदखल करना नौकरशाही के तानाशाही रुख का सबूत है और अफसरों की यह नाकामी पूरी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगा देती है . सरकार का यह फ़र्ज़ है कि इतने गंभीर मुद्दे पर अफसरों की नाकामी के चलते असम में अराजकता की स्थिति न पैदा होने दें .
एन आर सी के मुद्दे पर सरकार विदेशनीति के मामले में भी बड़ा ख़तरा मोल ले रही है . आम तौर पर माना जाता है कि असम में बंगलादेशी घुसपैठियों का आतंक है और उनको ही बाहर करने के लिए नैशनल नागरिक रजिस्टर की बात की गयी है लेकिन बांग्लादेश सरकार ने एनआरसी से बाहर किए गए लोगों को बांग्लादेशी मानने से इनकार कर दिया है. बांग्लादेश सरकार ने कहा है कि जिनके नाम एनआरसी से गायब हैं वे भारत में अवैध घुसपैठिये हो सकते हैं लेकिन बांग्लादेश के नागरिक नहीं हैं. इस बयान में एनआरसी मुद्दे को भारत का आंतरिक मामला बताया गया है . बीजेपी के छोटे नेता और ऊंची आवाज़ में बोलकर अपने को मीडिया के सामने लाने की कोशिश करने वाले कुछ नेता मामले को और बिगाड़ रहे हैं . मंगलवार को संसद भवन के परिसर में इस मुद्दे पर खासी गहमा गहमी देखी गए. केंद्र सरकार के एक राज्यमंत्री , अश्विनी कुमार चौबे और कांग्रेस के प्रदीप बंद्योपाध्याय में जोर जोर से बहस होने लगी
एन आर सी के मुद्दे पर सरकार विदेशनीति के मामले में भी बड़ा ख़तरा मोल ले रही है . आम तौर पर माना जाता है कि असम में बंगलादेशी घुसपैठियों का आतंक है और उनको ही बाहर करने के लिए नैशनल नागरिक रजिस्टर की बात की गयी है लेकिन बांग्लादेश सरकार ने एनआरसी से बाहर किए गए लोगों को बांग्लादेशी मानने से इनकार कर दिया है. बांग्लादेश सरकार ने कहा है कि जिनके नाम एनआरसी से गायब हैं वे भारत में अवैध घुसपैठिये हो सकते हैं लेकिन बांग्लादेश के नागरिक नहीं हैं. इस बयान में एनआरसी मुद्दे को भारत का आंतरिक मामला बताया गया है . बीजेपी के छोटे नेता और ऊंची आवाज़ में बोलकर अपने को मीडिया के सामने लाने की कोशिश करने वाले कुछ नेता मामले को और बिगाड़ रहे हैं . मंगलवार को संसद भवन के परिसर में इस मुद्दे पर खासी गहमा गहमी देखी गए. केंद्र सरकार के एक राज्यमंत्री , अश्विनी कुमार चौबे और कांग्रेस के प्रदीप बंद्योपाध्याय में जोर जोर से बहस होने लगी
और मीडया के लोग तमाशा देखने लगे .
नैशनल नागरिक रजिस्टर एक बहुत ही ज़रूरी दस्तावेज़ है और उस पर बहुत सारी जिंदगियों का भविष्य निर्भर रहेगा. इसलिए उसमें किसी हल्की बात को जगह देने की ज़रूरत बिलकुल नहीं है . नैशनल नागरिक रजिस्टर का दूसरा और अंतिम ड्राफ्ट प्रकाशित होने के बाद जो हंगामा शुरू हुआ उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दे दिया है कि इस ड्राफ्ट के आधार पर आगे की कोई कार्यवाही शुरू न की जाए यानी अब उस पर फिलहाल कोई काम नहीं होने जा रहा है .लेकिन ऐसा लगता है कि २०१४ में किये गए चुनावी वायदों को पूरा करने में विफल रही बीजेपी कुछ ऐसे मुद्दे उठाना चाहती है जिससे २०१९ में भी चुनावी जीत हासिल की जा सके. अपनी प्रेस वार्ता में अमित शाह ने जो बातें कहीं उससे साफ़ लगता है कि बीजेपी नैशनल नागरिक रजिस्टर और असम में घुसपैठियों के मुद्दे पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस को तो घेरना चाहती ही है ,पूरे विपक्ष को इसी मुद्दे पर घेरकर राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति लापरवाह बताने का प्रयास भी कर रही है .
इस सारी गहमागहमी के बीच राजीव गांधी की निगरानी में हुए असम समझौते को पर भी एक नज़र डाल लेना उपयोगी होगा . असम समझौते का सबसे ज़रूरी बिंदु था कि असम में विदेशियों की समस्या का हल निकाला जाए. समझौते में लिखा है कि जो लोग असम में १ जनवरी १९६६ के पहले आ गए थे उनको नागरिक मान लिया जाएगा .जो १ जनवरी १९६६ के बाद और २४ मार्च १९७१ के पहले असम में आये उनको दस साल तक वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा .उनके मामलों को फारेनर्स एक्ट,१९४६ और फारेनर्स आर्डर १९६४ के तहत निपटाया जाएगा . समझौते में व्यवस्था है कि जो विदेशी २५ मार्च १९७१ के बाद असम में आये हैं उनकी पहचान लगातार की जाती रहेगी और उनको देश से बाहर निकाले जाने की प्रक्रिया चलती रहेगी . और उनको किसी भी कीमत पर भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा .असम समझौता एक बहुत बड़े आन्दोलन के बाद किया गया था. इसी मुद्दे पर हुए आन्दोलन में प्रफुल महंत और भृगु फुकन जैसे नेता जन्मे, असम गण परिषद् की सरकार बनी और असम की राजनीति हमेशा के लिए एक नई दिशा में चल पडी .
आज जब २०१९ का चुनाव सर पर है तो इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर सभी राजनीतिक पार्टियां चुनावी लाभ की जुगत में हैं . यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या २०१९ के लोकसभा चुनाव के बाद भी इस मुद्दे को इतना ही गरम रखा जाएगा कि किसी भावी चुनाव का इंतजार किया जाएगा .
आज जब २०१९ का चुनाव सर पर है तो इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर सभी राजनीतिक पार्टियां चुनावी लाभ की जुगत में हैं . यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या २०१९ के लोकसभा चुनाव के बाद भी इस मुद्दे को इतना ही गरम रखा जाएगा कि किसी भावी चुनाव का इंतजार किया जाएगा .
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