शेष नारायण सिंह
दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने पुलिस में शिकायत की है कि उनको दिल्ली राज्य के कुछ विधायकों ने मुख्य मंत्री आवास पर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के सामने अपमानित किया और मारा पीटा. बताया गया है कि उनको देर रात को मुख्यमंत्री आवास पर किसी काम से बुलाया गया था और मतभेद होने के बाद विधायकों ने उनके साथ धक्का मुक्की की. आम आदमी पार्टी के नेता और प्रवक्ता विधायकों को निर्दोष बता रहे हैं .आम आदमी पार्टी ने बाकायदा प्रेस कान्फरेंस करके बताया कि सब बीजेपी की चाल है . उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य के मुख्य सचिव झूठ बोल रहे हैं. उनके साथ कोई मारपीट नहीं हुयी . उनकी डाक्टरी जांच में जिन चोटों के सबूत हैं ,वे हेराफेरी करके लिखवाये गए हैं . जब उनसे पूछा जाता है कि जिस अस्पताल में उनकी डाक्टरी जांच हुई थी वह दिल्ली सरकार का सरकारी अस्पताल है तो क्या अपनी सरकार के ही डाक्टरों पर उन लोगों को भरोसा नहीं है .इसका कोई जवाब नहीं आता . वे बताने लगते हैं कि दिल्ली में लोगों को राशन नहीं मिल रहा है और मुख्य सचिव कोई भी काम नहीं कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने यह भी आरोप लगाया है कि मुख्य सचिव के पत्र पर जिन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई हुई है वे दलित और मुसलमान हैं. इस तरह गृह मंत्रालय ने भेदभावपूर्ण तरीके से काम किया है. मुख्य सचिव का कहना है कि उनकी सरकार के तीन साल पूरा होने पर कोई सरकारी विज्ञापन मीडिया में दिया जाना था. उस विज्ञापन में कुछ ऐसी बातें भी थीं जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किये गए आदेश के हिसाब से सही नही थीं .इसलिए सरकार के लिए उस विज्ञापन को जारी करना संभव नहीं था .इसी बात पर कहासुनी हो गयी और उनके अगल बगल बैठे दोनों विधयाकों ने हाथ उठा दिया . राशन आदि के बारे में कोई बात नहीं हुई .ऐसा लगता है कि राशन वाली बात का आविष्कार किया गया है क्योंकि शायद मुख्यमंत्री और उनके साथियों को यह अंदाज़ नहीं रहा होगा कि मामला ऐसा रुख ले लेगा कि मुख्य सचिव बात को पब्लिक डोमेन में ला देंगें . राशन की बात, तो लगता है इस वारदात से हो गए नुक्सान को कंट्रोल करने के लिए ही चलाई गयी है .बहरहाल अब कोशिश यह हो रही है कि पानी को इतना गन्दला कर दिया जाए कि सच्चाई कहीं बहुत नीचे दब जाए और मुख्य सचिव को झूठा साबित करके अपने विधायकों को दण्डित होने से बचा लिया जाए.
इस बीच खबर है कि दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने गृहमंत्रालय के पास दिल्ली सरकार की मौजूदा स्थिति के बारे में रिपोर्ट भी दी है . मुख्य सचिव के साथ हुई वारदात में जो आपराधिक कार्य है उसके बारे में तो दिल्ली पुलिस जांच कर रही है जबकि आई ए एस अधिकारी के साथ हुई मारपीट और अफसरों के काम कर सकने के माहौल से सम्बंधित हालात की जांच गृहमंत्रालय करेगा . उपराज्यपाल की रिपोर्ट में अगर संवैधानिक मशीनरी के ब्रेक डाउन की बात कही गयी होगी तो केंद्र सरकार के पास निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करने के अधिकार हैं . इस बात की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र की सरकार यह क़दम उठा भी सकती है . पूरे देश में जीत रही भारतीय जनता पार्टी के लिए यह बहुत मुश्किल हालत है कि दिल्ली में ही उनकी पार्टी बुरी तरह से हार गयी है . यह बीजेपी के नेताओं की दुखती रग है .. आम आदमी पार्टी को नीचा दिखाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं . अरविन्द केजरीवाल और उनकी सरकार ने उनको मौक़ा भी दे दिया है . जहां तक केंद्र की बीजेपी सरकार का अब तक का रिकार्ड है ,उससे तो बिलकुल साफ़ है कि वह आम आदमी पार्टी को परेशान कारने का कोई भे अवसर छोड़ने वाली नहीं है .
आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की आपसी तकरार में सरकार का एक बहुत ही मज़बूत स्तम्भ दांव पर लग गया है . आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार का आरोप है कि बीजेपी , केंद्र सरकार और नौकरशाही के ज़रिये जनता द्वारा चुनी हुई सरकार पर नकेल कस रही है जबकि बीजेपी के नेता कहते हैं कि अपना काम ठीक से न कर पाने के कारण अरविन्द केजरीवाल अपनी नाकामी को ढंकने के लिए बहाना ढूंढते रहते हैं इसलिए यह सारी कारस्तानी की गयी है . ऐसा लगता है कि इन लोगों को मालूम नहीं है कि अपने मामूली हित साधन के लिए दोनों ही पार्टियां लोकशाही की एक ऐसी संस्था को तबाह कर रहे हैं जिसका विधायिका के फैसलों को लागू करने में बहुत अधिक योगदान है . इनके काम से सिविल सर्विस की अथारिटी कमज़ोर हो रही है . अक्सर देखा गया है कि मुकामी प्रशासन में नेता लोग अफसरों से बहुत नाराज़ रहते हैं लेकिन जब उन्हीं नेताओं के पास सरकार का काम आ जाता है तो उनको सरकार चलाने के लिए जिस मशीनरी की ज़रूरत है ,उससे नाराज़ रहने का विकल्प ख़त्म हो जाता है . उनको सिविल सर्विस को साथ लेकर चलना पड़ता है. जो साथ लेकर चलते हैं वे सफल हो जाते हैं . लेकिन आजकल तो सिविल सर्विस को बिलकुल रीढविहीन बना देने का एक तरह से अभियान ही चल रहा है . हर प्रदेश से ख़बरें आ रही हैं कि नेताओं ने बड़े अफसरों के साथ मारपीट की लेकिन मुख्य मंत्री के कमरे में उनकी मौजूदगी में राज्य के सबसे बड़े प्रशासनिक अधिकारी के पिटने की यह पहली घटना है . अगर सही और कारगर क़दम उठाकर इस नुकसान को तुरंत से ही काबू न कर लिया गया तो इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि आगे भी ऐसी घटनाएं होंगीं .यह जनहित में है और राष्ट्रहित में है कि नौकरशाही को तबाह न किया जाए क्योंकि यह हमारी आज़ादी की लड़ाई के महान कारीगर , सरदार वल्लभ भाई पटेल की विरासत है .
१९४७ में जब देश आज़ाद हुआ तो उस आज़ादी को मज़बूत करने का काम सरदार पटेल ने किया . आज़ादी की लड़ाई में उनका योगदान महात्मा गांधी के बाद सबसे ज़्यादा है . महात्मा गांधी ही वास्तव में आज़ादी की लड़ाई के नेता थे . उनके सारे कार्यक्रमों को संगठित करने का जिम्मा सरदार पटेल का ही रहता था. महात्मा गांधी को सरदार पटेल पर बहुत भरोसा था . यह भरोसा १९२५ के बाद और भी मज़बूत हो गया जब १९२५ में गांधी जी , बेलगाम में हुए कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष बने .उस अधिवेशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष सरदार पटेल थे. सरदार ने जिस तरह से अधिवेशन की व्यवस्था की उसके बाद महात्मा गांधी को पक्का भरोसा हो गया कि सरदार पटेल में अद्भुत संगठन क्षमता है .इसी का नतीजा था कि बाद के गांधी जी के बाम्बे प्रेसिडेंसी में हुए कर कार्यकर्म की व्यवस्था सरदार ने ही की . बाद में उन्होंने देश की एकजुटता के लिए जो काम किया वह दुनिया भर में आदर्श है . आज़ादी को जिस तरह से सरदार पटेल ने समेकित किया वह दुनिया भर में कहीं देखने को नहीं मिलता. लेनिन ,माओ,फिदेल कास्त्रो ,नेल्सन मंडेला आदि ने भी अपनी अपनी आज़ादी के लिए लड़ाई की अगुवाई की थी लेकिन उसको विधिवत समेकित करने काम और लोगों ने किया . भारत की आज़ादी की लड़ाई में सरदार पटेल सबसे अगली कतार में थे लेकिन आज़ादी मिलने के बाद उन्होंने आराम नहीं किया .वे ,गृह मंत्रालय के अलावा सूचना और प्रसारण मंत्रालय का काम भी देखते थे . देशी राज्यों के एकीकरण का काम तो था ही . आज़ादी के साथ साथ ही देश में भारी अराजकता आ गयी थी . हर जगह दंगे हो रहे थे. जंगल राज का माहौल था .ऐसी मुश्किल हालात में सरदार पटेल ने पूरे देश में कानून का राज कायम किया . यह बहुत ही कठिन काम था . इसको सफल बनाने में उन्होंने ब्रिटिश राज की मशीनरी का ही उपयोग किया . उन्होंने आई सी एस अफसरों को भरोसा दिला दिया कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी उनकी सेवाएँ सुरक्षित हैं. बस फर्क यह पड़ा है कि पहले वे शासन करते थे अब सेवा करना होगा . इस तरह सरदार पटेल ने अंग्रेज़ी राज को चलाने के सबसे मज़बूत स्तम्भ को अपना बना लिया . आज की नौकरशाही ,उसी आई सी एस की वारिस है . और यह देश को सुचारु रूप से सञ्चालन के लिए सरदार पटेल की विरासत है . नौकरशाही को जनहित में इस्तेमाल करना आज के नेताओं के लिए बहुत ज़रूरी है लेकिन उनका अपमान करने का अधिकार उनको नहीं है .
जब देश के नेता आजादी के जश्न मना रहे थे सरदार पटेल अपने काम में जुट गए थे. वे बहुत ही दूरदर्शी थे . उन्होने साफ़ देख लिया कि एक मज़बूत सिविल सर्विस बहुत ज़रूरी है . अक्टूबर १९४९ में संविधान सभा के अपने भाषण में सरदार पटेल ने इस बात को जोर देकर कहा भी था . उन्होंने कहा कि ," अगर आपके पास अखिल भारतीय सेवा के अफसरों की ऐसी जमात नहीं है जो बेझिझक अपनी बात को कह सकें तो आप एकजुट भारत नहीं रख पायेंगे ." उन दिनों आई सी एस को स्टील फेम कहा जाता था. आई सी एस को स्टील फ्रेम नाम १९२२ में ब्रिटिश संसद में दिए गए लायड जार्ज के एक भाषण के बाद दिया गया . उन्होंने कहा था ," अगर आप कपडे के ताने बाने से स्टील फ्रेम को अलग कर दें तो वह गिर जाएगा . एक संस्था ऐसी है जिसको हम लुंज पुंज नहीं कर सकते, यह एक ऐसी संस्था है जिसको हम काम करने के उसके विशेषाधिकार से मुक्त नहीं कर सकते . वही संस्था जिसने भारत में ब्रिटिश
राज को बनाया है और वह संस्था है , भारत की सिविल सर्विस ". सरदार पटेल को यह मालूम था और उनकी भी इच्छा थी कि राष्ट्रीय स्तर पर इसी तरह की सर्विस की स्थापना की जाए .. सरदार पटेल ने अपनी यह इच्छा महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को भी बताया था और उनको दोनों ही नेताओं का पूरा समर्थन मिला . इसके बाद ही सरदार पटेल ने आई सी एस को सुरक्षा की गारंटी दी और भारतीय प्रशासनिक सेवा की बुनियाद रखी. सरदार पटेल के इन प्रस्तावों को ज़बरदस्त विरोध का सामना भी करना पड़ा लेकिन सरदार पटेल की सुविचारित नीति का विरोध धीरे धीरे ख़त्म हो गया .सरदार पटेल ने कोई जोर ज़बरदस्ती नहीं की . लोगों को समझा बुझाकर उन्होंने उस वक़्त के आई सी एस को तब तक बचाए रखने की सरकारी गारंटी दे दी जब तक वे अफसर रिटायर नहीं हो जाते .साथ साथ ही अपनी नई आखिल भारतीय सेवा की बुनियाद डाल दी. सरदार पटेल की मृत्यु १९५० में ही हो गयी थी लेकिन तब तक आल इण्डिया सर्विसेज़ एक्ट १९५१ को अंतिम रूप दिया जा चुका था और उसी की बुनियाद पर आज का आई ए एस बनाया गया है . देश को एक रखने में और राजनीतिक इच्छा को कार्यरूप देने में सिविल सर्विस का बहुत ही अधिक योगदान है .इसलिए उसको अपमानित करना या उसके हौसले पस्त करना न देश हित में है और न जनहित में है . दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री को चाहिए कि अब तक उनके विधायकों ने इतनी महत्वपूर्ण संस्था का जो नुक्सान किया उसको जल्द से जल्द संभलाने की कोशिश शुरू कर दें .
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