शेष नारायण सिंह
2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार बार यह दावा किया था कि वे देश को कांग्रेस मुक्त करने की योजना पर काम कर रहे हैं और चुनाव में सबसे पुरानी पार्टी को लगातार हराकर वे देश को कांग्रेस मुक्त कर देंगें . लेकिन आज चार साल बाद लगता है कि मोदी जी भारत को कांग्रेस मुक्त नहीं करवा पायेंगे . राजस्थान और मध्य प्रदेश के संकेत बिलकुल साफ़ हैं . मध्य प्रदेश की विधानसभा के दो उप चुनावों के नतीजे आ गए हैं . यह दोनों ही सीटें कांग्रेस के पास थीं. कांग्रेस ने फिर जीत लीं. एक तरह से इसमें कोई जीत नहीं है लेकिन जब चुनाव प्रचार को देखा जाए तो समझ में आ जाता है कि इन दोनों सीटों पर बीजेपी की हार असाधारण हार है. मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान इन क्षेत्रों में पूरे लाव लश्कर के साथ लगे रहे थे. कई गाँवों में रात भी रुके. लेकिन अजीब इत्तफाक है कि जिन गाँवों में वे रुके, खाना खाया , सोये और लोगों से अपनैती की बात की ,उन सभी गाँवों में बीजेपी हार गयी . बीजेपी के दिल्ली नेतृत्व के भी नुमाइंदे वहां चुनाव प्रचार कर रहे थे. प्रभात झा और नरेंद्र सिंह तोमर इन उपचुनावों की जीत के लिए दिन रात मेहनत कर रहे थे. लेकिन बीजेपी चुनाव हार गयी . इसके पहले भी मध्य प्रदेश में बीजेपी कुछ चुनाव हार चुकी है .यानी मध्य प्रदेश में उनकी हालत बहुत अच्छी नहीं है . यही हाल राजस्थान में भी है . वहां भी लोकसभा के दो उपचुनावों में बीजेपी के उमीदवार उन सीटों पर हार गए जहां २०१४ में बीजेपी के उम्मीदवार जीते थे. पंजाब विधान सभा तो पुरानी हो रही है लेकिन अभी हुए नगर पालिका चुनावों में भी कांग्रेस ने पंजाब में जीत दर्ज की है . पिछले वर्ष हुए गोवा और मणिपुर के चुनावों के बाद बीजेपी ने वहां सरकार बना ली थी . इन दोनों राज्यों में भी चुनाव में कांग्रेस का पलड़ा भारी था .लेकिन विधान सभा चुनाव जीतकर आये नेताओं की बुनियादी राजनीतिक अवसरवादिता को केंद्र में रख कर बीजेपी ने वहां सरकार बनाई यानी उन राज्यों में भी कांग्रेस की मुक्ति की बात को वोट देने वाली जनता ने गंभीरता से नहीं लिया .वहां बड़ी संख्या में लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया .गुजरात विधान सभा के चुनाव के नतीजे भी साफ़ ऐलान कर चुके हैं कि भारत कांग्रेस मुक्त नहीं होने वाला है .
मध्य प्रदेश और राजस्थान के संकेत भी बीजेपी के लिए बिलकुल संतोषजनक नहीं हैं . अभी कुछ महीने के अन्दर इन राज्यों में आम चुनाव होने हैं .ऐसी हालत में यह चुनाव निश्चित रूप से शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व की क्षमता पर सवालिया निशान लगाते हैं .मध्य प्रदेश की मुंगावली और कोलारस विधान सभा सीटों के लिए मध्य प्रदेश के लगभग सभी मंत्री चुनाव प्रचार कर रहे थे. वहां का चुनाव प्रचार देख कर अमेठी के चुनावों की याद ताज़ा हो गयी जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री हुआ करते थे . उन दिनों किसी भी चुनाव में कांग्रेस के बहुत सारे बड़े नेता अमेठी के गाँवों में भटकते देखे जा सकते थे. इस बार मध्य प्रदेश के इन दो उपचुनावों में मध्य प्रदेश के मंत्री तो थे ही, नई दिल्ली की भी ताकत लगी हुई थी. कांग्रेस के लिए भी यह सीटें प्रतिष्ठा की सीट थीं . यह दोनों ही सीटें ,राहुल गांधी के दोस्त और ग्वालियर के राजा के बेटे ज्योतिरादित्य सिधिया के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा हैं . बेजीपी ने योजना बना रखी है कि मध्य प्रदेश में इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमल नाथ को हराना है . इसलिए पार्टी ने इस सेमी फाइनल में सारी ताक़त झोंक दिया था . लेकिन चुनाव हार गए.
इन चुनावों में हार के बाद शिवराज सिंह चौहान के लिए मुख्यमंत्री के रूप में अपने अस्तित्व के औचित्य को सही ठहरा पाना बहुत ही मुश्किल होगा. दिल्ली के नेताओं में चर्चा यह है कि उनके सहारे मध्य प्रदेश विधान सभा के इसी साल होने वाले चुनाव को जीत पाना मुश्किल है . उनके खिलाफ राज्य में ज़बरदस्त माहौल है लेकिन अब उनको बदलना बीजेपी के लिए रानीतिक रूप ठीक नहीं होगा . वैसे भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को संभावित हार का अनुमान लग गया था .उन्होंने इसके संकेत भी दे दिए थे . उन्होंने कुछ दिन पहले ही कह दिया था कि मुंगावली और कोलरस दोनों ही सीटें २०१३ चुनाव में कांग्रेस के पास ही थीं. लेकिन फिर भी उनको अपनी सारी ताकत लगानी पडी क्योंकि उनकी पार्टी के अध्यक्ष किसी भी कीमत पर हार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे. इस चुनाव में बड़े नेताओं की फौज लगा दी गयी थी . सरकारी तंत्र के साथ सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं. कहीं भी पैसा कौड़ी की कमी भी नहीं थी , गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता जी की बहन यशोधरा राजे सिंधिया को बीजेपी ने एक विधान सभा चुनाव में प्रचार कर इंचार्ज बनाया था .उन्होंने कुछ उल जलूल बातें भी कीं जिसके बाद उनको चुनाव आयोग से फटकार भी मिली थी लेकिन कहीं कोई असर नहीं हुआ. जनता ने बीजेपी को नकार दिया .
कांग्रेस में भी सब कुछ ठीक नहीं है . अपनी ही लोकसभा सीट के अंदर पड़ने वाली दो सीटों पर उपचुनाव में जीत के बाद सिंधिया के चेला लोग उनको कांग्रेस की और से मुख्यमंत्री का दावेदार पेश करने की बात करने लगे हैं . कांग्रेस आलाकमान ने अभी किसी को मुख्य मंत्री का दावेदार बनाने की बात को गंभीरता से नहीं लिया है .यह अलग बात है कि उनके समर्थक दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय तक 'अबकी बार सिंधिया सरकार ' की मांग लेकर पंहुच गए थे . अगर इस बात को कांग्रेस आलाकमान गंभीरता से लेता है तो वह वही गलती कर रहा होगा जो अब तक करता आया है . सच्ची बात यह है कि जब से सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को कांग्रेस की बागडोर सौंपने का फैसला किया है तब से कांग्रेस के सभी फैसले राहुल गांधी के मर्जी से ही होते हैं . मनमोहन सिंह की सरकार थी तो राहुल गांधी कई फैसले इस तरह से करते थे जैसे वे चक्रवर्ती सम्राट हों और जिसके कंधे पर हाथ रख देंगे वह नेता हो जाएगा .यह गलती उन्होंने इसी मध्य प्रदेश में २०१३ के चुनावों में भी किया था . .
उस चुनाव में राहुल गांधी की उस राजनीति को भी नकार दिया गया था जिसमें वे किसी से मिलते ही नहीं थे. २०१४ के चुनाव और उसके बाद के चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी ने यह साबित कर दिया है कि अब जनता रियल लोगों से सीधी बातचीत करना चाहती है .इस चुनाव में कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन एक नेता के साथ सही तरीके से चला है लेकिन गुजरात विधान सभा चुनाव के पहले के सभी चुनाव में कांग्रेस अभियान कुप्रबंधन का शिकार हुआ करता था .कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने अपनी पार्टी को बहुत मेहनत से विनाश की तरफ धकेला है . २००८ के विधान सभा चुनाव में राजस्थान में जिस दिन सी पी जोशी एक वोट से हारने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से बाहर हुए थे ,उसी दिन से उन्होने मुख्यमंत्री अशोक गहलौत को औकात बताने के प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू का दिया था . तुर्रा यह कि दिल्ली में उनके आका , राहुल गांधी को कभी पता नहीं लगा कि जोशी जी राजस्थान में कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं . उनके बारे में राहुल गांधी को आखीर तक यह भरोसा रहा कि जोशी जी सब कुछ संभाल लेगें . इसीलिये २०१३ के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उनको राजस्थान का करता धरता बनाकर फिर भेज दिया . जोशी जी ने भी अशोक गहलौत को कभी माफ़ नहीं किया .पूरे चुनाव अभियान के दौरान उनकी हार की माला जपते रहे और कामयाब हुए . यह अलग बात है कि अशोक गहलौत के साथ ही कांग्रेस भी हार गयी . अशोक गहलौत को हराने के काम में स्व सीसराम ओला , गिरिजा व्यास और सचिन पायलट भी लगे हुए थे .सबको सफलता मिली और कांग्रेस वहां तबाह हो गयी. मज़बूत नेता को दरबारी लोग कमज़ोर करते हैं और यह कांग्रेस की राजनीति का संचारी भाव है. दिल्ली का ही उदाहरण लिया जा सकता है . वहां शीला दीक्षित ने अच्छा काम किया था लेकिन वहां भी अजय माकन और जयप्रकाश अग्रवाल लगातार उनके खिलाफ काम करते रहे . अजय माकन तो राहुल गांधी की कृपा से अपना काम चलाते रहे और आखीर में सफल हुए और दिल्ली में कांग्रेस उसी पोजीशन पर पंहुच गयी जिस पर १९५७ के चुनावों में जनसंघ हुआ करती थी. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति मज़बूत थी लेकिन वहां भी अजीत जोगी को पूरा मौक़ा दिया गया कि वे अपने मित्र और मददगार रमन सिंह की ताजपोशी फिर से करवा सकें . बताते हैं की रमन सिंह की मदद करने के चक्कर में जोगी जी ने कांग्रेस को राज्य में धूल चटाने में भारी योगदान किया . उनके सतनामी सम्प्रदाय के लोगों ने तय कर लिया था कि किसी भी सूरत में रमन सिंह को वोट नहीं देना है . ज़ाहिर है यह सारे वोट कांग्रेस को मिलते . रायपुर में सबको मालूम था कि अजीत जोगी के दिमाग का ही कमाल था कि २०१३ के चुनावों में सतनामी सेना बन गयी और उसके आध्यात्मिक गुरु ने हेलीकाप्टर पर सवार होकर सतनामी सम्प्रदाय के सारे वोट ले लिए . इस तरह से जो वोट कांग्रेस को मिलने थे वे कांग्रेस के खिलाफ पड़ गए और हर उस सीट पर जहां सतनामियों की मदद से कांग्रेस को जीतना था ,वहां बीजेपी जीत गयी. मध्य प्रदेश में भी २००८ में जब तत्कालीन कांग्रेस के आला नेत्ता सुरेश पचौरी ने टिकटों की कथित हेराफेरी करके शिवराज सिंह की जीत के लिए माहौल बनाया था तो उनको दरकिनार कर दिया गया था और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को आगे किया गया था. लेकिन बाद में उनको भी दरकिनार कर दिया गया .
इसी तरह अन्य महत्वपूर्ण राज्यों में भी कांग्रेस ने जिस तरह से राजनीतिक प्रबंधन किया है वह उसको कई साल से तबाही की तरफ ले जा रहा है .उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कभी तूती बोलती थी. सबसे ज़्यादा सांसद लोकसभा में भेजने वाले राज्य में कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन का ज़िम्मा मधुसूदन मिस्त्री नाम के एक अजीबोगरीब व्यक्ति को दे दिया गया था . राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री बना दिए गए थे जिनका अपने जिले में भी कोई प्रभाव नहीं था . १९८० से विधान सभा का हर चुनाव जीत रहे राज्य कांग्रेस के बड़े नेता और एक वर्ग के पत्रकारों के चहेते प्रमोद तिवारी को कोई भूमिका नहीं दी गयी तो उन्होने मुलायम सिंह यादव की टीम की तरफ क़दम बढ़ाना शुरू कर दिया . आज वे मुलायम सिंह यादव की कृपा से राज्य सभा के सदस्य हैं .नतीजा यह है कि आज उत्तर प्रदेश में जो कांग्रेस शून्य की स्थिति में पंहुच गयी है .राज्य में जो कांग्रेसी बच गए हैं वे भारी कन्फ्यूज़न के शिकार हैं .
मुराद यह है कि कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस आज ऐसी स्थिति में पंहुच गयी है कि बीजेपी के एक प्रवक्ता ने उसको केवल पंजाब तक सीमित पार्टी बता दिया है . लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान से आ रहे संकेत कांग्रेस को उसकी खोई प्रतिष्ठा दिलाने की दिशा में एक क़दम हो सकते हैं शर्त यह है कि उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राहुल गांधी को वे गलतियाँ दुहराने से बचना पडेगा जो वे अब तक करते रहे हैं .
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