शेष नारायण सिंह
पाकिस्तान फिर मुसीबत में है . संयुक्त राष्ट्र में जब उस पर दबाव पड़ता है तो सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य चीन उसको बचा लेता है और सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के खिलाफ कभी भी कोई प्रस्ताव पास नहीं हो पता . लेकिन इस बार अमरीका ने दूसरा रास्ता अपनाया है जिससे पाकिस्तान को आतंक को पैसा देने वाले मुल्क के रूप में घोषित करने की योजना है . अमरीका ,इंग्लैण्ड, जर्मनी और फ्रांस पाकिस्तान को घेरने की योजना पर काम कर रहे हैं . इस बार दुनिया के आर्थिक रूप से सबसे ताक़तवर देशों के वैश्विक निकाय फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में एक प्रस्ताव गया है जिसके बाद पाकिस्तान को आतंक का कारोबार करने वालों के लिए धन का इंतज़ाम करने वाला देश बनाया जा सकता है . फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स बहुत ही प्रभावशाली संगठन है .इसके सदस्यों में अमरीका, फ्रांस,जर्मनी, इंग्लैण्ड, जापान, दक्षिण कोरिया, और पश्चिमी यूरोप के विकसित देशों के अलावा भारत और चीन भी शामिल हैं . पाकिस्तान के सबसे बड़े शुभचिंतक साउदी अरब भी इसमें आब्ज़र्वर के रूप में शामिल हैं. अगर इस सूची में नाम आ गया तो पाकिस्तान को दुनिया के किसी भी संपन्न देश से कोई भी कारोबार करना लगभग असंभव हो जाएगा .
अमरीका और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने पकिस्तान को इसी मुसीबत में डालने का मंसूबा बना लिया है . पाकिस्तान सरकार में पूरी तरह से हडकंप मचा हुआ है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के वित्त और आर्थिक मामलों के सलाहकार मिफताह इस्माइल ने अफ़सोस जताया है कि अमरीका और इंग्लैण्ड ने पाकिस्तान का नाम आतंकी धन के प्रायोजक के रूप में नामज़द करने की पेशकश की थी. उन्होने दावा किया कि इस काम में भारत का भी हाथ है. इस्माइल ने अपने देश के अखबारों को बताया कि अव्वल तो अमरीका से प्रार्थना की जायेगी कि वह पाकिस्तान का नाम वापस ले ले लेकिन अगर वापस नहीं लेता तो कोशिश की जायेगी कि आंतक की लिस्ट में नाम होने के बावजूद अमरीका इस को लागू न करे . फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की पांच दिवसीय बैठक इसी अठारह फरवरी को पेरिस में हो रही है .इमकान है कि पाकिस्तान के खिलाफ प्रस्ताव उसी बैठक में पारित हो जाएगा .हालांकि इस संगठन के पास ऐसे अधिकार नहीं है कि किसी मुल्क पर प्रतिबन्ध लगा सके लेकिन एक बार निगरानी सूची में नाम आ जाने के बाद कोई भी देश पाकिस्तान से कोई भी आर्थिक सम्बन्ध बनाने के पहले सौ बार सोचेगा . इसके बाद पाकिस्तान के आयात और निर्यात पर बहुत उलटा असर पडेगा . अमरीका पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान को चेता रहा है कि आतंकवादी संगठनों पर लगाम लगाए लेकिन पाकिस्तान कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है . अमरीका का आरोप है कि पाकिस्तान पर जब दबाव बढ़ाया जाता है तो वह कुछ मामूली से आतंकवादियों को पकड़ लेता है . आरोप यह भी है कि पाकिस्तान हाफ़िज़ सईद जैसे खतरनाक आतंकवादियों की सेवाओं को भारत के खिलाफ इस्तेमाल भी करता है . जानकार बताते हैं कि अमरीका की इसी सख्ती के चलते पकिस्तान ने हाफ़िज़ सईद के आतंकी संगठन जमातुद्दावा पर पाबंदी लगाई है . हालांकि यह भी सच है कि वह दिखावे के लिए कई बार इस तरह के काम कर चुका है . पाकिस्तान को पता है कि फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स की लिस्ट में नाम आने का क्या मतलब है क्योंकि वह छः साल पहले भी इस लिस्ट में डाला जा चुका है . करीब तीन साल पहले उसको लिस्ट से हटाकर एक मौक़ा दिया गया था लेकिन पाकिस्तान फिर फिसड्डी साबित हुआ और इस बात की पूरी संभावना है कि इसी माह पाकिस्तान को दोबारा निगरानी सूची में डाल दिया जाएगा.
अमरीका इस बार गंभीर है कि पकिस्तान इमानदारी से हाफ़िज़ सईद, पाकिस्तानी तालिबान और हक्कानी जैसे खूंखार संगठनों पर लगाम लगाए . दिखावे से काम नहीं चलने वाला है .अमरीका और यूरोपीय देशों की ताज़ा पहल से पाकिस्तानी सरकार सकते में है . एफ ए टी एफ की प्रस्तावित बैठक के नतीजों से घबडाए हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री,जो अभी एक हफ्ते पहले तक कहते फिर रहे थे कि “ हाफ़िज़ सईद ‘ साहब ‘ के खिलाफ पाकिस्तान में कोई अभियोग नहीं चल रहा है और न ही कोई आरोप है” ,अब वही प्रधानमंत्री जी आर्डिनेंस के ज़रिये हडबडी में कार्रवाई कर रहे हैं . पाकिस्तानी राष्ट्रपति मामून हुसैन को उन्होंने सलाह देकर एक आर्डिनेंस जारी करवाया है जिसके तहत पकिस्तान के एंटी टेररिज्म एक्ट १९९७ में बदलाव लाया गया है . इसी बदलाव का नतीजा है कि अब हाफ़िज़ सईद के जमातुद्दावा सहित फलाह-ए-ए इंसानियत फाउंडेशन ,अल अख्तर और अल रशीद ट्रस्ट का भी बहिष्कार कर दिया जाएगा .यह सारे संगठन संयुक्त राष्ट्र की आतंकी लिस्ट में मौजूद हैं लेकिन पाकिस्तान आतंक को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की अपनी भारत और अफगानिस्तान विरोधी नीति के कारण इनको इस्तेमाल करता रहा है . पाकिस्तान में घबडाहट का आलम यह है कि पाकिस्तानी गृहमंत्री अहसान इक़बाल भी मैदान में आ गए और उन्होंने अमरीका को ही चेतावनी दे दी कि अगर अमरीका अपने प्रस्ताव को आगे बढाता है तो दोनों देशों के आपसी संबंधों पर बहुत उलटा असर पडेगा . उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तानी लोग बहुत ही गौरवशाली लोग हैं और उनको अगर अमरीका अर्दब में लेने की कोशिश करेगा तो उसको ही नुक्सान होगा . ज़ाहिर है अमरीका ने इस बडबोलेपन का बहुत बुरा माना और विदेश विभाग के एक अफसर के बयान के ज़रिये पाकिस्तानी गृह मंत्री को उनकी और उनके देश की औकात बता दी गयी .
पकिस्तान में आजकल यह कहने फैशन चल पड़ा है कि पाकिस्तान खुद ही आतंकवाद का शिकार है और यह भी कि दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जिसने आतंकवाद से लड़ने के लिए उतनी कुर्बानियां की हों जितनी कि पाकिस्तान ने की है . अहसान इकबाल कहते हैं कि आतंकवाद से लड़ाई में पाकिस्तान के करीब साठ हज़ार लोग मारे गए हैं और करीब पचीस अरब अमरीकी डालर का नुक्सान हुआ है . पाकिस्तान को यह भी मुगालता है कि वह अमरीका का बराबर का पार्टनर है और उसको उसी तरह से सम्मान मिलना चाहिए . लेकिन अहसान इकबाल का यह धुप्पल चलने वाला नहीं है क्योंकि पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया को मालूम है कि इस इलाके में आतंकवाद को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का काम पाकिस्तान में ही शुरू हुआ था . बंटवारे के बाद देश के अन्दर ही हिन्दू आबादी को धर्म परिवर्तन करने के लिए आतंक का इस्तेमाल हुआ , अहमदिया मुसलमानों को देश निकाला देने के लिए भी आतंक का इस्तेमाल हुआ था. १९६५ में तत्कालीन पाकिस्तानी तानशाह ,जनरल अय्यूब ने पाकिस्तानी सेना की एक टुकड़ी को लोकल लोगों जैसे कपडे पहनाकर कश्मीर में भेज दिया था . उनकी मंशा थी कि कश्मीर के स्थानीय लोगों को भड़काकर भारत के खिलाफ बगावत करा दी जायेगी और वे कश्मीर पर कब्जा कर लेगें . इस कारनामे को उन्होंने आपरेशन जिब्राल्टर नाम दिया था लेकिन उनके सपने खाक में मिल गए क्योंकि कश्मीरी जनता ने घुसपैठियों को पकड कर खूब पिटाई की थी. उसके बाद ही १९६५ की लड़ाई शुरू हुई थी. उनके बाद हुए एक अन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने ऐलानियाँ कहा कि वे भारत के खिलाफ आमने सामने की लड़ाई में नहीं टिक पायेंगे लिहाज़ा उन्होंने कश्मीर और पंजाब में अपने आदमी भेजकर आतंक को सरकारी नीति के रूप में लागू किया था . आजतक वही चल रहा है . आज तो आलम है कि दुनिया में कहीं भी कोई आतंकवादी हमला होता है उसकी जड़ें पाकिस्तान में ही मिलती हैं . इसलिए पाकिस्तान सरकार की अपने आपको आतंकवाद से पीड़ित राष्ट्र बताने की कोशिश उसको कोई भी लाभ नहीं पंहुचाने वाली है .लोग हँसते हैं .
फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स की अट्ठारह फरवरी को होने वाली बैठक में पाकिस्तान को निगरानी सूची में रखा जाना बिलकुल तय लग रहा है . शायद इसीलिए पाकिस्तान सरकार की तरफ से हाफ़िज़ सईद के खिलाफ दिखावे के लिए ज़बरदस्त अभियान चल रहा है .उसके आतंकी ठिकाने , मुरीदके, को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है . लेकिन लगता है कि अमरीकी और यूरोपीय खुफिया एजेंसियों को सब कुछ पता है . उनके रुख में अभी बदलाव की खबर नहीं है . हाफ़िज़ सईद वास्तव में अमरीका का भी गुनहगार है क्योंकि जिस मुंबई हमले का वह सरगना है उसमें कई अमरीकी नागरिक भी मारे गए थे इसीलिये वह अमरीकी अदालतों की नज़र में भगोड़ा है और उसको पकड़कर लाने वालों के लिए कई करोड़ रूपये के इनाम की घोषणा अमरीकी सरकार ने कर रखी है . ज़ाहिर है अमरीका उसको अपने यहाँ ले जाकर उसपर मुक़दमा चलाना चाहता है . पाकिस्तान में सबको मालूम है कि सरकार की हिम्मत नहीं है कि उसको अमरीका के हवाले करे क्योंकि वह पाकिस्तानी फौज की पैदावार है और अगर सिविलियन सरकार ने ऐसी कोई कोशिश की तो फौज बगावत कर सकती है .
हाफ़िज़ सईद के अलावा और भी आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में हैं . हक्कानी गैंग और पाकिस्तानी तालिबान भी वहीं हैं .पाकिस्तान को फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स की निगरानी लिस्ट से बचने के लिए इन सबके खिलाफ भी कार्रवाई करनी पड़ेगी . अजीब बात है कि जिन आतंकवादी गिरोहों के कारण पाकिस्तान ने कश्मीर और अफगानिस्तान में युद्ध जैसी स्थिति बना रखा है उनको ही बंद करने का दबाव उस पर पड़ रहा है . अगर इन गिरोहों को पाकिस्तान ने अपनी ज़मीन पर कमज़ोर कर दिया तो वह खुद ही कमज़ोर हो जाएगा . यह बात लगभग तय है कि अगर लश्कर-ए-तय्यबा ,हिजबुल मुजाहिदीन , हरकतुल मुजाहिदीन जैसे गिरोह निष्क्रिय हो गए तो कश्मीर में फिर से अमन चैन स्थापित हो जाएगा और इन गिरोहों के लिए काम करने वाले भाड़े के सैनिक जो अपने को हुर्रियत कान्फरेंस कहते हैं ,किसी काम के नहीं रह जायेगें . पाकिस्तान के डर से भारत के खिलाफ कुछ न कुछ बोलती रहने वाली मुख्यमंन्त्री जी के ऊपर भी सही असर पडेगा और वे बिना आतंकवादियों के डर के काम कर सकेंगीं . इस तरह से हम देखते हैं कि फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स के पाकिस्तानी सरकार को निगरानी सूची में रखने का फायदा पूरी दुनिया में आतंक को कमज़ोर करने की दिशा में तो होगा ही. भारत को भी होगा .
फिनांशल ऐक्शन टास्क फोर्स ऐसा संगठन है जो आतंकवाद और काले धन को सफ़ेद करने के अपराध को रोकने की दिशा में बहुत बड़ी पहल कर रहा है. यह ३७ सरकारों और यूरोपीय संघ जैसी संस्थाओं का एक मंच है . इसकी स्थापना १९८९ में हुई थी .इसके सुझावों के आधार पर ही विश्व के देशों में आतंकवाद और अन्य मानवता विरोधी कार्यों के लिए धन मुहैया कराने वालों के खिलाफ कानून बनाये जाते हैं . पाकिस्तान की हालत सांप-छछूंदर की हो गयी है क्योंकि पाकिस्तान ने अगर सहयोग किया और आतंकवादी धन पर लगाम लगाई तो उसकी फौज द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे आतंकवादी बेकार हो जायेंगे और उसकी मर्जी से कश्मीर में वारदात नहीं कर पायेगें . ज़ाहिर है इससे पाकिस्तान की विदेश नीति के उद्देश्यों को घाटा होगा . और अगर सहयोग न किया तो अन्तर राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी देश उसके साथ व्यापार नहीं करेगा . वैसे यह भी सच है कि पाकिस्तान को आज नहीं तो कल आतंक को सरकारी नीति बनाने के अपने रुख बाज आना ही पडेगा ,वरना उसकी पहले से ही खस्ताहाल उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो जायेगी .
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