Saturday, July 8, 2017

अमरीका अगर चूका तो जर्मनी विश्व नेता बन सकता है


शेष नारायण सिंह 

इजरायल की ऐतिहासिक यात्रा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी २० के शिखर सम्मलेन में भाग लेने  हैम्बर्ग  पंहुंच गए हैं. दुनिया के औद्यिगिक देशों और आर्थिक  क्षेत्र की उभरती हुयी शक्तियों का यह क्लब मूल रूप से आर्थिक प्रशासन के एजेंडा के साथ स्थापित किया है . लेकिन अन्य मुद्दे  भी इस का विषयवस्तु समय की तात्कालिक आवश्यकता के हिसाब से  बन जाते हैं .इसके सदस्यों में अमरीका तो है ही उसके अलावा  भारत ,चीन, रूस , अर्जेंटीना , आस्ट्रेलिया, ब्राजील, ब्रिटेन, कनाडा , फ्रांस , जर्मनी , इंडोनेशिया ,इटली, जापान ,मेक्सिको,साउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया और तुर्की हैं . यूरोपियन यूनियन को भी एक राष्ट्र सदस्य का दर्ज़ा दिया  गया है . जी २० में दुनिया  की आबादी का करीब दो तिहाई हिस्सा शामिल है और विश्व की अर्थव्यवस्था का ८० प्रतिशत इसके सदस्य देशों  में केन्द्रित है . १९९९ में शुरू हुए इस संगठन की ताक़त बहुत अधिक मानी जाती है . २००८ में पहली बार सदस्य देशों के नेताओं का शिखर सम्मलेन अमरीका की राजधानी वाशिंटन डी सी में हुआ था तब से अलग अलग देशों में यह सम्मलेन होता  रहा  है . जर्मनी में हो रहा मौजूदा सम्मलेन बहुत ही महत्वपूर्ण इस लिहाज़ से भी है कि मई में इटली में हुए जी ७ सम्मलेन के दौरान अमरीकी  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते से अपने आपको अलग कर लिया था. उस सम्मलेन में उन्होंने भारत और चीन की आलोचना करके एक नया विवाद खड़ा कर दिया  था  जबकि जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने उनसे सार्वजनिक रूप से असहमति जताई थी.
.जी २० सम्मेलन में भी जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और अमरीकी राष्ट्रपति  डोनाल्ड ट्रंप के बीच बड़े मतभेद की पूरी सम्भावना है क्योंकि जर्मनी ने साफ संकेत दे दिया है कि  वह जलवायु परिवर्तन,मुक्त व्यापार और  शरणार्थियों की समस्या को मुद्दा  बाने के लिए प्रतिबद्ध है जबकि अमरीका के नए नेतृत्व ने कह दिया है कि  वह अमरीकी तात्कालिक हित से पर ही ध्यान देने वाला है . वैश्विक मद्दे फिलहाल अमरीकी राष्ट्रपति की  प्राथमिकता सूची से बाहर  हैं. इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस सम्मेलन में अमरीका अलग थलग पड़  सकता है जबकि बाकी देशों में एकता के मज़बूत होने की सम्भावना है . अमरीका का राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप पहली बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से आमने सामने मिल रहे हैं . यह देखना दिलचस्प होगा कि बराक ओबामा जैसे सुलझे हुए राष्ट्रपति के बाद नए अमरिकी राष्ट्रपति का रूसी नेता के साथ आचरण किस तरह से दुनिया के सामने आता  है. अभी पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र के नए महासचिव अंतोनियो गुतरेस ने अमरीकी प्रशासन के नेताओं को चेतावनी दे दी थी कि अगर अमरीका अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की समस्याओं में उपयुक्त रूचि नहीं दिखाता तो इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह विश्व के नेता के रूप  अपना मुकाम गंवा देगा . कूटनीतिक   हलकों में माना जा रहा है कि इस सम्मलेन के बाद एंजेला मर्केल का विश्व नेता के रूप में क़द बढ़ने वाला है क्योंकि शिखर सम्मलेन के  कुछ दिन पहले ही वे दो उभरती हुयी मज़बूत ताक़तों के नेताओं ,  भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग से वे जर्मनी में मिल चुकी हैं और जी ७ के वक़्त अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत और चीन का नाम लेकर इन देशों को  जो तकलीफ दी थी उसपर मरहम लगाने  की अपनी मंशा का इज़हार भी कर दिया है . हालांकि यह सच है कि कार्बन के उत्सर्जन के मामले में चीन का नंबर एक है और भारत भी तीसरे नंबर पर  है लेकिन इनमे से किसी को भी डोनाल्ड ट्रंप हडका कर लाइन पर लाने की हैसियत नहीं रखते . ऐसी हालत में ट्रंप की अलोकप्रियता के मद्दे नज़र एंजेला मर्केल की पोजीशन बहुत ही मज़बूत है और पेरिस समझौते के  हैम्बर्ग में स्थाई भाव बन जाने से अमरीकी नेतृत्व शुरू से ही  रक्षात्मक खेल खेलने के लिए अभिशप्त है .

ऐसा लगता है कि ट्रंप के राष्ट्रपति काल के दौरान अमरीका लिबरल स्पेस को रोज़ ही गँवा रहा है और यूरोप के नेता यूरोपीय गौरव को स्थापित करने के लिए तैयार लग रहे हैं . पेरिस समझौते से अमरीका के अलग होने  की जी ७  शिखर बैठक में उठाई गई बात को यूरोप में बहुत ही नाराजगी से लिया गया है .  आज के माहौल में यूरोप में लिबरल स्पेस में एंजेला मेकेल सबसे बड़ी  नेता हैं . जी २० के इस शिखर सम्मेलन में जर्मनी का उद्देश्य   है  कि वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था को सबके हित में इस्तेमाल किया जाय. इस सम्मलेन में विकास को प्रभावी और सम्भव बनाने के तरीकों पर  गंभीर चर्चा होगी. अफ्रीका की गरीबी को खत्म करने के लिए किये जाने वाले कार्यों से जो अवसर उपलब्ध  हैं,  उन  पर यूरोपीय देशों की नजर  है . महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और दुनिया भर में बढ़ रही बेकार नौजवानों की फौज के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करना बड़ी प्राथमिकता है . बुनियादी ढाँचे के सुधार में पूंजी निवेश का बहुत ही संजीदगी से  यूरोप के देश उठा रहे हैं शिक्षा और कौशल विकास में बड़े लक्ष्य निर्धारित करना और उनको हासिल   करने की दिशा में  भी अहम चर्चा होगी .
हालांकि जर्मनी के नेता  इस बात से बार बार इनकार कर रहे हैं कि जर्मन नेता  अमरीकी  आधिपत्य  को चुनौती देना चाहती हैं लेकिन कूटनीति की दुनिया में इन बयानों का  शाब्दिक अर्थ न लेने की परम्परा है  और आने वाले समय में ही तय होगा कि ट्रंप के आने के बाद अमरीका की हैसियत में जो कमी आना शुरू हुयी थी वह और कहाँ तक गिरती है. जी२० का सम्मलेन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के गतिशास्त्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है . हैम्बर्ग के लिए जिस  तरह का एजेंडा तय करने में जर्मनी ने सफलता पाई है वह उनको पूंजीवादी दुनिया का नेतृत्व   करने के बड़े अवसर दे रहा है . अगर अमरीका विश्व नेता के अपने मुकाम से खिसकता है तो निश्चित रूप से जर्मनी ही स्वाभाविक नेता बनेगा . यह संकेत साफ दिख रहा है .
जलवायु परिवर्तन के अलावा मुक्त व्यापार भी इस सम्मेलन का बड़ा मुद्दा है .एंजेला मर्केल ने दावा किया है कि हैम्बर्ग में कोशिश की जायेगी कि मुक्त व्यापार के क्षेत्र में विस्तार से चर्चा हो और अधिकतम देशों के अधिकतम  हित में कोई फैसला लिया जाए. उन्होंने साफ़ कहा कि नए अमरीकी प्रसाशन के रवैय्ये के चलते यह बहुत कठिन काम होगा लेकिन जर्मनी  की तरफ से कोशिश पूरी की जाएगी .
 ऐसा लगता है कि अमरीका से रिश्तों  के बारे में पूंजीवादी देशों में बड़े पैमाने पर विचार विमर्श चल रहा है . पिछले अस्सी वर्षों से अमरीका और पूंजीवादी यूरोप के हित आपस में जुड़े हुए थे लेकिन अब उनकी फिर से व्याख्या की जा रही है . यूरोप के बाहर भी अमरीकी राष्ट्रपति की क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा की प्रवृत्ति अमरीका को  अलग थलग करने में भूमिका अदा कर रही  है . अमरीका का हर दृष्टि से सबसे करीबी देश  कनाडा भी अब नए अमरीकी नेतृत्व से खिंचता दिख रहा है . अभी पिछले हफ्ते वहां की संसद में विदेशमंत्री  क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने बयान दिया कि अमरीका जिस तरह से खुद ही अपने विश्व नेता के कद को कम करने पर आमादा  है उस से तो साफ़ लगता है कि हमको ( कनाडा ) भी अपना स्पष्ट और संप्रभुता का रास्ता खुद ही तय करना होगा
. भारत का जी२० देशों में  बहुत महत्व  है . इसकी विकासमान अर्थव्यवस्था को दुनिया विकसित देशों की राजधानियों में पूंजीनिवेश के अच्छे मुकाम के रूप में देखा जाता है .पिछले साल सितम्बर  के शिखर सम्मलेन में भारत ने चीन को लगभग हर मुद्दे पर  समर्थन दिया था और यह उम्मीद  जताई थी कि चीन  भी उसी तरह से भारत को महत्व देगा लेकिन पिछले दस महीने की घटनाओं को देखा जाए तो  स्पष्ट हो जाएगा कि भारत ने भविष्य का जो  भी आकलन किया  था , वह  गड़बड़ा गया है . चीन का रुख भारत के प्रति दोस्ताना नहीं है. जबकि भारत के प्रधानमंत्री ने पूरी कोशिश की . चीन के सबसे बड़े नेता को भारत बुलाया, बहुत ही गर्मजोशी से उनका अतिथि सत्कार किया , हर तरह के व्यापारिक संबंधों को विकसित करने की कोशिश की लेकिन चीन की तरफ से वह गर्मजोशी देखने को नहीं मिली . बल्कि उलटा ही काम हो रहा है . पाकिस्तान स्थित आतंकवादी मसूद अजहर को जब संयुक्त राष्ट्र में अंतर राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने का अवसर आया तो चीन ने वीटो कर दिया . भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कैलाश मानसरोवर यात्रा को बहुत ही असभ्य तरीके  से बंद करवाया, सिक्किम और भूटान के मुद्दों को लगभग रोज़ ही उठा रहा है. हिन्द महासागर में अपने विमान वाहक जहाज़ों को स्थापित करके  चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत चाहे जितना अपनापन दिखाए उसकी  कूटनीति उसके राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर ही  की जायेगी ,उसमें  व्यक्तिगत संबंधों की कोई भूमिका नहीं होती . इस हालत में भारत को हैम्बर्ग में अपने एजेंडे को नए   सिरे से तैयार करना पड़ा है ..जी २० के इस सम्मलेन में भारत की नई प्राथमिकता बिल्कुल स्पष्ट है . भारत चाहता है कि  बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश हो , सबके विकास के अवसर उपलब्ध कराये जाएँ, ऊर्जा कके विकास में बड़ा कार्यक्रम चले , आतंकवाद और काले धन पर लगाम लगाई जा सके. भारतीय टैक्स व्यवस्था में भारी सुधार की घोषणा करने के बाद भारत में विदेशी  निवेश के अवसर बढे हैं. उद्योग लगाने में अब यहाँ ज्यादा सहूलियत रहेगी , ऐसा भारत का दावा है लेकिन देश में जिस तरह से कानून को बार बार हाथ में  लेने और राज्य सरकारों की अपराधियों को न पकड़ पाने की घटनाएं दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गयीं हैं  , वह  चिंता का विषय है . गौरक्षा के नाम पर देश में फ़ैल रहे आतंक से  बाकी दुनिया में देश की छवि कोई बहुत  अच्छी नहीं बन रही  है . ज़ाहिर है  प्रधानमंत्री सारी दिक्क़तों को दरकिनार कर देश की एक बेहतरीन छवि पेश करने की कोशिश  करेंगें 

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