Saturday, July 29, 2017

भ्रष्टाचार किसी भी नेता का अधिकार नहीं है


शेष नारायण सिंह

बंगलूरू की एक जेल में भ्रष्टाचार के आरोप  में सज़ा काट रही अन्नाद्रमुक  नेता वीके शशिकला को जेल में बहुत ही संपन्न जीवन जीने का अवसर मिल रहा है . जेल विभाग की एक बड़ी अफसर ने आरोप लगाया है कि जेल में शशिकला को  जेल मैनुअल के खिलाफ जाकर सुविधाएं दी जा रही हैं . अफसर का  आरोप है कि सुविधा पाने के लिए जेल विभाग के महानिदेशक को शशिकला ने एक करोड़ रूपया दिया है और बाकी कर्मचारियों ने भी एक करोड़ रूपये में बाँट लिया है . आरोप बहुत ही गंभीर  है लेकिन महानिदेशक महोदय  का कहना  है कि कि वो जांच के लिए तैयार हैं. हालांकि उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. उनको मालूम है कि जब जांच होगी तो कोई भी आरोप सिद्ध नहीं होगा क्योंकि जिस तरह से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में जेल में बंद अन्नाद्रमुक नेता  शशिकला भ्रष्टाचार के रास्ते ही सज़ा को आरामदेह बनाने में सफल रही हैं , उसी तरह से जेल महकमे के महानिदेशक साहेब भी अपने खिलाफ जांच करने वाले अधिकारियों को संतुष्ट करने में सफल हो  जायेगें . 
देश की जेलों सज़ा काट रहे लोगों को आरामदेह ज़िंदगी बिताने के लिए जेल के अन्दर बहुत  खर्च करना  पड़ता है और वह सारा खर्च रिश्वत के रास्ते ही अफसरों  की जेब तक पंहुचता  है . वी के शशिकला के बहाने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पूरे देश में चर्चा फिर शुरू हो गयी है लेकिन यह चर्चा ही रहेगी  क्योंकि भ्रष्टाचार के नियंताओं के हाथ बहुत बड़े हैं . बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के खिलाफ आजकल भ्रष्टाचार के कारनामे मीडिया के फोकस में हैं . उनके बेटे बेटियों की  अरबों की संपत्ति , राजनीतिक चर्चा की मुख्य धारा में आ गयी है .  सवाल उठ रहे हैं कि  इनके पास यह संपत्ति आयी किस तरीके से लेकिन लालू प्रसाद यादव विपक्ष की राजनीतिक एकता के नाम  पर मुद्दे को भटकाने की कोशिश  में लगे हुए हैं.  उत्तर प्रदेश में भी आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ  मुहिम चल रही है लेकिन भ्रष्टाचार के मामलों में कहीं कोई ढील नहीं है . आजकल नोयडा में एक कालोनी में आस पास की झुग्गियों में रहने वाले लोगों की तरफ से पत्थरबाजी की घटना ख़बरों में  है . नोयडा जैसे महंगी ज़मीन  वाले इलाकों में भूमाफिया वाले  , इलाके के प्रशासन और पुलिस वालों की मदद से सरकारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा  करते हैं . सरकारी ज़मीन पर बहुत ही गरीब लोगों को गैरकानूनी तरीके  से बसाते हैं. ज़ाहिर है इन लोगों के वोट बहुत ज्यादा होते हैं और राजनीतिक नेता वोट की लालच में अपने मुकामी लोगों के ज़रिये इन झुग्गियों को संरक्षण देते हैं . सरकारी जुगाड़ से इन झुग्गियों को  मंजूरी दिला दी जाती है जिसमें नेता, अफसर और अपराधी शामिल होते हैं . इसके बाद जो भूमाफिया इस ज़मीन का करता धरता होता है वह इस मान्यता प्राप्त ज़मीन को बहुत ही महंगे  दामों में बेचता है और वहां रहने वाले झुग्गी वालों को कुछ दे लेकर किसी और सरकारी ज़मीन पर बसा देता  है . नोयडा की मौजूदा घटना इसी बड़े   साजिशतंत्र का हिस्सा है . दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार का सरकारी ज़मीन से गैरकानूनी क़ब्ज़ा हटाने  का  बड़ा अभियान चल रहा  है और उस सबके बीच में इतना बड़ा घोटाला सामने आ  गया है . बताते है कि जब कानून व्यवस्था की हालत  को सामान्य बनाने  की कोशिश कर रहे नोयडा और जिले के आला अधिकारियों का ध्यान सरकारी ज़मीन पर अनधिकृत कब्जे की ओर दिलाया गया तो बड़े हाकिम लोग नाराज़ हो गए और कहा कि एक अलग मुद्दा उठाने की ज़रुरत नहीं  है . जब उनको ध्यान दिलाया गया कि मुख्य मंत्री जी के आदेश से राज्य में सरकारी ज़मीन को मुक्त कराने  का अभियान चल रहा है तो अफसरों ने कहा कानून-व्यवस्था प्राथमिकता है और अन्य किसी भी विषय पर बात नहीं की जायेगी .
नोयडा की घटना तो केवल एक घटना है . पूरे देश में इसी पैटर्न पर भ्रष्टाचार चल रहा  है , कई राज्यों में मुख्यमंत्री निजी तौर पर बहुत ईमानदार  हैं लेकिन भ्रष्टाचार का तंत्र चलाने वाले अधिकारियों का अपना एक सिस्टम है और उसको कोई भी नेता आम तौर पर तोड़ नहीं सकता . उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री के बारे में भी यही कहा जाता है . व्यक्तिगत रूप से उनकी इमानदारी  को सभी स्वीकार करते हैं और उनका उदाहरण दिया जाता है . लेकिन राज्य के भ्रष्टाचार को रोकने में वे नाकामयाब रहे हैं. सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार   कम करने के दावे के साथ सरकार बनी थी लेकिन आजकल भ्रष्टाचार बढ़ा है .
यही हाल केंद्र में भी है .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने २००१ में गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी . उनके खिलाफ किसी तरह के आर्थिक भ्रष्टाचार की शिकायत उनके विरोधी भी नहीं करते लेकिन क्या गुजरात में या अब  केंद्र में आर्थिक भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है .  भ्रष्टाचार है और वह प्रधानमंत्री को मालूम है इसीलिये उन्होंने भ्रष्टाचार की जांच करने वाले सरकारी विभागों को हिदायत दी है कि ऊंचे पदों पर बैठे भ्रष्ट अधिकारियों और जिम्मेदार लोगों के भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करें और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने में मदद करें। प्रधानमंत्री ने सरकारी अधिकारियों को बता दिया  कि छोटे पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के कारनामों को पकड़कर कोई वाहवाही नहीं लूटी जा सकतीहालांकि उस भ्रष्टाचार को रोकना भी ज़रूरी है लेकिन उससे समाज और राष्ट्र का कोई भला नहीं होगा। प्रधानमंत्री ने जो बात कही है वह बावन तोले पाव रत्ती सही है और ऐसा ही होना चाहिए।लेकिन भ्रष्टाचार के इस राज में यह कर पाना संभव नहीं है। अगर यह मान भी लिया जाय कि इस देश में भ्रष्टाचार की जांच करने वाले सभी अधिकारी ईमानदार हैं तो क्या बेईमान अफसरों की जांच करने के मामले में उन्हें पूरी छूट दी जायेगी लेकिन सरकारी अफसर ,नेता, अपराधी और भूमाफिया के बीच जो सांठ गाँठ है क्या उसको तोडा जा सकता है .

अक्सर देखा  गया है कि राजनीति में आने के पहले जो लोग मांग जांच कर अपना खर्च चलाते थेएक बार विधायक या सांसद बन जाने के बाद जब वे अपनी नंबर एक की  संपत्ति का ब्यौरा देते हैं तो वह करोड़ों में होती है। उनके द्वारा घोषित संपत्ति , उनकी सारी अधिकारिक कमाई के कुल जोड़ से बहुत ज्यादा होती है . इसके लिए जरूरी है बड़े पदों के स्तर पर ईमानदारी की बात की जाय . आज अपने  देश में भ्रष्टाचार और घूस की कमाई को आमदनी मानने की परंपरा शुरू हो चुकी हैवहां भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या कोई अभियान चलाया जा सकेगा? और यह बंगलूरू में भी सच है और नोयडा में भी. 
इसको  दुरुस्त करना पड़ेगा और इसके  लिए आन्दोलन की ज़रुरत है . इस बात में कोई शक नहीं है कि किसी भी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित लोकतांत्रिक देश में अगर भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से नकेल न लगाई जाये तो देश तबाह हो जाते हैं। पूंजीवादी व्यवस्था में आर्थिक खुशहाली की पहली शर्त है कि देश में एक मजबूत उपभोक्ता आंदोलन हो और भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से नियंत्रण हो। मीडिया की विश्वसनीयता पर कोई सवालिया निशान न लगा हो। अमरीकी और विकसित यूरोपीय देशों के समाज इसके प्रमुख उदाहरण हैं। यह मान लेना कि अमरीकी पूंजीपति वर्ग बहुत ईमानदार होते हैं,बिलकुल गलत होगा।लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ वहां मौजूद तंत्र ऐसा है कि बड़े-बड़े सूरमा कानून के इकबाल के सामने बौने हो जाते हैं। और इसलिए पूंजीवादी निजाम चलता है।
इसलिए राष्ट्रहित ,जनहित और  और  अर्थव्यवस्था के हित में यह ज़रूरी है कि भ्रष्टाचार को समूल नष्ट किया जाए .लेकिन यह इतना आसान नहीं है .सही बात यह है कि जब तक केवल बातों बातों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी जायेगी तब तक कुछ नहीं होगा . इस आन्दोलन को अगर तेज़ करना है कि तो घूस के पैसे को तिरस्कार की नज़र से देखना पड़ेगा . क्योंकि सारी मुसीबत की जड़ यही है कि चोरबे-ईमान और घूसखोर अफसर और नेता रिश्वत के बल पर समाज में सम्मान पाते रहते हैं . 
अपने देश में पिछले कुछ  दशकों में घूसखोरी को सम्मान का दर्जा मिल गया है . वरना यहाँ पर दस हज़ार रूपये का घूस लेने के अपराध में जवाहर लाल नेहरू ने अपने एक मंत्री को बर्खास्त कर दिया था . लेकिन इस तरह के उदाहरण बहुत कम हैं . इसी देश में जैन हवाला काण्ड हुआ था जिसमें मुख्य  धरा की सभी पार्टियों के नेता शामिल थे .आर्थिक उदारीकरण के बाद सरकारी कंपनियों में विनिवेश के नाम पर जो घूसखोरी इस देश में हुई है उसे पूरा देश जानता है . इस तरह के हज़ारों मामले हैं जिन पर लगाम लगाए बिना भ्रष्टाचार को खत्म कर सकना असंभव है . लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ र्राष्ट्रीय स्तर पर  जनांदोलन की ज़रुरत है और मीडिया समेत सभी ऐसे लोगों को सामने आना चाहिए जो पब्लिक ओपीनियन को दिशा देते हैं ताकि अपने देश और अपने लोक तंत्र को बचाया जा सके. हालांकि बहुत देर हो चुकी  है और शशिकला और  लालू यादव जैसे लोग राजनीति के नाम पर कुछ भी करके सफल हो रहे हैं . इसको रोका जाना चाहिए .

No comments:

Post a Comment