शेष नारायण सिंह
नयी दिल्ली, ६ जनवरी .कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का सिलसिला जारी है . मई में अंतर राष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम के दाम कम होना शुरू हुए थे और अब पचास प्रतिशत से ज़्यादा कमी आ चुकी है . अमरीका में आम आदमी खुशियाँ मना रहा है . पिछले छः महीनों में अमरीकी उपभोक्ता को नब्बे अरब डालर का लाभ हो चुका है . चीन ,जर्मनी और फ्रांस में जी डी पी में करीब एक प्रतिशत की वृद्धि हुयी है क्योंकि पेट्रोल और उस से जुडी अन्य चीज़ों की कीमतें घट गयी हैं और अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में जश्न का माहौल है . भारत में भी आयात बिल का सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के मद में ही जाता है .यहाँ भी तील की कीमतों को बहुत ही कम हो जाना चाहिए था लेकिन कहीं दो चार रूपये पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें घटा दी जा रही हैं ,बाकी पेट्रोल और डीज़ल का कारोबार करने वाली कम्पनियां खूब लाभ कमा रही हैं .यह कंपनियां आम आदमी को जो थोडा बहुत लाभ दे भी रही हैं वह एक्साइज़ टैक्स बढ़ाकर सरकार वापस ले ले रही है . समझ में नहीं आता कि अच्छे दिन का वादा करके सत्ता में आई सरकार आम आदमी को राहत न देकर तेल कंपनियों की पक्षधरता क्यों कर रही है .
.कच्चे तेल की पिछले छः महीनों में लगातार घट रही कीमतों के कारण पेट्रोलियम का निर्यात करने वाले कुछ छोटे देश तबाही के कगार पर भी आ गए हैं . पश्चिम एशिया और उत्तरी और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ देश अपनी सारी अर्थव्यवस्था का संचालन पेट्रोलियम उत्पादनों से करते हैं . उनके सामने बहुत मुश्किल आने वाली है . कांगो रिपब्लिक, गिनी, और अंगोला का सारा जी डी पी और सरकार की सारी आमदनी कच्चा तेल बेच कर आती है . यह छोटे देश छः महीने में हे एताबाह हो चुके हैं . इनकी अर्थव्यवस्था पूरे इतरह से कमज़ोर पड़ गयी है . रोटी पानी की तकलीफें शुरू हो गयी हैं . लेकिन दुनिया भर में उपभोक्ता खुश है . लेकिन भारत में पता नहीं किस तरह की अर्थव्यवस्था का प्रबंधन चल रहा है कि कच्चे तेल की कीमतों हो रही भारी गिरावट का लाभ आम आदमी तक क्यों नहीं पंहुंच रहा है .
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