शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,२९ दिसंबर . झारखण्ड के मुख्यमंत्री की जाति को मुद्दा बनाकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति को खुद ही धता बता दिया है. उनके राजनीतिक आदर्श और विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया ने जाति को तोड़ने की राजनीति को सामाजिक और राजनीतिक विकास का स्थाई बाव बताया था और सभी वर्गों की बराबरी के लक्ष्य को हासिल करने का तरीका बताया था . नीतीश कुमार ने जाति को मुद्दा बनाकर डॉ राम मनोहर लोहिया की राजनीति की अनदेखी की है . लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने झारखंड में किसी गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की बीजेपी की राजनीति को मुश्किल में डाल दिया है .सबको मालूम है कि झारखण्ड के गठन के आन्दोलन के पहले ही रांची ,जमशेदपुर और भिलाई के इलाकों की आदिवासी जनता अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति बहुत ही जागरूक है और अगर इस माहौल में राघुबरदास के मुख्यमंत्री बनते ही यह मुद्दा गरमा गया तो बीजेपी के लिए मुश्किल पेश आ सकती है .
जब यह स्पष्ट हो गया कि रघुबरदास झारखण्ड के मुख्यमंत्री बनेगें तो नीतीश कुमार ने तुरंत राजनीतिक पहल कर दी. उन्होंने कहा कि झारखंड के स्थापना आदिवासी अवाम की महत्वाकांक्षाओं को ध्यान में रख कर की गयी थी . पिछले १४ वर्षों से यह परम्परा थी कि झारखण्ड के मुख्यमंत्री पद पर आदिवासी को ही नियुक्त किया जाता रहा है लेकिन बीजेपी ने इस बार वह परम्परा तोड़कर आदिवासी हितों की अनदेखी की है . उन्होंने चेतावनी दी कि बीजेपी के इस फैसले से राज्य की आदिवासी जनता को निराशा होगी. नीतीश कुमार की राजनीतिक पहल की गंभीरता को बीजेपी ने तुरंत नोटिस किया और बिहार के बीजेपी के नेता , सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार पर ज़बरदस्त राजनीतिक हमला किया और कहा कि १९३७ से १९७० तक बिहार में सवर्ण जातियों के ही मुख्यमंत्री होते रहे थे. उसको कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री पद पर बैठने के बाद तोडा जा सका. जाति के मुद्दे को उठाकर नीतीश कुमार ने जातिवादी राजनीति को बढ़ावा दिया है . सुशील मोदी ने आदिवासियों के प्रति नीतीश कुमार की सहानुभूति को शरारतपूर्ण बताया और आरोप लगाया की जातियों के आधार पर राजनीति की बात करके नीतीश कुमार ने भारत के संविधान का भी अपमान किया है .
आदिवासी मुख्यमंत्री के मुद्दे को उठाकर नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की उस राजनीति पर लगाम लगाने की कोशिश की है जिसमें बीजेपी का आलाकमान अब तक मुब्तिला था. महाराष्ट्र में पता नहीं कितने वर्षों से ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना था . राज्य की सभी पार्टियों में गैर ब्राहमण नेताओं का वर्चस्व रहता रहा है . आबादी में ओबीसी की बड़ी संख्या के कारण बीजेपी वाले भी अब तक इन्हीं जातियों के नेताओं को अहमियत देते रहे हैं . गोपीनाथ मुंडे और प्रमोद महाजन इसके उदाहरण हैं . लेकिन देवेन्द्र फडनवीस को मुख्यमंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने उस जाति के उस सांचे की राजनीति से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद को बाहर ला दिया . उसी तरह हरियाणा में गैरजाट को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी आलाकमान ने राजनीति में जाति के बंधन को तोड़ने का साफ़ संकेत दे दिया था. इन दोनों ही राज्यों के मुद्दे टेलीविज़न की चर्चाओं में तो आये लेकिन उसके बाद स्वीकार कर लिए गए. बीजेपी की चली तो जम्मू-कशमीर में भी लीक से हटकर कुछ होने वाला है . बीजेपी वहां हिन्दू मुख्यमंत्री को शपथ दिलाना चाहती है . अगर ऐसा हुआ तो कश्मीर की राजनीति के हवाले से बीजेपी को पूरे देश में अपने समर्थकों में सम्मान मिलेगा और अन्य राज्यों में वोटों के लाभ की संभावना भी बढ़ेगी . लेकिन यह भी सच्चाई है कि एक झटके में राज्यों में स्थापित जातीय राजनीति के बैलेंस को तोड़कर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की टीम एक ज़रूरी रिस्क ले रही है . यह देखना दिलचस्प होगा की निकट भविष्य में यह राजनीति किस करवट बैठती है . जहां तक झारखंड की बात है सभी जानकरों की राय है कि गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने बड़ी राजनीतिक बाज़ी चल दी है और नीतीश कुमार ने एक खतरनाक चाल की आग में बहुत ही खतरनाक घी डाल दिया है .
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