Saturday, January 29, 2011

हिंदी आजकल फल फूल रही है

सुमेधा वर्मा ओझा


सुमेधा वर्मा ओझा की यह टिप्पणी मेरे फेसबुक पर बीबीसी वाले लेख के बारे में थी. इसे यहाँ भी डाल दे रहा हूँ.

शेष नारायण सिंह जी मैं आपका दुःख समझ नहीं पा रही हूँ और ना ही आपका बीबीसी का गुण गान . यह इस देश के लिए बड़े ही दुर्भाग्य की बात थी और केवल अपनी ग़ुलाम मानसिकता का प्रदर्शन कि आपको एक दुसरे देश की किसी रेडियो सेवा पर इतना भरोसा था . आज बीबीसी की हिंदी या अंग्रेजी या किसी भी भाषा की सेवा की ऐसी कोई मान्यता नहीं है जिसे आप इतने प्यार से याद कर रहे हैं . इन्ही सेवाओं के द्वारा बड़े देश अपने उपनिवेशों में अपनी विचार धारा को फैला कर लोगों पर एक मानसिक पकड़ बनाये रहते थे. हमारे देश के रेडियो अखबार वगैरह उतने ही अच्छे या बुरे हैं जितने की किसी और देश के फिर हमें विदेशी सेवा की मृत्यु पर दुखी होने की क्या ज़रुरत है? हिंदी आपकी दुआ से आजकल फल फूल रही है , उसे बीबीसी की कोई ज़रुरत नहीं है

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