शेष नारायण सिंह
श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराने की बीजेपी की राजनीति पूरी तरह से उल्टी पड़ चुकी है . बीजेपी की अगुवाई वाले एन डी ए के संयोजक शरद यादव तो पहले ही इस झंडा यात्रा को गलत बता चुके हैं ,अब बिहार के मुख्य मंत्री और बीजेपी के महत्वपूर्ण सहयोगी नीतीश कुमार ने श्रीनगर में जाकर झंडा फहराने की जिद का विरोध किया है . शरद यादव ने तो साफ़ कहा है कि जम्मू कश्मीर में जो शान्ति स्थापित हो रही है उसको कमज़ोर करने के लिए की जा रही बीजेपी की झंडा यात्रा का फायदा उन लोगों को होगा जो भारत की एकता का विरोध करते हैं . नीतीश कुमार ने बीजेपी से अपील की है कि इस फालतू यात्रा को फ़ौरन रोक दे .सूचना क्रान्ति के चलते अब देश के बहुत बड़े मध्यवर्ग को मालूम चल चुका है कि झंडा फहराना बीजेपी की राजनीति का स्थायी भाव नहीं है , वह तो सुविधा के हिसाब से झंडा फहराती रहती है . . बीजेपी की मालिक आर एस एस के मुख्यालय पर २००३ तक कभी भी तिरंगा झंडा नहीं फहराया गया था. वो तो जब २००४ में तत्कालीन बीजेपी की नेता उमा भारती तिरंगा फहराने कर्नाटक के हुबली की ओर कूच कर चुकी थीं तो लोगों ने अखबारों में लिखा कि हुबली में झंडा फहराने के साथ साथ उमा भारती को नागपुर के आर एस एस के मुख्यालय में भी झंडा फहरा लेना चाहिए .,तब जाकर आर एस एस ने अपने दफ्तर पर झंडा फहराया . २००४ के विवाद के दौरान भी उतनी ही हडकंप मची थी जितनी आज मची हुई है लेकिन तब टेलीविज़न की खबरें इतनी विकसित नहीं थी इसलिए बीजेपी की धुलाई उतनी नहीं हुई थी जितनी कि आजकल हो रही है . तिरंगा फहराने के बहाने बहुत सारे सवाल भी बीजेपी वालों से पूछे जा रहे हैं. अभी कुछ साल पहले कुछ कांग्रेसी तिरंगा लेकर चल पड़े थे और उन्होंने ऐलान किया था कि वे आर एस एस के नागपुर मुख्यालय पर भी तिरंगा झंडा फहरा देगें . रास्ते में उन पर लाठियां बरसाई गयी थी. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि उस वक़्त के तिरंगे से क्यों चिढी हुई थी बीजेपी जो महाराष्ट्र में अपनी सरकार का इस्तेमाल करके तिरंगा फहराने जा रहे कांग्रेसियों को पिटवाया था. जब उमा भारती ने २००४ हुबली में झंडा फहराने के लिए यात्रा की थी तो विद्वान् इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने प्रतिष्ठित अखबार ,हिन्दू में एक बहुत ही दिलचस्प लेख लिखा था .उन्होंने सवाल किया था कि बीजेपी आज क्यों इतनी ज्यादा राष्ट्रप्रेम की बात करती है . खुद ही उन्होंने जवाब का भी अंदाज़ लगाया था कि शायद इसलिए कि बीजेपी की मातृ पार्टी , आर एस एस ने आज़ादी की लड़ाई में कभी हिस्सा नहीं लिया था .१९३० और १९४० के दशक में जब आज़ादी की लड़ाई पूरे उफान पर थी तो आर एस एस का कोई भी आदमी या सदस्य उसमें शामिल नहीं हुआ था. यहाँ तक कि जहां भी तिरंगा फहराया गया , आर एस एस वालों ने कभी उसे सल्यूट तक नहीं किया .आर एस एस ने हमेशा ही भगवा झंडे को तिरंगे से ज्यादा महत्व दिया .३० जनवरी १९४८ को जब महात्मा गाँधी की ह्त्या कर दी गयी तो इस तरह की खबरें आई थीं कि आर एस एस के लोग तिरंगे झंडे को पैरों से रौंद रहे थे . यह खबर उन दिनों के अखबारों में खूब छपी थीं .आज़ादी के संग्राम में शामिल लोगों को आर एस एस की इस हरकत से बहुत तकलीफ हुई थी . उनमें जवाहरलाल नेहरू भी एक थे . २४ फरवरी को उन्होंने अपने एक भाषण में अपनी पीडा को व्यक्त किया था . उन्होंने कहा कि खबरें आ रही हैं कि आर एस एस के सदस्य तिरंगे का अपमान कर रहे हैं .. उन्हें मालूम होना चाहिए कि राष्ट्रीय झंडे का अपमान करके वे अपने आपको देशद्रोही साबित कर रहे हैं
यह तिरंगा हमारी आज़ादी के लड़ाई का स्थायी साथी रहा है जबकि आर एस एस वालों ने आज़ादी की लड़ाई में देश की जनता की भावनाओं का साथ नहीं दिया था. तिरंगे की अवधारना पूरी तरह से कांग्रेस की देन है . तिरंगे झंडे की बात सबसे पहले आन्ध्र प्रदेश के मसुलीपट्टम के कांग्रेसी कार्यकर्ता पी वेंकय्या के दिमाग में उपजी थी १९१८ और १९२१ के बीच हर कांग्रेस अधिवेशन में वे राष्ट्रीय झंडे को फहराने की बात करते थे . महात्मा गाँधी को यह विचार तो ठीक लगता था लेकिन उन्होंने वेंकय्या जी की डिजाइन में कुछ परिवर्तन सुझाए . गाँधी जी की बात को ध्यान में रहकर दिल्ली के देशभक्त लाला हंसराज ने सुझाव दिया कि बीच में चरखा लगा दिया जाए तो ज्यादा सही रहेगा . महात्मा गाँधी को लालाजी की बात अच्छी लगी और थोड़े बहुत परिवर्तन के बाद तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया गया .उसके बाद कांग्रेस के सभी कार्यक्रमों में तिरंगा फहराया जाने लगा. अगस्त १९३१ में कांग्रेस की एक कमेटी बनायी गयी जिसने झंडे में कुछ परिवर्तन का सुझाव दिया . वेंकय्या के झंडे में लाल रंग था . उसकी जगह पर भगवा पट्टी कर दी गयी . उसके बाद सफ़ेद पट्टी और सबसे नीचे हरा रंग किया गया . चरखा बीच में सफ़ेद पट्टी पर सुपर इम्पोज कर दिया गया . महात्मा गाँधी ने इस परिवर्तन को सही बताया और कहा कि राष्ट्रीय ध्वज अहिंसा और राष्ट्रीय एकता की निशानी है .
आज़ादी मिलने के बाद तिरंगे में कुछ परिवर्तन किया गया . संविधान सभा की एक कमेटी ने तय किया कि उस वक़्त तक तिरंगा कांग्रेस के हर कार्यक्रम में फहराया जाता रहा है लेकिन अब देश सब का है . उन लोगों का भी जो आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों के मित्र के रूप में जाने जाते थे . इसलिए चरखे की जगह पर अशोक चक्र को लगाने का फैसला किया गया . जब महात्मा गाँधी को इसकी जानकारी दी गयी तो उन्हें ताज्जुब हुआ . बोले कि कांग्रेस तो हमेशा से ही राष्ट्रीय रही है . इसलिए इस तरह के बदलाव की कोई ज़रुरत नहीं है . लेकिन उन्हें नयी डिजाइन के बारे में राजी कर लिया गया . इस तिरंगे की यात्रा में बीजेपी या उसकी मालिक आर एस एस का कोई योगदान नहीं है लेकिन वह उसी के बल पर कांग्रेस को राजनीतिक रूप से घेरने में सफल होती नज़र आ रही है . अजीब बात यह है कि कांग्रेसी अपने इतिहास की बातें तक नहीं कर रहे हैं . अगर वे अपने इतिहास का हवाला देकर काम करें तो बीजेपी और आर एस एस को बहुत आसानी से घेरा जा सकता है और तिरंगे के नाम पर राजनीति करने से रोका जा सकता है .
बेहतरीन आलेख!
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