शेष नारायण सिंह
पिछले महीने संपन्न हुए प्रधान मंत्री के राष्ट्रीय पत्रकार सम्मलेन में जो सवाल पूछे गए उनमें से ज़्यादातर बहुत आसान सवाल थे . उसके लिए उनकी आलोचना भी हुई थी लेकिन कुछ कठिन सवाल भी पूछे गए थे .यह अलग बात है कि उन्होंने जो कुछ भी जवाब दे दिया , वह हर्फे-आखिर हो गया क्योंकि किसी को भी दूसरा सवाल पूछने की अनुमति नहीं थी. प्रधानमंत्री बार बार यह कहते रहते हैं कि कि मानवाधिकारों का हनन करने वालों के लिए उनकी सरकार में कोई नरमी नहीं है , उनसे सख्ती से पेश आया जाएगा लेकिन जब सन २००० में पथरीबल में मारे गए निर्दोष नौजवानों के बारे में पूछा गया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था . हो सकता है कि वे इस सवाल की उम्मीद न कर रहे हों लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि बाद में वे क्या कार्रवाई करते हैं . उनसे पूछा गया था कि सन २०० में पथरीबल में मारे गए पांच निर्दोष नौजवानों को मारने वाले जिन फौजियों के ऊपर सी बी आई ने चार्जशीट दाखिल किया है उनके खिलाफ मुक़दमा चलाये जाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है . आगे की कार्रवाई के बारे में सिविल सोसाइटी को इंतज़ार रहेगा.
हुआ यह था कि २० मार्च ,२००० के दिन अनंतनाग जिले के छतीसिंहपुरा में लश्कर-ए-तय्यबा के कुछ आतंकियों ने गाँव के सभी सिख मर्दों को इकठ्ठा किया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया . . उस वक़्त लाल कृष्ण आडवानी देश के गृह मंत्री थे . इस क़त्ले-आम के पांच दिन बाद उन्होंने देश को बताया कि हत्यारों का पता लगा लिया गया है . वे विदेशी आतंकवादी थे . उन्होंने दावा किया कि ५ विदेशी आतंकवादियों को मार गिराया गया है . . राष्ट्रीय राइफल्स और राज्य पुलिस की ओर से एक एफ आई आर लिखाया गया जिसमें सूचना दी गयी कि पथरीबल के पास एक मुठभेड़ हुई जिसमें आतंकवादियों को घेर लिया गया और उन्हें मार डाला गया. . वहां मिले शव इतने जल गए थे कि उनको पहचानना मुश्किल था और उन्हें दफन कर दिया गया . लेकिन बाद में पता चला कि लाल कृष्ण आडवानी ने देश को गुमराह करने की कोशिश की थी. पता यह भी चला कि जो पांच लोग मारे गए तह वे विदेशी नहीं थे और आतंकवादी नहीं थे. वे निर्दोष थे. उन पाँचों को अनंतनाग के आस पास से २४ मार्च को उठाया गया था . उनके नाम थे, ज़हूर दलाल ,बशीर अहमद भट, मुहम्मद मलिक , जुमा खान . एक और नौजवान भी था जिसका नाम भी शायद जुमा खान ही था. . जब २५ मार्च को पास के जंगलों में पांच लोगों के मारे जाने की खबर प्रचारित हुई तो गाँव वालों को शक़ हुआ कि कहीं यह पाँचों उनके अपने ही लोग तो नहीं हैं . भारी हल्ले गुल्ले के बाद उन पाँचों तथाकथित विदेशी आतंकवादियों के शवों को ज़मीन से बाहर निकाला गया . परिवार वालों के खून के नमूने लिए गए और डी एन ए जांच के लिए भेज दिया गया लेकिन यहाँ भी डाक्टरों की मदद से सेना और पुलिस ने हेराफेरी की और खून के नमूने बदल दिए . ज़ाहिर है कि जांच में यह आ गया कि मारे और दफन किये गए लोग गाँव वालों के रिश्तेदार नहीं थे . लेकिन मार्च २००२ में पता चला कि हेराफेरी हुई थी . फिर खून के नमूने लिए गए और पक्के तौर पर साबित हो गया कि जिन लोगों को सेना और पुलिस ने मारा था वे विदेशी नहीं थे . वे वास्तव में वही लड़के थे जिन्हें सुरक्षा बालों ने २४ मार्च २००० के दिन अनंत नाग के आस पास के गावों से उठाया था .
पूरे देश में सिविल सोसाइटी के लोगों ने मांग की कि मामले की निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए .राज्य सरकार ने मामले की सी बी आई जांच का आदेश दे दिया . जिसने पांच साल की गहरी जांच के बाद पता लगाया कि जो लोग मरे थे वे वास्तव में विदेशी नहीं थे , वे यही पांच नौजवान थे जिन्हें गावों से उठाया गया था ..सी बी आई ने श्रीनगर के चीफ जुडिसियल मजिस्ट्रेट की अदालत में जुलाई २००६ में चार्ज शीट दाखिल कर दिया जिसमें ब्रिगेडियर अजय सक्सेना, ले. कर्नल ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह , मेजर सौरभ शर्मा ,मेजर अमित सक्सेना और सूबेदार आई खान के खिलाफ रणबीर पेनल कोड की दफा ३०२ के तहत मुक़दमा चलाया जाना है . अभी तक मुक़दमे की सुनवाई शुरू नहीं हुई है . . मामला अदालती दांव पेंच के घेरे में फंस गया है .और अभी तक कुछ नहीं हुआ . प्रधान मंत्री अगर मानवाधिकारों के हनन वालों के खिलाफ गंभीर हैं और उनके खिलाफ किसी तरह की नरमी को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं तो उन्हें इस समाले में सी बी आई की मदद करनी चाहिए और उन फौजियों को सख्त से सख्त सज़ा दिलवानी चाहिए जिन्होंने गरीब और निर्दोष कश्मीरियों को पकड़ कर बेरहमी से मार डाला था
कोई कश्मीरी पंडितों के मानवाधिकार की बात भी करे !!
ReplyDeleteया मानवाधिकार सिर्फ उन देशद्रोहियों के लिए ही बने है जो हमेशा खाते हिंदुस्तान का है गाते है पाकिस्तान के लिए |
इतनी मेहनत किसी सार्थक बात को उठाने में लगते तो ... मगर क्या करे देश पटा पडा है, नकस्लियों ने जप निर्दोष मारे उनकी तो कोई कीमत ही नहीं है !
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