शेष नारायण सिंह
गुजरात के मुख्य मंत्री , नरेंद्र मोदी को फटकार कर देश में कहीं भी धर्म निरपेक्ष जमातों की सहानुभूति बटोरी जा सकती है . गुजरात २००२ नर संहार के खलनायक को दुनिया में कहीं भी इज्ज़त की नज़र से नहीं देखा जता. अमरीका और यूरोप के ज़्यादातर देशों ने उनकी वीजा की दरखास्त को यह कह कर ठुकरा दिया है कि वे इतने खूंखार आदमी को अपने देश में आने की इजाज़त नहीं दे सकते. मुसलमान तो पूरे भारत में नरेंद्र मोदी को कातिल मानता है . जिन लोगों को २००२ में नरेंद्र मोदी की निगरानी में क़त्ल किया गया था ,उनमें बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार के उन मूल निवासियों की थी जो रोजी रोटी की तलाश में गुजरात के शहरों में जाकर बस गए थे. शायद इसीलिये नरेंद्र मोदी की मुखालिफात करना उत्तर प्रदेश और बिहार में जीत का नुस्खा माना जाता है . अगर किसी के ऊपर यह आरोप साबित हो गया कि वह नरेंद्र मोदी का दोस्त है तो उसके वोटों की संख्या में भारी कमी हो जाती है . जानकार बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के साथ अपनी फोटो के प्रचारित होने पर, बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार का गुस्सा इस पृष्ठभूमि में बेहतर तरीके से समझा जा सकता है . दुनिया जानती है कि नीतीश कुमार बिहार के मुख्य मंत्री बी जे पी की कृपा से बने हैं और आज भी अगर बी जे पी उनकी सरकार से समर्थन वापस ले ले तो पैदल हो जायेंगें . राजनीति की मामूली समझ वाला भी जानता है कि बी जे पी का सबसे मज़बूत नेता आज की तारीख में नरेंद्र मोदी ही है . इसलिए नरेंद्र मोदी के विरोध के बाद किसी के लिए भी बी जे पी की मदद से हुकूमत करना असंभव है लेकिन नीतीश कुमार बने हुए हैं और राज कर रहे हैं . ज़ाहिर है बी जे पी और जे डी ( यू) के नेता एक ऐसी कुश्ती लड़ रहे हैं जिसमें शुरू में ही समझौता हो गया है कि वास्तव में कुश्ती नहीं लड़ना है , केवल अभिनय करना है . यह अभिनय सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है . इसके दो उद्देश्य हैं . एक तो यह कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ जो लोग भी हैं उनके घावों पर मरहम लगाकर उनके वोट को बटोर जाए और दूसरा यह कि हिंद्दुत्ववादी सोच के लोगों को नरेंद्र मोदी के हवाले से बी जे पी के साथ लामबंद किया जाए. यहाँ यह गौरतलब है कि नीतीश कुमार की पार्टी और नरेंद्र मोदी की पार्टी किसी पक्ष का कोई असली नुकसान नहीं कर रही है. केवल विधान सभा चुनावों के वोटों के लिए सभी पक्ष काम कर रहे हैं .
इस तरह नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के वोट अभियान में ताज़ा एपिसोड भी जुड़ गया है . बिहार पुलिस के कुछ पुलिस वाले गुजरात गए थे जहां वे कथित रूप से यह जांच करने वाले थे कि नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार की फोटो जारी करने वाली एजेंसी ने किसके हुक्म से यह काम किया था लेकिन अभियुक्तों या सम्बंधित पुलिस अधिकारियों के पास तो खबर बाद में पंहुची, मीडिया को पहले पता चल गया . जिसके बाद बी जे पी के पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू सीधे शरद यादव के पास पंहुच गए और इस से पहले कि सम्बंधित एजेंसी वाले के ऊपर कोई केस बन जाए, मामले को दबा दिया गया लेकिन इसका राजनीतिक फायदा जितना मिल सकता था, मिल गया . मुसलमानों और धर्म निरपेक्ष जमातों को पता चल गया कि नीतीश कुमार पूरे मन से मोदी की मुखालफत कर रहे हैं .जबकि नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के लोगों का कहीं कोई नुकसान भी नहीं हुआ . इस बात का भी खूब जोर शोर से अखबारों में प्रचार किया जा रहा है कि बी जी पी वाले नीतीश कुमार से बहुत नाराज़ हैं और सरकार से समर्थन वापस भी लेना चाहते हैं . . समर्थन वापसी का कोई मतलब नहीण है उस से बिहार सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्यों कि अब तो चुनाव की ही तैयारी चल रही है .४ महीने मेंचुनाव है .
कुल मिला कर बिहार की ताज़ा राजनीतिक हालात पर गौर करें तो साफ़ लगता है कि मामला शुद्ध रूप से मुसलमानों के वोट को अपने पक्ष में मोड़ने से सम्बंधित है . नीतीश ने बिहार में व्याप्त अराजकता को कंट्रोल किया है इस लिए मध्य वर्ग का एक बड़ा तबका उनको समर्थन देना चाहता है . अति पिछड़ों यानी यादव विरोधी पिछड़ों में भी नीतीश ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में एक पैठ बनायी है . जे डी यू के वर्गचरित्र के हिसाब से सवर्णों का एक वर्ग भी उनके साथ है . इस में अगर मुसलमानों के वोट भी जुड़ जाएँ तो बिहार की राजनीति में यह एक अजेय फार्मूला है . आखिर लालू प्रसाद ने वहां एम वाई यानी मुस्लिम -यादव दोस्ती की राजनीति करके कई साल तक राज किया है . इस लिए बिहार की राजनीति के किसी खिलाड़ी को मुसलमानों के वोट का महत्व समझाना वैसे ही है जैसे चिड़िया के बच्चे को उड़ना सिखाना .बिहार में लालू यादव मुसलमानों के वोट के मुख्य दावेदार माने जाते हैं . लेकिन अपने शासन के दौरान उन्होंने मुसलमानों के कल्याण के लिए कोई ख़ास काम नहीं किया .पिछले ३ -४ वर्षों से कांग्रेस नेता , राहुल गाँधी मुसलमानों से संपर्क में हैं .शायद इसी वजह से उत्तर भारत में मुस्लिम समुदाय में कांग्रेस की लोक प्रियता भी बढ़ रही है . बिहार में मुस्लिम वोटों की दावेदारी में कांगेस का भी नाम आने लगा है . हालांकि कांग्रेस के पास अपना कोई बुनियादी वोट बैंक नहीं है लेकिन उसके लिए पूरी कोशिश चल रही है . बिहार प्रदेश की इन्चार्जी से हटाये जाने के पहले जगदीश टाइटलर ने भोजपुरी फिल्मों के नायक , मनोज तिवारी से घंटों बात की थी और उन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश की थी . ज़ाहिर है कि मनोज तिवारी आज के सूचना क्रान्ति के ज़माने के बड़े नाम हैं और उनके साथ आने से कांग्रेस को उनकी बिरादरी के वोट तो मिलेगें ही, राज्य के बड़ी संख्या में नौजवान भी साथ आयेंगें .अगर इस वोट बैंक में मुसलमान जोड़ दिए जाएँ तो यह भी एक जिताऊ गठजोड़ बन सकता है . बताते हैं कि मनोज तिवारी ने इस लिए मना कर दिया कि वे अमर सिंह के बिना किसी पार्टी में नहीं जाना चाहते .अभी तक फिलहाल कांग्रेस में अमर सिंह के खिलाफ माहौल है लेकिन कल किसने देखा है. वैसे भी अमर सिंह अपने राज्य में अपनी राजनीतिक मौजूदगी का एहसास प्रभाव शाली तरीके करवा रहे हैं . समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद हाशिये पर आ गए अमर सिंह ने डुमरिया गंज उपचुनाव में अपनी पुरानी पार्टी के उम्मीदवार को पीस पार्टी नाम की एक नयी पार्टी को समर्थन दे कर शिकस्त दी है. डुमरिया गंज उपचुनाव में मुलायम सिंह के इस पूर्व सहयोगी ने दो बातें साबित की हैं . एक तो यह कि अमर सिंह अभी हार मानने को तैयार नहीं हैं और दूसरा कि वह मुसलमानों के वोटों की दावेदारी में किसी से कमज़ोर नहीं हैं. अगर कांग्रेस पार्टी बिहार के समीकरणों को दुरुस्त करने के लिए अमर सिंह के साथ उनके भीड़ जुटाऊ साथियों को साथ लेने का फैसला कर लेगी तो खेल बदल सकता है.
इस बात में कोई शक़ नहीं कि बिहार की राजनीति में बी जे पी के साथ की वजह से मुसलमानों में अछूत बन चुके नीतीश कुमार की मस्लिम वोट बैंक की दावेदारी के खेल में धमाकेदार वापसी हुई है . जिसके बाद बाकी दावेदार हतप्रभ हैं . क्योंकि आम तौर पार ज़ज्बाती मानसिकता के मुसलमानों के लिए मोदी की मुखालिफत को सम्मान की नज़र से देखा जाता है . लेकिन इस वापसी की वजह से बाकी दावेदारों में खलबली मच गयी है . हालांकि इस बात की पूरी संभावना है कि धर्म निरपेक्ष वोटों के स्पेस में सेंध लगाने के लिए ही नीतीश और बी जे पी ने यह नूरा कुश्ती लड़ी है लेकिन मामला बहस के दायरे में तो आ ही गया है . इसका फायदा नीतीश के अब तक के साथी नरेंद्र मोदी की पार्टी वालों को भी होगा क्योंकि मुसलमानों के पारंपरिक विरोधी वोटों के स्पेस में उनका कंट्रोल मज़बूत होगा . वैसे भी उन्हें मुसलमान न तो वोट देते हैं और न ही वे उसकी उम्मीद करते हैं . मुस्लिम वोटों की इस दौड़ में एक और महत्व पूर्ण राजनेता , राम विलास पासवान भी पिछड़ते नज़र आ रहे हैं . उन्होंने भी मुसलमानों के लिए बहुत काम किया है. बहुत सारे मुसलमानों को उन्होंने इज्ज़त दी है और उनके फायदे के लिए काम किया है. यहाँ तक की अमरीका तक में दलित-मुस्लिम सम्मलेन कर चुके हैं लेकिन आजकल वे हाशिये पर हैं. इस देश का मुसलमान राजनीतिक रूप से इतना सजग है कि वह उसी को वोट देना पसंद करता हैजो नरेंद्र मोदी की पार्टी को हराए . इस मामले में राम विलास पासवान खरे नहीं उतरते. वैसे भी वे बी जे पी के साथ सरकार में रह चुके हैं . ज़ाहिर है कि अगले ४ महीने में पटना की गद्दी के लिए लड़ाई तेज़ होगी और उसमें वे सारे गड़े मुर्दे उखाड़े जायेंगें जिसमें बिहार के राजनेताओं के बी जे पी प्रेम की कहानियां मुख्य रूप से बतायी जायेंगीं. इस किस्सागोई में नीतीश तो मुस्लिम विरोधी साबित हो ही जायेगें , राम विलास भी फंस सकते हैं क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी के किसी पूर्व मातहत को अपना शुभ चिन्तक मानने में मुसलमान को दिक्क़त होगी . कुल मिला कर अभी तस्वीर साफ़ नहीं है लेकिन मुस्लिम समर्थन के प्रमुख दावेदार लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के बीच फैसला होने की उम्मीद है. जो भी अपनी रणनीति सही तरीके से बनाएगा, जीत उसी की होगी. जहां तक नीतीश का प्रश्न है अगर उन्हें साफ़ अंदाज़ लग गया कि मोदी का विरोध करने से कोई राजनीतिक लाभ नहीं हो रहा है तो वे फिर शरद यादव को आगे करके बी जे पी के दरवाज़े पंहुच जायेंगें ..
शेष जी आपने निसंदेह बहुत ही तार्किक aur baareek vishleshan kiya है.
ReplyDeleteहमने कुछ इस अंदाज़ में इस प्रकरण पर कहने की कोशिश की है.
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2010/06/blog-post_20.html
ज़हमत होगी ज़रूर लेकिन मुझे ख़ुशी होगी गर आप आये...
जिस तरह सेक्युलर जमात समाज को बांटकर वोट ऐंठती रही है, नीतीश भी वही कर रहे हैं, देखिए ये कितना सेक्युलर साबित होते हैं.
ReplyDeletenice
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