शेष नारायण सिंह
दिल्ली में पापी लोग अपनी ही बहनों को मार डाल रहे हैं . इन दुष्टों से अपनी ही सगी बहनों की खुशियाँ नहीं देखी जा रही हैं.अभी मोनिका और कुलदीप की निर्मम हत्या की खबर आई थी . .अब उसी परिवार की एक और लड़की को भाई ने ही मार डाला. वह इसलिए नाराज़ था कि उसकी बहन ने अपनी खुशी के लिए शादी कर ली थी. उसने शादी किसी दूसरी जाति के लडके से की थी. अजीब बात है कि कहीं बच्चे इसलिए मार डाले जा रहे हैं कि उन्होंने अपनी जाति के बाहर शादी कार ली है और वहीं दिल्ली के आस पास बहुत सारे लड़के लडकियां इस लिए मौत के घाट उतार दिए जा रहे हैं कि उन्होंने अपनी ही जाति और गोत्र में शादी कर ली है .इक्कीसवीं सदी चल रही है , मुल्क को आज़ाद हुए ६० साल से ऊपर हो चुके हैं ,जिन इलाकों से इस तरह की तंगदिली की खबरें आ रही हैं उन इलाकों में शिक्षा का भी प्रचार प्रसार ख़ासा है . सूचना माध्यमों का प्रभाव है जिसके चलते दुनिया भर के रीति रिवाजों की जानकारी है लेकिन फिर भी निहायत ही जंगली तरीके से अपने सगे सम्बन्धियों को मौत की सज़ा दे रहे हैं यहाँ के लोग. समझ में नहीं आता कि एकाएक जाति और उस से जुड़े मुद्दे इतने अहम क्यों हो गए हैं . सबसे अजीब बात यह है कि इन मामलों में यह जानते हुए कि भयानक अपराध के काम किये जा रहे हैं , नेता लोग कुछ नहीं बोल रहे हैं. हरियाणा के मुख्य मंत्री ने तो एक तरह से जाति के बाहर शादी करने की बात को परम्परा विरुद्ध कह कर इन अपराधियों का समर्थन ही कर दिया है . बाकी नेता भी मीडिया द्वारा घेरे जाने पर गोल मोल जवाब देकर अपना पिंड छुड़ा रहे हैं. जबकि आज़ादी की लड़ाई में यह समाया हुआ है कि देश में बराबरी पर आधारित समाज की स्थापना की जायेगी. हरियाणा के मुख्य मंत्री की बात बहुत अजीब इसलिए लगती है कि उनके पिता आज़ादी की लड़ाई में शामिल थे और उस संविधान सभा के सदस्य थे जिसने जीवन के मौलिक अधिकार देने वाले संविधान की स्थापना की थी. इसी लिए इस वहशत के निजाम को समर्थन देने वाले भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की बात समझ मेंआने वाली नहीं है . महात्मा गाँधी खुद जाति की कट्टरता के खिलाफ थे. उन्होंने इंदिरा गाँधी की दूसरी जाति में हुई शादी को समर्थन दिया था जबकि जवाहर लाल नेहरू ने कभी भी जाति और धर्म के आधार पर गैर बराबरी का समर्थन नहीं किया था. कांग्रेस को चाहिए कि जो लोग भी उनकी पार्टी में जाति और धर्म की कट्टरता का समर्थन कर रहे हों उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दें . डॉ भीम राव अंबेडकर और डॉ राम मनोहर लोहिया के नाम पर भी आज़ादी के लड़ाई के दौरान बहुत सारे लोग लामबंद हुए थे . इनकी विचार धारा को लागू करने के लिए अब कई राजनीतिक पार्टियां हैं. लेकिन वे पार्टियां भी जाति के शिकंजे को तोड़ने के लिए कुछ नहीं कर रही हैं . उलटे जाति की संस्था को वोट दिलाऊ दुधारू गाय की तरह जिंदा रखना चाहती हैं .एक और अजीब बात है कि आजकल जिन इलाकों में जाति के बाहर शादी करने या अपने गोत्र में शादी करने पर हिंसक वारदातें हो रही हैं वह आर्य समाज के प्रभाव वाले क्षेत्र भी है . जो रूढ़िवाद का विरोध करने के लिए शुरू किया गया था . और तो और इस्लाम धर्म को माने वाले भी इस जाति के चक्र व्यूह में फंस गए हैं .जहां जाति के आधार पर गैर बराबरी की अनुमति ही नहीं है . लगता हैकि इस सारे जाति वादी गोरख धंधे के पीछे राजनीतिक लालच काम कर रही है और जाति को वोट बैंक के रूप में जिंदा रखने वालों का एक वर्ग देश का नेता बना हुआ है . लगता है कि अपने समाज को इस जातिवादी नरक से निकालने के लिए किसी ज्योति बा फुले की ज़रुरत पड़ेगी वरना सत्ता के लोभी नेता बिरादरी के लोग आज़ादी की विरासत को चट कर जायेंगें.हालांकि पिछले ४० वर्षों से जाति की राजनीति को हवा दे रही राजनीतिक बिरादरी के लिए जाति के मोह को छोड़ना मुश्किल होगा.लेकिन यह तय है कि किसी न किसी को आन्दोलन का रास्ता अख्तियार करना पडेगा और उसे कुर्बानी भी देनी पड़ेगी. जब १८४८ में ज्योति बा फुले ने दलित लड़कियों के लिए स्कूल खोला था तो उन्हें उनके पिता ने ही घर से निकाल दिया था. और लगता है कि मौजूदा जातिवादी नरक का इलाज़ महात्मा फुले ही कर सकते हैं . क्योंकि बात बहुत बिगड़ गयी है
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