लोकसभा पहले चरण के चुनाव के बाद चुनाव प्रचार के तरी$के में कुछ बदलाव नज़र आ रहा है। जातियों में बंटे समाज में कुछ परिवरर्तन के संकेत नजर आ रहे हैं। बिहार में नेता और केंद्र में रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के भाषणों का रूख बदला हुआ है। पिछले 20 वर्षो से मुसलमानों के समर्थन के बल पर राजनीति में सफल रहे लालू प्रसाद यादव की चिंता का रंग बदल गया है।
अब तक लालू यह मान बैठे थे कि मुसलमानों के वोट पर उनका एकाधिकार है लेकिन 16 अप्रैल को जब पहले दौर के वोट पड़े और जो संकेत मिले, उससे लालू यादव यादव परेशान हो गए। केंद्र में अपनी साथी पार्टी, कांग्रेस को बिहार में तीन सीटें देकर लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस को उसकी औक़ात बताने की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार कर लालू-राम विकास की राजनीति को ज़बरदस्त झटका दिया है। पहले दौर में मुसलमानों ने कई क्षेत्रों में कांग्रेस को वोट दिया, उनका तर्क है कि लालू यादव अब तक केवल भावनत्तमक अपील के सहारे मुसलमानों का समर्थन लेते रहे हैं, मुसलिम समाज के विकास के लिए कुछ नहीं किया।
ज़ाहिर है कि विकास की दिशा में कोई ठोस काम न किया जाए तो बहुत दिन तक किसी को भी साथ नहीं रखा जा सकता। उत्तर प्रदेश में भी मुसलमानों का वोट महत्तवपूर्ण है और अधिकतर सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। यहां मुसलमानों का वोट आमतौर पर पिछले बीस वर्षो से मुलायम सिंह यादव को मिलता रहा है। इसके ठोस कारण हैं। भावनातमक स्तर पर भी मुसलमानों के बीच मुलायम सिंह की इज़्ज़त है। आज भी 1990 मेें बाबरी मस्जिद की हिफाज़त की मुलायम सिंह सरकार की कोशिश को न केवल मुसलमान बल्कि पूरी दुनिया के सही सोच वाले लोग सम्मान से याद करते हैं। लेकिन उसके बाद भी जब उन्हें उत्तर प्रदेश में सरकार चलाने का मौ$का मिला तो उन्होंने मुसलमानों के हित में काम दिया।
आर्थिक क्षेत्र में विकास की कोशिश मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में बेहतर अवसर की कोशिश कुछ ऐसे काम हैं, जिन की वजह से मुसलमान आज मुलायम सिंह के साथ हैं। वर्तमान लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को मदद करने से धर्मनिरपेक्ष ता$कतों को मज़बूती मिलने के आसार हैं मुसलमान वहां कांग्रेस के साथ हैं। मुलायम सिंह यादव ने ऐसी परिस्थितियां भी पैदा कीं हैं जहां उनका उम्मीदवार कमज़ोर है, वहां कांग्रेस को मज़बूत करने का संकेत साफ नज़र आता है। उत्तर प्रदेश की गाजि़याबाद सीट पर तो लगता है कि मुलायम सिंह की कोशिश के नतीजे में बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह चुनाव हार जाएंगे।
मुसलमानों में मुलायम सिंह की लोकप्रियता को कमज़ोर करने की कोशिश चल रही है। मायावती ने राज्य में मुसलमानों को उम्मीदवार बनाकर धर्मनिरपेक्ष ताकतों को अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश की है। मुलायम सिंह के पुराने साथी और रामपुर के विधायक आज़म ख़ान भी आजकल रामपुर के कांग्रेस उम्मीदवार की मदद में लगे हैं। मुलायम सिंह इससे बहुत नाराज़ हैं। समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश स्तर के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया है कि आज़म खान अभी तक कांग्रेस की सेवा में थे अब बीजेपी से भी संपर्क में हैं। बहर हाल सचाई यह है कि मुसलमानों में भावनात्मक अपीलों के अलावा ठोस मुद्दों पर राजनीतिक $फैसले लेने की बात ज़ोर पकड़ चुकी है और बीजेपी के साथियों को हराने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
sir why are you abstain from bjp?
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