Wednesday, February 3, 2021

चौरी चौरा की घटना के बाद अंगेजों का दमनतंत्र तेज़ हो गया था

 

 

 


 

शेष नारायण सिंह

 

चौरी चौरा  के सौ साल पूरे होने को हैं . सरकार की तरफ से उसकी शताब्दी को जोर शोर से मनाया जा रहा है . इसी चार फरवरी को  कार्यक्रमों के शुरुआत हो चुकी है. यह सिलसिला साल भर चलता रहेगा . चौरी चौरा की याद में डाक टिकट भी  जारी किया जाएगा . चौरी चौरा आज़ादी के इतिहास का हिस्सा है क्योंकि १९२० में शुरू हुए महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के बाद वहां के पुलिस वालों ने असहयोग आन्दोलन के क्रांतिकारियों पर अत्याचार  किया था . ४  फरवरी १९२२ के दिन वहां के पुलिस थाने में असहयोग आन्दोलन के  कुछ कार्यकर्ताओं ने आग लगा दी थी. जिसमें २२ पुलिस वालों की जान चली गयी थी .उसी के घटना के बाद महात्मा गांधी ने अपने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया था .  असहयोग आन्दोलन में लगे हुए लगभग सभी नेताओं ने  गांधी जी से अपील की थी  कि आन्दोलन को वापस न लिया जाए   क्योंकि १९२० में आन्दोलन शुरू होने के डेढ़ वर्ष के अन्दर ही देश के गाँव गाँव में अंग्रेजों के अत्याचार के बारे में जागरूकता फ़ैल चुकी थी  . असहयोग आन्दोलन ने भारत में अंग्रेज़ी सरकार की बुनियाद को हिलाकर रख दिया था .इस आन्दोलन के कारण जागरूकता का एक बहुत बड़ा अभियान पूरे देश में शुरू हो चुका था . देश में अंग्रेजों के आतंक के नीचे  दबे कुचले लोग सीना तानकर खड़े हो गए थे . उनको शांतिपूर्ण तरीके से अत्याचार को सहने की शैली समझ में आने लगी थी . सरकारी आतंक फैलाकर जनता को डराने के युग का अंत हो चुका था . हज़ारों लोग मुसकराते हुए गिरफ्तारियां दे रहे थे .भारतीय दंड संहिता के वे  सारे मुक़दमे बेकार सिद्ध हो रहे थे जिनके नाम से लोग १९२० के पहले डर जाया करते थे . देशद्रोह के मुक़दमों की लोग परवाह ही नहीं कर रहे थे . हज़ारों धनी मानी लोगों ने अपनी इच्छा से ऐशो आराम की ज़िंदगी को तिलांजलि दी थी और  जानबूझकर  गांधी जी की शैली में गरीबी का जीवन  बिता रहे थे . सरकार के अत्याचारी शासन से पैदा हुयी ताक़त को लोग अपने नैतिक साहस से धता बता रहे थे.  माइकेल ओ डायर टाइप आतंक की हवा निकल रही थी . माइकेल ओ डायर ही वह दुष्टात्मा था जिसने जलियांवाला बाग़ में अपने चमचे जनरल रेजिनाल्ड डायर से निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलवाई  थीं और उस के उस घिनौने काम को सही भी ठहराया था . वह इंडियन सिविल सर्विस का अफसर था और उन दिनों पंजाब में लेफ्टीनेंट गवर्नर पद पर तैनात था .उसी ने डिफेंस ऑफ़ इंडिया रूल्स की स्थापना की थी जो सरकारी दमनतंत्र का एक बड़ा क़ानून बन गया था.  उसके आतंक की कारस्तानियों को पूरे ब्रिटिश भारत में लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जाता था .लेकिन उसका असर उलटा हुआ . जलियांवाला  बाग़ के आतंक के बाद लोगों को जब उसके जवाब में महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन का सहारा मिला तो दमनतंत्र  भोथरा  हो गया. लोगों पर थोक में राजद्रोह के मुक़दमे दर्ज हुए लेकिन महात्मा गांधी के  अहिंसा और सत्याग्रह के नैतिक हथियारों के सामने सब कुछ नाकाम रहा . पंजाब के उस दुष्ट लेफ्टीनेंट गवर्नर  माइकेल ओ डायर को १९४० में क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह ने मार गिराया था.

१९२० के आन्दोलन में देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता भी बहुत बड़े स्तर पर हो गयी थी. महात्मा ने उस एकता  की ताक़त के बल पर अंग्रेजों को साफ़ कह दिया कि मनमानी  नहीं चलेगी.  १९२१ के दिसम्बर तक ब्रिटिश सरकार के सामने अहिंसा और सत्याग्रह की ज़बरदस्त चुनौती पैदा हो चुकी थी .अंग्रेजों के सहयोगी देसी राजे महराजे और उदारपंथी लोगों की हिम्मत भी  असहयोग आन्दोलन की ताक़त के सामने पस्त हो चुकी थे . अँगरेज़ सरकार लोगों पर दमन का हथियार चलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी .  जलियांवाला बाग़ जैसे बहुत सारे सम्मेलन हो रहे थे. सभी अहिंसक सम्मलेन होते थे  . लेकिन सरकार की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि माइकेल ओ डायर वाली बेवकूफियां कर सके .

आहिंसा की ताक़त के सामने अँगरेज़ सरकार की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय .इसी दौर में गोरखपुर जिले के चौरी चौरा   में हिंसा हो  गयी . हुआ यह कि असहयोग आन्दोलन के कार्यकर्ता महंगाई और बाज़ार में  शराब की बिक्री के खिलाफ  धरना दे रहे थे. चौरी चौरा के पुलिस वाले ने उनको  मारा पीटा , कुछ लोगों को वहीं थाने में बंद कर दिया .इसके  विरोध में बाज़ार में चार फरवरी को विरोध प्रदर्शन का आवाहन किया गया . करीब ढाई हज़ार सत्याग्रही इकठ्ठा हुए और जुलूस की  शक्ल में चौरी चौरा बाज़ार की तरफ जाने  लगे .शराब की एक दूकान के सामने धरना देने का कार्यक्रम था . उनके नेता को पुलिस ने पकड लिया और जेल में बंद कर दिया . जिसका विरोध करने  के लिए लोग अहिंसक तरीके से पुलिस थाने की तरफ बढ़ने लगे. हथियारबंद पुलिस ने उनको रोकने की कोशिश की और हवाई फायरिंग  शुरू कर दी . आंदोलनकारियों को गुस्सा आया और उन्होंने पुलिस के ऊपर  कंकड़ पत्थर फेंकना शुरू कर दिया . उसके बाद पुलिस ने गोली चला दी और मौके पर ही तीन लोगों की मौत हो गयी और कई लोग ज़ख़्मी हो गए .पुलिस वाले  भाग कर थाने में छुप गए .  गुस्साए लोगों ने पुलिस को खदेड़ा और थाने में आग लगा दी .जिसमें २२ पुलिस वाले मारे गए .ऐसा लगता है कि ब्रिटिश हुकूमत को ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी . उन्होंने आस पास के इलाके में मार्शल लॉ लगा दिया और ज़बरदस्त तरीके  धर पकड़ शुरू हो गयी . पंजाब के माइकेल ओ डायर को तत्कालीन वायसरॉय लार्ड  रीडिंग ने सही ठहराया और आतंक का राज कायम करने की कोशिश  शुरू हो गयी . सर हरकोर्ट बटलर यू पी के गवर्नर थे . उनको आतंक का राज कायम करने का मौक़ा मिल गया और पूरे उत्तर प्रदेश में पुलिस की  ज्यादती की घटनाएं आने लगीं .

जब महात्मा गांधी को इस घटना के बारे में जानकारी मिली तो वे बहुत दुखी हुए .उन्होंने कहा कि चौरी चौरा में हिंसा में लिप्त होकर सत्याग्रहियों ने गलत काम किया है . उन्होंने प्रायश्चित्त के लिए पांच दिन का उपवास रखा .उन्होंने तय किया कि भारत के उनके अपने लोग अभी अहिंसक तरीके से आज़ादी लेने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं . और गांधी जी ने १२ फरवरी को आन्दोलन को रोकने का फरमान जारी कर दिया था .उनका कहना था कि चौरी चौरा के बहाने अब अँगरेज़ सरकार भारतीयों को कुचल देने का अभियान चलायेगी और नैतिक ताकत से आयी हुयी अहिंसा के हथियार  को  दबा देगी . गांधी जी भी गिरफ्तार हो गए और उनको छः साल की  सज़ा सुनाई गई . जवाहरलाल नेहरू मदन  मोहन मालवीय , सरदार पटेल जैसे कांग्रेस नेताओं ने महात्मा जी के आन्दोलन वापस लेने के फैसले का  विरोध किया लेकिन महात्मा गांधी ने  किसी की नहीं  सुनी. उनका दृढ विश्वास था कि चौरी चौरा में हिंसा करने का आन्दोलन कारियों का काम गलत था . इसी आन्दोलन के दौर में सरदार पटेल की भी कांग्रेस में  विधिवत ताक़त स्थापित हुई .असहयोग  आन्दोलन के शुरू होते ही वल्लभभाई पटेल ने गुजरात के लगभग सभी गाँवों की यात्रा की , कांग्रेस के करीब ३ लाख सदस्य भर्ती किया और करीब १५ लाख रूपया इकट्ठा किया . सन १९२० के १५ लाख रूपये का मतलब आज की भाषा में बहुत ज़्यादा होता है. और यह सारा धन गुजरात के किसानों से इकठ्ठा किया गया था.  सरदार पटेल  के जीवन का वह दौर शुरू हो चुका था जिसके बाद उन्होंने गांधी जी की किसी बात का विरोध नहीं किया . कई मुद्दों पर असहमति ज़रूर दिखाई लेकिन जब फैसला हो गया तो वे महात्मा जी के फैसले के साथ रहे. चौरी चौरा काण्ड के बाद महात्मा गांधी ने आन्दोलन वापस ले लिया, तो सरदार पटेल भी उस फैसले के पक्ष में नहीं थे लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी का समर्थन किया क्योंकि महात्मा गांधी को आशंका थी कि उसके बाद अंग्रेज़ी राज का दमनचक्र उसी तरह से चल पडेगा जैसे १८५७ के समय में हुआ था . कांग्रेस के बाकी बड़े नेता आन्दोलन  वापस लेने का विरोध करते रहे लेकिन वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी का पूरा समर्थन किया. राजनीतिक कार्य के साथ उन्होंने अपने एजेंडे में शराब, छुआछूत और जाति प्रथा के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया . गुजरात के तत्कालीन विकास में सरदार पटेल के इस कार्यक्रम का बड़ा योगदान माना जाता है .

चौरी चौरा की घटनाओं के लिए अंग्रेजों ने २२८ ने लोगों पर दंगा और आगज़नी का मुक़दमा चलाया .आठ महीने मुक़दमा चला और १७२ लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गयी . छः लोगों की पुलिस हिरासत में ही मृत्यु हो गयी थी . पूरे देश में इस फैसले के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा . मदन मोहन मालवीय चौरी चौरा की घटनाओं से शुरू से जुड़े हुए थे . उन्होंने ही हाई कोर्ट में फैसले के रिव्यू के लिए पैरवी की .२० अप्रैल १९२३ को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने १९ लोगों की  फांसी की सज़ा को बहाल रखा .११० लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा दी ,बाकी लोगों को भी कुछ वर्षों की सज़ा हुयी . कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चौरी चौरा की  घटनाओं के कारण असहयोग आन्दोलन को बड़ा झटका लगा था . महात्मा गांधी जेल  चले गए थे . फिर से देश को एकजुट  होने में आठ साल लगे जब महात्मा गांधी ने १९३० के अपने सविनय अवज्ञा आंदोलन की घोषणा की. अगर चौरी चौरा न हुआ होता तो १९३० के बाद जिस तरह से अंगेजों ने आजादी  की लड़ाई के  संगठन ,कांग्रेस को गंभीरता से लेना शुरू किया , गोलमेज सम्मेलन हुआ, गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया एक्ट १९३५ आया वह सब आठ साल पहले ही हो गया होता.

 

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