Sunday, May 5, 2019

लखनऊ से सुलतानपुर तक की चार और पांच मई की यात्रा रिपोर्ट


शेष नारायण सिंह

लखनऊ से सुल्तानपुर की  की यात्रा में पांच लोकसभा क्षेत्रों से गुजरने का मौक़ा लगा . आज सुल्तानपुर से चलकर आजमगढ़ और जौनपुर होते हुए शाम को वाराणसी में डेरा डालने की योजना है . लखनऊ संसदीय क्षेत्र के बारे में जो चर्चा दिल्ली में  सुनने को मिल रही थी , वही लखनऊ में भी है . इस चुनाव में गृहमंत्री राजनाथ सिंह को हराना नामुमकिन माना जा रहा है . वही हाल रायबरेली में सोनिया गांधी का भी है .
लोकसभा २०१९ भारत के संसदीय इतिहास में असाधारण चुनाव माना जा रहा है . पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली पहली गैरकांग्रेसी पार्टी भारतीय जनता पार्टी है . पहली बार कोई  गैर कांग्रेसी पार्टी अपने पांच साल के कामकाज पर जनादेश मांग रही है और चुनाव के मैदान में है . पहली बार उत्तर प्रदेश में पिछड़ी और अनुसूचित जातियों का एक ऐसा गठबंधन सत्ताधारी पार्टी को चनौती दे रहा है जिसके सफल होने के बाद भारत में चुनावी राजनीति का नया व्याकरण लिखा जाने वाला है . बहुजन समाज पार्टी और  समाजवादी पार्टी का गठबंधन अगर सफल हुआ तो देश में एक दलीय लोकशाही का अंत होने वाला है . हमारे मित्र और बहुत आला मेयार के पत्रकार और इस यात्रा के हमसफ़र ,कुमार केतकर का कहना है कि ऐसा लगता है अब चुनाव में कई पार्टियों के गठबंधन की सरकारें बनाया  करेंगे . इसका एक माडल जर्मनी की क्रिश्चियान डेमोक्रेटिक यूनियन  Christian Democratic Union   में उपलब्ध है . हो सकता है कि आने वाले समय में यही माडल सबको स्वीकार्य हो जाए .

मई जून के महीने में लखनऊ शहर दोपहर में सो जाता है . बाज़ारों में बहुत कम लोग नज़र आते हैं . चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भी शहर का मिजाज़ इससे अलग नहीं था. लखनऊ में  छः मई के चुनाव के लिए चार की शाम को प्रचार बंद  हो गया . चार तारीख की दोपहर को ही सन्नाटा साफ़ नज़र आ रहा था. लेकिन हम भाग्यशाली थे. शहर के शीर्ष पत्रकारों के साथ हमको शाम की चाय पीने का मौक़ा लागा. हमारी  टीम में भी एक से एक जानकार हैं  ब्राउन विश्वाविद्यालय के प्रोफ़ेसर आशुतोष वार्ष्णेय , मुंबई के सबसे आदरणीय मराठी पत्रकारों में से एक कुमार केतकर और उनके मित्र विकास नायक हमारे साथ हैं. मुंबई के ही एक सांख्यिकीविद भी हमारे काफिले में हैं जिनकी साहित्य और चुनावी राजनीति समझदारी में गहरी पैठ है . शाम को जब चाय पर दो घंटे की माथापच्ची के लिए हम बैठे तो उत्तर प्रदेश के हर जिले की तस्वीर परत दर परत खुलती  गयी. हम लखनऊ के करीब पन्द्रह उन  पत्रकारों से मुखातिब थे जिनको पूरे देश में बरास्ता टेलिविज़न की बहसों के जाना पहचाना जाता है . बहुत  दिन बाद मैं ऐसी किसी महफ़िल में शामिल था जिसमें मैं शुद्ध रूप से श्रोता था . मैंने किसी भी मुद्दे पर अपनी राय नहीं दी. चुपचाप सुनता रहा .  गंभीर बहस मुबाहसा होता रहा . मौजूद पत्रकारों में ज्यादातर लोग  उत्तर प्रदेश की अधिकतर संसदीय क्षेत्रों की की यात्रा कर चुके हैं . आम राय यह थी की बीजेपी के पक्ष में २०१४ वाली हवा तो कतई नहीं है . मौजूदा सरकार के पिछले पांच साल के काम से भारी नाराज़गी है लेकिन पुलवामा में आतंकवादी हमला और उसके खिलाफ बालाकोट में की गयी भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई के कारण एक बहुत बड़ा  वर्ग सरकार के पक्ष में है . राष्ट्र की रक्षा और घर में घुसकर मारने की बात लोगों पर निश्चित असर डाल चुकी है और उसका फायदा नरेंद्र मोदी  हो रहा है . भारतीय जनता पार्टी और मुकामी उम्मीदवार ज्यादातर सीटों पर चर्चा में आते ही नहीं . केवल लखनऊ , रायबरेली और अमेठी में मुकामी उम्मीदवारों के नाम पर या उनके विरोध में वोट की बात है . बाकी हर जगह नरेंद्र मोदी की सरकार को एक और अवसर देने के लिए ही वोट मांगे जा रहे  हैं और ऐसा लगता है कि मिलने भी वाले हैं . .आवारा जानवरों के कारण लगभग  तबाह हो चुकी फसल और सडकों , चौराहों पर बेरोजगार घूम  रहे , नौकरी की उम्मीद लगाए नौजवानों की भीड़ की नाराज़गी थी लेकिन उस सब को बालाकोट ने धो दिया है . अपनी मुसीबतों की परवाह किये बिना  लोग नरेंद्र मोदी को दुबारा मौक़ा देने के लिए  उद्यत हैं .
इस तस्वीर से यह भ्रम हो जाना लाजमी है कि नरेंद्र मोदी की लहर फिर वैसी ही है  जैसी २०१४ में थी लेकिन इसमें एक पेंच है . नरेंद्र मोदी के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार इन लोगों में वही लोग हैं जो परम्परागत तरीके से बीजेपी के ही वोटर हैं . वे नाराज़  हो गए थे , निराश थे क्योंकि सरकार ने २०१४ के वायदों को पूरा करने  के लिए कोई काम नहीं किया है . हर साल नौजवानों के लिए दो करोड़ नौकरियों का वायदा , किसानों की आमदनी दुगुनी करने का वायदा ,विदेशों से कालाधन वापस लाने का वायदा, भ्रष्टाचार मुक्त समाज का सपना , भव्य राम मंदिर का निर्माण और आतंकवाद के खात्मे का संकल्प २०१४ के चुनाव की ख़ास बातें थीं , दिल्ली के बीजेपी नेताओं के आग्रह पर दिल्ली में रहने  वाले हम जैसे पत्रकार तो मान सकते हैं कि मोदी की सरकार ने बहुत अच्छा काम किया है लेकिन लखनऊ के विद्वान पत्रकारों ने जिन इलाकों की यात्राएं कीं  उसका निचोड़ यह है कि सरकार अपने किसी भी वायदे को पूरा नहीं कर सकी है . नोटबंदी और जी एस टी   जैसे विवादित फैसले जनता ने पसंद नहीं किया था. इन लोगों का कहना था कि अगर बालाकोट न हुआ होता तो मोदी सरकार के खिलाफ ज़बरदस्त माहौल था . लेकिन बालाकोट के बाद  बीजेपी के परंपरागत वोटर फिर बीजेपी के साथ  हैं . इस सारी तस्वीर में बस एक व्यवधान  है .  समाजवादी  पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के समर्थक बालाकोट से प्रभावित नहीं दिख रहे हैं . वे उसी उत्साह से बीजेपी के खिलाफ वोट कर रहे हैं , जिस  उत्साह से बीजेपी के समर्थक नरेंद्र मोदी की सरकार को एक मौक़ा और देने की बात कर रहे  हैं.
इस तरह से बालाकोट की पूंजी लेकर चुनाव मैदान में उतरी बीजेपी के सामने उत्तर प्रदेश में ज़बरदस्त चुनौती है . बसपा और सपा के समर्थकों की संख्या खासी अधिक है . २०१४ के चुनावों को देखा जाए और वहां इनके हारे हुए उम्मीदवारों के वोटों को जोड़ दिया जाए तो  बड़ी संख्या में ऐसे क्षेत्र मी जायेंगे जहां गठबंधन  बीजेपी से अधिक हो जाता है .वह मोदी से  उम्मीदों की लहर का चुनाव था . इस बार सभी मोदी लहर की मौजूदगी से इनकार करते हैं . बल्कि अगर ओबीसी , दलित और मुसलमानों से बात की जाए तो वे लोग तो  सरकार के खिलाफ लहर की बात करते हैं . अपने वायदों को भूल जाने का आरोप लगाते हैं और चुनावी गणित को नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा कर देते हैं .इस बार सभी क्षेत्रों में गठबंधन के उम्मीदवारों की कांटे के टक्कर की चर्चा है . जब बीजेपी का कार्यकर्ता और नेता कांटे की टक्कर की बात करने लगें तो इसका अनुवाद नरेंद्र मोदी सरकार के लिए बहुत ही खुशगवार नहीं माना जाएगा .
इस  पृष्ठभूमि में शुरू हुई लखनऊ से वाराणसी यात्रा में कई पड़ाव आये .लखनऊ और रायबरेली के बीच की सड़क बहुत ही अच्छी है . दोनों हाई प्रोफाइल सीटों के बीच में पड़ने वाला सुरक्षित श्रेणी का मोहनलाल गंज संसदीय क्षेत्र आमतौर पर दिल्ली के पत्रकारों में चर्चा का विषय नहीं बनता लेकिन यह बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है. यहाँ दलित आबादी खासी  बड़ी है. दलितों में पासी  जाति के लोग मोहनलाल गंज में अधिक हैं . यहाँ से मौजूदा  सांसद बीजेपी के कौशल किशोर हैं . मोदी लहर में विजयी हुए थे लेकिन अब बहुत ही अलोकप्रिय हैं . उनके खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार आर के चौधरी हैं . यह कभी मायावती के बहुत ही करीबी हुआ करते थे , बहुत ही पैसे कमाए हैं और आजकल कांग्रेस में हैं . लेकिन यहाँ मायावती का उम्मीदवार सी एल वर्मा  भारी पड़ रहा है . लगता है यह सीट बालाकोट के बावजूद भी  बीजेपी के लिए मुश्किल साबित होगी . उस  सीट  का क्षेत्र ख़त्म होते ही रायबरेली शूरू हो जाता है. वहां तो बीजेपी वालों का भी कहना है कि सोनिया गांधी की संभावना बहुत ही अच्छी है . असली मुकाबला अमेठी में नज़र आया हमने ज्यादा इस्तेमाल होने वाली फुरसतगंज ,जायस वाली सड़क नहीं ली. हां परसदेपुर,उदयपुर अठेहा होकर गौरीगंज पंहुचे . रायबरेली पार करते ही अमेठी क्षेत्र का पहला चौराहा , परसदेपुर पड़ता है . चौराहे पर मौर्य बिरादरी वाले भारी संख्या में थे . दावा किया गया कि वहां स्मृति इरानी मज़बूत चुनाव लड़ रही हैं . राहुल गांधी से लोगों में नाराजगी है. यह सीट गठबंधन ने छोड़ तो दिया है लेकिन अखिलेश यादव और मायवती ने  कोई अपील  नहीं किया है इसलिए उनकी पार्टी के वफादार लोग अपनी मर्जी से वोट देने का मन बना  चुके हैं .कई लोगों ने बताया कि अगर इन नेताओं की अपील हो जाए तो अब भी चुनाव राहुल गांधी के पक्ष में पलट सकता है. उस समय तक मायावती की वह अपील नहीं आयी थी जिसमें उन्होंने कहा  कि रायबरेली और अमेठी में उनके समर्थक कांग्रेस को जिताएंगें . यह सन्देश वहां बाद में पंहुंचा होगा . हम दिन भर अमेठी में रहे और साफ़ अनुमान लग रहा था कि स्मृति  इरानी के पक्ष में हवा है .इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि दलित और यादव वोटर बिलकुल अनमना बताया जा रहा  था. लेकिन शाम को जब मायावती ने सन्देश भेज दिया कि “ हमारे “ गठबंधन के लोग अमेठी और राय बरेली में कांग्रेस को जिताने के  लिए कोशिश करेंगे तो बीजेपी के कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गयी . ज़ाहिर है स्मृति इरानी के पांच साल के काम पर मायावती की एक अपील भारी पड़ चुकी थी. अमेठी में लोगों से बातचीत के क्रम में हमारी टीम के एक सदस्य ने पूछा कि हम लोग जितने लोगों से भी बात कर रहे हैं वे ज्यादातर  कांग्रेस विरोधी ही  हैं तो अमेरिकी प्रोफ़ेसर ने कहा कि हम क्या करें ,कहाँ से कांग्रेस के समर्थक लायें . यानी चुनाव निश्चित रूप से कांग्रेस के पक्ष में नहीं था लेकिन अब सबको मालूम है कि मायावती के अपील ने खेल बदल दिया होगा  .हालांकि सरकार का पक्ष लेने वाले अखबारों ने इस खबर को गोल  कर दिया है , या कहीं कोने में छाप दिया है लेकिन सन्देश पंहुच चुका है और अब साफ़ लाग रहा  है कि अमेठी में “ कांटे “ की टक्कर हो गयी है .
सुल्तानपुर में वरुण गांधी अपनी मां मेनका  गांधी के लिए प्रचार कर रहे हैं , गठबंधन के प्रत्याशी चंद्रभद्र सिंह उर्फ़ सोनू सिंह लोकसभा के २०१४ के चुनाव में उनके बहुत बड़े सहयोगी थे लेकिन अब उनकी मां के खिलाफ मैदान में हैं .  गठबंधन का  गणित सोनू के पक्ष में है लेकिन मेनका गांधी की सेलेब्रिटी हैसियत के कारण मुकाबला कांटे का हो गया है .  रात में सुल्तानपुर शहर के एक मोहल्ले में वरुण गांधी का भाषण सुना गया . उन्होंने हिंदुत्व की कोई बात नहीं की. पाकिस्तान का चुनावी राग अलापने के खिलाफ भी बात की . उन्होंने कहा कि हमको अपनी तुलना रूस, अमरीका और चीन से करनी चाहिए ,पाकिस्तान से नहीं . पाकिस्तान तो कचरा है ,उसके बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं . अच्छी भीड़ के बीच  वरुण गांधी का भाषण काफी प्रभावशाली  था,पिछली बार जब वे यहाँ से खुद उम्मीदवार थे तो वे नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लेते थे लेकिन इस बार उन्होंने बा आवाज़े बुलंद  नरेंद्र मोदी का नाम लिया और उनकी सरकार के पांच साल के अच्छे काम की तारीफ़ की और अपील की कि मोदी जी के अच्छे काम को जारी रखने के लिए उनको पांच साल का मौक़ा और दिया जाना चाहिए . सुल्तानपुर में अगले दौर में १२ मई को मतदान  होगा .

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