Sunday, February 10, 2019

युनिवर्सल बेसिक इनकम की योजना लागू हुई तो गरीबी पर मर्मान्तक हमला होगा



शेष नारायण सिंह  
कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ की एक सभा में घोषणा कर दी कि अगर कांग्रेस २०१९ के चुनाव के बाद सत्ता में आई तो सबके लिए एक निश्चित आमदनी की गारंटी कर दी जायेगी . राहुल  गांधी ने कहा कि, “ हम एक आधुनिक भारत का निर्माण तब  तक नहीं कर सकते जब तक हमारे करोड़ों भाई बहन गरीबी के अभिशाप से जूझ रहे  हैं . “ उन्होंने दावा किया कि गरीबी और भुखमरी से मुक्ति पाने का यही तरीका  है . हालांकि  यह बात अभी साफ़ नहीं है कि राहुल गांधी ने बिना शर्त सभी के लिए युनिवर्सल बेसिक  इनकम की बात की है या  लक्ष्य तय करके इस योजना को लागू करने की बात की है . दुनिया भर के विद्वानों का मानना है कि  अगर यह योजना वास्तव में युनिवर्सल न की गयी तो लाभार्थी तय  करने  के लिए बीच में नौकरशाही टपक पड़ेगी और भ्रष्टाचार की एक  धारा खुल जायेगी जैसाकि अभी  बहुत सारी  योजनाओं में होता है . मनरेगा  जैसी स्कीम में भी  पंचायत प्रधान , बी डी ओ  से लेकर जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री तक भ्रष्टाचार की कड़ी चलती है और लूट में सभी शामिल होते हैं . युनिवर्सल बेसिक  इनकम अगर सही अर्थों में लागू हो जायेगी तो अमीर गरीब सबके बैंक खाते में एक निश्चित रक़म जमा हो जाया करेगी और यह काम मशीनी तरीके से हो जाया करेगा .
 दिल्ली के सत्ता के गलियारों में बहुत  समय से चर्चा है कि चुनाव के पहले आने वाले अंतरिम बजट में बीजेपी की  सरकार भी इसी तरह की घोषणा  करने वाली है . मौजूदा सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम ने तो केंद्र सरकार के आर्थिक सर्वे में इस विषय पर पूरा एक अध्याय लिखा था  और युनिवर्सल बेसिक इनकम को एक सरकारी नीति के रूप में पेश  कर दिया था. अगर उस समय  सरकार ने उनकी बात मान ली होती तो आज नरेंद्र मोदी को हरा पाना असंभव हो जाता  लेकिन  ऐसा नहीं हुआ .सभी नागरिकों के लिए न्यूनतम आमदनी की  गारंटी करना बहुत बड़ा आर्थिक बोझ नहीं है क्योंकि सरकार सब्सिडी और तरह तरह की रियायतों के नाम पर सरकारी खजाने का एक हिस्सा अभी  भी खर्च करती है.  यह भी सच है कि उस  सरकारी पैसे का एक बड़ा भाग भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाता है .  इस योजना को लागू करने के लिए सरकार को अपनी सब्सिडी और टैक्स में छूट की व्यवस्था पर फिर से विचार करना पडेगा . विख्यात अर्थशास्त्री प्रणब बर्धन ने युनिवर्सल बेसिक इनकम के बारे में काफी शोध किया है .उनका कहना है कि यह संभव है और भारत के लिए वांछनीय भी है .उनका सुझाव है  कि शिक्षा ,स्वास्थ्य ,बाल पोषाहार और मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं के अलावा बाकी की सब्सिडी को ख़त्म  करके अगर युनिवर्सल बेसिक इनकम की व्यवस्था लागू कर  दी जाये तो समाज का और अर्थव्यवस्था का  बहुत भला होगा. अभी बहुत सारी सब्सिडी केंद्र सरकार की तरफ से दी जाती है . खाद यातायातबिजलीपानी ,पेट्रोल आदि पर जो सब्सिडी  दी जाती है वह गरीब आदमी तक तो पंहुचती ही नहीं उसका एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार के तंत्र में चला जाता है .  इस तरह की सब्सिडी बंद करके युनिवर्सल बेसिक इनकम की बात शुरू कर  दी जाए तो गरीब आदमी तक कुछ धन सीधे पंहुचेगा .केवल खाद यातायात,बिजलीपानी और पेट्रोल की सब्सिडी जीडीपी का  4% होता है . कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने राहुल गांधी की घोषणा के बाद एक ट्वीट के  ज़रिये बताया कि उनके अध्यक्ष के वायदे पूरी तरह से लागू करने के लिए जीडीपी  का केवल 3% ही काफी  होगा . अभी  पी डी एस  में जो सब्सिडी दी जाती है वह जीडीपी का 1.4 % है . दुनिया जानती है कि पीडीएस में बहुत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है और उस  रक़म को अगर सीधे लाभार्थी के खाते में डाल दिया जाय तो सही रहेगा . अभी कस्टम और सेन्ट्रल एक्साइज में सरकार ऐसी  छूट देती है जिसको रेवेन्यू फारगान ( revenue forgone) कहते हैं और वह जीडीपी का 6 प्रतिशत होता है .तात्पर्य यह है कि राहुल  गांधी की  घोषणा या मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम का प्रस्ताव लागू  किया जा सकता है . उसके लिए सब्सिडी की व्यवस्था पर  पुनर्विचार की ज़रुरत पड़ेगी .
न्यू यार्क विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर देबराज रे ने  युनिवर्सल बेसिक इनकम पर बहुत काम किया है . वे इसको युनिवर्सल  बेसिक शेयर कहते  हैं और सुझाव देते हैं कि जीडीपी का एक हिस्सा रिज़र्व कर दिया जाएगा जिसको पूरी आबादी  खाते में जमा कर दिया जाना  चाहिए .युनिवर्सल बेसिक इनकम के लिए अब बुनियादी ढांचा भी लगभग तैयार हो गया  है . आधार कार्ड एक ऐसी सुविधा है जो देश के हर नागरिक की पहचान को सुनिश्चित कर देता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन धन योजना के तहत देश के अधिकांश नागरिकों के खाते  बैंकों में खुलवाने की पहल कर  दी थी . अभी सब के खाते तो नहीं खुले हैं लेकिन एक सिस्टम  उपलब्ध है . बड़ी आबादी के  पास आज बैंक खाते हैं और जिनके पास नहीं हैं वे खुल जायेंगें .    टेलिविज़न पर हुयी एक  चर्चा में कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने बताया कि मौजूदा सब्सिडी  तंत्र  ज्यों का त्यों लागू रहेगा और युनिवर्सल बेसिक इनकम की व्यवस्था उसके साथ साथ होगी.अगर  कांग्रेस सब्सिडी को जारी रखते हुए युनिवर्सल बेसिक इनकम की बात कर रही है तो उन्होंने केवल चुनावी घोषणा कर दी है , उनको अर्थशास्त्र के इस सबसे आधुनिक पहलू के बारे में सही जानकारी नहीं है . अगर युनिवर्सल बेसिक इनकम की बात करनी है तो उसको उन बहुत सी ऐसी चीज़ों के बदले में लाना होगा जो भारतीय अर्थ व्यवस्था में बहुत दिनों से चली आ रही है.

युनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू करने में भारत में बहुत सारी समस्याएं आने वाली हैं . सही बात यह है कि यूरोप के जिन देशों में यह स्कीमें सफलतापूर्वक चल रही हैं ,समस्याएं वहां भी हैं . स्विट्ज़रलैंड में यह व्यवस्था लागू  थी लेकिन दो साल पहले हुए एक रेफरेंडम में जनता ने इसको  बंद करने के लिए वोट दे दिया . मुख्य तर्क यह है कि इसके लागू  होने से लोगों में कमाने के लिए उत्साह ख़त्म हो जाता  है . नार्वे में यह  स्कीम   लागू है . लेकिन वहां  उन लोगों को ही यह सुविधा मिलती है जिनके पास कोई काम नहीं है .  ओस्लो विश्वाविद्यालय के अर्थशास्त्री  प्रो काले मोइन का कहना  है कि भारत में भी इसी तरह से लागू किया जा सकता  है .  गरीबी  हटाने का इससे कारगर कोई तरीका नहीं हो सकता .  तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यूरोप में चल  रही युनिवर्सल बेसिक इनकम की इसी बहस से प्रभावित होकर १९७१ के चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा दे दिया था . उस दौर में दक्षिणपंथी अर्थशास्त्री , मिल्टन फ्रायडमैन भी युनिवर्सल बेसिक इनकम की बात कर रहे थे और  लेफ्ट आफ सेंटर  चिन्तक जॉन केनेथ गालब्रेथ भी इस व्यवस्था को भुखमरी और गरीबी की महत्वपूर्ण काट के रूप में बता रहे थे . इंदिरा गांधी ने घोषणा कर दी ,जनता ने उनके ऊपर विश्वास किया लेकिन ऐसा लगता है कि उनके पास योजना को लागू करने का कोई आइडिया नहीं था . बस उन्होंने चुनाव जीतने के लिए एक जुमला फेंक दिया था  जिसपर जनता ने विश्वास कर लिया . ठीक उसी तरह जैसे २०१४ के चुनावों के अभियान में मौजूदा  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो करोड़ नौकरियाँ प्रति वर्ष और  किसान की आमदनी दुगुना करने की बात कर दी थी . देश के नौजवानों और किसानों ने उनकी बात का विश्वास किया और देश में मोदी लहर आ गयी . आज वही वायदा उनकी  चुनावी सम्भावनाओं पर भारी पड़ रही है . लोग सवाल पूछ रहे हैं और सत्ताधारी पार्टी के पास कोई जवाब नहीं है .
इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी ने भी एक जुमला ही फेंका हो . लेकिन अब यह  बात तय  है कि उन्होंने युनिवर्सल बेसिक इनकम की बात करके भारत में इस योजना को लागू करने का रास्ता साफ़ कर दिया है .  उनके इस आक्रामक रुख से यह बात तय है कि  कल आने वाले  अंतरिम बजट में मोदी सरकार भी युनिवर्सल बेसिक इनकम या  इससे मिलता जुलता कोई प्रस्ताव लायेगी . इसका भावार्थ  यह हुआ कि देश की दोनों बड़ी पार्टियों ने अपने आपको युनिवर्सल बेसिक इनकम के लिए समर्पित कर दिया है . राहुल गांधी की घोषणा ने पूरी दुनिया में गरीबी , भुखमरी और बुनियादी आमदनी की लड़ाई लड़  रहे  लोगों का ध्यान  खींचा है . विश्वविख्यात टाइम मैगज़ीन ने  भी उनकी घोषणा के हवाले से एक बड़ी खबर अपने इंटरनेट संस्करण में लगाई है . पत्रिका ने  गरीबी के खिलाफ अभियान चलाने वाले अर्थशास्त्री ,गाय स्टैंडिंग के बयान  का विस्तार से उल्लेख किया है . वे भारत के बीजेपी नेताओं और संयुक्त राष्ट्र में बहुत दिनों से युनिवर्सल बेसिक इनकम  के सन्दर्भ में संपर्क बनाए हुए हैं . गाय स्टैंडिंग कहते हैं  कि बीजेपी के बड़े नेताओं में इस  तरह की बात बहुत पहले से चल रही है . उन्होंने युनिवर्सल बेसिक  इनकम को  मध्य प्रदेश में लागू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की एक योजना पर २०११-२०१२ में काम किया था . इस योजना का ट्रायल हुआ और छः हज़ार लोगों को बेसिक इनकम के दायरे में लिया गया था  उनको भरोसा  है कि बीजेपी वाले तो पहले से ही इस  विषय पर विचार कर रहे हैं . अब कांग्रेस की घोषणा के बाद उनके सामने कोई विकल्प नहीं है . उनको भी  अंतरिम   बजट में इसी हफ्ते इसकी घोषणा करनी  पड़ेगी . हो सकता है कि योजना का नाम कुछ और दे दिया जाए .अगर युनिवर्सल बेसिक  इनकम की घोषणा नहीं करते तो उनको चुनावी नुक्सान होना तय है. ज़ाहिर है कि अब युनिवर्सल बेसिक  इनकम भारत की अर्थनीति का हिस्सा बन जायेगी और  अपना देश गरीबी से लड़ाई की आर्थिक नीतियों के बारे में अमरीका आदि से भी अधिक प्रगतिशील हो जाएगा  . अमरीका में भी दक्षिणपंथी राजनेता तो  इसको फालतू की बात मानते हैं और बर्नी सैंडर्स जैसे बाएं बाजू के राजनेता  भी इसको टालने के चक्कर में  रहते हैं .  टाइम मैगज़ीन में गाय स्टैंडिंग के हवाले से दावा किया  गया है कि इस स्कीम के लागू होने से कुपोषण ,अशिक्षा ,महिलाओं की दुर्दशा जैसी समस्स्याओं को हल किया जा सकता है . इस तरह हम देखते हैं कि राहुल गांधी की दादी ने जिस योजना को केवल चुनाव जीतेने के लिए १९७१ में कह दिया था आज वह एक सच्चाई बन रही है . मई २०१९ में सरकार चाहे जो बने युनिवर्सल बेसिक  इनकम अब एक नीति का रूप अवश्य लेगी .

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