Thursday, January 4, 2018

कर्नाटक विधानसभा चुनाव येदुरप्पा और सिद्दिरमैया की हैसियत का पैमाना होगा



शेष नारायण सिंह  


गुजरात के बाद अगला बड़ा चुनाव कर्णाटक विधान सभा का होगा . चुनाव की तैयारी
  पूरी शिद्दत से शुरू ही गयी है . बीजेपी ने भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद  तत्कालीन मुख्यमंत्री येदुरप्पा को हटा दिया था  लेकिन अब उनके पास ही राज्य में पार्टी की कमान थमा है . पार्टी में भारी मतभेद हैं  लेकिन  पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उम्मीद का दिया जला दिया है . अमित शाह मूल रूप से आशावादी हैं . उन्होंने आशा की किरण तो  त्रिपुरा और केरल में भी दिखाना शुरू कर दिया है कर्नाटक में तो खैर उनकी अपनी सरकार रह चुकी है .अब  बीजेपी को राजनीतिक जीवन में शुचिता भी बहुत ज़्यादा नहीं चाहिए क्योंकि हाल के यू पी और उत्तराखंड के  विधानसभा चुनावों में पार्टी ने कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों के उन नेताओं को टिकट दिया और मंत्री बनाया जिनके खिलाफ बीजेपी के ही प्रवक्ता  गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहते तह. गोवा और मणिपुर में भी जिस स्टाइल में सरकारें बनायी  गयींवह भी बीजेपी की पुरानी वाली शुचिता की राजनीति से बहुत दूर माना जा रहा है . इस पृष्ठभूमि में जब दोबारा येदुरप्पा को कर्नाटक की पार्टी सौंपने का  फैसला आया तो कोई ख़ास चर्चा नहीं हुयी.कर्नाटक की प्रभावशाली जाति लिंगायत से आने वाले  येदुरप्पा का प्रभाव राज्य में है .पार्टी को उम्मीद है कि लिंगायत समूह का साथ तो मिल ही जाएगा और अगर पार्टी के अन्य बड़े नेता ईश्वरप्पा का जातिगत असर चल गया तो अच्छी संख्या में समर्थन मिल जाएगा  . यह देखना दिलचस्प कि कुरुबा जाति के ईश्वरप्पा  की ही बिरादरी के मुख्यमंत्री सिद्दिरमैया भी हैं . उनकी जाति की संख्या खासी है .जाति के दोनों नेता आमने सामने हैं ,नतीजों पर इस का भी असर पडेगा .

विधान सभा चुनावों की तैयारी सिद्दिरमैया ने बहुत पहले से शुरू कर दी थी  . उन्होंने दलितों को अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही साधना शुरू कर दिया था. दलितों के लाभ के लिए मुख्यमंत्री ने २०१७ के बजट में  ही  बहुत सारी योजनायें लागू कर दी थीं .बजट के बाद भी ऐसी योजनाओं की घोषणा की जिसके तहत जून २०१७ में ही दलितों के लिए बहुत सारी योजनायें तुरंत प्रभाव से लागू की कर दी गईं . सरकारी संस्थाओं में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे दलित छात्रों को मुफ्त में लैपटाप तो पहले से ही था अब  निजी स्कूल कालेजों में पढने वाले  दलित छात्रों को भी यह सुविधा दी जा रही है .दलित छात्रों को   बस पास बिलकुल मुफ्त में मिलता है.  . दलित जाति के लोगों को ट्रैक्टर या टैक्सी खरीदने पर  दो लाख रूपये की सब्सिडी  मिलती थी ,उसको अब  तीन लाख कर दिया गया है . ठेके  पर काम करने वाले गरीब मजदूरों पौरकार्मिकोंको अब तक रहने लायक घर बनाने के लिए  दो लाख रूपये का अनुदान मिलता था,अब उसे चार लाख कर दिया गया है .  यह सब काम डेढ़ साल पहले से ही योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है .

कर्णाटक में  माना जाता था कि वोक्कालिगा और लिंगायतसंख्या के हिसाब से  प्रभावशाली जातियां हैं . सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री सिद्दिरमैया  ने जाति के आधार पर जनगणना करवाई . इस जनगणना के नतीजे सार्वजनिक नहीं किये जाने थे लेकिन करीब दो साल पहले  कुछ पत्रकारों के मार्फ़त यह जानकारी सार्वजनिक कर दी गयी  . सिद्दिरामैया की जाति के लोगों की संख्या ४३ लाख यानी करीब ७ प्रतिशत बतायी गयी . यह जानकारी अब पब्लिक डोमेन में आ गयी है जिसको सही माना जा रहा है. इस नई जानकारी के  बाद कर्णाटक की चुनावी राजनीति का हिसाब किताब बिलकुल नए सिरे से शुरू हो गया है .नई जानकारी के बाद लिंगायत ९.८ प्रतिशत और वोक्कालिगा ८.१६ प्रतिशत रह गए हैं .  कुरुबा ७.१ प्रतिशत मुसलमान १२.५ प्रतिशत ,  दलित २५ प्रतिशत ( अनुसूचित  जाती १८ प्रतिशत और अनुसूचित जन जाति ७ प्रतिशत ) और ब्राह्मण २.१ प्रतिशत की संख्या में राज्य में रहते हैं .
अब तक कर्नाटक में माना जाता था कि लिंगायतों की संख्या १७ प्रतिशत है और वोक्कालिगा १२ प्रतिशत हैं . इन आंकड़ों को कहाँ से निकाला गया ,यह किसी को पता नहीं था लेकिन यही आंकड़े चल रहे थे और सारा चुनावी विमर्श इसी पर केन्द्रित हुआ करता था  . नए आंकड़ों के आने के बाद सारे समीकरण बदल गए हैं .  इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी सवाल राज्य की प्रभावशाली जातियों ने सवाल उठाये हैं लेकिन यह भी सच है कि दलित  नेता इस बाद को बहुत पहले से कहते  हैं . दावा किया जाता रहा है कि अहिन्दा ( अल्पसंख्यक,हिन्दुलिदा यानी ओबीसी  और दलित )  वर्ग एक ज़बरदस्त समूह है . जानकार मानते हैं  कि  समाजवादी सिद्दिरामैया ने चुनावी फायदे के लिए अहिन्दा का गठन गुप्त रूप से करवाया  है . मुसलमान दलित और सिद्दिरामैया की अपनी जाति कुरुबा मिलकर करीब ४४ प्रतिशत की आबादी बनते हैं .  जोकि मुख्यमंत्री के लिए बहुत उत्साह का कारण हो सकता है .इसीलिये दलितों को साथ लेने के लिए मुख्यमंत्री ने अपने कार्यकाल के शुरू से ही कई योजनाओं को लागू किया था .

जातियों के आधार पर चुनाव के गणित को उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए हुए चुनावों में बुरी तरह से चुनौती मिल चुकी है .वहां नरेंद्र मोदी की लहर में सभी जातियों के कुछ लोगों ने बीजेपी को  वोट दिया लेकिन  कर्नाटक में ऐसी कोई लहर नहीं दिख रही है . ज़ाहिर है यहाँ विकास और राज्य स्तर के मुद्दे चुनाव को प्रभावित करेंगे .

जातियों के इस भ्रम जाल में एक और मुद्दा पूरी गंभीरता से चुनाव में शामिल हो गया है . गोवा और कर्नाटक के बीच में महादायी नदी के पानी के बंटवारे पर आजकल राज्य में ज़बरदस्त राजनीति चल रही है . राज्य के पांच उत्तरी  जिलों में यह विवाद राजनीति का मुख्य मुद्दा है . गदग,धारवाड़ बेलगावी ,हावेरी,और बागलकोट जिलों की पानी की ज़रूरत को पूरा करने में महादायी नदी का बड़ा योगदान है .इन राज्यों में बाक़ायदा बंद का नारा दिया गया ज बहुत ही सफल रहा . गोवा सरकार और उसके मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर के खिलाफ हुए इस बंद में किसान संगठनों की मुख्य भूमिका थी लेकिन फिल्म उद्योग सहित और भी कई संगठनों ने बंद का समर्थन किया .

महादायी नदी को  गोवा में मंडोवी नदी कहते हैं . दोनों राज्यों के बीच तीस साल से पानी के बंटवारे के बारे में विवाद चल रहा है . बात बहुत बढ़ गयी जब २००२ में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एस एम कृष्णा ने महादायी की दो सहायक  नदियों पर बाँध बना कर सूखा प्रभावित उत्तर कर्नाटक के जिलों के लिए पानी का इंतज़ाम करने के लिए बाँध बनाने का फैसला किया . केंद्र की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने मंजूरी भी दे दी लेकिन गोवा के मुख्यमंत्री ने अडंगा लगा दिया . मनोहर पर्रीकर ही तब भी मुख्यमंत्री थे.

कर्णाटक के मुख्यमंत्री सिद्दिरमैया ने आरोप लगाया है कि गोवा के भाजपाई मुख्यमंत्री पानी नहीं दे रहे हैं और राज्य के बीजेपी नेता कुछ भी नहीं कर रहे हैं . उनका आरोप  है कि पानी की कमी के लिए बीजेपी ही ज़िम्मेदार है. उत्तर कर्णाटक में चल  रहे आन्दोलन के नेता भी मुख्यमंत्री की बात को सही मान रहे  हैं .वे भी बीजेपी के कर्णाटक अध्यक्ष बी एस येदुरप्पा को ही सारी मुसीबत के लिए ज़िम्मेदार साबित करने की कोशिश का रहे हैं .येदुरप्पा के नाम गोवा के मुख्यमंत्री ने एक चिट्ठी भी लिख दी है लेकिन आन्दोलन कारी कहते हैं कि किसी पार्टी नहीं राज्य सरकार के पास चिट्ठी आनी चाहिए थी. चुनाव नतीजों पर महादायी नदी का पानी एक अहम भूमिका निभाने वाला है . दिसम्बर के अंतिम दिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का राज्य के नेताओं से बेंगलूरू में मिलकर चुनाव की तैयारी की समीक्षा की योजना है. दस जनवरी से वे यहाँ सघन अभियान चलाने वाले हैं.  अमित शाह चुनाव जीतने की कला  के ज्ञाता हैं . देखना होगा कि गुजरात की तरह वे कर्णाटक में भी जीत दर्ज कर  पाते हैं कि नहीं .

चुनाव अभियान शुरू हो गया है लेकिन अभी चर्चा में पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौडा की पार्टी का ज़िक्र बहुत कम आ रहा है . उनके बेटे एच डी कुमारस्वामी मज़बूत नेता रहे हैं मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं लेकिन अब लगता है कि अमित शाह के पूरे समर्थन से मैदान में आये येदुरप्पा और कांग्रेस की अकेली उम्मीद सिद्दिरमैया के बीच होने जा रहे चुनाव में वे या तो वोटकटवा साबित होंगें या किसी के साथ मिल जायेगें .

No comments:

Post a Comment